सरकारी जाँच एजेंसियों और पुलिस के बेजा इस्तेमाल के आरोप सत्ता पक्ष पर लगते हैं और उनके खण्डन भी आते रहते हैं। राजनीतिक दुश्मनी पर दर्ज होते मामलों पर सम्बन्धित सरकारें इसे सही ठहराने का प्रयास करती है, वहीं विपक्षी दलों के नेता इसे राजनीतिक रंजिश बताते हैं।
केंद्र और राज्यों में ऐेसा होता रहता है, इसमें कोई नयी बात नहीं है। केंद्र पर सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय जैसी जाँच एजेंसियों पर सरकार के इशारे पर कार्रवाई के आरोप लगते रहे हैं। कांग्रेस के दौर में विपक्षी दल यही रोना रोते थे। अब भाजपा सरकार पर विपक्षी दल कमोबेश वैसे ही आरोप लगा रहे हैं। चाहे सीबीआई या एनआईए स्वतंत्र एजेंसियाँ हैं, सत्तापक्ष का कहीं-न-कहीं असर ज़रूर होता है। यह अलग बात है कि कोई सरकार राजनीतिक रंजिश के लिए इसका बेजा इस्तेमाल कर लेती है, तो कोई सीमित; लेकिन इन पर सरकारी स्वार्थ हावी ज़रूर रहता है। हरियाणा और पंजाब तो राजनीतिक रंजिश के लिए वैसे ही जाने जाते रहे हैं। सत्ता में आने पर विरोधियों को जेल में डालने, सबक़ सिखाने और उन्हें छठी का दूध दिलाने जैसे आक्रामक तेवर देखने को मिलते हैं।
बाक़ायदा इसके लिए मामले गढ़े जाते हैं, सुबूत जुटाये जाते हैं और कुछ हद तक राजनीतिक दुश्मनी निकाली भी जाती है। लोकतंत्र में यह परम्परा घातक है। अगर सरकारें अपने तंत्र का बेजा इस्तेमाल करेंगी, तो सही मायने में वह लोकतंत्र न होकर निजतंत्र माना जाएगा। पंजाब पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह तो चुनावी सभाओं में सत्ता में आने पर अपने समकक्ष रहे प्रकाश सिंह बादल को सलाख़ों के पीछे डालने की बातें कहते रहे हैं। सत्ता में आने के बाद हालाँकि वह कुछ ऐसा नहीं कर सके; लेकिन राजनीतिक रंजिश की भावना बहुत कुछ साबित करती है। हरियाणा में राजनीतिक रंजिश का बड़ा उदाहरण पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के जेबीटी घोटाले में 10 साल की सज़ा का है। आरोप तत्कालीन कांग्रेस के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर लगे थे। हालाँकि हुड्डा ने कभी सार्वजनिक तौर पर चौटाला को जेल में डालने की बात कभी नहीं कही थी। वह एक बड़ा घोटाला था और सब क़ानून के हिसाब से हुआ। मानने वाले इसे राजनीतिक दुश्मनी निकालने वाली कार्रवाई बता रहे हैं। राज्य में सत्ता में आने पर विरोधी नेताओं को सबक़ सिखाने की धमकियाँ तो सार्वजनिक सभाओं में दी जाती रही हैं। इससे राष्ट्रीय पार्टियाँ अछूती नहीं हैं। कम-से-कम हरियाणा और पंजाब में तो यह क़वायद चलती रहती है।
पंजाब में प्रचंड बहुमत से सत्ता में आयी आम आदमी पार्टी के एजेंडे में राजनीतिक दुश्मनी को बिल्कुल जगह नहीं दी गयी है। 16 अप्रैल को मुख्यमंत्री भगवंत मान ने शपथ ग्रहण समारोह में इस बात की सार्वजनिक घोषणा की थी कि पंजाब में पूर्व की सरकारें राजनीतिक रंजिश के लिए झूठे मुक़दमे दर्ज करती रही हैं; लेकिन वह ऐसा कभी नहीं होने देंगे। वह पंजाब में एक नये अध्याय की शुरुआत करेंगे, जिसमें राजनीतिक रंजिश की कोई जगह नहीं होगी। क़रीब एक माह के बाद पंजाब में इसकी शुरुआत हो गयी है। इसे नये अध्याय के तौर पर तो नहीं, बल्कि पुरानी परम्परा को न टूटने देने की क़वायद ही माना जा सकता है।
