रामदर्शन पटना की बोरिंग रोड पर बने गणेश अपार्टमेंट में दरबानी का काम करते हैं. जाति से यादव हैं. पढ़ाई-लिखाई स्कूल तक हुई है, लेकिन राजनीति उनकी रग-रग में है. उनका गांव पाटलीपुत्र में पड़ता है जो परिसीमन के बाद दूसरा चुनाव देख रहा है. हम उनसे पूछते हैं कि चाचा-भतीजी यानि मीसा और रामकृपाल की लड़ाई में कौन किस पर भारी पड़ेगा. रामदर्शन कहते हैं, ‘ई बात तो अभी ताल ठोंक के रामकृपाल भी नहीं कह सकते, मीसा भी नहीं कह सकती और ना लालू यादव बता सकते हैं तो हम कहां से बता दें? लेकिन जान लीजिए कि पाटलीपुत्र इस बार और दिलचस्प मुकाबला देखेगा. फिर कोई करिश्मा होगा जैसा 2009 में हुआ था. लालू प्रसाद यादवजी इस नई संसदीय सीट से खड़े हो गए थे कि यह तो यादव बहुल इलाका है और वे यादवों के एकछत्र-सर्वमान्य नेता हैं. लेकिन लालूजी के ही चेला रहे दूसरे यादवजी यानी रंजन यादव ने उन्हें पटखनी दे दी थी. वह भी कोई हजार-दो हजार नहीं बल्कि करीब 24 हजार मतों से.’
रामदर्शन की तरह पाटलीपुत्र में कोई भी 100 फीसदी दावे के साथ कुछ नहीं कह पा रहा. वजह भी साफ है. एक ओर लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा भारती हैं. उनके साथ लालू जैसे दिग्गज का जोर है. उनका ससुराल भी पाटलीपुत्र इलाके में ही पड़ता है, तो उसका भी असर है. जिस अंदाज में वे चुनाव प्रचार कर रही हैं, उससे उनका एक अलग तरीके का असर उभर रहा है. वे बेहद शालीन तरीके से मतदाताओं के पास जा रही हैं, उनके घर खा-पी रही हैं और बच्चों को गोद में उठाकर प्यार से चूम भी रही हैं. यह सब चुनावी नाटक भी कहा जा सकता है, लेकिन बहुत से लोग हैं जो मानते हैं कि अब ऐसा नाटक करनेवाले भी कम दिखते हैं इसलिए मीसा ऐसा करके लोगों को आकर्षित करने में सफल हो रही हैं.
दूसरी ओर भाजपा उम्मीदवार के तौर पर रामकृपाल यादव हैं. वे लंबे अरसे से मीसा के पिता लालू प्रसाद के सबसे करीबी मित्र व सहयोगी रहे हैं. उन्हें चाचा कहने वाली मीसा उनकी ताकत भी जानती हैं. रामकृपाल की खासियत यह है कि चुनाव हो या न हो, वे एक ऐसे नेता के तौर पर जाने जाते रहे हैं, जो एक बुलावे पर लोगों के बीच हाजिर हो जाता है. भले ही वे दो दशक से भाजपा को निशाने पर लेने के अभ्यस्त रहे हों, लेकिन कभी उन्होंने जाति विशेष को निशाने पर रखकर बयान नहीं दिए. इसलिए उन्हें और उनके सहयोगियों को उम्मीद है कि रामकृपाल को यादवों का एक हिस्सा तो वोट देगा ही, यादवों के बाद पाटलीपुत्र संसदीय क्षेत्र में जो दूसरी बड़ी आबादी रखने वाले भूमिहार भी नये भाजपाई बने रामकृपाल को दिल से गले लगाएंगे और समर्थन देंगे. पाटलीपुत्र में यादवों के बाद भूमिहार, कुरमी, कुशवाहा, वैश्य, महादलित, मुस्लिम और अतिपिछड़े समुदाय के वोट हैं. इस संसदीय क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं. फिलहाल तीन पर भाजपा का कब्जा है, दो पर जदयू और एक पर राजद का. रामकृपाल को उम्मीद है कि संसदीय क्षेत्र में तीन भाजपाई विधायक होने का फायदा उन्हें मिलेगा. भूमिहार उन्हें खुलकर समर्थन देंगे और कुशवाहा वोट छिटककर उनके पाले में आएगा. हालांकि इस बीच रणवीर सेना के सुप्रीमो रहे ब्रहमेश्वर मुखिया के बेटे इंदुभूषण भी पाटलीपुत्र से ही निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर परचा भरकर रामकृपाल का खेल बिगाड़ने की कोशिश में हैं. माना जा रहा है कि वे भूमिहार समुदाय के वोट काटेंगे क्योंकि भूमिहारों का एक खेमा है, जो भाजपा से नाराज है.
उधर, अपनी बेटी के जरिये राजनीति कर रहे लालू की पूरी ऊर्जा यादवों को साधने में लगी हुई है. जिस दिन रामकृपाल ने राजद से अलग होने के संकेत दिए थे, उस दिन लालू प्रसाद ने एक प्रेस कांफ्रेंस की थी. इसमें उन्होंने मीसा को यादव जाति के उन तीन पूर्व व वर्तमान विधायकों के साथ बिठाया जिनका ताल्लुक पाटलीपुत्र इलाके से कभी-न-कभी रहा है. वे यादवों को संकेत देना चाहते थे कि रामकृपाल ने पाला बदला है, लेकिन यादव नेता इधर ही हैं. इतना ही नहीं, जब कुख्यात रीतलाल यादव ने निर्दलीय परचा भरने का एलान किया तो बिना वक्त गंवाए लालू उनके घर पहुंचे. मानमनौव्वल की कवायद में उन्होंने रीतलाल को संत पुरुष बताते हुए रातों-रात महासचिव पद भी उनके हवाले कर दिया.
चाचा-भतीजी की इस लड़ाई के अलावा पाटलीपुत्र में रंजन यादव भी केंद्रीय भूमिका में हैं. जदयू के वर्तमान सांसद रंजन यादव के समर्थकों में इस बार ज्यादा उत्साह है. उनके अपने ठोस तर्क हैं. उन्हें चाचा-भतीजी के बीच यादव मतों के बिखराव से फायदे की उम्मीद है. वे कुरमी, महादलित और मुस्लिम समुदाय के एकमुश्त वोटों की भी उम्मीद कर रहे हैं. उनके एक समर्थक कहते भी हैं, ‘ रंजन यादव जब लालू प्रसाद को हरा दिए तो मीसा और रामकृपाल की क्या बिसात.’