उत्तर प्रदेश के पहले चरण के चुनाव 10 फरवरी को हुये। चुनाव को लेकर ये बात तो सामने आयी है। कि चुनाव में सपा-रालोद गंठबंधन और भाजपा के बीच मुकाबला तो दिखा है। लेकिन जिस अंदाज में छुटपुट घटनायें हुई है। और आरोप–प्रत्यरोप के साथ निर्वाचन आयोग मे शिकायत की गई है। इससे ये जाहिर होता है कि प्रत्याशियों के अंदर बैचेनी है। शिकायत से ये तो बात स्पष्ट है कि चुनाव इकतरफा नहीं दिखा।
बताते चलें पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 11 जिलों 58 सीटों पर जो चुनाव हुये है। वहां पर मुस्लिम और जाट फैक्टर को लेकर इस बात का अंदाजा लगाया जा रहा था। कि जाट वोटर निर्णायक भूमिका में होगा। लेकिन जाट वोटरों का झुकाव मतदान के दौरान कुछ और ही दिखा है।
इससे राजनीतिक दलों में खलबली देखने को मिली है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सियासत के जानकार अमन सिंह मान का कहना है। कि एक दौर ये था जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत का रूख चौ. चरण सिंह के इशारे पर तय होता था। और लोग उनके इशारे पर ही वोट डालते थे। लेकिन अब मौजूदा राजनीति की फिजांओं का रूख कुछ और ही।
क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश ने 2007 में बसपा पर भरोसा कर मायावती को मुख्यमंत्री बनाया था। फिर 2012 में सपा पर भर भरोसा कर अखिलेश यादव की सरकार बनाई। उसके बाद 2017 में भाजपा पर भरोसा कर योगी आदित्य नाथ की सरकार बनायी। अब जनता का मानना है कि अगर सरकार में बदलाव कर कुछ हो सकता है। तो क्यों न करें। इसी के तहत इस बार चुनाव में मतदान किया गया। सियासत में कुछ नहीं कहा जा सकता है। इसलिये परिणाम जरूर चौकाने वाले साबित होगें।