न्यूज चैनलों का नरेंद्र मोदी प्रेम किसी से छिपा नहीं है. इसका ताजा सबूत यह है कि भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की मुंबई बैठक में मोदी के आने या न आने से लेकर समापन रैली में उनके भाषण तक की न्यूज चैनलों खासकर हिंदी चैनलों पर 24X7 हाई वोल्टेज कवरेज हुई. इस कवरेज के आगे भाजपा के सभी नेता फीके पड़ गए. कार्यकारिणी में हर ओर मोदी ही मोदी दिखाई पड़ रहे थे. सच पूछिए तो चैनलों की मदद से मोदी भाजपा की मुंबई कार्यकारिणी को लूट ले गए. हालत यह हो गई कि इस मोदीमय माहौल में खुद को अप्रासंगिक महसूस कर रहे आडवाणी और सुषमा स्वराज भाजपा की समापन रैली में शामिल नहीं हुए. एक मायने में उनका फैसला सही था क्योंकि चैनलों की निगाह सिर्फ नरेंद्र मोदी पर थी.
भाजपा ने भले ही उन्हें अभी प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं घोषित किया हो लेकिन चैनलों ने उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है
आश्चर्य नहीं कि चैनलों खासकर हिंदी न्यूज चैनलों ने प्राइम टाइम में 40 मिनट तक नरेंद्र मोदी को लाइव दिखाया. यही नहीं, एक ओर मोदी की दहाड़ लाइव गूंज रही थी और दूसरी ओर, उनके बोल ब्रेकिंग न्यूज बन रहे थे. चैनल वैसे भी नेताओं के भाषणों और बयानों को आम तौर पर बिना किसी पड़ताल और आलोचना के दर्शकों पर थोपते रहे हैं. मोदी के मामले में तो उनका भक्ति-भाव और बढ़ जाता है. हैरानी की बात नहीं है कि मोदी जो बोल रहे थे, वह वही टिपिकल मोदी स्टाइल थी जिसमें सांप्रदायिक राजनीति को आक्रामक तेवर में आधे सच और आधे झूठ की चाशनी में लपेटकर पेश किया जाता है.
याद रहे, मोदी इसी अंदाज और तेवर में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और घृणा पर आधारित राजनीति करते रहे हैं. उनके ताजा भाषण के तेवर और टोन से साफ है कि सद्भावना उपवासों और यात्राओं के बावजूद उनमें कोई बदलाव नहीं हुआ है. लेकिन अफसोस यह कि चैनलों में इसे लेकर कहीं कोई सवाल नहीं था. जो थोड़े-बहुत सवाल थे, वे मोदी के भाषण और उसमें उठाए मुद्दों के बारे में कम और भाजपा की अंदरूनी लड़ाई और मोदी की प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनने की संभावनाओं पर अधिक थे. मजे की बात यह है कि भाजपा ने भले ही उन्हें अभी प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं घोषित किया हो लेकिन चैनलों ने उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है.
ऐसा लगता है कि चैनल मोदी लाइव के खतरों को नहीं समझ रहे हैं. मोदी और उनकी राजनीति के प्रति चैनलों का यह अन-क्रिटिकल रवैया कई कारणों से चिंता का विषय है. मोदी के ताजा भाषण से साफ है कि उनकी राजनीति और भाषणों ने गुजरात में जिस तरह के सांप्रदायिक विभाजन और गोलबंदी को बढ़ावा दिया है, वे उसी राजनीति के साथ राष्ट्रीय रंगमंच पर उतारना चाहते हैं. जाहिर है कि अब बात सिर्फ गुजरात तक सीमित नहीं रहने वाली है. बतौर प्रधानमंत्री के दावेदार उनकी बातों और राजनीति का असर देश भर में होने जा रहा है. इस कारण उनकी राजनीति, भाषणों और दावों की सतर्क और सजग पड़ताल बहुत जरूरी है.
दूसरे, चैनलों को मोदी के भाषणों को लाइव दिखाते हुए याद रखना होगा कि वह असंपादित और अनियंत्रित प्रसारण है. मोदी जिस तरह से भावनाएं भड़काते और लोगों को उत्तेजित करते हैं, सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ाते हैं, उसके कारण स्थानीय स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक सांप्रदायिक तनाव से लेकर माहौल बिगड़ने के खतरे को अनदेखा करना ठीक नहीं है. इससे आने वाले महीनों में न सिर्फ चुनावी प्रक्रिया के बल्कि समूची लोकतांत्रिक प्रक्रिया के प्रदूषित होने की आशंका बढ़ गई है. साफ है, चैनलों का मोदी प्रेम और मोदी गान देश, समाज और लोकतंत्र सबके लिए बहुत भारी पड़ सकता है.