प्रगतिशील बजट या विश्वासघात?

The Union Minister for Finance and Corporate Affairs, Smt. Nirmala Sitharaman departs from North Block to Rashtrapati Bhavan and Parliament House, along with the Ministers of State for Finance, Shri Pankaj Chaowdhary and Dr. Bhagwat Kishanrao Karad and the senior officials to present the Union Budget 2022-23, in New Delhi on February 01, 2022.

भविष्य का सपना दिखाकर पेश किये गये वित्त वर्ष 2022-23 के बजट की अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रबन्ध निदेशक ने की तारीफ़

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा वित्त वर्ष 2022-23 के लिए पेश किये गये आम बजट को भारत के लिए एक विचारशील नीति का एजेंडा बताया है, जबकि विपक्षी दल कांग्रेस ने केंद्रीय बजट को ‘भारत के वेतनभोगी और मध्यम वर्ग के साथ विश्वासघात’ कहा है। वहीं पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा ने कहा है कि कृषि क्षेत्र के लिए बजटीय आवंटन में कमी निराशाजनक है। भारत हितैषी का बजट विश्लेषण :-

वित्त वर्ष 2022-23 के आम बजट को देखने से साफ़ ज़ाहिर होता है कि विधानसभा चुनावों से पहले सरकार ने लोकलुभावनवाद से ख़ुद को बचाया है। यह इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि अतीत से परम्परा रही है कि बजट लुभावना, बड़ी घोषणाओं और कम सार वाला होता था। आत्मनिर्भर अर्थ-व्यवस्था कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बजट 2022-23 को आधुनिक और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक क़दम बताया। उन्होंने कहा कि बजट में यूपीए शासन की तुलना में सार्वजनिक निवेश में चार गुना वृद्धि करने का प्रस्ताव है और यह उपाय केंद्रीय बजट को ‘जन-हितैषी’ और ‘प्रगतिशील’ बताते हुए वृहद् अवसर प्रदान करेगा। हालाँकि राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव में भाग लेते हुए पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा ने कहा कि 2022-23 में कृषि के लिए आवंटन पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 3.8 फ़ीसदी कम हो गया है। यह देखते हुए कि भारत की अर्थ-व्यवस्था कृषि पर आधारित है, यह चिन्ताजनक बात है। इसमें देश के कार्यबल का 50 फ़ीसदी योगदान शामिल है और सकल घरेलू उत्पाद में 70 फ़ीसदी का योगदान देता है।

देवेगौड़ा ने कहा कि राष्ट्रपति के अभिभाषण में किसानों की आय दोगुनी करने के लिए कोई रोड मैप नहीं है। जलवायु परिवर्तन, बाढ़, सूखे और गिरते भूजल स्तर जैसी सभी बाधाओं के बावजूद देश के किसानों ने 2020-21 में 2.3 फ़ीसदी की औसत वृद्धि के साथ 305 मिलियन टन खाद्यान्न और 320 मिलियन टन फलों और सब्ज़ियों का उत्पादन किया। उन्होंने मनरेगा के लिए बजटीय आवंटन में कमी का उल्लेख करते हुए कहा कि यह ग्रामीण विकास के लक्ष्य के विपरीत है।

ग़ौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रबन्ध निदेशक क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने बजट की प्रशंसा करते हुए कहा- ‘हम भारत के लिए काफ़ी मज़बूत विकास का अनुमान लगा रहे हैं। हाँ, हमारे पिछले अनुमान की तुलना में 9.5 फ़ीसदी से नौ फ़ीसदी या 2022 तक एक छोटा उतार सम्भव है। हमारे पास 2023 के लिए एक छोटा चढ़ाव (अपग्रेड) भी है। क्योंकि हमें लगता है कि हम एक स्थिर विकास देखेंगे, जो वित्त मंत्री से बहुत अलग नहीं है।

जॉर्जीवा ने संवाददाताओं के एक समूह के साथ एक आभासी बैठक (वीडियो कॉन्फ्रेंस) के दौरान कहा- ‘हम इस तथ्य पर बहुत सकारात्मक हैं कि भारत अल्पकालिक मुद्दों को सम्बोधित करने के बारे में सोच रहा है। लेकिन दीर्घकालिक संरचनात्मक परिवर्तन भी कर रहा है, और मानव पूँजी निवेश और डिजिटलीकरण पर अनुसंधान और विकास पर बहुत ज़ोर दिया गया है। साथ ही यह भी है कि भारत उसके लिए आर्थिक साधनों का उपयोग करके जलवायु परिवर्तन के एजेंडे को कैसे तेज़ कर सकता है। केंद्रीय वित्त और कॉर्पोरेट मामलों की मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में केंद्रीय बजट पेश करते हुए कहा कि चालू वर्ष में भारत की आर्थिक वृद्धि 9.2 फ़ीसदी रहने का अनुमान है, जो सभी बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में सबसे अधिक है। महामारी के प्रतिकूल प्रभावों से अर्थ-व्यवस्था की समग्र, तेज़ वापसी और वसूली हमारे देश में मज़बूत लचीलापन ज़ाहिर करती है।

