प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का 2009 में दूसरी बार प्रधानमंत्री बनना बिहार में उतना चर्चा का विषय नहीं था जितना उनकी कैबिनेट में बिहार कोटे से मंत्री बनने वालों पर सस्पेंस. इसकी दो-तीन वजहें थीं. एक कांग्रेस कोटे के मंत्री रहे शकील अहमद की मधुबनी सीट से हार और दूसरी लालू प्रसाद यादव और पासवान की पार्टियों का लगभग सफाया. ऐसे में सासाराम संसदीय सीट से जीत दर्ज करके आई मीरा कुमार को मंत्रिमंडल में जगह देकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बिहारी कोटे की लाज रखी. लेकिन फिर तुरंत ही हालात ऐसे बदले कि कुमार का लोकसभा अध्यक्ष बनना तय हुआ और नतीजतन उन्हें दो दिन बाद ही मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा. तब से आज तक गाहे-बगाहे होने वाली सुगबुगाहटों के बावजूद मंत्रिमंडल से बिहार गायब ही रहा है.
लेकिन इस कमी की भरपाई उस दबदबे से होती दिखती है जो इन दिनों बिहार कैडर के नौकरशाहों का विभिन्न मंत्रालयों में दिखता है. गृह, रक्षा, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग और ग्रामीण विकास सहित तमाम अहम मंत्रालयों में बिहार कैडर के कई नौकरशाह प्रमुख पदों पर हैं. इनमें से नौ सचिव हैं, 17 संयुक्त सचिव और छह अपर सचिव. बिहार की गिनती देश के पिछड़े राज्यों में की जाती है. इस लिहाज से बिहार के लोगों को उनके बीच से ही काम करके गए इन हुक्मरानों से बड़ी उम्मीदें हैं. यह वर्चस्व एकबारगी 70 और 80 के दशक की याद भी दिलाता है जब केंद्र सरकार के मंत्रालयों में बिहार कैडर का कुछ ऐसा ही जलवा होता था. दरअसल तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बिहार मूल के या बिहार कैडर के अधिकारियों को बहुत पसंद करती थीं.
राज कुमार सिंह भारत सरकार के गृह सचिव हैं. बिहार कैडर के आईएएस अधिकारी सिंह 1975 बैच के हैं. बिहार के आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव ब्यास जी के मुताबिक सिंह अपनी कार्यकुशलता के लिए बिहार-झारखंड ही नहीं, दूसरे राज्यों के आईएएस अधिकारियों मंे भी चर्चित हैं. वे पटना के डीएम भी रह चुके हैं और बिहार के गृह सचिव भी. 2008 में जब कोसी में बाढ़ आई थी तो राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग की जिम्मेदारी उनके ही पास थी. उस समय उनके काम की काफी सराहना हुई थी. लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा चर्चा मिली सड़क निर्माण विभाग में सचिव रहते हुए. कहा जाता है कि बिहार में सड़कों की स्थिति में जो अभूतपूर्व सुधार हुआ है उसका श्रेय काफी हद तक राज कुमार सिंह को ही जाता है. अपने कड़क मिजाज के लिए जाने जाने वाले सिंह ने सड़क निर्माण विभाग में सचिव रहते सत्ताधारी दलों के कई विधायकों की कंस्ट्रक्शन कंपनियों को ब्लैकलिस्ट कर दिया था. बिहार सरकार लंबे समय से मांग कर रही है कि नक्सल प्रभावित जिलों में स्पेशल टास्कफोर्स का गठन हो. सिंह के गृह सचिव होने के बाद इस मांग के पूरा होने की उम्मीद जताई जा रही है.
यह वर्चस्व 70 और 80 के दशक की याद भी दिलाता है जब केंद्र के मंत्रालयों में बिहार कैडर का ऐसा ही जलवा होता था
बिहार कैडर के एक और प्रमुख अधिकारी हैं रक्षा सचिव शशिकांत शर्मा. 1976 बैच के आईएएस अधिकारी शर्मा ने प्रदीप कुमार का स्थान लिया है जो अब नये केंद्रीय सतर्कता अायुक्त हैं. साल 2002 से 2010 तक शर्मा रक्षा मंत्रालय के विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं. इसके अलावा उनके पास आईटी सचिव, सचिव, वित्त सेवा विभाग जैसे कई महत्वपूर्ण पदों पर काम करने का अनुभव है. शर्मा के रक्षा सचिव बनने से बिहार के राजगीर में 3000 एकड़ में फैले वर्षों से लंबित आयुध कारखाने के शुरू होने की संभावना बढ़ गई है. ब्राजील सरकार से सहयोग से बने इस कारखाने को भारत सरकार ने बोफोर्स कांड के सामने आने के बाद ब्लैकलिस्ट कर दिया था.
