उत्साह से भरे भारतीय मूल के एक प्रोफेसर स्विटजरलैंड के यूरोपियन इंस्टीट्यूट आॅफ न्यूक्लियर रिसर्च में छात्रों को सुपरस्ट्रिंग थ्योरी के बारे में बता रहे हैं. यह थ्योरी एक ही समीकरण के जरिये समूचे ब्रह्मांड की व्याख्या करने जैसी असाधारण चीज को हासिल करने की एक कोशिश है. वे श्रीनिवास रामानुजन का नाम लेते हैं और बताते हैं कि यह भारतीय गणितज्ञ इस थ्योरी को समझने के सबसे करीब पहुंच गया था.
प्रोफेसर पश्चिमी जगत के उन कई लोगों में से एक हैं जो रामानुजन के विलक्षण दिमाग से सम्मोहित हैं–ऐसे लोग जो इस भारतीय गणितज्ञ की मृत्यु के 88 साल बाद भी उनकी नोटबुक्स में छिपे रहस्यों को समझने की कोशिश कर रहे हैं.
विलक्षण प्रतिभा के धनी रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु के इरोड शहर में हुआ था. इतिहास की किताबों में वे कहीं-कहीं महान भारतीय विभूति के रूप में मिलते हैं. 1962 में रामानुजन के जन्म के 75 वर्ष पूरे होने पर भारत सरकार ने उनकी स्मृति में एक डाक टिकट भी जारी किया था. मगर आज की दुनिया में जब जमा-घटाना और गुणा-भाग भी कैलकुलेटर और एक्सेल स्प्रेडशीट पर हो रहा हो तो समझना मुश्किल नहीं कि रामानुजन को हमने कैसे भुला दिया.
अर्थशास्त्री अजय शाह अपने छात्रों को रामानुजन की दृढ़ता और अडिगता के बारे में बताना पसंद करते हैं. दिल्ली में रहने वाले शाह कहते हैं, ‘रामानुजन ने दिखाया कि आप मुख्यधारा से दूर रहकर भी असाधारण प्रतिभाशाली हो सकते हैं. उनकी कहानी इस बात का प्रतीक है कि तमाम मुश्किलों के बावजूद भारत में ऐसी प्रतिभाएं जन्म लेती हैं जो ज्ञान के क्षेत्र में दुनिया को रास्ता दिखाने का माद्दा रखती हैं. जब भी कोई छात्र कहता है कि इंटरनेट डाउन है और इसलिए वह वेक्टर स्पेस की पढ़ाई नहीं कर पा रहा तो मैं उसे रामानुजन का उदाहरण देता हूं.’
‘जब भी कोई छात्र कहता है कि इंटरनेट डाउन है और इसलिए वह वेक्टर स्पेस की पढ़ाई नहीं कर पा रहा तो मैं उसे रामानुजन का उदाहरण देता हूं’
भारत के परे दुनियाभर में रामानुजन को औपनिवेशक काल में जन्मी एक विलक्षण प्रतिभा के रूप में याद किया जाता है. उनकी जिंदगी कैंब्रिज विश्वविद्यालय के क्रिकेटप्रेमी गणितज्ञ जीएच हार्डी से अभिन्न रूप से जुड़ी रही. गणित को संगीत और पेंटिंग से भी बड़ी कला मानने वाले हार्डी ने ही रामानुजन की प्रतिभा को पहचानकर उसे उपयुक्त मंच दिया. इससे पहले रामानुजन मद्रास में बीस रुपये महीना पाने वाले एक क्लर्कमात्र थे जिसका विश्वास था कि एक देवी संख्याओं की भाषा में उससे संवाद करती है. जब संसाधनों की सड़क खत्म हो गई तो रामानुजन ने अपने काम के नमूने ब्रिटेन के गणितज्ञों को लिख भेजे. इन कच्ची गणनाओं से हार्डी ने उस तीक्ष्णबुद्धि गणितज्ञ को पहचान लिया जिसकी प्रतिभा महान वैज्ञानिक न्यूटन से किसी भी मायने में कम नहीं थी. हार्डी की कोशिशों से रामानुजन कैंब्रिज पहुंच गए और वहां की फैलोशिप भी हासिल की. 1919 में वह भारत लौटे और साल भर के भीतर ही उनकी मृत्यु हो गई. दरअसल ब्रिटेन में प्रवास के दौरान ही रामानुजन की सेहत बिगड़ने लगी थी. वह प्रथम विश्वयुद्ध का दौर था और वहां साग-सब्जियों की भारी किल्लत हो गई थी. इससे अंदाजा लगाया जाता है कि उनकी अकाल मृत्यु के पीछे की वजह कुपोषण से गिरता स्वास्थ्य रहा होगा.
