प्रकाश सिंह बादल के निधन से पंजाब की राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा चला गया है। विवादों और उपलब्धियों के साथ प्रकाश सिंह बादल से जुड़ा एक तथ्य यह है कि वह पंजाब, ख़ासकर देहाती राजनीति की नब्ज़ गहराई से पहचानने वाले नेता थे। आम लोगों में उनका सम्मान था, भले उनकी कई नीतियों को लेकर उनके विरोधियों की एक लम्बी कतार भी हमेशा रही, जिनमें सिख भी बड़ी संख्या में शामिल हैं। पंजाब में हिन्दू-सिख एकता के वह हिमायती रहे। पंथक राजनीति से होने के बावजूद हिंदुत्व की राजनीति करने वाली भाजपा उनके जीवन के दूसरे उत्तरार्ध की सहयोगी रही। उन्होंने राजनीतिक जीवन की शुरुआत एक कांग्रेसी के रूप में की और एक ऐसा अवसर भी उनके जीवन में रहा, जब विवादित सिख धार्मिक नेता जनरैल सिंह भिंडरावाले के साथ उनकी तस्वीर पर ख़ूब बवाल हुआ।
किसान परिवार से ताल्लुक़ रखने वाले प्रकाश सिंह का बादल सरनेम उनके गाँव के नाम पर था, अन्यथा वह ढिल्लों जाट सिख थे। सन् 1970 में 43 साल की उम्र में पंजाब का मुख्यमंत्री बनने पर वह उस समय देश में सबसे कम उम्र में मुख्यमंत्री बनने वाले नेता थे, जबकि साल 2017 में जब वे पंजाब के पाँचवीं बार मुख्यमंत्री बने, तो उस समय देश में इस पद पर बैठने वाले सबसे बड़ी उम्र (85 साल) के मुख्यमंत्री थे।
राजनीतिक सफ़र
बादल का जन्म 8 दिसंबर, 1927 को बठिंडा ज़िले के अबुल-खुराना गाँव में हुआ। माता सुंदरी कौर और पिता रघुराज सिंह के यहाँ जन्म लेने वाले प्रकाश सिंह जब लम्बी के स्कूल में पढ़ते थे, तो गाँव से घोड़े पर सवार होकर जाया करते थे। ग्रेजुएशन के बाद अकाली नेता ज्ञानी करतार सिंह के प्रभाव में आकर उन्होंने 1947 में राजनीति शुरू की। पिता रघुराज सिंह की तरह प्रकाश सिंह भी बादल गाँव के सरपंच और बाद में लम्बी ब्लॉक समिति के अध्यक्ष बने।
सन् 1956 में पेप्सू राज्य के पंजाब में शामिल होने के बाद कांग्रेस-अकाली दल मिलकर चुनाव में उतरे। साथियों की तरह प्रकाश सिंह ने भी सन् 1957 का पंजाब विधानसभा चुनाव कांग्रेस टिकट पर लड़ा और जीते। सन् 1996 में केंद्र में कांग्रेस के समर्थन से एचडी देवेगौड़ा की क्षेत्रीय दलों की सरकार बनी। यही समय था, जब प्रकाश सिंह बादल भाजपा के नेतृत्व में गठित एनडीए से जुड़ गये। इसके बाद वह कांग्रेस के कट्टर विरोधी रहे।
गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन से 1920 में बनी देश की दूसरी सबसे पुरानी पार्टी शिरोमणि अकाली दल में बादल अपनी चतुराई से शीर्ष पर पहुँचे। यह वह दौर था, जब पार्टी का नेतृत्व हरचंद सिंह लोंगोवाल, गुरचरण सिंह टोहरा, जगदेव सिंह तलवंडी और सुरजीत सिंह बरनाला जैसे दिग्गज नेता कर रहे थे। इसका कारण बादल का मज़बूत वक्ता होना और जनता के साथ संवाद करने में उनकी महारत होना था। बादल 1970 से 1971 और फिर 1977 से 1980 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे। पंजाब में आतंकवाद के दौर में सन् 1995 में लम्बे समय के बाद प्रकाश सिंह बादल राजनीति में फिर सक्रिय हुए। भाजपा का सहयोगी बनकर बादल ने पंजाब में तीन बार सरकार बनायीं। दोनों में मतभेद भी उपजे; लेकिन बादल ने अपनी समझ से इन्हें बढऩे नहीं दिया। इस दौरान 1997 से 2002 तक और 2007 से 2017 तक वे फिर पंजाब के मुख्यमंत्री रहे।
वह 1995 से 2008 तक अकाली दल के अध्यक्ष रहे। बादल ने विपक्ष में भी अहम भूमिका निभायी। वह 1972, 1980 और 2002 में पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे। बादल की पत्नी सुरिंदर कौर का 2011 में कैंसर से निधन हो गया। प्रकाश सिंह बादल को 2015 में देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, पद्म विभूषण से सम्मानित किया। उनकी बेटी परनीत कौर के पति आदेश प्रताप सिंह कैरों पंजाब में मंत्री रहे।
यह आरोप हमेशा रहे कि अकाली दल का गठन सिख समुदाय को राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने के लिए किया गया था; लेकिन प्रकाश सिंह बादल ने इसे परिवार और पंजाब की पार्टी बना दिया। बादल के मुख्यमंत्री रहते ही श्रीगुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटना से उनके राजनीतिक क़द को गहरी चोट पहुँची। उन पर परिवारवाद और ‘लि$फा$फा संस्कृति’ के भी आरोप लगे। बादल 2022 में ज़िन्दगी का आख़िरी चुनाव हार गये।
बादल की मौत से अकाली दल के भीतर बादल के पुत्र और पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह के सामने चुनौतियाँ आ सकती हैं। कई वरिष्ठ अकाली नेता हैं, जो सुखबीर की नीतियों से अलग राय रखते हैं। पिता की अनुपस्थिति में आने वाली संभावित परिस्थितियाँ सुखबीर सिंह को फिर से भाजपा के ख़ेमे में जाने के लिए मजबूर कर सकती हैं। सन् 2022 के विधानसभा चुनाव के नतीजे इस बात के गवाह हैं कि अकाली दल को पंजाब की राजनीति में फिर खड़ा करने के लिए सुखबीर को बहुत मेहनत की दरकार रहेगी।