जम्मू-कश्मीर की मुख्यधारा के राजनीतिक दलों में नेशनल कांफ्रेंस ने स्थानीय निकायों और पंचायत चुनावों का बॉयकॉट करने का फैसला लिया है। इसके अलावा पीडीपी ने भी इन चुनावों में भाग नहीं लेने का मन बनाया है। दोनों ही पार्टियों की मांग है कि धारा 35ए पर केंद्र सरकार अपना रूख साफ करे। नेशनन कांफ्रेंस ने यह धमकी भी दी है कि यदि केंद्र सरकार यह भरोसा नहीं देती कि यह संवैधानिक व्यवस्था में छेड़छाड़ नहीं करेगी कि अनिवासी कश्मीर में अचल संपति नहीं खरीद सकते। तो नेशनल कांफ्रेंस लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भी भाग नहीं लेगी।
नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दल्ुला ने कहा कि एक ओर केंद्र यहां चुनाव कराना चाहता है और दूसरी ओर यह धारा 35ए हटाना चाहता है। धारा 370 को कमज़ोर कर दिया गया है और जम्मू और कश्मीर के संविधान पर हमले किए जा रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के अभी हाल के बयान को अपवाद माना जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि संविधान दोषयुक्त है तो भारत में जम्मू-कश्मीर का विलय भी दोषयुक्त है।
दूसरी ओर राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने ‘बॉयकॉट’ की धमकी दी है। जब तक नई दिल्ली धारा 35ए की रक्षा करने के मुद्दे पर भरोसा नहीं देती। वर्तमान हालात चुनाव के उपयुक्त नहीं है। आखिरी फैसला तभी लिया जाएगा, जब पार्टी के डर को सरकार दूर करेगी।
नए राज्यपाल ने स्थानीय चुनावों के लिए तारीखों की घोषणा कर दी है। म्युनिसिपल चुनाव चार स्तरों में होंगे। मतदान अक्तूबर एक से पांच के बीच होगा। पंचायत चुनाव आठ नवंबर और चार दिसंबर के दरम्यान आठ स्तरों में होंगे।
नेशनल कांफ्रेंस और पीडपी का घाटी में दो तिहाई मतदाताओं पर अपना राजनीतिक असर है। साथ जम्मू और लद्दाख क्षेत्र में भी इनका खासा असर है। इतना ही नहीं राज्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गुलाम अहमद मीर ने भी शक जताया है कि सरकार चुनाव कराने पर क्या वाकई गंभीर है। उन्होंने ज़मीनी हालात को मद्देनजऱ रखते हुए सभी राजनीतिक दलों को साथ लेकर ही चुनाव में उतरने की सलाह दी।
बहरहाल राज्य और केंद्र सरकार ने स्थानीय दलों से बातचीत करने से इंकार कर दिया है और धारा 35ए पर कोई आश्वासन भी नहीं दिया है। इस मामले की सुनवाई के दौरान 27 अगस्त को भारत के एटार्नी जनरल ऑफ इंडिया के के वेणुगोपाल और अतिरिक्त सालिसिटिर जनरल (एएसजी) तुषार मेहता जो केंद्र और जम्मू-कश्मीर सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट बेंच में कहा कि धारा 35ए काफी नाजुक मुद्दा है और इसकी सुनवाई जनवरी या मार्च 2019 में हो जाए तो बेहतर होगा।
इसके साथ ही कानून और व्यवस्था का भी ध्यान रखा जाए जिससे शहरी, स्थानीय और पंचायत चुनाव कराए जा सकें। यह मामला अब जनवरी 2019 तक टाल दिया गया हैं