यूनिवर्सिटी के गलियारों में रामानुजन की जिंदगी फिर से चर्चा का विषय बन रही है. पिछले साल सितंबर में ब्लूम्सबरी ने डेविड लीविट द्वारा लिखित ‘द इंडियन क्लर्क’ नामक उपन्यास प्रकाशित किया जिसमें रामानुजन की जिंदगी और उनकी गणित का दिलचस्प वर्णन किया गया है. इस उपन्यास ने उन लोगों का ध्यान भी अपनी तरफ खींचा है जो विज्ञान या गणित में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखते. ब्रिटिश अभिनेता स्टीफन फ्राई भारतीय निर्देशक देव बेनेगल के साथ मिलकर रामानुजन की जिंदगी पर फिल्म बनाने की संभावनाएं तलाश रहे हैं. 1991 में रामानुजन पर एक बैले (नृत्य नाटिका) बना चुकीं जानी-मानी ब्रिटिश कोरियोग्राफर शोभना जयसिंह कहती हैं,’अपने शोध के दौरान मैंने पाया कि रामानुजन की जिंदगी की कहानी उनकी गणितीय कल्पनाओं जैसी ही भव्य और उतार-चढ़ाव से भरी है.’ बाद में दक्षिण अफ्रीकी संगीतकार और गणितज्ञ केविन वोलंस ने जयसिंह की नृत्य नाटिका का संगीत ‘द रामानुजन नोटबुक्स’ के नाम से जारी किया. साफ है कि मौत के लगभग नौ दशक बाद भी रामानुजन में लोगों की दिलचस्पी बनी हुई है.
इसका कुछ श्रेय इस बात को भी जाता है कि गणित में लोगों की रुचि बढ़ रही है. गणित की जटिल पहेली को विषय बनाकर ‘फेरमैट्स एनिग्मा’ नामक एक चर्चित उपन्यास लिखने वाले ब्रिटिश लेखक साइमन सिंह कहते हैं,’विज्ञान और गणित की दुनिया विलक्षण प्रतिभाओं और उनकी हैरतअंगेज ऐसी कहानियों से भरी पड़ी है जिनके बारे में सिर्फ वही चंद लोग जानते हैं जो इस क्षेत्र में जुनून के साथ काम कर रहे हैं. अचानक कोई व्यक्ति इनमें से एक कहानी लिखता है जो मशहूर हो जाती है तो उस व्यक्तित्व में लोगों की दिलचस्पी एकदम से बढ़ जाती है. ऐसा जॉन नैश पर सिल्विया नासर की किताब से हुआ जिसके बाद उन पर कई और किताबें लिखी गईं और फिर ‘अ ब्यूटिफुल माइंड’ फिल्म बनी. अब यही रामानुजन के मामले में भी हो रहा है.’’
लेकिन पश्चिम में इतनी दिलचस्पी के बावजूद भारत में रामानुजन की विरासत को संजोने की सुध किसी को नहीं. जयसिंह बताती हैं कि वह चेन्नई में रामानुजन की विधवा पत्नी से मिली थीं जिनकी बस यह इच्छा थी कि वहां पर उनके पति की एक मूर्ति लग जाए. जयसिंह कहती हैं, ‘कुंभकोणम में रामानुजन का घर जीर्ण-शीर्ण हालत में था और दीवार पर लगे एक छोटे से फोटो को छोड़ दिया जाए तो उसमें ऐसा कुछ भी नहीं था जो बताता कि इसका संबंध कभी रामानुजन से था. इस फोटो को देखने के लिए भी मुझे फ्लैशलाइट की जरूरत पड़ी.’
