सरकार नए बैंकों के लिए लाइसेंस क्यों जारी करना चाहती है?
वर्ष 2004 के बाद से सरकार ने कोई नया बैंकिंग लाइसेंस जारी नहीं किया है. नए बैंकों को ग्रामीण इलाकों में एक निश्चित संख्या में शाखाएं खोलने और कर्ज आदि देने की प्रतिबद्धता होगी जिससे देश की अर्थव्यवस्था में सक्रियता आएगी. बैंकों और उनकी शाखाओं की संख्या जितनी ज्यादा होगी, आम जनता की उन तक पहुंच उतनी ही सुगम होगी. तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने फरवरी 2010 के बजट में नए लाइसेंस की बात कही थी लेकिन बैंकिंग नियामक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की अनिच्छा के कारण यह मामला अब तक टलता आ रहा था. अब आरबीआई ने कहा है कि इसके मानक जल्द घोषित किए जाएंगे.
कारोबारी घरानों को लाइसेंस देने पर क्या विवाद है.
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अगर बड़े कारोबारियों ने बैंक भी खोल लिए तो उनका उद्देश्य अपने लिए लाभ कमाना ही रहेगा. ऐसे में हितों का टकराव पैदा होगा. वे बैंक की पूंजी अपने कारोबार की बिगड़ती सेहत दुरुस्त करने में लगा सकते हैं जिससे जनता के पैसे का नुकसान होगा. वरिष्ठ अर्थशास्त्री जोसेफ स्टिगलिट्ज के मुताबिक अमेरिका जैसे पूंजीवादी देश में भी कारोबारियों को बैंक खोलने की अनुमति नहीं है. जापान और उत्तर कोरिया जैसे चुनिंदा देशों में ही इसकी अनुमति है.
इससे जनता को क्या लाभ होगा?
सरकार ने हाल ही में सब्सिडी के नकदी हस्तांतरण का जो फैसला किया है उसके लिए खास तौर पर ग्रामीण इलाकों में बड़ी संख्या में बैंक शाखाओं की आवश्यकता होगी. यह व्यवस्था उन लोगों के लिए काम की साबित हो सकती है. लेकिन एक विचार यह भी है कि देश के बैंकिंग क्षेत्र में 70 फीसदी हिस्सा सरकारी बैंकों का है. निजी बैंकों की हिस्सेदारी 30 फीसदी है. नए बैंकिंग लाइसेंस के जरिए सरकार निजी क्षेत्र में ही प्रतिस्पर्धा बढ़ाएगी. इस प्रतिस्पर्धा का आम जनता को बहुत अधिक फायदा मिल पाएगा, कई जानकारों को ऐसा नहीं लगता. अर्थशास्त्रियों का एक धड़ा ऐसा भी है जो मानता है कि देश में अनेक छोटे-छोटे बैंकों के बजाय कुछ बड़े और विश्वस्तरीय बैंक होने चाहिए.
-पूजा सिंह