हालाँकि वरिष्ठ पत्रकार के.आर. सुधमन, जिनके पास पत्रकारिता में 40 साल का अनुभव है और वह प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया, टिकरन्यूज और फाइनेंशियल क्रॉनिकल राइटिंग में आईपीए के सवालों के सम्पादक रह चुके हैं; यह पूछने पर कि क्या बजट ने अर्थ-व्यवस्था को खींचने का रास्ता खोला है? वह कहते हैं कि उत्तर अभी स्पष्ट नहीं है। इसका कारण यह है कि दुनिया भर में अर्थ-व्यवस्था का प्रबन्धन काफ़ी हद तक संकट से निपटने के विचार और अर्थ-व्यवस्था में दीर्घकालिक स्थिरता लाने के बजाय संकट से निपटने के तरीक़े तक सीमित है।

व्यापार चक्रों और हाल ही में कोरोना महामारी जैसी अप्रत्याशित घटनाओं के कारण किसी भी अर्थ-व्यवस्था पर असर को लेकर कोई सन्देह नहीं है। परिणामस्वरूप दुनिया भर में विशेष रूप से लोकतंत्रों में प्रयास केवल तात्कालिक समस्याओं से निपटने का है और वह भी बहुत तत्काल के लिए। नतीजे के रूप में विस्तारवादी और संकुचनवादी राजकोषीय और मौद्रिक नीतियों को अपनाकर त्वरित-समाधान चुनने की प्रवृत्ति बढ़ी है, जिसके परिणामस्वरूप अर्थ-व्यवस्था हमेशा प्रवाह की स्थिति में रहती है।

समय आ गया है कि अर्थशास्त्री इस मामले पर विचार करें और उभरती स्थिति के बावजूद एक स्थिर आर्थिक स्थिति की ओर बढऩे का प्रयास करें। भारत के मामले में केवल लम्बे समय तक चलने वाले आर्थिक सुधारों का प्रयास सन् 1991 में किया गया था, जब अर्थ-व्यवस्था को एक बड़े संकट का सामना करना पड़ा। इससे सरकार को ऐसी नीतियों के साथ आने के लिए मजबूर होना पड़ा, जो अर्थ-व्यवस्था के दीर्घकालिक अच्छे के लिए काम करती थीं। न केवल पी.वी. नरसिम्हा राव ने इसे शुरू किया, बल्कि उनके उत्तराधिकारियों, देवेगौड़ा, आई.के. गुजराल और अटल बिहारी वाजपेयी ने भी इसे जारी रखा। वास्तव में मनमोहन सिंह, जो वित्त मंत्री के रूप में सन् 1991 के सुधार के मुख्य शिल्पी थे; प्रधानमंत्री के समान उत्साह के साथ सुधारों को आगे नहीं बढ़ा सके। कारण था, आंशिक रूप से गठबन्धन की राजनीति की मजबूरियों और नरसिम्हा राव या वाजपेयी जैसी राजनीतिक अर्थ-व्यवस्था का प्रबन्धन करने में उनकी अक्षमता।

यहाँ तक कि देवेगौड़ा और गुजराल भी सुधारों को बेहतर तरीक़े से आगे बढ़ाने में सक्षम थे। वास्तव में पी. चिदंबरम के सपनों का बजट दूरगामी कर सुधारों के साथ उनके छोटे शासन के दौरान प्रस्तुत और पारित किया गया था। गठबन्धन सरकार या अल्पसंख्यक सरकार के बावजूद ये सुधार सम्भव थे; क्योंकि सन् 1991 के बाद से 10 कठिन वर्षों के दौरान सभी राजनीतिक दलों के बीच सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए आम सहमति थी।

इसलिए जो महत्त्वपूर्ण है, वह है कि राजनीतिक अर्थ-व्यवस्था का उचित प्रबन्धन। यह सुदृढ़ और स्थिर आर्थिक नीतियों को सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित करता है कि व्यापार चक्रों और अप्रत्याशित संकटों के उतार-चढ़ाव का सामना करने के लिए व्यापक आर्थिक ढाँचा मज़बूत है। इसलिए हम जिस प्रश्न की ओर बढ़ रहे हैं, उसका उत्तर निश्चित नहीं है, क्योंकि दुनिया भर के अर्थ-शास्त्री लम्बे समय तक नहीं सोचते हैं। जैसा कि मेनार्ड कीन्स ने सन् 1930 के दशक के महामंदी के दौरान एक बार कहा था कि दीर्घकालिक सोच के मामले में हम सभी मर चुके हैं। यह सच है। लेकिन अगर हमें बाद की पीढिय़ों का ध्यान रखना है, तो दीर्घकालिक स्थिरता होनी चाहिए। इसलिए नीतियों को विकसित करना होगा, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि दीर्घकालिक मुद्दों को सम्बोधित किया जाए, जबकि अल्पकालिक आर्थिक मुद्दों को तत्काल समाधान के लिए निपटाया जाए।