रामानुजन का काम आज भी उतना ही प्रासंगिक है. यूनिवर्सिटी आॅफ मैनचेस्टर में प्रोफेसर जॉर्ज जी. जोसेफ कहते हैं, ‘रामानुजन को हालिया थ्योरिटिकल फिजिक्स के क्षेत्र में सबसे क्रांतिकारी अवधारणाओं में से एक की व्याख्या श्रेय दिया जा सकता है. यह है ‘द सुपरस्ट्रिंग थ्योरी आॅफ कॉस्मॉलॉजी’. दरअसल व्यावहारिक रूप से कहा जाए तो यह उनकी गणित थी. यह संख्याओं को कई तरह से विभाजित करने का सिद्धांत है जो आज एटीएम मशीनों में भी इस्तेमाल होता है. इसी सिद्धांत की मदद से उनमें करेंसी नोटों को विभाजित करके व्यवस्थित किया जाता है.’ रामानुजन की बायोग्राफी ‘द मैन हू न्यू इनफिनिटी’ के लेखक राबर्ट कैनिगेल के मुताबिक रामानुजन काम में अद्भुत समृद्धता, सुंदरता और रहस्य का मेल हैं.
सुंदरता वास्तव में रामानुजन के काम में भी दिखाई देती थी. हर तरह की नकल यानी प्रूफ से नोटबुकों को भरने वाले पश्चिमी गणितज्ञों के उलट रामानुजन पहले चॉक की सहायता से स्लेट पर गणनाएं करते थे और फिर उत्तरों को सफाई से अपनी नोटबुक में लिख लेते थे. उनके लिए महत्व परिणाम का था, इस बात का नहीं कि आप उस तक कैसे पहुंचे. यह परंपरा भारतीय और चीनी गणितीय परंपराओं में पाई जाती है जहां गुरुओं की प्राथमिकता विस्तार में जाने की बजाय सीधे परिणाम बताना होती है.
इस तरीके से हार्डी को चिढ़ होती थी जिनके लिए पूरी प्रक्रिया का प्रूफ, परिणाम जितना ही महत्वपूर्ण था. वरिष्ठ पत्रकार हरतोष सिंह बल कहते हैं, ‘किसी मुश्किल को हल करते हुए गणितज्ञ कदम-दर-कदम आगे बढ़ते हैं और कई तरह से उन प्रक्रियाओं का मिलान करते हैं. लेकिन रामानुजन इसके उलट थे. उनका सहज ज्ञान उन्हें कई कदमों की छलांग लगाकर सीधा परिणाम की तरफ ले जाता था. इसलिए कई बार ऐसा होता था कि रामानुजन ऐसे परिणामों तक पहुंच जाते थे जिनके बारे में सोचना बाकी लोगों की मानसिक क्षमताओं से परे था. अपने सहज ज्ञान को
रामानुजन किसी दैवीय शक्ति की प्रेरणा बताते थे. लेकिन दूसरी ओर कई बार वह भटक भी जाते थे और किसी साधारण इंसान की तरह गलतियां भी करते थे.’
दैवीय शक्ति वाली बात आज भी भारतीय तर्कवादियों को हजम नहीं होती. रामानुजन का दावा था कि देवी नामिगरी उनसे बात करती हैं और वे उनके माध्यम मात्र हैं. हो सकता है कि अगर रामानुजन यह न कहते तो तर्कवादी उन्हें गले लगा लेते. दूसरी तरफ दर्शनशास्त्र के दोहरेपन के उलट संख्याओं की निश्चितता में उनका विश्वास उन्हें उन लोगों से दूर कर देता था जो धार्मिक कारणों से उनको सही कह सकते थे. इसलिए मौत के नौ दशक बाद भी रामानुजन एक रहस्य बने हुए हैं. उनकी दैवीय प्रेरणा की व्याख्या करना अनंत को समझाने जैसा ही मुश्किल है.
