पीपीपी अर्थव्यवस्था का सच

परचेजिंग पॉवर पैरिटी (पीपीपी) के हिसाब से भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। चीन ने अर्थव्यवस्था के मामले में अमेरिका को पछाडक़र पहला स्थान हासिल करके पूरी दुनिया को चौंका दिया है। माना जा रहा है कि अर्थव्यवस्था में कई विकसित देशों और ज़्यादातर विकासशील देशों को पीछे छोडऩा भारत के लिए भी कम बड़ी उपलब्धि नहीं है। लेकिन इससे बड़ी बात अर्थव्यवस्था के मामले चीन का नंबर एक पर जाना है, जो अमेरिका के साथ ही भारत के लिए भी सिरदर्दी का कारण बन सकता है।

हालाँकि कहने को अब भारत पीपीपी में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है; लेकिन बेरोज़गारी दर, भुखमरी, कुपोषण और आत्महत्या दर में भारत अपने पड़ोसी देशों से भी पीछे जा चुका है। वल्र्ड ऑफ स्टैटिसटिक्स के डेटा के मुताबिक, परचेजिंग पॉवर पैरिटी के हिसाब से यह इकोनॉमी के साइज का आकलन है। इस आकलन के हिसाब से अर्थव्यवस्था के मामले में भारत ने जापान और रूस को भी पीछे छोड़ दिया है। इस लिस्ट में टॉप-5 देशों में पहले नंबर पर चीन, दूसरे पर अमेरिका, तीसरे पर भारत, चौथे पर जापान और पाँचवें नंबर पर रूस है। इसके अलावा टॉप 10 में छठे नंबर पर जर्मनी, सातवें नंबर पर इंडोनेशिया, आठवें नंबर पर ब्राजील, नौवें नंबर पर फ्रांस और दसवें नंबर पर ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था है।

परचेजिंग पॉवर पैरिटी के हिसाब से भारत की अर्थव्यवस्था 11.8 ट्रिलियन डॉलर है। लेकिन चीन की अर्थव्यवस्था भारत से क़रीब तीन गुना अधिक 30.3 ट्रिलियन डॉलर है। वहीं अमेरिका की अर्थ व्यवस्था अब 25.4 ट्रिलियन डॉलर है, जो भारत की अर्थव्यवस्था से दोगुनी से ज़्यादा है। इसी तरह जापान की अर्थ व्यवस्था 5.7 ट्रिलियन डॉलर, रूस की अर्थव्यवस्था 5.32 ट्रिलियन डॉलर, जर्मनी की अर्थव्यवस्था 5.3 ट्रिलियन डॉलर, इंडोनेशिया की अर्थव्यवस्था 4.03 ट्रिलियन डॉलर, ब्राजील की अर्थव्यवस्था 3.83 ट्रिलियन डॉलर, फ्रांस की अर्थव्यवस्था 3.77 ट्रिलियन डॉलर और ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था 3.65 ट्रिलियन डॉलर है। लेकिन अगर आबादी के घनत्व के हिसाब से देखें, तो भारत की अर्थव्यवस्था टॉप 10 की सूची के देशों से कम प्रभावी मालूम होगी।

भारत की जनसंख्या इन दिनों अनुमानित 1.42 अरब से ज़्यादा है, जबकि भारत का क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर है। वहीं 3,77,973 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले जापान की जनसंख्या 12.46 करोड़, 1.70 करोड़ वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले रूस की जनसंख्या 14.61 करोड़, 3,57,588 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले जर्मनी की जनसंख्या 8.32 करोड़, 19,04,569 वर्ग किलोमीटर वाले इंडोनेशिया की जनसंख्या लगभग 27 करोड़, 85,15,767 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले ब्राजील की जनसंख्या 21,65,45,252 है, जो कि भारत से लगभग 2.6 गुना बढ़ा है और आबादी में भारत से लगभग 6.7 प्रतिशत से भी कम है। वहीं 6,47,56,584 जनसंख्या वाले फ्रांस का क्षेत्रफल 5,51,695 वर्ग किलोमीटर और 2,09,331 वर्ग किलोमीटर वाले ब्रिटेन की जनसंख्या 6,77,36,802 है। वहीं अगर चीन का क्षेत्रफल 95,96,960 वर्ग किलोमीटर और वहाँ की जनसंख्या 1,45,48,25,869 है, जबकि 93,72,610 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले अमेरिका की जनसंख्या 33.70 लाख है।