आरबीआई के पूर्व गवर्नर और अर्थ-शास्त्री रघुराम राजन सही हैं, जब वह कहते हैं कि उभरते बाज़ारों के संकट की ओर बढऩे का एक कारण यह है कि वह अपनी तात्कालिक राजनीतिक प्राथमिकताओं के बावजूद राजनीतिक दलों के बीच तंत्र स्थापित करने और समर्थन के लिए आम सहमति हासिल करने में विफल रहे। हाल के इतिहास से पता चलता है कि विकसित अर्थ-व्यवस्थाएँ भी ‘दर्द’ के प्रति कम सहिष्णु होती जा रही हैं। क्योंकि उनकी अपनी राजनीतिक सहमति ख़त्म हो गयी है। अतीत में उन्नत अर्थ-व्यवस्थाओं ने ऐसे तंत्र बनाये, जो उन्हें आवश्यक होने पर कठिन विकल्प बनाने की अनुमति देते थे और जिसमें स्वतंत्र केंद्रीय बैंक और बजट घाटे पर अनिवार्य सीमाएँ शामिल थीं। इसे अब उन्नत अर्थ-व्यवस्थाओं में भी जाने दिया जाता है।

राजन एक लेख में विस्तार से कहते हैं कि वित्तीय बाज़ार एक बार फिर अस्थिर हो गये हैं। इस डर के कारण कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व को मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए अपनी मौद्रिक नीति को काफ़ी कड़ा करना होगा। लेकिन कई निवेशकों को अभी भी उम्मीद है कि अगर सम्पत्ति की क़ीमतों में भारी गिरावट शुरू हो जाती है, तो फेड आसान हो जाएगा। यदि फेड उन्हें सही साबित करता है, तो भविष्य में वित्तीय स्थितियों को सामान्य करना उतना ही कठिन हो जाएगा। वह कहते हैं कि निवेशक की आशा है कि फेड उत्साह को लम्बा खींचने, निराधार नहीं है। उन्होंने कहा कि सन् 1996 के अन्त में फेड अध्यक्ष एलन ग्रीनस्पैन ने वित्तीय बाज़ारों में तर्कहीन उत्साह की चेतावनी दी थी। लेकिन बाज़ारों ने चेतावनी को ठुकरा दिया और सही साबित हुए। शायद ग्रीनस्पैन के भाषण की कठोर राजनीतिक प्रतिक्रिया के कारण फेड ने कुछ नहीं किया। और जब सन् 2000 में शेयर बाज़ार अंतत: हादसे से दो-चार हुआ, तो फेड ने दरों में कटौती की; यह सुनिश्चित करते हुए कि मंदी हल्की थी।

जैसा कि मनमोहन सिंह और राजन कहते हैं कि अर्थ-व्यवस्था में कोई मुफ़्त भोज नहीं होता। यह सच है कि कोई भी मुफ़्त भोज एक क़ीमत में आता है और यह समय है कि केंद्र और राज्य सरकारें अर्थ-व्यवस्था की स्थायी भलाई के लिए वोट पाने के मुफ़्त और लोकलुभावन उपायों से दूर रहें। इसके परिणामस्वरूप अल्पकालिक लाभ के लिए उन्नत और उभरती अर्थ-व्यवस्थाओं में सतत व्यापक आर्थिक अस्थिरता उत्पन्न हुई है। समय आ गया है कि अर्थ-शास्त्री और राजनेता इस मामले पर विचार करें और दुनिया भर में स्थिर अर्थ-व्यवस्थाओं की दिशा में काम करने के लिए क़दम उठाएँ, ताकि राष्ट्र संकट से संकट की ओर न बढ़ें। कुछ निर्णय कठिन और पीड़ा वाले होंगे, ताकि अर्थ-व्यवस्थाएँ विशेष रूप से भारत उच्च राजकोषीय घाटे, उच्च ऋण और भगोड़ा मुद्रास्फीति की ओर न बढ़ें।

बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि आत्मनिर्भर भारत के विजन को प्राप्त करने के लिए 14 क्षेत्रों में उत्पादकता से जुड़े प्रोत्साहन को सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है, जिसमें अगले पाँच वर्षों के दौरान 60 लाख नये रोज़गार और 30 लाख करोड़ रुपये के अतिरिक्त उत्पादन की सम्भावना है। नयी सार्वजनिक क्षेत्र की उद्यम नीति के कार्यान्वयन के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि एयर इंडिया के स्वामित्व का रणनीतिक हस्तांतरण पूरा हो गया है। एनआईएनएल (नीलांचल इस्पात निगम लिमिटेड) के लिए रणनीतिक भागीदार का चयन किया गया है। एलआईसी का सार्वजनिक मुद्दा जल्द ही हल होने की उम्मीद है और अन्य मुद्दे भी 2022-23 के लिए प्रक्रिया में हैं। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि यह बजट विकास को गति प्रदान करता रहेगा। यह अमृत काल के लिए एक समानांतर ट्रैक रखता है, जो भविष्यवादी और समावेशी है और सीधे हमारे युवाओं, महिलाओं, किसानों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को लाभान्वित करेगा।

उधर आधुनिक बुनियादी ढाँचे के लिए बड़ा सार्वजनिक निवेश भारत के लिए तैयार है और यह प्रधानमंत्री की गतिशक्ति द्वारा निर्देशित होगा और बहु-मॉडल दृष्टिकोण के तालमेल से लाभान्वित होगा। उनके मुताबिक, गतिशक्ति, सात इंजनों- सडक़, रेलवे, हवाई अड्डे, बंदरगाह, जन परिवहन, जलमार्ग और रसद अवसंरचना द्वारा संचालित है। सभी सात इंजन एक साथ अर्थ-व्यवस्था को आगे बढ़ाएँगे। एक्सप्रेस-वे के लिए प्रधानमंत्री गतिशक्ति मास्टर प्लान 2022-23 में लोगों और सामानों की तेज़ आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिए तैयार किया जाएगा। वित्त वर्ष 2022-23 में राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क का 25,000 किलोमीटर तक विस्तार किया जाएगा और सार्वजनिक संसाधनों के पूरक के लिए वित्तपोषण के नवीन तरीक़ों के माध्यम से 20,000 करोड़ रुपये जुटाये जाएँगे। रेलवे को लेकर वित्त मंत्री ने कहा कि स्थानीय व्यवसायों और आपूर्ति शृंखलाओं की मदद के लिए ‘एक स्टेशन-एक उत्पाद’ की अवधारणा को लोकप्रिय बनाया जाएगा। इसके अलावा आत्मनिर्भर भारत के एक हिस्से के रूप में 2022-23 में सुरक्षा और क्षमता वृद्धि के लिए स्वदेशी विश्व स्तरीय तकनीक कवच के तहत 2,000 किमी नेटवर्क लाया जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि बेहतर ऊर्जा दक्षता और यात्री सवारी अनुभव वाली नयी पीढ़ी की 400 वंदे भारत ट्रेनों का विकास और निर्माण किया जाएगा और अगले तीन वर्षों के दौरान मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक्स सुविधाओं के लिए 100 प्रधानमंत्री गतिशक्ति कार्गो टर्मिनल स्थापित किये जाएँगे।

बजट में घोषणा है कि सरकार 2022-23 में 5जी मोबाइल फोन सेवाओं के रोल-आउट की सुविधा के लिए 2022 में आवश्यक स्पेक्ट्रम नीलामी आयोजित करने का प्रस्ताव करती है। समयरेखा की व्यवहार्यता के बारे में अटकलों को ख़ारिज़ करना निश्चित है। रोल-आउट में तेज़ी लाने के लिए सरकार की उत्सुकता को सीतारमण ने नवीनतम पीढ़ी की दूरसंचार प्रौद्योगिकी की आर्थिक विकास और रोज़गार सृजन के समर्थक के रूप में सेवा करने की क्षमता की सराहना के रूप में प्रस्तुत किया।

ट्राई के मार्च तक 5जी के लिए अलग रखे जाने वाले स्पेक्ट्रम पर अपनी सिफ़ारिशें देने की उम्मीद है। हालाँकि 5जी सेवाओं की शुरुआत के आसपास के महत्त्वपूर्ण मुद्दों के सम्बन्ध में सरकार की योजना के दृष्टिकोण पर बहुत कम स्पष्टता है। सबसे महत्त्वपूर्ण सवाल उन विशेष आवृत्तियों के बारे में हैं, जो नियामक द्वारा सिफ़ारिश की जा सकती हैं। स्पेक्ट्रम के मूल्य निर्धारण पर सरकार की योजनाएँ और सबसे महत्त्वपूर्ण है दूरसंचार कम्पनियों और पूरी अर्थ-व्यवस्था दोनों के लिए नयी तकनीक की व्यवहार्यता। निजी दूरसंचार सेवा प्रदाता पहले से ही वित्तीय तनाव में हैं।

