कन्नड़ न्यूज चैनल- कस्तूरी के रिपोर्टर नवीन सूरिंजे पिछले तीन महीने से जेल में हैं. उन्होंने मंगलूर में एक निजी हालीडे-होम में जन्मदिन की पार्टी मना रहे युवा लड़के-लड़कियों के एक समूह पर हमला करने और उन्हें बेइज्जत करने वाले हिंदू जागरण वेदिके के 50 से ज्यादा कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी को कैमरे में कैद करके उसे चैनल पर दिखाया था. इस कारण मजबूरी में पुलिस को नैतिकता के उन 43 ठेकेदारों को गिरफ्तार करना पड़ा. लेकिन सूरिंजे को इस ‘गलती’ की सजा यह मिली कि पुलिस ने उन्हें इस मामले में 44वां अभियुक्त बना दिया. उन पर आरोप लगाया गया कि वे भी इस साजिश में शामिल थे क्योंकि पूर्व जानकारी के बावजूद सूरिंजे ने पुलिस को इसकी जानकारी नहीं दी. यही नहीं, मंगलूर पुलिस ने सूरिंजे पर वे सभी आरोप लगा दिए जो इस शर्मनाक घटना के लिए जिम्मेदार संगठन और उसके 43 लंपटों पर लगाए गए हैं. हालांकि इनमें से कई आरोप कर्नाटक उच्च न्यायालय ने हटा दिए हैं, लेकिन उसने सूरिंजे को यह कहते हुए जमानत देने से इनकार कर दिया है कि उन्होंने पूर्व जानकारी के बावजूद पुलिस को इसकी सूचना क्यों नहीं
बचाव में सूरिंजे का कहना है कि उन्हें इस घटना की सूचना पहले से नहीं थी. उन्हें उस इलाके के एक नागरिक से इसकी जानकारी मिली. उन्होंने मंगलूर के पुलिस कमिश्नर और स्थानीय सब-इंस्पेक्टर को फोन किया था लेकिन उन दोनों ने फोन नहीं उठाया और न कॉल-बैक किया. इस घटना के दौरान हिंदू जागरण वेदिके के लंपटों की तादाद इतनी अधिक थी कि वे उन्हें रोकने में सक्षम नहीं थे और उस स्थिति में इस गुंडागर्दी का पर्दाफाश करने के लिए उसकी रिकॉर्डिंग के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं था.
साफ है कि यह सिर्फ सूरिंजे का मामला नहीं है. इससे पत्रकारिता के कई बुनियादी सवाल जुड़े हैं.
यह सफाई न पुलिस ने मानी और न ही कर्नाटक उच्च न्यायालय ने. ध्यान रहे कि यह मामला गुवाहाटी की उस शर्मनाक घटना के बाद सामने आया है जिसमें रात में एक पब से बाहर निकल रही एक युवा लड़की के कपड़े फाड़ने और उसके साथ दुर्व्यवहार करने वाले लफंगों-गुंडों को प्रोत्साहित करने और उसकी साजिश रचने वालों में एक स्थानीय चैनल का रिपोर्टर भी शामिल पाया गया था. यह टीवी पत्रकारिता के लिए न सिर्फ गहरे शर्म और कलंक का मामला था बल्कि इसने टीआरपी के लिए चैनलों में सनसनीखेज ‘खबरें’ गढ़ने की आपराधिक साजिश रचने तक पहुंच जाने की खतरनाक प्रवृत्ति को उजागर किया था.
पर क्या गुवाहाटी और मंगलूर के मामले एक ही तरह के हैं? रिपोर्टों के मुताबिक, सूरिंजे को वास्तव में गुंडागर्दी के पर्दाफाश की सजा मिली है. पहले के तमाम मामलों की तरह इस बार भी ये गुंडे बच निकलते, लेकिन सूरिंजे की रिपोर्टिंग से ही यह मामला राष्ट्रीय मीडिया में आया और दबाव में मंगलूर पुलिस को उन गुंडों के खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ी.
पीयूसीएल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अकेले दक्षिण कन्नड़ा जिले में 2007 से अब तक ‘नैतिक पुलिसिंग’ के नाम पर मारपीट, दुर्व्यवहार और अपमानित करने के 140 मामले सामने आए हैं. लेकिन पिछले साल जुलाई की इस घटना को छोड़कर बाकी किसी मामले में दोषी पकड़े नहीं गए. ऐसे मामलों को सामने लाने और दोषियों की पहचान करने में मदद करने वाले सूरिंजे जैसे पत्रकारों को ही फंसाने की कोशिश की जाएगी तो कितने पत्रकार यह जोखिम उठाएंगे? सवाल यह भी है कि क्या पत्रकारों को ऐसे सभी मामलों की पूर्व सूचना पुलिस को देनी चाहिए? लेकिन पुलिस खुद राजनीतिक कारणों से कार्रवाई करने में अक्षम हो और उसकी अपराधियों से परोक्ष सहमति हो तो पत्रकार क्या करे? क्या पत्रकार पुलिस का एजेंट है या उसका काम सच्चाई को सामने लाना है? अगर पत्रकारों ने ऐसी सूचनाएं पहले पुलिस को देने लगें तो कितने लोग उन्हें सूचनाएं देंगे? क्या यह सच नहीं कई बार पुलिस से निराश लोग पत्रकारों को सूचनाएं देते हैं?