1975 बैच के आईएएस अधिकारी बीके सिन्हा ग्रामीण विकास मंत्रालय जैसे विभाग की अगुवाई कर रहे हैं. गौरतलब है कि यही वह विभाग है जहां से भारत सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी और बहुआयामी योजना मनरेगा चलाई जा रही है. सिन्हा इससे पहले बिहार में कोऑपरेटिव बैंक के प्रशासक के रूप में बिहार में काफी चर्चित हुए थे. उनके सचिव बनने से बिहार में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना में काफी काम होने की संभावना है.
1975 बैच के आईएएस अधिकारी ए के उपाध्याय भूतल परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के सचिव पद पर काम कर रहे हैं. उनके बारे में कहा जाता है कि वे जमीन से जुड़े आदमी हैं. केंद्र में काम करने का उनका अनुभव आठ साल का है. उनके सचिव बनने से बिहार में नेशनल हाइवे की 3,738 किलोमीटर लंबी सड़कों का कायाकल्प होने की उम्मीद की जा रही है. एएनपी सिन्हा पंचायती राज मंत्रालय में सचिव हैं. उनकी पत्नी भी आईएएस अधिकारी रह चुकी हैं. 1974 बैच के सिन्हा पटना में एनएमसीएच में स्वास्थ्य कमिश्नर रहते काफी सुर्खियां बटोर चुके हैं. 1975 बैच के आईएएस अधिकारी नवीन कुमार हाल तक शहरी विकास मंत्रालय के सचिव पद पर थे. पर सरकार ने पिछले हफ्ते इनका तबादला पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के सचिव पद पर कर दिया है. उधर, 1976 बैच के आईएएस अधिकारी पीके बसु कृषि विभाग के सचिव पद पर काम कर रहे हैं. इससे पहले वे कृषि विभाग में ही अतिरिक्त सचिव पद संभाल चुके हैं.
1972 बैच के आईएएस अधिकारी एमएन प्रसाद रिटायरमेंट के बाद भी प्रधानमंत्री कार्यालय में सचिव पद पर काम कर रहे हैं. हालांकि हाल ही में मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने उन्हें विश्व बैंक में कार्यकारी निदेशक नियुक्त कर दिया है. प्रसाद विश्व बैंक में पुलक चटर्जी का स्थान लेंगे जिन्हें वापस पीएमओ लाया जा रहा है. बिहार में कई विभागों सहित केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय में सचिव जैसे कई महत्वपूर्ण पदों पर काम कर चुके प्रसाद काफी सुलझे अधिकारी के रूप में जाने जाते हैं.
इससे एक पांत पीछे भी बिहार कैडर के अधिकारियों की कमी नहीं. बीबी श्रीवास्तव, अरविंद प्रसाद, एसपी सेठ और अरुणिश चावला जैसे अधिकारी विभिन्न मंत्रालयों में अतिरिक्त सचिव स्तर पर काम कर रहे हैं . चावला, सेठ और प्रसाद योजना आयोग में तैनात हैं. जो अधिकारी केंद्र में संयुक्त सचिव का पद संभाल रहे हैं वे हैं गिरीश शंकर (खाद्य और सार्वजनिक वितरण), चैतन्य प्रसाद (औद्योगिक नीति), रश्मि वर्मा और सुभाष शर्मा (दोनों रक्षा उत्पादन), केके पाठक (घर), आरके महाजन (कोयला), भानु प्रताप शर्मा (अल्पसंख्यक), सुनील कश्मीर सिंह (आवास और शहरी गरीबी) और अरुण झा (फार्मास्यूटिकल्स).
हालांकि इस सफलता का एक दूसरा पक्ष भी है. एक तरफ बिहार कैडर के आईएएस अधिकारी केंद्र में झंडे गाड़ रहे हैं और दूसरी तरफ खुद बिहार पिछले कई वर्षों से आईएएस अधिकारियों की कमी से त्रस्त है. आंकड़े बताते हैं कि बिहार-झारखंड जब एक था तो उस समय राज्य में 325 आईएएस अधिकारी हुआ करते थे. बंटवारे के बाद एक चौथाई आईएएस अधिकारियों की संख्या झारखंड में चली गई और बिहार में तकरीबन 206 अधिकारी बचे. अभी हर साल बिहार को 10 आईएएस अधिकारी मिल रहे हैं. राज्य विभाजन से पहले यह कोटा 14 अधिकारियों का हुआ करता था. बिहार सरकार का कहना है कि वर्तमान में राज्य में आईएएस अधिकारियों की काफी कमी है और यह कोटा बढ़ना चाहिए.
जानकार बताते हैं कि लालू-राबड़ी के राज में खराब कानून-व्यवस्था और राजनीतिक दखलंदाजी की वजह से बिहार कैडर के कई अधिकारियों ने अपनी नियुक्ति दिल्ली या फिर देश के दूसरे राज्यों में करवा ली थी. पर नीतीश कुमार की सरकार आने के बाद ये अधिकारी अपने गृह राज्य वापस आने की इच्छा जता रहे हंै. आज बिहार कैडर के लगभग 35-40 आईएएस अधिकारी केंद्र या दूसरे राज्यों में सेवा दे रहे हैं.