दिल्ली सरकार के अस्पतालों और केन्द्र सरकार के अस्पतालों में लगे निजी सुरक्षा गार्ड व्यवस्था के नाम पर मजाक बने हुए है। जिनके भरोसे मरीजों और तीमारदारों की सुरक्षा है। वे मरीजों को परेशान करने से नहीं चूकते है।
बताते चलें अस्पतालों में निजी सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर बड़ा खेला चल रहा है। जिसमें शासन और प्रशासन की सांठगांठ के चलते करोड़ों रुपये का सलाना सरकार को चूना लगाया जा रहा है। मौजूदा समय में सुरक्षा गार्ड जिनके भरोसे अस्पताल की सुरक्षा है वे अधिकारियों की सेवा में लगे रहते है और उनके घरेलू काम करते रहते है।सबसे चौकाने वाली बात तो ये है गरीब व बेरोजगारी के मारे उच्च शिक्षा प्राप्त युवा नौकरी पाने के लिये गार्ड की नौकरी करते है।
लेकिन उनको जो वेतन बताया जाता है यानि तय किया जाता है उससे काफी कम दिया जाता है। जिसके कारण गार्ड अपने आप को ठगा सा महसूस सा करते है। गार्डो का कहना है कि कहने को तो सारा का सारा सिस्टम ऑनलाइन है और वेतन भी एकाउन्ट्स में जाती है। लेकिन नगद वापस ठेकेदार को देना होता है। यानि वेतन का एक हिस्सा कमीशन के तौर पर दिया जाता है।
गार्डों का कहना है कि मौजूदा समय में विधायकों और मंत्रियों के परिजनों की सुरक्षा एजेंसियां चल रही है। जिससे गार्डो के कारोबार (सुरक्षा) के नाम पर बड़ा खेला चल रहा है। इन सुरक्षा गार्डों पर ये आरोप है कि पुलिस की तरह संगठित तरीके से तानाशाही और मनमर्जी दिखाने में लगे रहते है।
कोरोना काल में इन निजी सुरक्षा गार्डों ने कोरोना रोग से पीड़ित मरीजों के परिजनों के साथ काफी अभद्रता की है।