कभी आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे कुमार विश्वास और इसी पार्टी की दिल्ली के चाँदनी चौक की विधायक रही अलका लांबा पर पंजाब के रूपनगर (रोपड़) में संगीन धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गयी है। वैचारिक मतभेद होने के बाद कुमार विश्वास ने आम आदमी पार्टी से किनारा कर लिया था। वह किसी पार्टी के सदस्य नहीं हैं और गाहे-ब-गाहे दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल पर आरोप लगाते रहते हैं; लेकिन अभी तक उन पर कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई थी। लेकिन पंजाब में पार्टी के सत्ता में आने के बाद कार्रवाई को अंजाम दे दिया गया है।
अलका लांबा सन् 2014 में कांग्रेस छोडक़र आम आदमी पार्टी में शामिल हुईं और चाँदनी चौक से पार्टी की विधायक बनीं। सितंबर, 2019 में उन्होंने आम आदमी पार्टी छोड़ दी और फिर से कांग्रेस में शामिल हो गयीं। कुमार विश्वास ने पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर ख़ालिस्तानी सम्पर्क होने जैसा संगीन आरोप लगाया था। उस दौरान केजरीवाल ने ख़ुद इतने गम्भीर आरोप पर चुटकी लेते हुए कहा था कि क्या वह शक्ल से कोई आतंकवादी लगते हैं? अगर कोई कहता है, तो वह मासूम आतंकवादी हैं, जो लोगों के लिए काम करता हैं।
क़रीब दो माह अब उसी आरोप पर कुमार विश्वास फँस गये हैं। उन्हें साज़िश रचने, शान्ति भंग करने और केजरीवाल की छवि कलंकित करने जैसी संगीन धाराओं का आरोपी बनाया गया है। मामला पंजाब की बजाय दिल्ली में दर्ज होता और दिल्ली पुलिस कार्रवाई करती, तो सीधा आरोप केजरीवाल पर लगता; लेकिन घटना का सम्बन्ध सीधे पंजाब से है। इसके बावजूद केजरीवाल पर बदले की भावना से कार्रवाई करने का आरोप क्यों लग रहा है? पंजाब में मामले दर्ज होने पर प्रतिक्रिया मुख्यमंत्री भगवंत मान की आनी चाहिए, क्योंकि गृह विभाग भी उनके पास है। आरोप लग रहा है कि मान पंजाब के मुख्यमंत्री ज़रूर हैं; लेकिन नियंत्रण एक तरह से केजरीवाल का है। दिल्ली के मुख्यमंत्री रहते अरविंद केजरीवाल के मन में पुलिस विभाग का नियंत्रण केंद्र के पास होने की कसक हमेशा से रही है। दिल्ली में जब कोई क़ानून व्यवस्था का मसला उठता है, वह सीधे केंद्रीय गृह मंत्रालय पर ज़िम्मेदारी डाल देते हैं, क्योंकि पुलिस उसके अधीन है। दिल्ली में कई दंगों में भी उन्होंने यही बात कही। अब पंजाब में उनकी पार्टी की सरकार है और वह अपरोक्ष रूप से पुलिस का इस्तेमाल कर सकते हैं।
