ऐ मेरे वतन के लोगों…

ऐसा तो हो नहीं सकता कि लता बाई का गाया कोई गाना आपका अपना गाना न हो. कहीं कोई धुन, कहीं कोई बोल और कहीं कोई पूरा गाना ही जीवन की पगथली में कांटे की तरह चुभ कर टूट जाता है. मर्म में खुबी हुई नोक रह जाती है और जो जब-तब या कभी-कभी अकारण ही कसकने लगती है. तब वह धुन, वह बोल और वह गाना बार-बार घुमड़ता है और आप गुनगुनाते रहते हैं. ऐसा होने के लिए जरूरी नहीं कि आप गाना सुनने वाले या गाने वाले हों. हर व्यक्ति गुनगुनाता है -बाथरूम हो या कमरा या सड़क या सुनसान बियाबान या भीड़ भरा चौराहा. याद कीजिए आपने अपने को कभी न कभी तो गाते हुए पाया या पकड़ा ही होगा. है न?

लता मंगेशकर होने की सार्थकता यह है कि पचास साल में उन्होंेने इतनी परिस्थितियों में और इतनी भाषाओं में इतने गीत गाए हैं कि शायद ही कोई भारतीय होगा जिसके निजी जीवन को उनके स्वर ने छुआ न हो. गाने में यश है, कीर्ति है और अब तो धन भी है. लेकिन ये तीनों तो आप प्रतिभाशाली और मेहनती और अपनी धुन के पक्के हों तो और कई क्षेत्रों में भी पा सकते हैं. जैसे लता मंगेशकर के गाने की स्वर्ण जयंती पर बंबई के शिवाजी पार्क समारोह में बोलने आए सुनील गावसकर. बल्लेबाजी के इस वामन अवतार ने तीन डग से क्रिकेट की दुनिया नाप ली है. यश, कीर्ति और धन उन्हें भी भरपूर मिला है और उनकी कीर्ति ध्रुव तारे की तरह रहनी है. लेकिन एक मामूली भारतीय के जीवन को उसकी निजता में जिस तरह लता मंगेशकर के स्वर ने छुआ है वैसा सुनील गावसकर के बल्ले ने तो नहीं छुआ.

गाना क्रिकेट खेलने से कहीं अधिक स्वाभाविक, व्यापक और सार्थक है. कोई आदमी-औरत नहीं है जिसने गाया न हो – प्रेम में, सुख में, दुख में, विषाद में, समर्पण में, शरारत में यानी भावावेग की कोई न कोई अभिव्यक्ति तो ऐसी है ही जो किसी के जीवन में गाने से हुई हो. गाने में ऐसा कुछ आदिम है जो हम सब के जीवन में है. भारतीयों के जीवन के इस आदिम तत्व में लता मंगेशकर कहीं न कहीं स्वर की तरह घुली और खुबी हुई हैं. इतना व्यापक और गहरा स्पर्श इस देश के और किसी भी गाने वाले या गाने वाली का नहीं है.

फिल्मों की टीन टप्परी दुनिया में वैसे भी कोई ज्यादा देर तक नहीं टिकता. पचास साल तो बहुत बड़ा काल है. इतने में कम से कम पांच पीढ़ियां बीत जाती हैं. सदाबहार कहे जाने वाले हीरो, हमेशा सोलह साल की बनी रहने वाली तारिकाएं, संगीत निर्देशक, गायक, गीतकार, कहानीकार सभी मौसम के साथ चढ़ते और उतर जाते हैं. उस बाजार में कोई किसी का नहीं होता. बॉक्स ऑफिस पर जो जितना चल जाए उतना ही उसका करियर है. लता मंगेशकर ने जब पहला गाना गाया तो वे तेरह बरस की थीं. और हालांकि उनके घर में गाने-बजाने की परंपरा थी और पिता मास्टर दीनानाथ का तो ट्रूप ही था और वही लता मंगेशकर के पहले गुरु थे. लेकिन यह घर और घराना उनके काम नहीं आया. पहले माता साथ छोड़ गईं और फिर पिता. लता मंगेशकर के काम आई उनकी अद्भुत और जन्मजात प्रतिभा, कंठ और लगातार रियाज करते रहने और अपने को बेहतर बनाते रहने की लगन. फिल्मी दुनिया की लगातार खिसकती रेत में लता जी बचपन से ले कर अब बुढ़ापे के तिरसठ साल तक अगर पैर जमाए मजबूती से खड़ी रहीं तो इसका कारण उनका अपना गाना ही है. अगर उन्होंने कहीं समझौता नहीं किया और अपने आत्म-सम्मान को कहीं आंच नहीं आने दी तो सिर्फ इसलिए कि इस चरित्रवान स्त्री को अपनी प्रतिभा पर गजब का भरोसा था और है.

