झारखण्ड की अजीब विडंबना है। राज्य गठन के 22 साल पूरे हो चुके हैं। इस दौरान पूर्ण बहुमत की सरकार केवल एक बार बनी। भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली रघुवर सरकार ने बग़ैर विघ्न-बाधा के पाँच साल का कार्यकाल पूरा किया। मौज़ूदा गठबंधन की हेमंत सरकार के साढ़े तीन साल हो चुके हैं। लेकिन हेमंत सरकार गठन (दिसंबर, 2019) के बाद से ही अस्थिरता का दंश झेल रही। सरकार के मुखिया हेमंत सोरेन जहाँ एक के बाद एक आरोपों में घिरते जा रहे हैं, वहीं विपक्षी भाजपा उनको सत्ता से हटाने का रास्ता अख़्तियार कर रही है। हेमंत इनसे उबरने का रास्ता तलाश रहे हैं। यह नहीं कहा जा सकता है कि वह विकास का प्रयास नहीं कर रहे; लेकिन उसमें रफ़्तार की कमी है।
इसे लेकर सरकार शकंकित है। बढ़े हुए मनोबल वाले अधिकारी निरंकुश हैं और मनमानी कर रहे हैं। जिस राज्य में अकूत खनिज सम्पदा हो, जहाँ पर्यटन की असीम संभावनाएँ हों, वहाँ ख़ुशहाली की चमक होनी चाहिए। इसके उलट जनता का मनोबल टूट रहा है। जनता की परेशानी बढ़ रही है। लोगों के चेहरों पर में ख़ुशहाली की जगह आशंका और परेशानी की लकीरें ज़्यादा दिख रही हैं।
मुख्यमंत्री का संकट
मुख्यमंत्री हेमंत सोरने की खनन पट्टा लीज मामले में बीते वर्ष उनकी सदस्यता पर संकट गहराया था। इस पर राज्यपाल ने क़ानूनविदों और चुनाव आयोग से मंतव्य लिया। सदस्यता जाने और सरकार गिरने की चर्चा होने लगी। हेमंत ने भी अपने सहयोगी दलों के विधायकों को लेकर रांची से छत्तीसगढ़ तक ले जाकर एकजुट रखा। विधानसभा में एक बार फिर फ्लोर टेस्ट दिखाया। हालाँकि राज्यपाल ने अभी तक मामले का ख़ुलासा नहीं किया है; लेकिन तलवार लटकी हुई है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने बीते वर्ष नवंबर में साहिबगंज में अवैध खनन मामले में हेमंत सोरेन को पूछताछ के लिए बुलाया था। ईडी के अधिकारियों ने उनसे 8 घंटे पूछताछ की थी। इस मामले में हेमंत सोरेन के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा जेल में हैं। मुख्यमंत्री के प्रेस सलाहकार अभिषेक कुमार समेत कई लोगों से पूछताछ हो चुकी है।
इस दौरान अवैध खनन के साथ-साथ सेना की ज़मीन सहित रांची में अन्य ज़मीन फ़ज़ीवाड़ा का मामला सामने आ गया। रांची के पूर्व उपायुक्त छवि रंजन, राज्य के प्रतिष्ठित कारोबारी विष्णु अग्रवाल समेत कई लोगों पर ईडी ने शिकंजा कसा है। इस मामले में छवि रंजन और विष्णु अग्रवाल समेत आधा दर्ज़न लोग जेल में हैं। अब ईडी ने इसी मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से पूछताछ के लिए समन भेजा था।
ईडी के ख़िलाफ़ पहुँचे कोर्ट
ईडी ने भूमि फ़ज़ीवाड़ा मामले और उनकी सम्पत्ति को लेकर पूछताछ के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को तलब किया था। उन्हें 14 अगस्त को ईडी के रांची स्थित जोनल कार्यालय बुलाया गया था। वह समन पर हाज़िर नहीं हुए। सूत्रों के मुताबिक, हेमंत ने ईडी को पत्र लिखा, जिसमें समन को राजनीति से प्रेरित और ग़ैर-क़ानूनी बताया था। उन्होंने ईडी के सहायक निदेशक को लिखे पत्र में कहा था कि समन में ऐसी किसी बात का ज़िक्र नहीं है, जिससे सम्पत्ति को लेकर मेरे ख़िलाफ़ जाँच की सम्भावना हो। जहाँ तक सम्पत्ति की बात है, तो इससे जुड़ी सारी जानकारी समय-समय पर आयकर रिटर्न में दी जाती रही है।
अगर ईडी को ऐसे किसी दस्तावेज़ की ज़रूरत है, जिसका उल्लेख पहले नहीं किया गया है; तो वह उन्हें उपलब्ध कराने के लिए तैयार हैं। हेमंत ने ईडी से कहा कि वह समन वापस ले, अन्यथा वह क़ानून का सहारा लेने को बाध्य होंगे। हेमंत के पत्र को नज़रअंदाज़ करते हुए ईडी ने उन्हें फिर 24 अगस्त को पेश होने के दूसरा समन जारी कर दिया। हेमंत सोरेन 24 अगस्त को ईडी के सामने पेश नहीं हुए। वह समन के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट पहुँच गये। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर की।
याचिका दायर करने के बाद 24 अगस्त की शाम को हेमंत ने मैसेंजर से ईडी को सीलबंद पत्र भेजा। पत्र में क्या है? इस पर हेमंत सोरेन ने कोई बयान नहीं दिया। ईडी भी अधिकारिक रूप से अभी तक कुछ नहीं कहा है। सूत्रों के मुताबिक, हेमंत सोरेन ने पत्र में समन को राजनीति से प्रेरित क़रार देते हुए ग़ैर-क़ानूनी बताया और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के बारे में ईडी को सूचित किया है। जानकारों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने फ़िलहाल कोई अंतरिम आदेश नहीं दिया है। इसलिए ईडी फिर समन भेज सकती है। सूत्रों के मुताबिक, ईडी क़ानूनी पहलू को देख रही है।
