आजकल हर किसी को सबसे बड़ा डर अपने स्मार्टफोन को खो देने का रहता है। बाक़ी कुछ भी खो जाए, उतनी परवाह नहीं रहती। क्या वजह है कि अधिकतर लोग फोन में पूरी तरह डूब गये हैं? बड़ी हैरानी होती है कि एक निर्जीव वस्तु ने लोगों को अपने वश में कर रखा है। बहुत लोगों को मोबाइल के आगे सगे रिश्ते भी अब फीके लगने लगे हैं और इससे ऐसे रिश्ते ईजाद होते जा रहे हैं, जिनमें अधिकतर किसी काम के नहीं हैं।
फोन की तरह ही लोगों को संसार और सांसारिक वस्तुओं से मोह है, जो कि परमात्मा से होना चाहिए। यही वजह है कि लोगों को धर्म के तथाकथित ठेकेदार अपने लाभ के लिए निर्जीव वस्तुओं, मरी हुई बातों, कपोल कथाओं में उलझाकर, स्वरचित अचम्भों का कायल बनाकर, इनका डर दिखाकर निर्जीव वस्तुओं का उपासक बनाने में सफल हैं। कह सकते हैं कि एक तरह का $गुलाम बना लिया है। आज सभी धर्मों में यही हो रहा है। 99.99 फ़ीसदी लोग निर्जीव और बेकार वस्तुओं की उपासना कर रहे हैं। जबकि परमात्मा की कृपा से ही सब हैं और जी रहे हैं। लेकिन उसे बाँटने के भ्रम में हमने निर्जीव वस्तुओं को परमात्मा समझ लिया और सारहीन, तथ्यहीन, तर्कहीन, मनगढ़ंत, अंधश्रद्धा के पीछे पड़े हुए हैं। हमारी भौतिक चाहत ने लालच और शारीरिक सुखों की आकांक्षा को इतना बढ़ा दिया है कि आत्मा की भूख को हमने अँधेरी गुफा में उसी तरह बन्द कर दिया है, जिस तरह किसी क्रूर और अज्ञानी व्यक्ति ने एक छोटी सी सत्ता मिलने पर किसी पुण्यात्मा को किसी पाप के घड़े में बन्द कर दिया हो। यही कारण है कि हम लगातार सत्य से दूर होते जा रहे हैं, जिसके चलते झूठी और दिखावे की ज़िन्दगी जी रहे हैं। धर्म के रास्ते से भटके हुए ये लोग भूल चुके हैं कि वे हैं कौन?
भटके हुए लोगों की समस्या यह है कि वे अपनी जड़ों से कटकर भी हरे-भरे अर्थात् परम् सुख और परम् सत्ता को प्राप्त करना चाहते हैं, वो भी सहज ही और मुफ़्त में। सब उडऩा चाहते हैं। लेकिन अपने दम पर नहीं, दूसरों के दम पर। दूसरे के ज्ञान और अज्ञान को सुनकर ज्ञानी होना चाहते हैं। और दूसरे भी वो, जिन्हें ख़ुद नहीं पता कि वे कौन हैं? सब मूढ़ता की कीचड़ में पड़े हैं और कह रहे हैं कि देखो! हम अमृत के सरोवर में नहा रहे हैं। जबकि उन्हें अपने मूल का ज्ञान ही नहीं है। वे कौन हैं? उनका परमात्मा से क्या रिश्ता है? उससे मिलने का तरीक़ा क्या है? कुछ नहीं मालूम। बस, उन्हें जो दिख ही नहीं रहा है, वे उसे दूसरों को दिखाने में लगे हैं। उनसे कोई यह पूछे कि अगर वे वास्तव में परमात्मा के इतने निकट हैं, तो फिर सांसारिक मोह से अभी तक मुक्त क्यों नहीं हुए? उन्हें अन्न, वस्त्र और धन की क्या आवश्यकता है? उन्हें तरह-तरह के चढ़ावे क्यों चाहिए?
सच तो यह है कि उन्हें भी ऊपरी वस्तुओं से आनन्द मिल रहा है। ऊपरी ज्ञान उन्हें आनंद दे रहा है। लोगों को उन भरोसा हो जाता है, इसलिए वही सच लगता है, जो वे कहते हैं। सोचिए, फूल की सुगंध अगर लेनी हो, तो फूलों के बाग़ में जाना ही पड़ेगा। किसी और से फूलों की सुगंध के बारे में सुनकर कोई कैसे सुगंध का आनंद ले सकता है। सोचने का विषय है, जब कोई किसी सुगंध का स्वाद, नहीं बता सकता। क्योंकि वह नाक का स्वाद है। उसके आनंद का सही स्वरूप से किसी और को अवगत नहीं करा सकता। क्योंकि उसका स्वरूप अहसास में है। तो फिर उस परमपिता परमात्मा के बारे में किसी को क्या बता सकता है, जिसकी न क्षमता का कोई पार है और न उसकी संरचना को कोई आज तक समझ सका है? उसकी भक्ति का पूरा स्वाद तो बड़े-बड़े भक्तों को नहीं मिल पाता। उसका अहसास करने वाला मौन हो जाता है। एक अनंत आनंदानुभूति में लीन हो जाता है। उसे न भूख लगती है और प्यास। उसे न जग की चिन्ता रहती है और न अपनी। उसे न भूख लगती है और न प्यास। वह तो उस अनंत की अनवरत साधना में चला जाता है। उसे न दिन का एहसास रहता है और न रात का। वह सुख और दु:ख से परे हो जाता है। आंतरिक आनन्द से वंचित ये तथाकथित लोग, जो धर्मों के ठेकेदार बने हुए हैं; ईश्वर के अलग-अलग नामों को गढक़र-पढक़र उन पर झगड़ा करते हैं। हास्यास्पद यह है कि ईश्वर की रक्षा का दम्भ भरते हैं। जो ख़ुद अपनी रक्षा नहीं कर सकते हैं, वे इतने विशाल ब्रहाण्ड की रचना करने वाले परमात्मा की रक्षा का दम्भ भरते हैं, जिसने दिया है, जिसके एक छोटे से ग्रह पर सब एक कीड़े की भाँति रेंग रहे हैं। जहाँ रहते हैं, वहीं का पूरा ज्ञान नहीं है। लेकिन पूरे ब्रह्माण्ड का ज्ञान बघारते फिर रहे हैं। और सब का सब निरा झूठ है। निरी कल्पना है। किसी-किसी की बातों में लेश मात्र का सत्य है। लेकिन सब ढोंग कर रहे हैं। हर रोज़ नये-नये स्वाँग भर रहे हैं। और इसे ही धर्म समझ रहे हैं। इसे ही भक्ति समझ रहे हैं। इसे ही अपना ज्ञान समझ रहे हैं। कितने ग़ज़ब की बात है कि जिनका अपनी एक साँस तक पर वश नहीं है, वे दूसरों को धमकियाँ दे रहे हैं। जो कुछ भी नहीं हैं, उनका अहंकार चरम पर है। यह समझने की बात है, कुछ लोग दुनिया भर के लोगों को धर्म के नाम पर भटका रहे हैं। क्या यह अपराध नहीं है?