पचास साल से वे गा रही हैं और गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में सबसे ज्यादा गीत गाने के कीर्तिमान को छोड़ भी दें तो भारतीय सिने संगीत में वे हमेशा शिखर पर रही हैं. इतने साल कोई शिखर पर नहीं रहा, लेकिन लता मंगेशकर को कोई चुनौती नहीं मिली. बहुत कहा गया कि उन्होंने अपना एकाधिकार जमा रखा है. वे अपनी प्रतिभा और अपने स्थान का दुरुपयोग करती हैं और संगीतकारों और निर्माताओं को धौंस पट्टी में रखती हैं. वे नयी गायिकाओं को उभरने और जमने का मौका नहीं मिलने देतीं. सिने संगीत में उनकी छवि सर्वसत्तावादी और तानाशाह महिला की बनाई गई और तमाम नयी गायिकाओं को उनकी ज्यादती की शिकार. बंबई की फिल्मी दुनिया में और उनकी गलाकाटू होड़ में सारे हथियार और हथकंडे जायज हैं. इनको लता मंगेशकर जैसी समझौता न करने वाली और अपनी प्रतिभा की ऐंठ पर बल खाए खड़ी रहने वाली महिला को कीचड़ में रगड़ने और धूल में मिला देने में अपार आनंद ही मिल सकता है. उन्होंने कोशिश भी बहुतेरी की लेकिन लता मंगेशकर ने न तो मैदान छोड़ा न अपनी गरिमा से नीचे उतर कर गाना गाया.

लता की आवाज बर्फीले पहाड़ों को काट कर आती और ठंडी धार की तरह अंदर उतर जाती हैफिल्मी दुनिया की उस काजल की कोठरी में अगर अभी भी वे अपनी सफेद धोती में ठसके से बैठ कर गाती हैं तो यह उनकी चारित्रिक और धारणा शक्ति की विजय है. फिल्मी दुनिया की शायद ही किसी हस्ती का भीतर और बाहर इतना दबदबा और सम्मान हो जितना लता मंगेशकर का है. उन्होंने ज्यादातर सिनेमा के लिए गाया और फिल्मी संगीत को संगीत के संसार में कोई महत्व नहीं मिलता. लेकिन भीमसेन जोशी जैसे हमारे जमाने के दिग्गज गायक लता मंगेशकर का सम्मान करने शिवाजी पार्क आए थे और कहा कि लता बाई तो महाराष्ट्र को भगवान की देन हंै. कुमार गंधर्व भी पिछले पचास साल के सर्जक गायकों के अग्रणी थे और उनके मन में भी लता मंगेशकर के लिए प्रेम और सम्मान था. अमीर खां साहब क्या सोचते थे मुझे मालूम नहीं. लेकिन शायद ही ऐसा कोई शास्त्रीय गायक हुआ है जिसको लता मंगेशकर ने प्रभावित न किया हो. यह सम्मान फिल्मी दुनिया की किसी गाने वाली या गाने वाले को ही मिला हो, ऐसा नहीं. देश के सभी क्षेत्रों के सभी अग्रणी लोगों में लता मंगेशकर की इज्जत है. सिर्फ सिनेमा के गाने गा कर कोई ऐसी सर्वमान्य लोकमान्यता पा ले तो इसे अद्भुत ही माना जाना चाहिए.

मामूली सड़क छाप आदमी से लेकर अपने क्षेत्र के शिखर पर बैठे व्यक्ति तक का कोई न कोई गाना है जिसे लता मंगेशकर ने गाया है. लेकिन मैं पाता हूं कि सिनेमा का ऐसा कोई गाना नहीं है जो मेरे मर्म में कांटे की तरह खुबा हो और जिसे बार-बार गुनगुना कर मैं राहत और मुक्ति पाता हूं. अपन संगीत के मामले में कोई नकचढ़े आदमी नहीं हैं कि फिल्मी यानी लोकप्रिय संगीत को हिकारत की नजर से देखें. यह भी नहीं कि जिस इंदौर में अमीर खां साहब और देवास में कुमार गंधर्व का गाना सुना उसी इंदौर में जन्मी लता बाई के लिए अपने मन में कोई मोह और सम्मान नहीं है. मेरे एक मामा हारमोनियम अच्छा बजाया करते थे और दफ्तर के बाद के टाइम में संगीत की ट्यूशन किया करते थे. उनका दावा था कि उन्होंने लता को बचपन में गाना सिखाया. मैं तब भी मानता था कि यह गप है क्योंकि लता मंगेशकर का तो जन्म ही सिर्फ इंदौर में हुआ था. उनके पिता अपना ट्रूप ले कर आए थे और चले गए थे. फिर भी इंदौर वालों को गर्व है कि लता मंगेशकर उनके  यहां जन्मीं. वहां उनके नाम पर उनके जन्मदिन पर सुगम संगीत का एक लखटकिया पुरस्कार भी दिया जाता है. अब शायद वहां निराशा हुई होगी कि खुद लता बाई अपने को महाराष्ट्र की कन्या मानती हैं.

