अमृतसर के राजासांसी क्षेत्र के गांव अदलीवाल में निरंकारियों की प्रार्थना सभा पर हथगोला फेंकना उन दिनों की याद दिलाता है जब 13 अप्रैल 1978 को बैसाखी के मौके पर अमृतसर में अकालियों और निरंकारियों के बीच खूनी संघर्ष हुआ था। वही संघर्ष राज्य में आतंकवाद की शुरूआत बना। उसमें लगभग दो दशकों तक खून खराबा होता रहा। क्या यह हमला भी उसी तरह का आतंकवाद फिर से शुरू करने की कोशिश तो नहीं?
वैसे अमृतसर ग्रनेड हमला मामले में पंजाब पुलिस ने ग्रनेड फैंकने वाले दोनों लोगों को गिरफ्तार करने का दावा किया है। इस हमले में तीन लोगों की मौत हो गई थी। पंजाब पुलिस के डीजीपी सुरेश अरोड़ा ने बताया कि हमले का मुख्य अभियुक्त अवतार सिंह अब पुलिस हिरासत में है। अरोड़ा ने बताया कि पुलिस ने काफी असला भी बरामद किया है।
पुलिस के मुताबिक अवतार सिंह ही वह आदमी था जिसने निरंकारियों की प्रार्थना सभा पर ग्रनेड फेंका था। उन्होंने बताया कि अदलीवाल गांव अमृतसर के राजासांसी क्षेत्र में पड़ता है। पुलिस प्रमुख ने बताया कि अवतार सिंह का संबंध पाकिस्तान में जावेद नामक व्यक्ति के साथ और इटली में खालिस्तान समर्थक परमजीत सिंह बाबा के साथ था। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने इसे एक आतंकवादी हमला बताया है। इसमें तीन लोग मारे गए और 15 घायल हो गए थे।
अवतार सिंह के दूसरे साथी बिक्रमजीत सिंह को पुलिस ने पहले ही गिरफ्तार कर लिया था। कहा जाता है कि बिक्रमजीत निरंकारी भवन के मुख्य द्वार पर वहां तैनात सेवादारों को बंदूक की नोक पर रोके खड़ा था। पुलिस ने बिक्रमजीत सिंह को अजनाला की एक अदालत में पेश कर पांच दिन का पुलिस रिमांड हासिल कर लिया। अजनाला अमृतसर से 30 किलोमीटर की दूरी पर है। मुख्यमंत्री ने इस हमले के लिए पाकिस्तान की ‘इंटर सर्विसेस इंटेलिजेंस’ (आईएसआई) और पाकिस्तान स्थित खालिस्तान लिबरेशन फोर्स (केएलएफ) को जिम्मेदार ठहराया है। मुख्यमंत्री ने बताया कि जो हथगोला फैंका गया वह पाकिस्तान निर्मित था। अमरिंदर सिंह ने कहा कि यह एक ‘आतंकी हमला ‘ था जिसका किसी धर्म से कुछ लेना देना नहीं था। दूसरी ओर बिक्रमजीत सिंह के परिवार का कहना है कि वह इस मामले से किसी भी प्रकार जुड़ा नहीं है।
पुलिस प्रमुख अरोड़ा ने बताया कि अवतार सिंह को निर्देश देने वाला केएलएफ का प्रमुख हरमीत सिंह हैपी उर्फ पीएचडी है। सूत्रों के अनुसार बिक्रमजीत सिंह से की गई पूछताछ में अवतार सिंह का नाम सामने आया था। अवतार सिंह को पुलिस ने अमृतसर जि़ले के खियाला गांव से गिरफ्तार किया। उसके पास से .32 बोर के दो पिस्तौल भी बरामद हुए। इनमें से एक अमेरिका में निर्मित था। इसके अलावा उसके पास से चार मैग्जीनें और 25 कारतूस भी बरामद किए गए। अवतार सिहं अपने रिश्तेदार त्रिलोक सिंह के नलकूप में छुपा था। अवतार सिंह बीए तक पड़ा है और उसका कोई आपराधिक रिकार्ड नहीं है। पुलिस के मुताबिक वह 2012से निहंगों की वेशभूषा में रहता था। पुलिस प्रमुख ने इन आरोपों को खारिज किया कि बिक्रमजीत सिंह को फंसाया गया है। उन्होंने कहा कि पुलिस के पास उन दोनों के खिलाफ पुख्ता सबूत हैं। उन्होंने यह भी बताया कि कुछ महीने पहले अवतार से दुबई में रहने वाले पाकिस्तानी नागरिक जावेद ने संपर्क किया और उसे ‘सिखों के दुश्मनों’ को उड़ाने का काम सौंपा।
असल में खालिस्तान की मांग 1971 में ही शुरू हो गई थी। उस समय ‘न्यूयार्क टाइम्स’ में खालिस्तान को लेकर एक विज्ञापन छपा था। यह विज्ञापन एक प्रवासी जगजीत सिंह चैहान ने छपवाया था। सिखों की वित्तीय और राजनैतिक मदद के कारण यह आंदोलन भारत के पंजाब प्रांत में फैल गया। पंजाब में सिखों की गिनती दूसरों से ज़्यादा है। शुरू में इस आंदोलन की गति काफी धीमी थी पर 80 के दशक में यह तेज़ हो गई।
इसी दौरान सिख प्रचारक जरनैल सिंह भ्ंिांडरावाले का उदय हुआ। धीरे-धीरे वह सिख उग्रवाद का नेता बन गया। उस समय कुछ सिखों को देश की आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक परिस्थितियों से असंतुष्टि थी। भिंडरावाले ने इसका लाभ उठाया और सिखों को उकसा दिया।
