प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से साल 2016 में घोषित नोटबंदी की संवैधानिक वैधता को लेकर दायरा याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने बुधवार को सुनवाई के दौरान सवाल किया कि नोटबंदी के लिए सुप्रीम कोर्ट को भविष्य के लिए कानून तय नहीं करना चाहिए? कोर्ट ने यह भी कहा कि क्या आरबीआई एक्ट के तहत नोटबंदी की जा सकती है?
जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस ए एस बोपन्ना, जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। पीठ की अगुवाई कर रहे जस्टिस नज़ीर ने आज सुनवाई के दौरान पूछा कि क्या अब इस मामले में कुछ बचा है? जस्टिस गवई ने कहा कि अगर कुछ नहीं बचा तो आगे क्यों बढ़ना चाहिए?
इस मामले में याचिकाकर्ता के वकील प्रणव भूषण ने कहा कि कुछ मुद्दे हैं। इनमें बाद की सभी अधिसूचनाओं की वैधता, असुविधा से संबंधित मामले और क्या नोटबंदी ने समानता के अधिकार और बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन किया है? इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा – ‘मुझे लगता है कि कुछ अकादमिक मुद्दों के अलावा कुछ भी नहीं बचा है। क्या अकादमिक मुद्दों पर फैसला करने के लिए पांच जजों को बैठना चाहिए।’
याद रहे पिछली सुनवाई में नोटबंदी के खिलाफ याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि था कि इस मामले में अब क्या बचा है? क्या इस मामले का परीक्षण करने की जरूरत है? क्या ये मामला निष्प्रभावी तो नहीं हो गया? क्या ये मामला अब अकादमिक तो नहीं रह गया?
याद रहे नोटबंदी की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 28 सितंबर को पांच जजों की बेंच ने मामले में सुनवाई की थी। तब बेंच ने यह कहकर कार्यवाही को टाल दिया था कि कोर्ट के पास और भी कई महत्वपूर्ण और अधिकारों से जुड़े मामले हैं। सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा था कि कोर्ट पहले इस बात की जांच करेगी कि की क्या नोटबंदी को चुनौती एकेडमिक बन गई है?
बता दें साल 2016 में याचिकाकर्ता विवेक शर्मा ने याचिका दाखिल कर सरकार के नोटबंदी के फैसले को चुनौती दी थी। इसके बाद 58 और याचिकाएं दाखिल हुईं। इस मामले में 16 दिसंबर, 2016 को ही ये केस संविधान पीठ को सौंपा गया था, लेकिन तब बेंच का गठन नहीं हो पाया था।