इन दिनों पेशाब कांड और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के आदिवासी के पैर धोने के लिए चर्चा में हैं। मध्य प्रदेश के सीधी ज़िले के एक आदिवासी युवक पर प्रवेश शुक्ला नाम का एक शख़्स पेशाब करना दुर्भाग्यपूर्ण रहा। इसका वीडियो वायरल हुआ, जो 26 जून का बताया गया है। पीडि़त व्यक्ति जनजाति विशेष का है और आरोपी प्रवेश शुक्ला सवर्ण जाति का है। वीडियो वायरल होने के बाद जब प्रदेश सरकार की थू-थू हुई, तो पुलिस हरकत में आयी। हालाँकि लोगों का दावा है कि वीडियो में जो पीडि़त युवक है, वह दूसरा है और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसी और को बुलाकर उसके चरण धोये। उसे सम्मानित किया। यह बात सम्मानित किये गये दशमत रावत ने भी कथित रूप से एक वीडियो में कही है कि पेशाब उसके ऊपर नहीं की गयी थी। इससे पहले इस व्यक्ति ने कहा था कि उसने आरोपी को माफ़ किया। पीडि़त आदिवासी युवक ने पुलिस को बताया कि पेशाब करने वाले वीडियो पर जबरन हस्ताक्षर करवाये थे। शपथ पत्र में कहा गया है कि पीडि़त पर पेशाब करने वाला वीडियो फ़र्ज़ी है। पुलिस का कहना है कि वीडियो वायरल होने के बाद 3 जुलाई को आदिवासी युवक से यह हस्ताक्षर करवाये गये थे।
बहरहाल वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार किया और भारतीय दंड संहिता और एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के अलावा आरोपी के ख़िलाफ़ कड़े राषट्रीय सुरक्षा क़ानून यानी रासुका के तहत भी कार्रवाई शुरू की गयी है। विपक्ष ने भाजपा की शिवराज चौहान सरकार को घेरा है। आदिवासी के अपमान पर बुरी तरह फँसे राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह तुरन्त डैमेज कंट्रोल में लग गये। पहले आरोपी प्रवेश शुक्ला के घर पर बुलडोजर चलाया, बुलडोजर से उसके आवास में लगे टिन वाले हिस्से को तोड़ा गया। उसके बाद मुख्यमंत्री ने भोपाल में अपने आवास पर दशमत रावत का सम्मान किया। उसके चरण धोये, तिलक लगाया। यह सब करने के बाद मुख्यमंत्री ने कहा-चरण धोना एक संदेश भी है कि ग़रीबों के साथ किस संवेदना के साथ उनकी सेवा करता हूँ। ऐसा लगता है कि शिवराज सिंह व उनकी सरकार ने इस अमानवीय घटना को एक सरकारी इवेंट में तब्दील कर दिया। इसकी एक और बानगी यह है कि जब क़रीब चार दिन बाद यह पीडि़त आदिवासी युवक सीधी शहर से 18 किमी दूर अपने गाँव करौंदी पहुँचा और सुबह उठा, तो देखा कि स्थानीय कलेक्टर व एसपी उसके यहाँ पाँच लाख रुपये की मदद और 1.5 लाख रुपये प्रधानमंत्री आवास का चेक लेकर खड़े थे। यही नहीं, 12 पुलिस वाले भी वहाँ तैनात थे। लेकिन कहा जा रहा है कि असली पीडि़त कोई और है, जिसका कोई अता-पता नहीं है।
दूसरी ओर इस घटना के बाद कुछ और घटनाएँ निचले तबक़े के लोगों को प्रताडि़त करने की मध्य प्रदेश में घटी हैं। नवीनतम सरकरी आँकड़ों के अनुसार, आदिवासियों के ख़िलाफ़ अत्याचार के मामलों में यह राज्य देश में पहले नंबर पर है। बहरहाल पेशाब वाली इस घटना पर सियासत भी ख़ूब हुई। वीडियो वायरल होने के बाद कांग्रेस ने आरोप लगाया कि आरोपी भाजपा के एक स्थानीय विधायक से जुड़ा है। लेकिन विधायक ने इस आरोप को नकार दिया। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने ट्वीट किया, भाजपा के राज में आदिवासी भाइयों और बहनों पर अत्याचार बढ़ते ही जा रहे हैं। तो भाजपा प्रदेशाध्यक्ष वी.डी. शर्मा ने कहा कि दोशी को किसी भी हालत में नहीं ब$ख्शा जाएगा। लेकिन अब ख़बर यह भी छपी है कि पीडि़त आदिवासी रावत ने राज्य सरकार से इस अपमानजनक कृत्य के आरोपी प्रवेश शुक्ला को रिहा करने का आग्रह किया है। उसने पत्रकारों से कहा-सरकार से मेरी माँग है कि अब प्रवेश शुक्ला को रिहा किया जाना चाहिए। अतीत में जो कुछ भी हुआ; लेकिन उसे अपनी ग़लती का एहसास हो गया है।
अब सवाल यह भी है कि क्या सरकार क़ानून के अनुसार आरोपी के ख़िलाफ़ कार्रवाई करेगी या पीडि़त आदिवासी के आग्रह को मानकर आरोपी को रिहा कर देगी। यहाँ पर आशंका यह भी जतायी जा रही है कि पीडि़त आदिवासी ने बाहरी दबाव में आकर आरोपी को माफ़ करने की माँग की है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस अमानवीय घटना के बाद पीडि़त ने अपने गाँव पहुँचकर यह भी कहा कि हाँ, मैं सहमत हूँ। वह हमारे गाँव का पंडित है। हम सरकार से उसे रिहा करने की माँग करते हैं। उधर क्योंकि आरोपी शुक्ला ब्राह्मण जाति से है, तो एक ब्राह्मण संगठन ने शुक्ला के घर का एक हिस्सा गिराये जाने का विरोध करते हुए कहा कि शुक्ला का कृत्य निंदनीय है; लेकिन उसके व्यवहार के लिए उसके परिवार के सदस्यों को दंडित नहीं किया जा सकता। यहाँ पर जाति भी अपना असर दिखाती देखी जा सकती है। भारतीय समाज में जाति व पैसा अपनी ताक़त बार-बार दिखाता है और क़ानून कहीं पीछे रह जाते हैं। असमानता चाहे वह आर्थिक हो या सामाजिक, बहुत भारी चोट मारती है।
ग़ौरतलब है कि हाल ही में आज़ादी की 75र्वी वर्शगाँठ को बड़ी धूमधाम से मनाया गया। इस मुहिम को अमृत-काल कहा गया। यह कैसा अमृतकाल? सरकारी अमृतकाल है, समाज में तो विषमता, जाति का ज़हर व नफ़रत दिखायी देती है। ताक़तवर लोग समाज के निम्न जाति व आय वाले लोगों में दहशत फैलाने के लिए अपनी पहचान का ऐलान लाउडस्पीकरों पर करते हैं। यह ख़ौफ़नाक है। लोकतांत्रिक मूल्यों के महत्त्व को कम किया जा रहा है। ग़ौरतलब है कि आदिवासी देश की कुल आबादी का क़रीब 8.6 फ़ीसदी हैं। इनमें से दो-तिहाई आदिवासी आबादी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, गुजरात, राजस्थान, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ में बसती है। सबसे अधिक आदिवासी आबादी मध्य प्रदेश में है। आज़ादी के 75 साल बाद भी देश की अन्य आबादी व आदिवासियों के दरमियान शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार व अन्य क्षेत्रों में बहुत बड़ा फ़ासला है।
यही नहीं, उनके ख़िलाफ़ होने वाले अत्याचार की ख़बरें भी मीडिया में आती रहती हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ऑफ ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट 2021 के अनुसार, सन् 2020 की तुलना में 2021 में आदिवासियों के प्रति अत्याचारों में 6.47 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई। सन् 2020 में दर्ज मामलों की संख्या 8,272 थी, जो सन् 2021 में बढक़र 8,802 हो गयी। मध्य प्रदेश में इस साल ऐसे मामलों की संख्या 2627 थी, जो कुल आदिवासी अपराध का 29.8 फ़ीसदी है। उसके बाद राजस्थान आता है, जहाँ 2,121 मामले दर्ज किये गये और इसकी हिस्सेदारी कुल मामलों में 24 फ़ीसदी है। ओडिशा में 676 मामले दर्ज किये गये, जिसकी हिस्सेदारी 7.6 फ़ीसदी है। फिर महाराष्ट्र की भागीदारी 7.3 फ़ीसदी है और तेलंगाना की 5.81 फ़ीसदी है।
