सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) द्वारा गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत एक गैरकानूनी संगठन के रूप में अपने पदनाम को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने सुनवाई से इंकार कर दिया है।
जस्टिस अनिरुद्ध बोस और बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा कि, “संगठन को पहले संबंधित उच्च न्यायालय का रुख करना चाहिए।”
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर पीएफआई की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने भी इसपर अपनी सहमति जताई।
सुप्रीम कोर्ट इस साल मार्च में पारित यूएपीए ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ प्रतिबंधित संगठन की अपील पर सुनवाई कर रही थी। केंद्र सरकार ने 28 सितंबर 2022 को यूएपीए की धारा 3 के तहत पीएफआई को गैरकानूनी संगठन घोषित किया था।
बता दें, पीएफआई पर आरोप है कि यह एक कट्टरपंथी संगठन है जो कि 2017 में एनआईए ने गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर इस संगठन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। एनआईए के डोजियर के अनुसार, यह संगठन राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। यह संगठन मुस्लिमों पर धार्मिक कट्टरता थोपने और जबरन धर्मांतरण कराने का काम करता है।
आपको बता दें, पिछले साल फरवरी में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने पीएफआई और इसकी स्टूडेंट विंग कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के पांच सदस्यों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में चार्जशीट भी दायर की थी।
कैसे बना था पीएफआई
वर्ष 2007 में तीन मुस्लिम संगठनों के विलय से पीएफआई बना था। यह खुद को एनजीओ बताता है। इन तीन संगठनों में- नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट (केरल) कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और निथा नीति पासराई (तमिलनाडु) शामिल है। इसकी औपचारिक घोषणा 16 फरवरी, 2007 को बेंगलुरु में एम्पॉवर इंडिया कॉन्फ्रेंस के दौरान एक रैली में की गई थी।