मुफ़्त के नाम पर मतदाताओं को लुभाकर सत्ता में आने और टिके रहने का जो राजनीतिक पैंतरा दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने आजमाया है, अब उसका विस्तार पंजाब में हो सकता है। इसकी वजह यह है कि जबसे दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने पंजाब में चुनाव जीतने पर मुफ़्त सुविधाओं की बात कही है, कांग्रेस भी लोगों को प्रलोभन देने में लग गयी है। कांग्रेस ने मुफ़्त तो नहीं, लेकिन बिजली की दरों में भारी कमी कर उसी लीक पर चलकर सत्ता में बने रहने का दाँव चला है। लेकिन मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की तीन रुपये प्रति यूनिट बिजली की दर की घोषणा की आलोचना विपक्षी दलों से पहले उनकी ही पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने करते हुए इसे लॉलीपाप बता दिया है। सिद्धू स्पष्ट कहते हैं कि कांग्रेस मुफ़्त की घोषणाओं से नहीं, बल्कि उसके द्वारा किये गये पहले के वादों को पूरा करके ही सत्ता में आ सकती है।
गुरु ग्रन्थ साहिब की बेअदबी मामले में दोषियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई का वादा अब भी अधूरा ही है। चुनाव से पहले इस वादे के पूरा होने की सम्भावना ही बहुत कम है। सिद्धू सब कुछ मुफ़्त करने से पहले पुराने वादे पूरे करने के पक्ष में खड़े हैं। वहीं चन्नी वादों के साथ मुफ़्त की घोषणाओं में भरोसा कर रहे हैं। सब कुछ मुफ़्त करने की घोषणाओं में शिरोमणि अकाली दल (शिअद) भी पीछे नहीं रहेगा। जल्द ही आम आदमी पार्टी की तर्ज पर उसके घोषणा-पत्र में मुफ़्त की सौगातों का अंबार देखने को मिलेगा।
राज्य में आम आदमी पार्टी का आधार मौज़ूदा राजनीतिक हालातों के मद्देनज़र ठीक है। कैप्टन अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्री रहते कांग्रेस की हालत भी काफ़ी अच्छी थी। पार्टी की तुष्टिकरण की नीति के चलते न केवल उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा, बल्कि कांग्रेस से भी उन्होंने किनारा कर लिया। अब वही कांग्रेस को चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं। हालाँकि उनका सिक्का पहले की तरह नहीं चलेगा, यह तो तय है। इसकी एक वजह उनका भाजपा की ओर झुकाव है। भाजपा और शिअद (संयुक्त) के साथ सीटों का तालमेल करके कैप्टन कांग्रेस का खेल बिगाडऩे की कोशिश में हैं। तीन कृषि क़ानून वापस लेने के बाद राज्य में भाजपा अब पहले जैसी अछूत नहीं रही। लेकिन उसे अभी भी बड़ा जनाधार पसन्द नहीं करता। भले ही अकाली दल के नेता और दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी (डीएसजीएमसी) के प्रमुख मनजिंदर सिंह सिरसा भाजपा में शामिल हो गये हैं। बल्कि इससे सिरसा से भी बहुत-से लोग नाराज़ ही हुए हैं। पंजाब की आर्थिक स्थिति बेहद बदहाल है। मौज़ूदा मुफ़्त की घोषणाएँ जारी रखना किसी भी सरकार के लिए चुनौती से कम नहीं है, बावजूद इसके हज़ारों करोड़ों रुपये की घोषणाएँ चुनाव से पहले होने लगी हैं।
मुफ़्त सुविधाओं की घोषणा करना आसान है; लेकिन उन्हें लागू करना कम-से-कम पंजाब में तो बहुत मुश्किल है। इसे पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह समझते रहे हैं। मौज़ूदा मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी भी इससे अनजान नहीं है, बावजूद इसके पार्टी को सत्ता में बनाये रखने के लिए वह घोषणाएँ कर रहे हैं। अस्थायी सरकारी कर्मचारी स्थायी होने के लिए जगह-जगह आन्दोलन कर रहे हैं। मोबाइल टॉवरों से लेकर पानी की टंकियों पर चढक़र रोष जता रहे हैं। उन्हें नियमित नहीं किया जा रहा है, तो इसके पीछे कारण आर्थिक ही है।
