जिस नोटबंदी को लेकर पीएम मोदी और उनकी सरकार के लोग अपनी पीठ थपथपाते रहे हैं उसे लेकर अब जो खुलासा हुआ है वह होश उड़ा देने वाला है। नोटबंदी वाले साल के बाद देश में टैक्स नहीं भरने वालों की संख्या में दस गुणा बढ़ौतरी हो गयी। यही नहीं, इससे भी बड़ा चिंताजनक सवाल यह है कि जिन लाखों लोगों ने टैक्स नहीं भरा उनकी नौकरी वास्तव में चली गयी।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने नोटबंदी की सफलता का दावा करते हुए कहा था कि नोटबंदी से २-१६-१७ के वित्तीय वर्ष में १.०६ करोड़ नए करदाता जुड़े थे जो कि उससे पहले के वित्तीय वर्ष के मुकाबले २५ प्रतिशत ज्यादा थे। लेकिन उसी साल टैक्स रिटर्न नहीं देने वालों की संख्या में भी बड़ा इजाफा हुआ था। यह खुलासा अंग्रेजी अखबार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट में सामने आया है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक २०१५-१६ के वित्तीय वर्ष में आय कर रिटर्न नहीं भरने वाले लोगों की संख्या ८.५६ लाख थी लेकिन २०१६-१७, जब देश में पीएम की घोषणा के बाद नोटबंदी लागू हुई, के वित्तीय वर्ष में यह संख्या दस गुना बढ़ कर ८८.०४ लाख हो गई।
इस रिपोर्ट से जाहिर होता है कि टैक्स रिटर्न फाइल नहीं करने वाले लोग वे हैं जिन्होंने पिछले वित्तीय वर्षों में आय कर रिटर्न भरा था। नोटबंदी के बाद ऐसा करना बंद कर दिया और इनमें एक भी ऐसा करदाता नहीं जिनकी मृत्यु हो चुकी, जिनके पैन कार्ड रद्द हो गए या जब्त कर लिए गए।
एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कर अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि २०००-०१ के बाद यह टैक्स नहीं भरने वालों की सबसे बड़ी संख्या है। रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे लोगों की संख्या २०१३ में ३७.५४ लाख थी जो अगले सालों में घटती रही। साल २०१४ में २७.०२ लाख, २०१५ में १६.३२ लाख और २०१६ में ८.५६ लाख लोगों ने टैक्स नहीं भरा। जाहिर है नोटबंदी से पहले कर न भरने वाले कम हो रहे थे, जो एक सकारात्मक परिवर्तन था।
रिपोर्ट के मुताबिक इस बढ़ती संख्या की वजह नोटबंदी हो सकती है जिसके चलते बड़ी संख्या में नौकरियां कम हुई थीं या छूट गई थीं। अखबार को नाम न छापने की शर्त पर एक कर अधिकारी ने बताया कि करदाताओं का कम होना आम तौर पर तब होता है जब कर प्रशासन लोगों से इसका अनुपालन करवाने में असफल रहता है। हालांकि, २०१६-१७ में इतनी ज्यादा बढ़ोतरी होने के लिए अनुपालन संबंधी व्यवहार में अचानक आए परिवर्तन को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। ”बढ़ोतरी उस साल आय या नौकरी खत्म होने की वजह से हो सकती है”।
यही नहीं २०१६-१७ के वित्तीय वर्ष के टैक्स आंकड़े जाहिर करते हैं कि उस साल टीडीएस (आय के स्रोत पर काटा गया कर) भरने वालों की संख्या में भी ३३ लाख से ज्यादा की गिरावट हुई। एक अन्य कर अधिकारी के मुताबिक इससे यह अर्थ भी निकलता है कि जिन लोगों ने पिछले साल विशिष्ट ब्यौरेवार लेन-देन किए, उन्होंने उस साल (नोटबंदी वाले) ऐसा नहीं किया। अर्थात देश की आर्थिक गतिविधि में गिरावट आई।
रिपोर्ट में बताया गया है कि केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने इस संबंध में किए गए सवाल पर कहा कि ऐसे लोगों की संख्या काफी ज्यादा (१.७५ करोड़ से ज्यादा) है जिनके टीडीएस/टीसीएस कटे होते हैं, लेकिन वे रिटर्न नहीं भरते। इन लोगों की आय रिटर्न भरने योग्य नहीं होती। ”इस तरह के करदाताओं का विश्लेषण और उनकी संख्या में आए बदलाव के कारणों का पता लगाने में थोड़ा समय लगेगा”।