व्यावहारिक रूप से कहा जाए तो नंबरों को कई तरह से विभाजित करने का सिद्धांत उनकी गणित थी जिसका इस्तेमाल आज एटीएम मशीनों में भी हो रहा है
तर्क और आस्था के बीच की खाई बहुत पुरानी है. जयसिंह कहती हैं कि रामानुजन के लिए संख्याएं रहस्यमय और काफी हद तक दैवीय प्रतीक थीं जो सत्य की तरफ ले जाती थीं. नृत्य नाटिका बनाने के लिए इसी बात ने उन्हें खास तौर से प्रेरित किया. इसके उलट कैंब्रिज की गणितीय धरोहर तर्क से संचालित होती थी. वे कहती हैं, ‘एक तरह के गणितीय जगत से दूसरी प्रकृति वाली गणितीय दुनिया तक की रामानुजन की इसी सांस्कृतिक यात्रा ने मुझे सबसे ज्यादा रोमांचित किया.’’
हार्डी और रामानुजन के रिश्ते के बारे में यह भी अनोखी बात थी कि सोच में बुनियादी फर्क के बावजूद भी यह जिंदा रहा. रामानुजन को यह
जानने में ज्यादा वक्त नहीं लगा कि उनकी शैली हार्डी से बिल्कुल अलग थी. हार्डी के लिए तर्क की महत्ता थी जबकि रामानुजन का विश्वास
दैवी प्रेरणा में था. हार्डी हर तरह से पक्की पड़ताल के बाद ही अगला कदम उठाते थे जबकि रामानुजन की प्रेरणा उन्हें बाधाओं के ऊपर से छलांग लगाने के लिए प्रेरित करती थी.
दरअसल रामानुजन को किसी ने गणित का व्याकरण तो पढ़ाया था नहीं, इसीलिए उन्हें अपनी बातों को तर्क से सिद्ध करना नहीं आता था. ‘द इंडियन क्लर्क’ में इसका सजीव वर्णन किया गया है कि कैसे हार्डी इस बात से क्षुब्ध और निराश थे. उन्हें समझ में ही नहीं आता था कि क्यों रामानुजन जैसा प्रतिभाशाली गणितज्ञ एक साधारण प्रूफ नहीं लिख सकता.
इस तरह से देखें तो सिर्फ 32 साल जिए रामानुजन की कहानी किसी परीकथा की तरह लगती है. एक ऐसी कहानी जिसमें एक प्रतिभा पर सात समंदर पार रह रहे ऐसे व्यक्ति की नजर जाती है जो उस प्रतिभा को अनुकूल जमीन में रोपना चाहता है. लेकिन राजनीतिक परिदृश्य इसके लिए माकूल नहीं है क्योंकि ब्रिटेन निर्विवादित विश्वशक्ति है और भारत उसका एक उपनिवेश. सांस्कृतिक अभिमान अपने चरम पर है और कहा जाता है कि यूरोप की किसी लाइब्रेरी के एक कोने में रखी किताबों का महत्व एशिया के कुल जमा साहित्य से कहीं ज्यादा है.
परीकथा की तरह रामानुजन की कहानी में भी अच्छे लोग हैं. रामानुजन की ब्रिटेन यात्रा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कैंब्रिज के गणितज्ञ ईएच नेविल के मुताबिक रामानुजन ऐसे पहले व्यक्ति हैं जो गणित के क्षेत्र में उनकी महान विभूतियों के समकक्ष हैं. यह धारणा कि श्वेत जाति हर मामले में अश्वेतों से बेहतर है, रामानुजन ने तोड़ी.
‘द इंडियन क्लर्क’ में इस बात का सजीव वर्णन है कि हार्डी और रामानुजन गणित की दुनिया में सबसे ज्यादा खुश रहते थे. वह दुनिया जो धर्म, युद्ध, साहित्य, सेक्स और यहां तक कि दर्शन से भी दूर थी. दरअसल सच्चे गणितज्ञ को न पियानो की जरूरत होती है न बर्तन की और बाइबिल की तो बिल्कुल नहीं. उसे चाहिए तो बस एक स्लेट और चॉक.
(नजरिया, 31 दिसंबर 2008)