राजनीतिक और सामाजिक जीवन में कहते है, कि किसी को किसी से कोई मतलब नहीं है, और सबको , सबसे मतलब है। ऐसा ही बिहार की राजनीति में है। ऐसा ही मामला आजकल बिहार की राजनीति में एक साथ दोस्ती और दुश्मनी का नपा –तुला, खेल -खेला जा रहा है। बिहार के चुनाव में बहार कम रार ज्यादा देखी जा रही है। चुनाव के पूर्व जो सियासी चालें चली जा रही है। उन चालों का चुनाव के बाद क्या परिणाम होगा ,वो सब जनता के सामने होगा।
बिहार चुनाव की हलचल दिल्ली में बिहार भवन और राजनीतिक दलों के कार्यालय आफिस में साफ देखी जा सकती है। इस बार बिहार चुनाव में क्या होने वाला है। बतातें चलें बिहार के तीन बार मुख्यमंत्री रहे नीतिश कुमार को अब उनके सहयोगी दल ही चौंथी बार मुख्यमंत्री बनने में अड़चनें पैदा करने में लगें है। जो भी हो रहा है चुनाव के पहले वो साफ देखा जा रहा है। उसमें लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान ने जो सियासी दांव चला उस दांव को नीतिश कुमार भली-भाँति समझ गये है, कि नये नवेले नेता में इतनी सियासी हवा कहां से भरी जा रही है । दिल्ली में जेडीयू के बिहार के नेता अमलेश सिंह पासवान ने बताया कि जिस प्रकार देश को कोरोना वायरस ने हिला कर ऱख दिया है, इसी प्रकार बिहार की सियासत का वायरस बिहार की राजनीति को हिलाकर रख देगा । जिसका खामियाजा आम जनता को भुगतना होगा। क्योंकि बिहार में जेडीयू, भाजपा और लोजपा का जो अनोखा गठजोड़ हो रहा है वो बिहार की जनता भली –भाँति समझ रही है। इस गठजोड़ में कोई कुछ कहें पर बिहार भाजपा मौन है।