इन पाँच राज्यों में आदिवासियों के प्रति अपराध के जो मामले दर्ज हुए, वे देश में कुल मामलों का 74.57 फ़ीसदी हैं। ग़ौरतलब है कि मध्य प्रदेश में बीते क़रीब 16 साल के क़रीब भाजपा की सरकार रही, जिसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान रहे हैं। वर्ष 2018 के कांग्रेस की सरकार बनी थी; लेकिन बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया व उनके समर्थक कुछ विधायक भाजपा में चले गये और भाजपा सत्ता में आ गयी। लेकिन मध्य प्रदेश बीते पाँच वर्षों से आदिवासियों के प्रति अत्याचारों के मामलों में पहले नंबर पर है। सन् 2018 में आदिवासियों के ख़िलाफ़ 1,868 मामले, सन् 2019 में 1,922 मामले, सन् 2020 में 2,401 और सन् 2021 में 2,627 मामले दर्ज किये गये। ये आँकड़े सरकारी दस्तावेज़ नेशनल क्राइम ऑफ ब्यूरो की सालाना रिपोर्ट के हैं। मध्य प्रदेश में आदिवासियों की संख्या तो उल्लेखनीय है; लेकिन सरकार उनके प्रति होने वाले अत्याचारों व अपराधों को रोकने में असफल दिखती है।
बेशक राज्य के मंत्री यह बयान देते रहे कि राज्य की पुलिस अब चौकन्ना व संवेदनशील है, और आदिवासियों के ख़िलाफ़ होने वाले हर अत्याचार का रिकॉर्ड दर्ज करती है। यह तो अपनी पीठ थपथपाने जैसा है। सच्चाई यह है कि आदिवासियों पर हमले, अत्याचार होते रहते हैं। वैसे मध्य प्रदेश की राजनीति में आदिवासी वोट पर नज़र डालें, तो साफ़ पता चलता है कि इस राज्य में 47 आदिवासी रिजर्व सीटें हैं। इस वर्ग के 1.25 करोड़ वोटर हैं। अन्य 54 सीटें ऐसी हैं, जहाँ इनके वोट 10 से 39 फ़ीसदी तक हैं। यानी 101 सीटों पर उनका दबदबा है। सन् 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 32 और भाजपा को 15 एसटी सीटें मिली थीं।
बेशक उपचुनाव के बाद भाजपा के पास 18 एसटी सीटें हैं; पर सीधी के पेशाब प्रकरण से शिवराज सिंह चौहान की सरकार पर एक सवालिया निशान लग गया है। लोग कहने लगे हैं कि यहाँ कमज़ोर व अति संवेदनशील आदिवासी वर्ग सुरक्षित नहीं है। आख़िर भाजपा सरकार आदिवासियों के हितों की सुरक्षा करने में बार-बार असफल क्यों हो रही है? मुख्यमंत्री ने आदिवासी दशमत रावत के चरण धोये, उसकी तत्काल वित्तीय सहायता करके डैमेज कंट्रोल वाली भूमिका में भी उन्होंने निभाने में कसर नहीं छोड़ी। अब सवाल यह भी पूछा जाने लगा है कि क्या कांग्रेस सरकार इस पेशाब प्रकरण का राजनीतिक लाभ उठा पाएगी?
इस साल के आख़िरी महीनों में मध्य प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने हैं। यहाँ पर आदिवासी आबादी बहुत है। अब इन तीन राज्यों में आदिवासी युवक के प्रति की गयी अमानवीय घटना को कांग्रेस कैसे मुद्दा बनाती है व इसका क्या असर चुनाव पर पड़ता है? यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा। मगर भारत की मौज़ूदा राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू एक आदिवासी हैं, फिर भी आदिवासियों की ज़मीनी हक़ीक़त चिन्ता का विषय है।