इससे राज्य और नई दिल्ली सरकार के सामने यह समस्या आ गई है कि वे इन चुनावों को विश्वसनीय नहीं बना पाएं। ज़्यादातर बड़ी पार्टियों ने इसके बॉयकॉट करने का ही फैसला लिया है। इतना ही नहीं ये धारा 35ए पर भी कोई भरोसा नही दे सकते। इसकी दो बड़ी महत्वपूर्ण वजहें हैं – एक पूरा मामला न्यायालय में है। और वे कोई भी प्रभाव डाल कर न्यायालय से फैसला नहीं दिलवा सकते। दूसरे भाजपा अपनी वैचारिक वजहों से संवैधानिक व्यवस्था का पक्ष नहीं ले सकेगी। अपनी स्थापना के दिन से ही यह
पार्टी जम्मू-कश्मीर में धारा 370 के तहत विशेष व्यवस्था के विरोध में रही है। यह चाहती रही है कि जम्मू-कश्मीर का भारतीय महासंघ में पूरी तौर पर विलय हो जाए।
पिछले दो वर्षों से भाजपा धारा 35ए को हटाने की तैयारी में है। वह धारा 370 के भी पक्ष में उतनी नहीं है जिसके तहत देश के दूसरे हिस्सों से भारतीयों को जम्मू-कश्मीर में नहीं बसाया जा सकता। उनका मानना है कि कश्मीर समस्या का समाधान राज्य में डेमोग्रफिक बदलाव से ही संभव है।
इसीलिए केंद्र ने कानून के पक्ष में कुछ नहीं कहा। राज्यपाल शासन के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर कानून के पक्ष में बोलने में कमज़ोर भी पड़ता है। इस कारण राज्य के ज़्यादातर लोग धारा 35ए की रक्षा की बात नहीं कर पाते।
यह सही है कि अदालत ने जनवरी 2019 में सुनवाई की तारीख तय की है लेकिन इससे यह संभावना घटी नहीं है कि कानून का असर क्या होगा। नई दिल्ली इस मुद्दे पर खामोश ही है। जिससे संदेह बढ़ा है।
‘ऐसे माहौल में यदि मुख्यधारा की पार्टियां चुनाव में भाग लेती हैं तो यह माना जाएगा कि हम ही धारा 35ए को हटाने में सहयोग दे रहे हैं।’ मुख्यधारा के एक नेता ने कहा। सुप्रीम कोर्ट से सरकार ने यह अनुरोध किया था कि इस धारा पर सुनवाई टाल दी जाए जिससे राज्य में शांति से चुनाव हो सके। एक तरह से इस बात से यह संकेत भी मिला कि अदालत इस मुद्दे पर विपरीत फैसला दे सकती है। हम यह नहीं चाहते।
बहरहाल सरकार के लिए चुनाव कराने का मंसूबा तब बना जब अखिल जम्मू और कश्मीर पंचायत ने इस आशय का फैसला लिया कि ‘चुनाव गैर दलीय आधार पर कराए जाएं और राजनीति से इनका कोई लेना-देना न हो’।
‘हमारा जम्मू-कश्मीर में किसी भी तरह की राजनीति से कोई लेना देना नहीं है। हम विधानसभा की तरह के संस्थान भी नहीं है कि कानून बना सकें। हमारी भूमिका तो अपने गांवों में विकास संबंधी कामकाज करना मात्र है।’ एजेेकेपीसी के अध्यक्ष शफीक मीर ने कहा। उन्होंने फारूक अब्दुल्ला की इस बात के लिए आलोचना भी की कि वे स्थानीय पंचायतों के चुनाव का विरोध कर रहे हैं। पंचायत और यूएलबी चुनाव महज लोगों की ज़मीनी भागीदारी के लिए होते हैं। ऐसे चुनावों से पार्टी की राजनीति को जोडऩा बेमतलब है।
राज्य सरकार ने अब तक खामोशी के साथ राज्य में बन रहे पूरे परिदृश्य को देखा है। यही काम केंद्र सरकार भी कर रही है। सरकार का इरादा तो यह है कि किस तरह एक ऐसी सुरक्षा योजना अमल में आए जिससे चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों की रक्षा की जा सके। लेकिन जल्दी ही या कुछ देर में इन्हें यह जवाब तो उन सवालों का देना ही होगा जो नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी ने उठाए हैं और पूरे ताम-झाम को एक विश्वसनीयता भी देने की बात कही है।