नक्सलवाद से जूझता झारखण्ड

झारखण्ड में हर दिन नक्सल हमले, नक्सलियों के मारे जाने, तो जवानों के घायल होने की सूचनाएँ अलग-अलग ज़िलों से मिलती रहती हैं। एक दिन नक्सलियों के सरेंडर और मुठभेड़ में मरने की जानकारी मिलती है, तो दूसरे दिन नक्सलियों के तांडव की सूचना आती है। 3 अप्रैल 2023- पाँच नक्सली ढेर। 19 जनवरी, 2023- एक नक्सली ढेर। 17 फरवरी, 2023- नक्सलियों ने पंचायत भवन उड़ाया। 08 अप्रैल, 2023- नक्सलियों ने तीन जगहों पर 10 ट्रैक्टर और हाईवा को आग के हवाले किया। 11 जनवरी 2023- सर्च के दौरान आईईडी ब्लास्ट, पाँच जवान घायल हुए। 10 फरवरी, 2023- 15 लाख का इनामी नक्सली ने सरेंडर किया। एक-दूसरे को काटती ये ख़बरें सोचने को मजबूर करती हैं कि क्या वार्क़ राज्य में नक्सल प्रभाव कम हो रहा है? क्या राज्य नक्सल समस्या से मुक्ति की ओर बढ़ रहा? या सुरक्षा बल और पुलिस कार्रवाई करती है, तो वह उसका जवाब देते हैं। नक्सली अब भी अपनी धमक को बरक़रार रखने में कामयाब हैं? क्या राज्य नक्सल समस्या से मुक्त नहीं हो पाएगा?

नक्सलवाद की शुरूआत

नक्सलवाद शब्द पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव के नाम से निकला है। क्योंकि सर्वप्रथम नक्सलवादी विद्रोह यहीं हुआ था। यह विद्रोह स्थानीय ज़मींदारों के ख़िलाफ़ उत्पन्न हुआ, जिन्होंने भूमि विवाद को लेकर एक खेत मज़दूर को पीटा था। नक्सली आन्दोलन पश्चिम बंगाल में 1967 में नक्सलबाड़ी से शुरू हुआ। देश में सन् 1968 से 1972 के बीच कई नक्सलाबाड़ी दिखने लगे। यह धीरे-धीरे छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखण्ड तक फैलता चला गया। 60 और 70 के दशक में भले ही यह क्रान्ति कामयाब नहीं हुआ हो; लेकिन जो मुद्दे ये उठा रहे थे, वे बने रहे। इस वजह से आन्दोलन फिर से मज़बूत होने लगा। उसे बौद्धिक वर्ग का भी समर्थन मिलने लगा। वर्ष 1977 से 2003 के बीच नक्सल आन्दोलन का दूसरा चरण चला। इस दौरान कई संगठन उठ खड़े हुए। बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में नक्सलवाद बेहद मज़बूत हुआ। इस विस्तार को देखते हुए सरकार ने इन्हें ख़त्म करने के लिए सघन अभियान शुरू कर दिया। हालाँकि इनसे निपटना आसान नहीं था। यही वजह है कि झारखण्ड समेत कई राज्य आज भी नक्सली साये में हैं। उनकी धमकी समय-समय पर देखने के लिए मिल जाती है।

गम्भीर समस्या

झारखण्ड में वामपंथी उग्रवाद और नक्सलवाद सन् 1980 में शुरू हुई। इसके बाद कई संगठन नक्सलवाद में सक्रिय हो गये। मौज़ूदा में माओवादी, टीपीसी, जेपीसी, पीएलएफआई समेत अन्य संगठन सक्रिय हैं। एक समय था, जब राज्य के 24 में 22 ज़िले नक्सल प्रभावित थे। केंद्र और राज्य सरकार लगातार प्रयास से धीरे-धीरे कुछ ज़िले नक्सल मुक्त हुए हैं।

मौज़ूदा समय में 16 ज़िले गुमला, लातेहार, लोहरदगा, पलामू, रांची, सरायकेला-खरसावां, बोकारो, चतरा, धनबाद, दुमका, पूर्वी सिंहभूम, गढ़वा, गिरिडीह, हज़ारीबाग़, खूंटी और पश्चिमी सिंहभूम नक्सल प्रभावित माने जाते हैं। हालाँकि इनमें से कुछ ज़िलों में धीरे-धीरे प्रभाव कम होता दिख रहा है। इसकी मुख्य वजह केंद्र और राज्य सरकार द्वारा लगातार नक्सल विरोधी अभियान चलाना है।

पाँच नक्सली ढेर

झारखण्ड पुलिस ने नक्सल विरोधी अभियान में हाल के दिनों में सबसे बड़ी कामयाबी 3 अप्रैल 2023 को मिली। चतरा ज़िला के लावालौंग इलाके में हुई मुठभेड़ में पाँच माओवादियों को मार गिराया। मारे गये माओवादियों में पाँच से 25 लाख तक के इनामी शामिल हैं। उनके पास से दो एके 47 और दो इंसास राइफल समेत कई हथियार बरामद किये गये हैं। मारे गये माओवादियों की पहचान गौतम पासवान, चार्लीस उरांव, नंदू, अमर गंझू और संजीत उर्फ़ सुजीत गुडिय़ा के रूप में की गयी। इनमें गौतम और चार्लीस माओवादियों की स्पेशल एरिया कमेटी (सैक) के सदस्य थे। उन पर 25-25 लाख रुपये का इनाम था। नंदू, अमर गंझू और संजीत सब जोनल कमांडर थे और उन पर 5-5 लाख रुपये का इनाम था। इन पर झारखण्ड और बिहार के विभिन्न थानों में 247 मामले दर्ज हैं। इस मुठभेड़ के एक दिन बाद पुलिस ने पलामू ज़िले से पाँच लाख का इनामी माओवादी कमांडर नंदकिशोर यादव उर्फ़ ननकुरिया को ज़ख़्म हालत में गिरफ़्तार किया। वह मुठभेड़ के बाद फ़रार हो गया था। उसके पास कई हथियार बरामद किये गये हैं।

साल भर की कार्रवाई का नतीजा

झारखण्ड में राज्य की पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों की ओर से नक्सलियों के ख़िलाफ़ लगातार अभियान चलाया जा रहा है। जनवरी, 2022 से फरवरी, 2023 तक 12 नक्सली मारे गये। इस महीने चतरा में पाँच नक्सलियों को मारा गया। यानी 15 महीनों में कुल 17 नक्सली ढेर हुए। बीते एक साल में 390 नक्सलियों को गिरफ़्तार किया गया। इन पर कुल 72 लाख रुपये का इनाम घोषित था। इनमें 3 सैक मेंबर, 4 जोनल कमांडर, 7 सब जोनल कमांडर और 16 एरिया कमांडर भी शामिल हैं। पुलिस और सुरक्षाबलों की कार्रवाई के बीच नक्सली सरेंडर पॉलिसी के तहत आत्मसमर्पण भी किया।

वर्ष 2022 के जनवरी से अब तक विभिन्न नक्सली संगठनों के छोटे-मोटे के अलावा 15 हार्डकोर नक्सलियों ने सरेंडर किया है। विमल यादव, महाराज प्रमाणिक, सुरेश सिंह मुंडा, भवानी सिंह खेरवार, विमल लोहरा, अभयजी जैसे कुख्यात नक्सलियों का आत्मसमर्पण हुआ। इन सब पर मिलाकर कुल 49 लाख का इनाम भी घोषित था। बीते एक साल के अभियान में एके-47 समेत 171 हथियार बरामद हुए। वहीं रेग्यूलर वेपन के साथ साथ कंट्री मेड कुल 94 हथियार के अलावा पुलिस से लूटे हुए 45 हथियार, 17,000 किलो से अधिक के विस्फोटक, आईईडी-800 किलो, बारूद-530 किलो और एक करोड़ तीन लाख रुपये भी नक्सलियों के पास से पुलिस ने बरामद किये हैं।

नक्सली धमक और धमकी

एक ओर पुलिस और सुरक्षा बल की कार्रवाई चल रही, तो दूसरी ओर नक्सली भी अपनी धमक दिखाने से बाज़ नहीं आ रहे। हाल में 7 अप्रैल को नक्सलियों ने राज्य के तीन इलाक़ों बोकारो, गोला और लोहरदगा में निर्माण कार्य में लगे आठ ट्रैक्टर और जेसीबी को आग के हवाले कर दिया। मज़दूरों की पिटाई की। बम विस्फोट कर दहशत फैलाने का प्रयास किया। पुलिस एक ओर जंगल में नक्सलियों का कैंप ध्वस्त कर रही, दूसरी ओर नक्सली नयी जगह पर पनाह ले रहे और अपनी मौज़ूदगी दर्ज करा रहे हैं, जिसका सबूत 10 अप्रैल को बिशुनपुर क्षेत्र की है। यहाँ वर्षों बाद नक्सलियों ने एक बार फिर अपनी मौज़ूदगी दिखा दी है। सडक़ निर्माण में लगे रोड रोलर और पेवर मशीन को आग लगा दी।

अभियान के साथ बढ़तीं घटनाएँ

आंतरिक सुरक्षा और नक्सल अभियान के जानकारों का कहना है कि जब नक्सलियों के ख़िलाफ़ सुरक्षा बल अभियान तेज़ करते हैं तो घटनाओं का बढऩा लाज़िमी है। नक्सली मुठभेड़ में मारे जाएँगे। उनकी गिरफ़्तारी होगी। वह सरेंडर करने के लिए मजबूर होंगे। नक्सलियों के कैंप  ध्वस्त किये जाएँगे। तो ऐसी स्थिति में वह नयी जगह पर पनाह लेने का प्रयास के साथ-साथ अटैकिंग मोड थोड़ा बहुत बढ़ा देते हैं।

लैंड माइंस बिछाकर सुरक्षा बल को रोकने का प्रयास। दहशत फैलाने के लिए ट्रैक्टर और जेसीबी जलाना। लेवी के लिए दबाव डालना। यह सब नक्सली करेंगे ही। इसलिए जब भी सुरक्षा बल अभियान चलाते हैं, तो थोड़ी-बहुत घटनाएँ देखने को मिलती हैं। इसका अर्थ कतई यह नहीं निकाला जा सकता है कि नक्सली घटनाएँ बढ़ गयी हैं। या नक्सल समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं। अगर ग़ौर किया जाए, तो दिखेगा कि कई क्षेत्रों में नक्सलियों का प्रभाव कम हो रहा है।

बढ़ रही जागरूकता

जानकारों का कहना है राज्य में नक्सलियों के सबसे बड़े और दुर्गम गढ़ बूढ़ा पहाड़ पर अब सुरक्षा बलों और पुलिस का क़ब्ज़ा है। यहाँ 22 साल में पहली बार नक्सलियों के कैंप पूरी तरह ध्वस्त कर दिये गये। पुलिस और सुरक्षा बलों ने नक्सलियों के ख़िलाफ़ बीते एक साल में तीन ऑपरेशन चलाये। इनके नाम ऑपरेशन डबलबुल, ऑपरेशन ऑक्टोपस और ऑपरेशन थंडर स्ट्रॉम थे। पुलिस को इसमें सफलता हासिल हुई है। नक्सलियों से मुक्त कराये गये क्षेत्रों में सुरक्षा बलों के 22 नये कैंप स्थापित किये गये हैं। जानकारों का कहना है कि टीवी, मोबाइल, सोशल मीडिया से लोग ख़ासकर युवा वर्ग जागरूक हो रहे हैं। अब परिस्थितियाँ बदल रही हैं।

सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का प्रसार होने के कारण नयी पीढ़ी को भ्रमित करना आसान नहीं रह गया है। कार्य में बाधा डालने वालों को क्षेत्र की जनता माफ़ नहीं करेगी। केंद्र और राज्य सरकार हो या पुलिस और सुरक्षा बल के अधिकारी उनके द्वारा नक्सलियों के सफाए के दावों में दम है। हमें उम्मीद की जानी चाहिए कि राज्य नक्सल समस्या से पूरी तरह मुक्त होगा और इससे प्रभावित क्षेत्र की जनता के लिए विकास और संपन्नता की नयी शुरुआत होगी।