राजनीतिक दाँव-पेंच
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन एक ओर जहाँ आरोपों के कारण जाँच एजेंसियों में फँस रहे, वहीं राजनीतिक दाँव-पेंच में भी उलझ रहे हैं। जैसे-जैसे उन पर ईडी का दबाव बढ़ता है, वह राजनीतिक रूप से ख़ुद को मज़बूत करने का प्रयास करते हैं। इसी क्रम में उन्होंने 1932 खतियान आधारित स्थानीयता, ओबीसी के 27 फ़ीसदी आरक्षण सम्बन्धित अन्य मुद्दों को हवा दे दी। विधानसभा से विधेयक पारित कर राज्यपाल को भेज दिया। हालाँकि राज्यपाल ने दोनों विधेयकों में ख़ामी बताते हुए सरकार को लौटा दिया है। अब हेमंत सोरेन इस मुद्दे को लेकर भाजपा पर प्रहार कर रहे हैं। जनता की सहानुभूति लेने का प्रयास कर रहे। उन्होंने दोनों मुद्दों से सम्बन्धित विधेयक को फिर से विधानसभा से पारित कर राज्यपाल के पास भेजने का आश्वासन दिया है। इसका कितना लाभ मिलेगा? यह तो वक़्त बताएगा। फ़िलहाल भाजपा उन्हें हर तरफ़ से घेरने में लगी है।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इन दिनों आदिवासी और ओबीसी कार्ड खेल रहे हैं। भाजपा ने इसका काट निकाल लिया है। ग़ैर-आदिवासी नेताओं के कुछ ज़्यादा बोलने पर आदिवासियों की नाराज़गी झेलनी पड़ सकती थी। इसलिए भाजपा ने पिछले महीने पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया।
नव नियुक्त प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी आदिवासी नेता हैं। उन्होंने संथाल क्षेत्र ख़ासकर हेमंत सोरेन के विधानसभा क्षेत्र से संकल्प यात्रा शुरू की है। वह राज्य के सभी 81 विधानसभा क्षेत्रों में जाएँगे और सभा को सम्बोधित करेंगे। बाबूलाल खुलकर मुख्यमंत्री पर निशाना साध रहे हैं। हेमंत सोरेन पर आदिवासियों की ज़मीन लूटने समेत अन्य बातों लेकर प्रहार कर रहे। आदिवासियों को छलने का आरोप लगा रहे।
उपचुनाव पर नज़र
राज्य में डुमरी विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव हो रहा है। यहाँ 5 सितंबर को मतदान होगा। झामुमो नेता शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो के जुलाई में निधन के कारण यह सीट ख़ाली हुई थी। गठबंधन सरकार ने झामुमो प्रत्याशी बेबी देवी को मैदान में उतारा है। वह स्व. जगरनाथ महतो की पत्नी हैं। वहीं एनडीए ने आजसू के यशोदा देवी को प्रत्याशी बनाया है। भाजपा और आजसू ने पूरी ताक़त झोंक रखी है। लेकिन हेमंत सोरेन ने बेबी देवी को पहले ही कैबिनेट मंत्री बनाकर सहानुभूति का दाँव चल दिया है। झामुमो, कांग्रेस और राजद तीनों पार्टियाँ बेबी देवी को जिताने के लिए पूरे दम$खम के साथ मैदान में दिख रही हैं। इस सीट की जीत-हार और वोटों का प्रतिशत अगले वर्ष होने वाले चुनाव के लिए संकेत तो देगा ही, साथ ही इससे मुख्यमंत्री के साढ़े तीन साल के कार्यकाल और आरोपों के असर का भी आकलन करने का मौक़ा मिलेगा।
भविष्य की बातें
अगले वर्ष देश में आम चुनाव है। झारखण्ड में भी अगले वर्ष नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव होना है। हालाँकि लोकसभा के साथ ही विधानसभा का चुनाव कराने की चर्चा है। वर्तमान में राज्य मुश्किल दौर से गुज़र रहा। राज्य में विकास की गति धीमी है। पलायान जारी है। अपराध का ग्राफ बढ़ा है। रोज़गार की कमी है। स्वास्थ्य, शिक्षा आदि जितनी मूलभूत सेवाओं की बात की जा रही, वह धरातल पर कम उतरे हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 1932 खतियान आधारित स्थानीयता, ओबीसी आरक्षण आदि के साथ आदिवासी कार्ड खेला है, इसका कितना $फायदा उन्हें मिलेगा? यह अभी भविष्य के गर्भ में छिपा है। हेमंत जाँच एजेंसियों और विपक्ष के दाँव-पेंच से ख़ुद को निकाल ले जाते हैं या इसमें फँस जाते हैं? यह भी आने वाला वक़्त ही बताएगा। लेकिन इस वक़्त जनता को इनसे विषयों से हटकर सोचने की ज़रूरत है।
बीते 22 साल में गठबंधन की सरकार को जनता देख चुकी है। जनता को अगर राज्य का विकास चाहिए, तो पूर्ण बहुमत की सरकार बनानी होगी। चाहे वह झामुमो की हो, कांग्रेस की हो या भाजपा की हो; लेकिन एक पार्टी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार हो। तभी विकास की उम्मीद की जा सकती है। वर्ना ऐसे ही जोड़-तोड़ की हिलती-डुलती सरकार चलती रहेगी और ख़ामियाज़ा जनता भुगतती रहेगी।