5जी प्रौद्योगिकी में एक बड़े क़दम का प्रतिनिधित्व करता है, इसमें कोई सन्देह नहीं है। हालाँकि अधिकांश देश, जिन्होंने अब तक 5जी का व्यावसायीकरण किया है; वह बड़े पैमाने पर प्रौद्योगिकी को अभी भी मुख्य रूप से अन्तिम उपयोग के मामले में 4जी के लिए उन्नत प्रतिस्थापन के रूप में रखते हैं, जिसमें औद्योगिक और सार्वजनिक उपयोगिता अनुप्रयोगों की परिकल्पना अभी भी कम-से-कम कुछ साल दूर है। कृषि के मोर्चे पर वित्त मंत्री ने बताया कि पहले चरण में गंगा नदी के किनारे पाँच किमी चौड़े गलियारों में किसानों की भूमि पर ध्यान देने के साथ पूरे देश में रासायनिक मुक्त प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। फ़सल मूल्यांकन, भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण, कीटनाशकों के छिडक़ाव और पोषक तत्त्वों के लिए किसान ड्रोन के उपयोग को बढ़ावा दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि तिलहन के आयात पर निर्भरता कम करने के लिए तिलहन का घरेलू उत्पादन बढ़ाने की युक्तियुक्त एवं व्यापक योजना लागू की जाएगी।

जैसा कि 2023 को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार वर्ष के रूप में घोषित किया गया है; सरकार ने फ़सल के बाद मूल्यवर्धन, घरेलू खपत बढ़ाने और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाज़ार उत्पादों की ब्रांडिंग के लिए पूर्ण समर्थन की घोषणा की। वित्त मंत्री ने रेखांकित किया कि आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) ने 130 लाख से अधिक एमएसएमई को महामारी के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने में मदद करने के लिए बहुत आवश्यक अतिरिक्त ऋण प्रदान किया है। हालाँकि उन्होंने कहा कि आतिथ्य और सम्बन्धित सेवाएँ, विशेष रूप से सूक्ष्म और लघु उद्यमों द्वारा अभी तक अपने व्यवसाय के पूर्व-महामारी स्तर को फिर से हासिल करना बाक़ी है और इन पहलुओं पर विचार करने के बाद ईसीएलजीएस को मार्च, 2023 तक बढ़ाया जाएगा। उसने बताया कि इसकी गारंटी कवर को 50,000 करोड़ रुपये बढ़ाकर कुल पाँच लाख करोड़ रुपये किया जाएगा, अतिरिक्त राशि विशेष रूप से आतिथ्य और सम्बन्धित उद्यमों के लिए निर्धारित की जाएगी।

इसी तरह सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए क्रेडिट गारंटी ट्रस्ट (सीजीटीएमएसई) योजना को आवश्यक धन के साथ नया रूप दिया जाएगा। इससे सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए दो लाख करोड़ रुपये के अतिरिक्त ऋण की सुविधा होगी और रोज़गार के अवसरों का विस्तार होगा। उन्होंने बताया कि एमएसएमई क्षेत्र को अधिक लचीला, प्रतिस्पर्धी और कुशल बनाने के लिए पाँच वर्षों में 6,000 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ एमएसएमई प्रदर्शन (आरएएमपी) कार्यक्रम को बढ़ाना और तेज़ करना शुरू किया जाएगा। उद्यम, ई-श्रम, एनसीएस और असीम पोर्टल को आपस में जोड़ा जाएगा और उनका दायरा बढ़ाया जाएगा।

छात्रों को उनके दरवाज़े पर व्यक्तिगत सीखने के अनुभव के साथ विश्व स्तरीय गुणवत्ता वाली सार्वभौमिक शिक्षा प्रदान करने के लिए एक डिजिटल विश्वविद्यालय की स्थापना देश भर के लिए की जाएगी। इसे विभिन्न भारतीय भाषाओं और आईसीटी प्रारूपों में उपलब्ध कराया जाएगा। विश्वविद्यालय एक नेटवर्क हब-स्पोक मॉडल पर बनाया जाएगा, जिसमें हब बिल्डिंग, अत्याधुनिक आईसीटी विशेषज्ञता होगी। देश के सर्वश्रेष्ठ सार्वजनिक विश्वविद्यालय और संस्थान हब-स्पोक के नेटवर्क के रूप में सहयोग करेंगे। आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के तहत, राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक खुला मंच शुरू किया जाएगा और इसमें स्वास्थ्य प्रदाताओं और स्वास्थ्य सुविधाओं की डिजिटल रजिस्ट्रियाँ, अद्वितीय स्वास्थ्य पहचान, सहमति ढाँचा और स्वास्थ्य सुविधाओं तक सार्वभौमिक पहुँच शामिल होगी।