लता मंगेशकर का जो गाना मुझे आज भी विचलित करता है वह उन्होंने फिल्म में नहीं गाया. बत्तीस साल पहले दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में चीनी आक्रमण के बाद लता मंगेशकर ने प्रदीप जी का लिखा -ऐ मेरे वतन के लोगों- गाया था जिसे सुन कर जवाहरलाल जी की आंखों से आंसू टपकने लगे थे. उन्होंने लता मंगेशकर को कहा भी था -‘बेटी, तूने आज मुझे रुला दिया.’  वे एक पराजित प्रधानमंत्री के आंसू नहीं थे. वे विश्व शांति के एक ऐसे महापुरुष के आंसू थे जिसे राष्ट्रहित की हिंसक राजनीति ने छल लिया था. मैं उस कार्यक्रम में नहीं था. इंदौर  में बैठा नई दुनिया अखबार निकालता था और चीनी आक्रमण से अपने को उसी तरह छला हुआ और घायल पाता था जैसे जवाहरलाल और अपना पूरा देश. नेफा में हुई पराजय पर रोना नामर्दी लगता था. लेकिन मोर्चे की खबरें पढ़-पढ़ कर और छाप-छाप कर मन में तो रुलाई आती ही थी. लता मंगेशकर का -ऐ मेरे वतन के लोगो- सुन कर और गा कर मन पानी-पानी हो जाता. लगता कि अपन वह शहीद भी हैं जो संगीन पर माथा रख कर सो गए और वह वतन के लोग भी हैं जो अमर बलिदानी को याद करके रो रहे हैं. एक राष्ट्र की आहत आत्मा की आवाज थी जो लता मंगेशकर के गीले गले से निकली थी और करोड़ों लोगों को रुला रही थी. मैं हमेशा गाती हुई लता मंगेशकर और रोते हुए पितृ पुरुष जवाहरलाल को अपनी डबडबाई आंखों के सामने पाता और रुलाई दबाता.

चीन से पराजय का वह अपमान अब समय के कागज पर धुंधला हो कर बहुत हलका पड़ गया है. लेकिन आज भी – ऐ मेरे वतन के लोगों – सुनता हूं तो जैसे घाव में खून भर आता हो और टपकने लगता हो. ठंड और अंधेरे और हताशा के दिन आसपास मंडराने लगते हैं. एक जवान होता लड़का अधेड़ शरीर में देव की तरह आ कर कांपने लगता है. लता मंगेशकर की आवाज बर्फीले पहाड़ों को काट कर आती और ठंडी धार की तरह अंदर उतर जाती है बल्कि आर-पार हो जाती है. लता मंगेशकर ने और भी कई सदाबहार गीत गाए हैं. अपन भी कोई ऐसे लाइलाज देशभक्त नहीं हैं कि हमेशा राष्ट्रीय अपमान की ही याद करते रहें. लेकिन मेरे मन में लता मंगेशकर कुरबानी से जुड़ी हुई हैं. मुझे लगता है कि तेरह बरस की उमर से गाने वाली इस महिला ने मां-बाप का वियोग सहा. अपने भाई-बहनों को पाल-पोस कर बड़ा किया. अविवाहित रहीं. अपना जीवन संग्राम एक क्षत्राणी की तरह अपने गाने से लड़ते हुए जीता. सरहद पर लड़ने वाले वीर जवानों से कोई कम नहीं है यह वीरांगना. इसलिए जब किसी पत्रिका में पढ़ा कि लता मंगेशकर ने राजसिंह डूंगरपुर से चुपचाप शादी कर ली तो ऐसा लगा कि उन्हें अपवित्र करने की कोशिश की गई हो. राजसिंह भी हमारे इंदौर में क्रिकेट खेलते थे और संगीत के शौकीन हैं. और लता मंगेशकर भी हमारे इंदौर में जन्मीं और अनन्य गायिका हैं और उन्हें भी क्रिकेट का बेहद शौक है. अपने परिवार और गायन के लिए अपने मौज-मजे को कुरबान करने वाली कोयल पर कोई कीचड़ कैसे उछाल सकता है? उनका गाना सुन कर आंखें गर्व और आनंद से उठ जाती हैं. क्यों नहीं लगता कि वे एक फिल्मी गायिका हैं?