इस हिसाब से भारत की अर्थव्यवस्था भले ही विश्व में तीसरे नंबर की अर्थव्यवस्था बन चुकी हो; लेकिन आबादी के हिसाब से यह बहुत कम है। केंद्र सरकार में बैठे लोग इस बात से ख़ुश हो सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर करने का वादा किया था और यह बढ़ गयी। वे इसका प्रचार भी कर सकते हैं; लेकिन याद रखना होगा कि यह अर्थव्यवस्था जमा पूँजी नहीं या चलन वाली मुद्रा में नहीं, बल्कि परचेजिंग पॉवर पैरिटी है। परचेजिंग पॉवर पैरिटी का मतलब होता है क्रय शक्ति समता। इसे और सरलता से समझें, तो देखना होगा कि भारत का जीडीपी रेट क्या है? मान लीजिए कि भारत की जीडीपी ग्रोथ 7.5 फ़ीसदी रहती है, तो इसकी जीडीपी 2.9 लाख करोड़ डॉलर ही होगी; जबकि जापान, जो कि अर्थव्यवस्था में भारत से पिछड़ा हुआ बताया जा रहा है, उसकी जीडीपी छ: लाख करोड़ डॉलर से अधिक होगी।  

अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में परचेजिंग पॉवर पैरिटी किसी देश की मुद्रा की क़ीमत के अतिरिक्त वहाँ रहने वाले लोगों की आर्थिक स्थिति की जानकारी देती है; लेकिन यह जनसंख्या के घनत्व पर निर्भर करता है। भारत की आबादी भारत के क्षेत्रफल के हिसाब से कई गुना ज़्यादा है, जबकि परचेजिंग पॉवर पैरिटी के हिसाब से भारत की अर्थव्यवस्था चीन की अर्थव्यवस्था से लगभग तीन गुना कम है। इस हिसाब से भारत अर्थव्यवस्था में चीन से ही नहीं, बल्कि जापान और दूसरे निचले देशों से भी पीछे हुआ। परचेजिंग पॉवर पैरिटी की गणना आवश्यक वस्तुओं की एक बास्केट के हिसाब से होता है, जिसमें अमूमन उन वस्तुओं को शामिल किया जाता है, जो जीवन जीने के लिए ज़रूरी हैं। इन वस्तुओं को हर देश के पैसे की वैल्यू के हिसाब से देखा जाता है कि उस देश के कितने पैसे में कितनी वस्तुएँ ख़रीदी जा सकती हैं। ज़ाहिर है कि भारत का रुपया डॉलर के मुक़ाबले पिछले 8-10 वर्षों में तेज़ी से कमज़ोर हुआ है, जिसके चलते रुपये की वैल्यू काफ़ी कम है।

इसका मतलब है कि भारत में पैसे की कमी नहीं है; लेकिन पैसे की वैल्यू बहुत कम है। भले ही रुपया दो प्रतिशत लोगों के पास आधे से ज़्यादा है। अब यही देखिए, भारत के 1 रुपये की क़ीमत 0.0867 चीनी युआन है, मतलब 1 युआन 11.55 भारतीय रुपये के बराबर है। वहीं 1 डॉलर 82.81 रुपये के बराबर है। इस तरह भारतीय रुपये की क़ीमत कम होना भी भारत को अर्थ व्यवस्था के नज़रिये से कमज़ोर करता है।