बजट में नल से जल के लिए 2022-23 में 3.8 करोड़ घरों को कवर करने के लिए 60,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। वर्तमान कवरेज 8.7 करोड़ है और इसमें से 5.5 करोड़ घरों को पिछले दो वर्षों में ही नल का पानी उपलब्ध कराया गया था। इसी तरह 2022-23 में प्रधानमंत्री आवास योजना के चिह्नित पात्र लाभार्थियों, ग्रामीण और शहरी दोनों के लिए 80 लाख घरों का निर्माण किया जाएगा और इस उद्देश्य के लिए 48,000 करोड़ रुपये आवंटित किये गये हैं। साल 2022 में 1.5 लाख डाकघरों में से 100 फ़ीसदी कोर बैंकिंग प्रणाली पर आ जाएँगे, जिससे 11 नेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, एटीएम के माध्यम से वित्तीय समावेशन और खातों तक पहुँच सम्भव हो सकेगी, और डाकघर खातों और बैंक खातों के बीच धन का ऑनलाइन हस्तांतरण भी होगा। यह विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों और वरिष्ठ नागरिकों के लिए सहायक होगा, जिससे अंतर-संचालन और वित्तीय समावेशन सक्षम होगा। स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने पर सरकार ने अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा देश के 75 ज़िलों में 75 डिजिटल बैंकिंग इकाइयाँ (डीबीयू) स्थापित करने का प्रस्ताव किया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि डिजिटल बैंकिंग का लाभ देश के कोने-कोने में उपभोक्ता तक पहुँचे। नागरिकों को उनकी विदेश यात्रा में सुविधा बढ़ाने के लिए 2022-23 में एम्बेडेड चिप और फ्यूचरिस्टिक तकनीक का उपयोग करते हुए ई-पासपोर्ट जारी किये जाएँगे।

रक्षा के मोर्चे पर सरकार ने सशस्त्र बलों के लिए उपकरणों में आयात को कम करने और आत्मनिर्भर को बढ़ावा देने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहरायी है। वित्त वर्ष 2022-23 में पूँजीगत ख़रीद बजट का 68 फ़ीसदी घरेलू उद्योग के लिए निर्धारित किया जाएगा, जो वित्त वर्ष 2021-22 में 58 फ़ीसदी था। रक्षा अनुसंधान और विकास बजट का 25 फ़ीसदी रक्षा अनुसंधान एवं विकास बजट के साथ उद्योग, स्टार्टअप और शिक्षा के लिए खोला जाएगा। वित्त मंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि सार्वजनिक निवेश को आगे बढऩा चाहिए और 2022-23 में निजी निवेश और माँग को बढ़ावा देना चाहिए और इसलिए केंद्रीय बजट में पूँजीगत व्यय के परिव्यय में एक बार फिर चालू वित्त वर्ष में 5.54 लाख करोड़ रुपये से अगले माली साल (2022-23) में 7.50 लाख करोड़ रुपये से 35.4 फ़ीसदी की वृद्धि की जा रही है। चालू वित्त वर्ष में यह 5.54 लाख करोड़ रुपये है, जो 2022-23 में 7.50 लाख करोड़ रुपये है। यह 2019-20 के ख़र्च के 2.2 गुना से अधिक हो गया है और 2022-23 में यह परिव्यय सकल घरेलू उत्पाद का 2.9 फ़ीसदी होगा। राज्यों को सहायता अनुदान के माध्यम से पूँजीगत सम्पत्ति के निर्माण के लिए किये गये प्रावधान के साथ किये गये इस निवेश के साथ केंद्र सरकार का प्रभावी पूँजीगत व्यय 2022-23 में 10.68 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जो जीडीपी का लगभग 4.1 फ़ीसदी होगा।

वित्त वर्ष 2022-23 में सरकार के समग्र बाज़ार उधार के हिस्से के रूप में हरित बुनियादी ढाँचे के लिए संसाधन जुटाने के लिए सॉवरेन ग्रीन बांड जारी किये जाएँगे। आय को सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाओं में लगाया जाएगा, जो अर्थ-व्यवस्था की कार्बन तीव्रता को कम करने में मदद करती हैं। सरकार ने अधिक कुशल और सस्ती मुद्रा प्रबन्धन प्रणाली के लिए 2022-23 से भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी किये जाने वाले ब्लॉकचेन और अन्य तकनीकों का उपयोग करते हुए डिजिटल रुपया पेश करने का प्रस्ताव रखा।