कुमार विश्वास, अलका लांबा और पीटीसी चैनल के प्रबंध निदेशक रविंद्र नारायण और अन्य स्टाफ पर दर्ज मामले राजनीति के परिप्रेक्ष्य से देखे जा रहे हैं। पीटीसी चैनल बादल परिवार का है इसलिए आरोपी के संगीन आरोपों पर पुलिस कार्रवाई कर रही है। नारायण समेत 25 से ज़्यादा लोगों पर कार्रवाई हो रही है। शिरोमणि अकाली दल (शिअद) इसे राजनीतिक रंजिश निकालने की कार्रवाई बता रहा है, वहीं पुलिस इसे क़ानून सम्मत रुटीन का मामला बता रही है। तो क्या माना जाए कि आम आदमी पार्टी की सरकार पंजाब में पुरानी रवायत पर चल पड़ी है, जिसमें विरोधियों को सबक़ सिखाने के लिए पुलिस या अन्य जाँच एजेंसियों क बेजा इस्तेमाल हो रहा है। ऐसा है, तो यह चलन आप सरकार और मुख्यमंत्री भगवंत मान के लिए बिल्कुल ठीक नहीं है।
पंजाब विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिद्धू अलका लांबा पर दर्ज मामले को राजनीति से प्रेरित बता रहे हैं। बाजवा और सिद्धू के मुताबिक, केजरीवाल के इशारे पर पंजाब में पुलिस विरोधियों पर कार्रवाई कर रही है। भगवंत मान को आम आदमी पार्टी में लाने वालों में कुमार विश्वास की अहम भूमिका रही है। यह उस दौर की बात है, जब मान की आम आदमी पार्टी में कोई ख़ास पहचान नहीं थी, जबकि कुमार विश्वास आम आदमी पार्टी के आधार स्तम्भ हुआ करते थे। विश्वास पार्टी में अपनी उपेक्षा से केजरीवाल से नाराज़ रहने लगे थे। बाद में स्थिति ऐसी आ गयी कि विश्वास पर केजरीवाल अविश्वास करने लगे थे। बाद में दोनों के रास्ते अलग-अलग होते गये। आम आदमी पार्टी को खड़ा करने में केजरीवाल के साथ मनीष सिसोदिया के अलावा प्रमुख रूप से कुमार विश्वास भी थे।
जब दोनों में 36 का आँकड़ा हो गया, तो अनौपचारिक बातचीत में कुमार विश्वास ने केजरीवाल पर ख़ालिस्तान समर्थकों के साथ सम्पर्क होने जैसे गम्भीर आरोप लगाये। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार न होती, तो विश्वास पर प्राथमिकी ही दर्ज नहीं होती। अब चूँकि पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है भगवंत मान को मुख्यमंत्री के तौर पर आगे लाने वालों में केजरीवाल ही है, तो उनका अच्छा-ख़ासा असर राज्य सरकार पर रहेगा ही।
दिल्ली का मुख्यमंत्री एक पूर्ण राज्य के मुख्यमंत्री पर भारी पडऩे लगे, तो इसके नतीजों के बारे में अनुमान लगाना ज़्यादा मुश्किल नहीं है। भगवंत मान केजरीवाल से बाहर नहीं जा सकते। वह चाहे मुख्यमंत्री के नाते राज्य में राजनीतिक रंजिश निकालने की न सोचते हो पर पार्टी प्रमुख अगर इस दिशा में कुछ करना चाहे, तो वह बहुत कुछ नहीं कर सकते। पंजाब पुलिस के बेजा इस्तेमाल के आरोपों में कुछ दम तो ज़रूर है, वरना पार्टी कार्यकर्ताओं की शिकायत पर कुमार विश्वास और अलका लांबा पर प्राथमिकी दर्ज होकर त्वरित कार्रवाई नहीं होती।
उम्मीद की जानी चाहिए कि दोनों जाँच में सहयोग करेंगे, वरना पुलिस दोनों को गिर$फ्तार भी कर सकती है। आने वाले दिनों में लोकप्रिय हो रही आप-सरकार पर राजनीतिक रंजिश निकालने के लिए अपरोक्ष तौर पर पंजाब पुलिस के बेजा इस्तेमाल के आरोप लगेंगे। इससे मुख्यमंत्री भगवंत मान की प्रतिष्ठा भी दाव पर लगी रहेगी। राज्य में जल्द ही किसी राजनीतिक तू$फान की आहट होने लगी है।