इसका मतलब यह हुआ कि भारत में 100 रुपये में जितना सामान ख़रीदा जा सकता है, उतना ही सामान अमेरिका के लगभग 1.21 डॉलर में और चीन के लगभग 8.4 युआन में ख़रीदा जा सकता है। इसे ही परचेजिंग पॉवर पैरिटी कहा जाता है।

इसलिए लोग भारत को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था मानने की भूल उस नज़रिये से न करें, जो जमा पूँजी की मज़बूती के आधार से होती है। भारत को इन दिनों अपनी अर्थव्यवस्था, जिसमें ठोस जीडीपी शामिल है, सुधारने की आवश्यकता है और साथ ही यह देखने की चीन उससे ताक़त में लगातार मज़बूत होता जा रहा है।

चीन की ताक़त और हिम्मत

एक बार फिर से ख़बरें आ रही हैं कि चीनी सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ताइवान पर चढ़ाई की तैयारी में है। कहा जा रहा है कि चीनी सैनिक युद्ध अभ्यास कर रहे हैं। चीनी सेना पीपुल्स की स्थापना के 96 साल पूरे होने पर चीनी सरकार ने स्टेट मीडिया सीसीटीवी पर झू मेंग (चेसिंग ड्रीम्स) नाम से इसकी एक डॉक्यूमेंट्री जारी की है। भारत को भी चीन की इस हरकत से सचेत रहना चाहिए, पहले ही चारों तरफ़ से भारत पर दबाव बनाने की कोशिश में लगा चीन भारत की ज़मीन हथियाने की कोशिश में लगा है।

भारत की केंद्र सरकार को इन दिनों चीन की छोटी-से-छोटी गतिविधि पर नज़र रखने की ज़रूरत है। जानकारी के मुताबिक, चीन भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में अपना दबदबा बढ़ाने की कोशिशों में लगा है। ताइवान पर चढ़ाई के युद्धाभ्यास को झुठलाया नहीं जा सकता। चीन पहले भी इस तरह की तैयारियाँ और युद्ध अभ्यास करता रहा है। भारत की केंद्र सरकार का मानना है कि चीन भारत से नहीं उलझेगा। लेकिन सरकार को चीन की पूर्व की हरकतों को ध्यान में रखते हुए चीन की तरफ़ से आँखें नहीं मूँद लेनी चाहिए।

याद रखना होगा कि भारत और चीन की सेनाओं के बीच जून, 2020 से लगातार दर्ज़नों झड़पें हुई हैं, जिनमें चीनी पीपुल्स आर्मी की हरकतें और अतिक्रमणवादी गतिविधियाँ साफ़-साफ़ नज़र आयी हैं। हालाँकि 2020 में भारत सरकार ने चीनी कम्पनियों और चीनी सामान पर अंकुश लगाने की बात कही थी; लेकिन ऐसा हो नहीं सका है। इस दिशा में भी भारत सरकार को ठोस क़दम उठाने की आवश्यकता है। अन्यथा चीन का बढ़ता हौसला भारत को इसी तरह हर क्षेत्र में कमज़ोर करने की कोशिश में घेरता रहेगा। जिस तरह चीन ने भारत के पड़ोसी देशों को अपने पक्ष में करने के लिए उनका इस्तेमाल किया है, उससे भी भारत को सीख लेने और पड़ोसी देशों से रिश्ते सुधारने की आवश्यकता है।

चीन अपनी उत्पादक क्षमता के दम पर भारत से आगे निकल रहा है, जबकि भारत चाहे तो चीन से अच्छे उत्पाद बनाकर अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में अपना दबदबा बढ़ा सकता है। लेकिन यहाँ की सरकार को राजनीति से फ़ुरसत मिले, तब इस ओर ध्यान भी दिया जाए। लेकिन भारत की केंद्र सरकार तो विपक्ष की सरकारों को गिराने, सांसदों, विधायकों को तोडऩे, ख़रीदने और सरकारों के अधिकार छीनने में ही व्यस्त है, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए।