कोरोना काल में कोई भी सेक्टर ऐसा नहीं है बचा है, जहाँ पर भारी नुकसान न हुआ हो। शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, शेयर बाज़ार, लोहामंडी, अनाज मंडी सहित तमाम कम्पनियाँ धाराशाही हुई हैं। ऐसे में सरकार ने ज़रूर तमाम भारी-भरकम राहत पैकेजों की घोषणा करके देशवासियों को साधने का प्रयास किया है। लेकिन इन प्रयासों में लोगों को तब संशय होने लगता है, जब सरकार कई नयी योजनाओं को इस आधार पर ही रोक लगाती है कि अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए खर्चों में कटौती की जाएगी।
ऐसे निर्णयों को लेकर जानकारों का कहना है कि केंद्र सरकार की सियासत से लोग राहत से ज़्यादा आहत हो रहे हैं। क्योंकि एक ओर तो केंद्र सरकार किसानों को बड़ी राहत देते हुए उन्हें अपनी उपज किसी भी कीमत पर कहीं भी बेचने की आज़ादी दे रही है और वहीं सरकार कोरोना के कहर के कारण मार्च 2021 तक नयी योजनाओं पर रोक लगा रही है। ऐसे में सरकार के दोनों निर्णयों से देश के व्यापारियों के सामने काफी असमंजस की स्थिति है। व्यापारियों का कहना है कि माना कि दुनिया के साथ-साथ भारत कोरोना के कहर से जूझ रहा है, पर सरकार के इन दोनों निर्णयों से अराजकता और बेरोज़गारी बढ़ेगी साथ ही व्यापारिक गतिविधियों पर अड़ंगा लगेगा। देश के व्यापारियों ने ‘तहलका’ को बताया कि अगर सही मायने में सरकार देश की अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर लाना चाहते हैं, तो एक निर्णय ठोस लेना होगा। अन्यथा अर्थ-व्यवस्था लडख़ड़ाती ही जाएगी। व्यापारियों का कहना है कि अगर देश को आत्मनिर्भर बनाना है, तो उसके लिए मज़बूत अर्थ-व्यवस्था की ज़रूरत है, जिसको देश का व्यापारी ही सही मायने में मज़बूती प्रदान कर सकता है। लेकिन सरकार की गलत नीतियों के कारण व्यापारियों को अनदेखा किया जा रहा है। सदर बाज़ार, दिल्ली के व्यापारी नेता राकेश यादव का कहना है कि केंद्र सरकार ने कोरोना वायरस के कहर को देखते हुए लडख़ड़ाती अर्थ-व्यवस्था को सँभालने के लिए 2020-21 के वित्त वर्ष में कोई नयी सरकारी योजना न शुरू करने का निर्णय लिया है। इससे देश में व्यापारिक गतिविधियों पर काफी नाकारात्मक असर पड़ेगा; क्योंकि जब कोई नयी योजना नहीं आयेगी, तो बाज़ार में मायूसी छायी रहेगी। क्योंकि मौज़ूदा दौर में जिस तरीकेसे लॉकडाउन के दौरान जो बाज़ार बन्द रहे हैं, उससे देश के छोटे, मझोले और बड़े व्यापारी की अर्थ-व्यवस्था इस कदर टूटी है कि उनको अब सरकार से ही आस है कि व्यापारियों की सुध लेगी। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ज़रूर 20 लाख करोड़ के भारी-भरकम राहत पैकेज देने का ऐलान किया है; पर व्यापारियों के मदद के लिए कोई राहत पैकेज नहीं दिया गया है। जबकि सच्चाई तो यह है कि लॉकडाउन के दौरान देश का व्यापारी काफी टूटा है। आॢथक मामलों के जानकार व व्यापारी विजय प्रकाश जैन का कहना है कि सरकार का कहना है कि कोरोना के कारण राजस्व कम आ रहा है, तो ऐसे में सरकार को योजनाओं पर रोक नहीं लगानी चाहिए; बल्कि योजनाओं को विस्तार देना चाहिए। इससे देश में बेरोज़गारों को काम के साथ व्यापारियों का व्यापार बढ़ेगा और राजस्व के इज़ाफे के साथ अर्थ-व्यवस्था को मज़बूती मिलेगी। उन्होंने चिन्ता ज़ाहिर की कि बजट में घोषित सभी योजनाओं को जिस अंदाज़ में रोका गया और इन पर हो रहे खर्च को भी रोका गया है, जिससे देश में हो रहे विकास और व्यापार में अड़ंगा लगेगा। क्योंकि वित्त मंत्रालय ने विभिन्न मंत्रालयों से कहा है कि 31 मार्च, 2021 किसी प्रकार की कोई योजना को शुरू न करें, तब तक निश्चित तौर पर असंमजस की स्थिति रहेगी।
दवा व्यापार से जुड़े रमन महाजन ने कहा कि नयी योजनाओं से प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना, आत्मनिर्भर भारत पर खर्चे में कोई रुकावट नहीं आयेगी; लेकिन यह भी सच्चाई है कि विभिन्न मंत्रालयों से धन आवंटित होने पर ही अर्थ-व्यवस्था को गति मिलती है। मगर इस रोक के क्या मायने हैं? यह तो आने वाला ही समय बतायेगा। क्योंकि देश की अर्थ-व्यवस्था के साथ-साथ शिक्षा, स्वास्थ्य और परिवहन व्यवस्था पूरी तरह से लडख़ड़ायी हुई है। इसको पटरी पर लाने के लिए सरकार को तमाम योजनाओं का विस्तार करना चाहिए। व्यापारी पवन अरोड़ा का कहना है कि सरकार के जो भी जतन कर रही है, उससे देश कोई खुशहाली नहीं दिख रही है। जो भी सरकार घोषणाएँ कर रही है, उसका धरातल से कोई वास्ता नज़र नहीं आ रहा है। जैसे सरकारी फैसलों में तालमेल का अभाव है। अचानक योजनाओं पर रोक दुविधापूर्ण है।
बताते चले मौज़ूदा दौर में मज़दूरों का जिस तरीके शहरों से गाँवों की ओर जो पलायन हुआ है, कल-कारखाने भी बन्द हुए हैं; उससे लोगों के पास रोज़गार का अभाव है। बेरोज़गारी चरम स्थिति में है। ऐसे में सरकार का दायित्व बनता है कि कोई ऐसी योजना को अंजाम दे, ताकि लोगों में बेरोज़गारी और भुखमरी का भय जो भय पनप रहा है, उससे आज़ादी मिल सके। क्योंकि इस समय सारा ज़ोर सरकार को इस बात पर ही लगाना चाहिए कि कोरोना-काल से हो रहे नुकसान को कैसे रोके? शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में व्यापक विस्तार के साथ सुधार की ज़रूरत है।
किसान नेता व व्यापारी सूरज पाल सिंह का कहना है कि किसान अब अपनी उपज को मनचाही कीमत पर बेच सकेंगे। एक देश, एक कृषि बाज़ार का रास्ता साफ होने से ज़रूर किसानों को लाभ होगा। सरकार ने नये अध्यादेश के ज़रिये 1955 के आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन करके अनाज, तिलहन, खाद्य, तेल, आलू और प्याज इसके दायरे से बाहर हुए हैं। लेकिन सारा सिस्टम है तो व्यापार से ही जुड़ा हुआ। क्योंकि इस समय बाज़ार में पैसों की कमी है और किसानों को मंडियों में बेची गयी उपज का भुगतान समय पर नहीं हो रहा है। व्यापारी और किसान एक-दूसरे के पूरक हैं। अगर सरकार ने फौरी तौर पर व्यापारियों के हित में कोई सही योजना नहीं बनायी, तो बाज़ारों में सन्नाटा और गहराता जाएगा। क्योंकि आत्मनिर्भर भारत के लिए संशाधनों की ज़रूरत होती है; जिसमें धन और योजनाओं को लोगों तक पहुँचाने की बात होती है। पर अब तो ऐसा हो रहा है कि नयी योजनाओं पर रोक लगायी जा रही है; जिससे लोगों में भय और संशय का वातावरण बन रहा है।