वित्तमंत्री मनप्रीत बादल कई बार संकेतों के माध्यम से आँकड़ें पेश करके बता चुके हैं कि ऐसी घोषणाएँ मौज़ूदा बजट में सम्भव नहीं हैं। पंजाब पर हज़ारों करोड़ रुपये का क़र्ज़ है, जिसकी मोटी ब्याज राशि सरकार के लिए चुनौती बनी हुई है। राजस्व के मुक़ाबले ख़र्च बेहताशा बढ़ता जा रहा है। पंजाब में दो दशक से किसी भी पार्टी ने यह दावा नहीं किया कि हमारी सरकार ने भरा-पूरा ख़जाना छोड़ा था और अमुक सरकर ने उसे ख़ाली कर दिया। राज्य में ख़जाना ख़ाली ही है, किसी तरह काम चल रहा है।
कहने को पंजाब देश का सबसे ख़ुशहाल राज्य है; लेकिन वास्तविक स्थिति ऐसी नहीं है। राज्य की खस्ता आर्थिक हालत को आँकड़ों से बख़ूबी समझा जा सकता है। हालाँकि ऐसा नहीं है कि पंजाब में राजस्व कम आता है। फिर भी वहाँ हालत आदमनी अठन्नी ख़र्चा रुपय्या वाली है। लेकिन सत्ता में आने की चाह में सभी पार्टियाँ इससे आँख मूँदे रही हैं। राज्य में विधानसभा चुनाव के बाद सरकार चाहे किसी भी दल या गठबन्धन की बन जाए, मुफ़्त की घोषणाएँ जारी रखना एक चुनौती रहेगी। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है- दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को लगता है कि पंजाब में आम आदमी पार्टी के लिए मैदान खुला है। कांग्रेस बिखराव के दौर में है। शिअद का आधार वैसे ही कमज़ोर है। ऐसे में देरी है, तो दिल्ली की तर्ज पर सब कुछ मुफ़्त की घोषणाएँ कर मतदाताओं को पूरी तरह अपने पक्ष में करने की। केजरीवाल ने पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद प्रदेश की महिलाओं (18 वर्ष से ज़्यादा) के लिए 1,000 रुपये प्रतिमाह देने की घोषणा की है। इस मद पर 5,000 करोड़ रुपये ख़र्च होंगे; लेकिन यह पैसा आएगा कहाँ से? इस पर केजरीवाल भी कुछ नहीं कहते। फिर वह दिल्ली में जारी मुफ़्त की योजनाएँ बताते हैं कि किस तरह सरकार ने उन्हें बख़ूबी जारी रखा है।
केजरीवाल जानते हैं कि दिल्ली की तरह पंजाब में भी मुफ़्त का दाँव चल गया, तो पार्टी की सरकार बनना तय है। पंजाब बिजली उत्पादन में आत्मनिर्भर नहीं है। निजी कम्पनियों से बिजली ख़रीद के समझौते भी सन्देह के घेरे में रहे हैं। चन्नी की घोषणा से पहले पंजाब में बिजली की दरें पड़ोसी राज्य हरियाणा और हिमाचल से बहुत ज़्यादा थीं। दरें कम करने की घोषणा का लोगों ने स्वागत किया, तो पार्टी को लगा शायद फिर से सत्ता में वापसी का यही सबसे रामबाण है। शिअद ने भी संकेत दे दिया है कि सत्ता में आने के बाद पाँच रुपये प्रति यूनिट बिजली मुहैया कराएगी। इसी शिअद सरकार के समय में बिजली कम्पनियों से ख़रीद समझौते हुए थे, जिन्हें जारी रखना कांग्रेस सरकार के लिए मुसीबत बना हुआ है। अब वही शिअद पाँच रुपये यूनिट का वादा किस बूते कर रही है? कहा जा सकता है कि पंजाब में इस विधानसभा चुनाव से पहले सबसे बड़ा मुद्दा मुफ़्त का रहेगा। जो पार्टी या गठबन्धन सबसे ज़्यादा मुफ़्त की योजनाओं की घोषणा करेगी और मतदाताओं को रिझा लेगी, उसके सत्ता में आने की सम्भावना उतनी ही ज़्यादा रहेगी। देखना यह होगा कि मतदाताओं पर कौन-सी पार्टी असर छोड़ पाने में सफल होती है।
क्या करेंगे कैप्टन?