नौ सितंबर 1981 को उग्रवादियों ने पंजाब केसरी अखबार के संपादक और मालिक लाला जगतनारायण की हत्या कर दी। लाला जगतनारायण भिंडरावाले और कांग्रेस के बहुत बड़े आलोचक थे। 15 सितंबर 1981 को भिंडरावाले को लाला जगतनारायण की हत्या के मामले में गिरफ्तार कर लिया गया। इससे पूर्व भिंडरावाले पर निरंकारी नेता गुरबचन सिंह की हत्या में शामिल होने का संदेह भी था। निरंकारी बाबा की हत्या 24 अप्रैल 1980 को की गई थी। यह हत्या उन सिखों की मौत का बदला लेने के लिए की गई थी। जो निरंकारियों के हाथों हुई थी। पर भिंडरावाले के खिलाफ कोई सबूत न होने के कारण उन्हें अक्तूबर में छोड़ दिया गया।
शुरू में अकाली दल भिंडरावाले के खिलाफ था। वह उसे कांग्रेस का एजेंट कहता था। लेकिन भिंडरावाले की बड़ती ताकत और लोकप्रियता को देखते हुए अकाली दल ने उसका साथ देने का फैसला कर लिया। अगस्त 1982 में अकाली दल ने हरचंद सिंह लोगोंवाल के नेतृत्व में भिंडरावाले को साथ लेकर ‘धर्मयुद्ध’ छेड़ दिया। इसका लक्ष्य पंजाब के लिए स्वायत्ता हासिल करना था। पर इस युद्ध की बागडोर भिंडरावाले के हाथ चली गई। उसने कहा कि जब तक आनंदपुर साहिब का प्रस्ताव पूरी तरह लागू नहीं हो जाता तब तक आंदोलन जारी रहेगा। इस बीच उग्रवादियों की हिंसा बड़ती गई। उन्होंने मुख्यमंत्री दरबारा सिंह को मारने की कोशिश की और इंडियन एयरलांइस की दो उड़ानों का अपहरण कर लिया। इस आंदोलन के समर्थन में 25,000 अकाली कार्यकर्ताओं ने गिरफ्तारी दी।
भिंडरावाले के शार्गिदों ने पंजाब में हत्याओं की जैसे झड़ी लगा दी। आंकड़ों के अनुसार चार अगस्त 1982 से तीन जून 1984 के बीच राज्य में हिंसा की 1200 घटनाएं हुई जिनमें 410 लोग मारे गए और 1180 लोग घायल हो गए। इसी दौरान पंजाब पुलिस के डीआईजी अवतार सिंह अटवाल को 25 अप्रैल 1983 को दरबार साहिब अमृतसर की ड्योड़ी पर गोली मार दी गई। उनका शव दो घंटे से भी ज़्यादा समय तक वहां पड़ा रहा। कोई पुलिस अफसर भी भिंडरावाला की अनुमति के बिना उस शव को हाथ लगाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। इससे अंदाजा होता है कि उस समय भिंडरावाले की दहशत कितनी थी।
अक्तूबर 1983 को एक बस से उतार कर छह हिंदुओं की हत्या ने सरकार को पंजाब में आपातकाल लागू करने के लिए विवश कर दिया जो 10 साल तक जारी रहा। पंजाब की हालत को काबू करने और उग्रवादियों को स्वर्ण मंदिर से निकालने के लिए 1984 में आपरेशन ‘ब्लू स्टार’ (नीला तारा) शूरू किया गया। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का आदेश था कि श्री हरमंदिर साहिब में छुपे भिंडरावाले व उसके साथियों को बाहर निकाला जाए। इसके तहत एक सिख लैफ्टिनेट जनरल कुलदीप सिंह बराड़ की कमांड में सेना ने तीन जून 1984 को स्वर्ण मंदिर को घेर लिया। सेना के साथ इसमें सीआरपीएफ, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) और पंजाब पुलिस के जवान भी शामिल थे। सेना ने स्पीकर पर उग्रवादियों से बार-बार हथियार डालने की अपील की। उन्होंने उग्रवादियों से कहा कि जो श्रद्धालु अंदर हैं उन्हें बाहर आने देें। पर शाम सात बजे तक कुछ नहीं हुआ। सेना को उग्रवादियों की ताकत का अंदाजा नहीं था। उग्रवादियों के पास चीन में बने ‘राकेट प्रोपैल्ड ग्रनेड लांचर ‘ थे। परिसर पर कब्जा करने के लिए सेना को 24 घंटे का वक्त लगा। इस ऑपरेशन में भिंडरावाला मारा गया लेकिन उसके कई साथी भागने में सफल रहे। सेना के 83 जवान शहीद हुए और 249 घायल हो गए। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 1592 लोग पकड़े गए और उग्रवादियों और आम नागरिकों की मौत की गिनती 493 है। 31 अक्तूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उसके अंगरक्षकों सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने कर दी। इस प्रकार 1992 तक राज्य में हिंसा का वातावरण रहा। 1992 में चुनावों की घोषणा हुई और राज्य में चुनी हुई सरकार बनी। उग्रवाद का वह अध्याय खत्म हो गया। आज 26 साल बाद इसे फिर जिंदा करने के प्रयास होते दिख रहे हैं।