बजट में करदाताओं को अतिरिक्त कर के भुगतान पर अद्यतन विवरणी दाख़िल करने की अनुमति देने वाले एक नये प्रावधान का प्रस्ताव है। यह अद्यतन विवरणी प्रासंगिक निर्धारण वर्ष की समाप्ति से दो वर्षों के भीतर दाख़िल की जा सकती है। सीतारमण ने कहा कि इस प्रस्ताव के साथ करदाताओं में एक विश्वास क़ायम होगा, जो निर्धारिती को स्वयं उस आय की घोषणा करने में सक्षम करेगा, जो वह रिटर्न दाख़िल करते समय पहले छूट गयी थी। यह स्वैच्छिक कर अनुपालन की दिशा में एक सकारात्मक क़दम है। केंद्र सरकार अपने कर्मचारियों के वेतन का 14 फ़ीसदी राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) टियर-ढ्ढ में योगदान करती है। यह कर्मचारी की आय की गणना में कटौती के रूप में अनुमत है। हालाँकि राज्य सरकार के कर्मचारियों के मामले में इस तरह की कटौती केवल वेतन के 10 फ़ीसदी की सीमा तक की अनुमति है। समान व्यवहार प्रदान करने के लिए बजट में राज्य सरकार के कर्मचारियों के एनपीएस खाते में नियोक्ता के योगदान पर कर कटौती की सीमा को 10 फ़ीसदी से बढ़ाकर 14 फ़ीसदी करने का प्रस्ताव है। कुछ घरेलू कम्पनियों के लिए विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी कारोबारी माहौल स्थापित करने के प्रयास में सरकार द्वारा नयी निगमित घरेलू विनिर्माण कम्पनियों के लिए 15 फ़ीसदी कर की रियायती कर व्यवस्था शुरू की गयी थी। केंद्रीय बजट में धारा-115 बीएबी के तहत निर्माण या उत्पादन शुरू करने की अन्तिम तिथि 31 मार्च, 2024 तक बढ़ाने का प्रस्ताव है।

लब्बोलुआब यह कि अर्थ-व्यवस्था अभी भी डबल इंजन ग्रोथ की तलाश में है, जो पिछले वित्तीय वर्ष के रिकॉर्ड संकुचन से उबरने में मदद कर सके। यह सवाल लटका हुआ है कि क्या मध्यम वर्ग के लिए टैक्स ब्रेक और ग़रीबों के लिए नक़द हैंडआउट के संयोजन के माध्यम से प्रमुख मुद्दों को हल करने का अवसर चूक गया है। सार्वजनिक पूँजीगत व्यय की भूमिका को मंत्री स्वयं स्वीकार करते हैं। फिर भी पूँजीगत खाते के लिए 7.50 लाख करोड़ रुपये का बजट परिव्यय चालू वित्त वर्ष के 6.03 लाख करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान से सिर्फ़ 24.4 फ़ीसदी की वृद्धि है, जबकि कार्यक्रम द्वारा परिकल्पित सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे का व्यापक विस्तार सम्भावित रूप से परिवर्तनकारी हो सकता है, यदि इसे कल्पना के रूप में क्रियान्वित किया जाता है, तो बजट उन विवरणों पर काफ़ी हद तक कम है; जहाँ यह केवल सडक़ों और रेलवे घटकों के लिए कुछ आँकड़ों में विशिष्टताओं से सम्बन्धित है।

स्वास्थ्य देखभाल, ग्रामीण विकास और राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना के लिए परिव्यय वित्तीय वर्ष 2023 के बजट अनुमानों में चालू वर्ष के संशोधित अनुमानों से कुल व्यय के फ़ीसद के रूप में सिकुड़ गया है; भले ही कुछ मामलों में केवल मामूली रूप से ही सही। इन क्षेत्रों को मोटे तौर पर राजकोषीय समेकन रोड मैप से चिपके रहने के लिए सरकार की उत्सुकता के प्रभाव को सहन करने के लिए मजबूर किया गया है- बजट में 6.9 के संशोधित अनुमान से 2022-23 में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 6.4 फ़ीसदी तक सीमित करने का अनुमान है, जो सरकार की प्राथमिकताओं को दर्शाता है। इसके बजाय स्वास्थ्य देखभाल पर सरकारी ख़र्च में काफ़ी वृद्धि की जानी चाहिए थी, जिसमें चल रही महामारी की पहली दो लहरों से सब$क लेकर सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे के बड़े पैमाने पर विस्तार की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया था।

मंत्री ने दो-ट्रैक दृष्टिकोण अपनाकर आभासी मुद्राओं से निपटने के तरीक़े पर उग्र बहस को ठंडा करने का प्रयास किया है। आरबीआई द्वारा जारी डिजिटल रुपया ब्लॉकचेन और अन्य सम्बन्धित तकनीकों का लाभ उठाएगा। समानांतर में वह किसी भी आभासी डिजिटल सम्पत्ति के हस्तांतरण से होने वाली आय पर 30 फ़ीसदी की दर से कर लगाने का इरादा रखती है, जिसमें केवल अधिग्रहण की लागत के लिए कटौती की अनुमति है।