लगभग पाँच साल पहले पंजाब के विधानसभा चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह जनसभाओं में कहा करते थे कि यह उनका अन्तिम चुनाव है। इसके बाद वह राजनीति से किनारा कर लेंगे। ऐसी बातों का नतीजों पर क्या असर रहा होगा? कहना मुश्किल है। लेकिन मतदाताओं की सहानुभूति उन्हें ज़रूर मिली होगी। अब वही अमरिंदर सिंह कांग्रेस को सबक़ सिखाने की तैयारी कर रहे हैं। उन्हें जिस तरह से पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी और फिर पार्टी छोडऩे पर मजबूर होना पड़ा, उससे वह बहुत आहत हैं।
वह फिर से चुनाव मैदान में उतरेंगे; लेकिन क्या वह कोई चुनौती बन सकेंगे? केंद्र सरकार के तीन कृषि क़ानून वापस लेने के बाद पंजाब में भाजपा भी सक्रिय हो गयी है। शहरी क्षेत्रों में पार्टी का कुछ आधार है। कैप्टन भाजपा के साथ मिलकर नयी चुनौती पेश करने वाले हैं। फ़िलहाल तो शिअद (संयुक्त) सुखदेव सिंह ढींढसा के साथ सीटों के तालमेल पर बात बन सकती है।
पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह चुनावी राजनीति के बड़े रणनीतिकार हैं। आने वाले दिनों में कुछ क्षेत्रीय दलों से सीटों के तालमेल पर बात बन सकती है। वह गठबन्धन में मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहेंगे। भाजपा को राज्य में अपनी जड़ें जमाने के लिए कैप्टन सबसे ज़्यादा मुफ़ीद है। भाजपा के पास खोने को ज़्यादा नहीं; लेकिन पाने को बहुत कुछ है। लेकिन लगता है कि इस बार पंजाब में आसानी से उसकी दाल गलने वाली नहीं।
तू डाल-डाल, मैं पात-पात
माना जाता है कि हाथी के दाँत दिखाने को कुछ और तथा खाने के कुछ और होते हैं। पंजाब और दिल्ली में यही हो रहा है। पंजाब के आन्दोलनरत शिक्षकों को दिल्ली के मुख्यमंत्री सत्ता में आने के बाद तुरन्त प्रभाव से नियमित करने का वादा कर रहे हैं और उनके साथ बैठकर उन्हें समर्थन देते नज़र आये। पर दिल्ली में अभी तक अतिथि अध्यापक अभी नियमित नहीं हुए हैं।
हालाँकि दिल्ली सरकार ने इस दिशा में पहल की है और उसका आरोप है कि भाजपा और उप राज्यपाल इसमें अड़चन डाल रहे हैं। हाल ही में इस पर विधानसभा में भी विधेयक पेश करने के लिए उन्होंने यही बात कही, जबकि विधेयक पर चर्चा करने से भाजपा विधायक बचते हुए नज़र आये। दरअसल दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार भले ही है; लेकिन उप राज्यपाल की अनुमति के बग़ैर दिल्ली सरकार कुछ नहीं कर सकती और उप राज्यपाल केंद्र के अधीन हैं। इसी तिकड़म के चलते दिल्ली में बहुत-से काम लम्बे समय तक लटके रहते हैं या फिर लटके ही रह जाते हैं। इसे लेकर दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार में लगातार तकरार बनी रहती है।
ख़ैर, गेस्ट टीचरों को लेकर दोनों राज्यों में माँगें समान हैं। लेकिन पंजाब में मुख्यमंत्री के हाथ में पूर्ण सत्ता होगी, जो कि दिल्ली में नहीं है। पिछले दिनों पंजाब दौर पर केजरीवाल मोहाली में अनुबन्धित शिक्षकों के प्रदर्शन में शामिल हुए थे। उनके साथ संगरूर से सांसद भगवंत मान समेत राज्य में आम आदमी पार्टी के प्रमुख नेता थे। हालाँकि दिल्ली के अतिथि अध्यापक भी आन्दोलन कर चुके हैं। फ़िलहाल उन्हें नियमित होने की उम्मीद बँधी है; लेकिन यह काम उपराज्यपाल की मंशा के बिना नहीं हो सकता।
केजरीवाल की तरह इस बार पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू दिल्ली में आन्दोलनरत शिक्षकों के साथ जुड़े। उन्हें बताया कि किस तरह केजरीवाल दोहरे मानदण्ड अपना रहे हैं। पंजाब में अनुबन्धित कर्मियों को सरकार बनने पर पक्का करने का भरोसा दिला रहे हैं, वहीं अपने राज्य के शिक्षकों को अँगूठा दिखा रहे हैं। सिद्धू दिल्ली के अतिथि अध्यापकों के साथ खड़े नज़र आते हैं; लेकिन पंजाब में काफ़ी समय से अनुबन्धित शिक्षकों से दूरी बनाये रखते हैं।