 

बजट की मुख्य बातें

 भारत की आर्थिक वृद्धि 9.2 फ़ीसदी होने का अनुमान है, जो सभी बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में सबसे अधिक है। उत्पादकता से जुड़ी प्रोत्साहन योजना के तहत 14 क्षेत्रों में 60 लाख नये रोज़गार सृजित होंगे।

 अमृत काल में प्रवेश करते हुए भारत के लिए 25 साल की लम्बी लीड ञ्च 100, बजट विकास को गति प्रदान करता है।

 प्रधानमंत्री गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान के दायरे में आर्थिक परिवर्तन, निर्बाध मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी और रसद दक्षता के लिए सात इंजन शामिल होंगे।

 वित्त वर्ष 2022-23 में राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क का 25,000 किलोमीटर तक विस्तार किया जाएगा। चार स्थानों पर मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक्स पार्कों के कार्यान्वयन के लिए 2022-23 में पीपीपी मोड के माध्यम से ठेके दिये जाएँगे।

 स्थानीय व्यवसायों और आपूर्ति शृंखलाओं की सहायता के लिए एक स्टेशन एक उत्पाद अवधारणा।

 अगले तीन साल के दौरान 400 नयी पीढ़ी की वंदे भारत ट्रेनों का निर्माण किया जाएगा।

 राष्ट्रीय रोपवे विकास कार्यक्रम, पर्वतमाला को पीपीपी मोड पर चलाया जाएगा।

 किसानों को गेहूँ और धान की ख़रीद के लिए 2.37 लाख करोड़ का सीधा भुगतान।

 फ़सल मूल्यांकन, भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण, कीटनाशकों और पोषक तत्त्वों के छिडक़ाव के लिए किसान ड्रोन।

 130 लाख एमएसएमई ने आपातकालीन क्रेडिट लिंक्ड गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) के तहत अतिरिक्त ऋण प्रदान किया।

 ड्रोन शक्ति की सुविधा के लिए और ड्रोन-ए-ए सर्विस के लिए स्टार्टअप्स को बढ़ावा दिया जाएगा।

 प्रधानमंत्री ई विद्या में वन क्लास-वन टीवी चैनल कार्यक्रम को 200 टीवी चैनलों तक विस्तारित किया जाएगा।

 राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक खुला मंच शुरू किया जाएगा।

 प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 2022-23 में 80 लाख घरों को पूरा करने के लिए 48,000 करोड़ रुपये आवंटित।

 उत्तर-पूर्व में बुनियादी ढाँचे और सामाजिक विकास परियोजनाओं को निधि देने के लिए नयी योजना शुरू की गयी।

 उत्तरी सीमा पर विरल आबादी, सीमित सम्पर्क और बुनियादी ढाँचे वाले सीमावर्ती गाँवों के विकास के लिए जीवंत गाँव कार्यक्रम का आयोजन।

 1.5 लाख डाकघरों में से 100 फ़ीसदी कोर बैंकिंग सिस्टम पर आएँगे।

 एम्बेडेड चिप और फ्यूचरिस्टिक तकनीक के साथ ई-पासपोर्ट शुरू किये जाएँगे।

 भूमि अभिलेखों के आईटी आधारित प्रबन्धन के लिए विशिष्ट भूमि पार्सल पहचान संख्या जरी होगी।

 प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम के हिस्से के रूप में 5जी के लिए एक मज़बूत इकोसिस्टम बनाने के लिए डिजाइन-आधारित विनिर्माण योजना शुरू की जाएगी।

 राज्यों को उद्यम और सेवा केंद्रों के विकास में भागीदार बनने में सक्षम बनाने के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम को एक नये क़ानून से बदला जाएगा।

 वित्त वर्ष 2022-23 में घरेलू उद्योग के लिए पूँजी ख़रीद बजट का 68 फ़ीसदी, 2021-22 में 58 फ़ीसदी से अधिक है।

 सूर्योदय में आरएंडडी के लिए सरकार का योगदान देना होगा।

 आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, जियोस्पेशियल सिस्टम और ड्रोन, सेमीकंडक्टर और इसके ईको-सिस्टम, स्पेस इकोनॉमी, जीनोमिक्स एंड फार्मास्युटिकल्स, ग्रीन एनर्जी और क्लीन मोबिलिटी सिस्टम जैसे अवसर दिये जाएँगे।

 साल 2030 तक 280 जीडब्ल्यू स्थापित सौर ऊर्जा के लक्ष्य को पूरा करने के लिए उच्च दक्षता वाले सौर मॉड्यूल के निर्माण के लिए उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन के लिए 19,500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त आवंटन किया जाएगा।

 भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 2022-23 से डिजिटल रुपये की शुरुआत।