दोबारा आन्दोलन को क्यों मजबूर हुए किसान ?

सरकार द्वारा 2021 में प्रस्तावित कृषि क़ानूनों को रद्द करने और अन्य माँगों पर चर्चा करने की सहमति के बाद किसानों ने अपना विशाल आन्दोलन स्थगित करने के कुछ साल बाद अपनी फ़सलों के लिए गारंटीकृत एमएसपी क़ीमत की माँग करते हुए सड़कों पर फिर वापसी कर दी है। किसानों के विरोध-प्रदर्शन ने उस अराजकता की यादें ताज़ा कर दी हैं, जो विवादास्पद कृषि क़ानूनों को पेश करने के क़दम के ख़िलाफ़ 2020 में शुरू हुए विरोध-प्रदर्शन के दौरान राजधानी में व्याप्त थी। उस समय दिल्ली की सीमाओं पर गर्मी, सर्दी, बारिश और कोरोना महामारी से कई किसानों की शहादत हुई थी। यह आज़ादी के बाद शान्तिपूर्ण, अहिंसक विरोध-प्रदर्शन का एक ऐतिहासिक क्षण बन गया था।

कृषि संघ अब उत्पादन की भारतीय औसत लागत से कम-से-कम 50 प्रतिशत अधिक सभी फ़सलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी देने के लिए एक क़ानून बनाने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव डाल रहे हैं। प्रदर्शनकारी स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशों को लागू करने, किसानों और खेत मज़दूरों के लिए 10,000 रुपये की पेंशन, कृषि ऋण माफ़ी, पुलिस मामलों को वापस लेने और 2021 में लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों के लिए न्याय देने की भी माँग कर रहे हैं।

समस्या की वजह यह है कि सरकार साल में दो बार कृषि लागत और मूल्य आयोग की सिफ़ारिशों पर 20 से अधिक फ़सलों की एमएसपी निर्धारित करती है। लेकिन ख़रीद एजेंसियाँ ​​न्यूनतम समर्थन मूल्य स्तर पर केवल चावल और गेहूँ ख़रीदती हैं, जिससे केवल इन फ़सलों को उगाने वाले सात प्रतिशत किसानों को ही लाभ होता है। राज्य-एजेंसियाँ ​​दुनिया के सबसे बड़े खाद्य कल्याण कार्यक्रम को चलाने के लिए भण्डारण के उद्देश्य से एमएसपी पर केवल यही दो प्रमुख खाद्यान्न ख़रीदती हैं, जो 800 मिलियन भारतीयों को मुफ़्त चावल और गेहूँ का अधिकार देता है।

सरकार को जवाब देने के लिए चुनौतियों का विरोध करने का संवैधानिक अधिकार लोगों को है, जो सीधे संविधान के अनुच्छेद-19 के विभिन्न प्रावधानों से में वर्णित है। यह अनुच्छेद भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को परिभाषित करता है। हालाँकि जिस बात ने किसानों को परेशान कर दिया है, वह है- बल का प्रयोग और दिल्ली में उनके प्रवेश को अवरुद्ध करने के लिए कंक्रीट बैरिकेड्स की दीवारें खड़ी करना, जहाँ वे विरोध-प्रदर्शन करने के लिए जाना चाहते थे। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा है कि भारत के नागरिक के रूप में किसानों को स्थानांतरित होने का अधिकार है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश जी.एस. संधावालिया और न्यायमूर्ति लापिता बनर्जी की पीठ ने प्रदर्शनकारियों को राज्य में प्रवेश करने और राष्ट्रीय राजधानी की ओर बढ़ने से रोकने के लिए अपनी सीमाएँ सील करने के हरियाणा सरकार के फ़ैसले को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। किसान भारत में सबसे प्रभावशाली मतदाता समूह हैं और सरकार भारत में आम चुनाव होने से कुछ हफ़्ते पहले उन्हें ग़लत तरीक़े से परेशान करना नहीं चाहेगी। सरकार अब तक नये सिरे से किसान नेताओं के साथ तीन दौर की बातचीत कर चुकी है।

हालाँकि किसानों ने वार्ता को विलंबित करने की रणनीति बताया है। खेती वास्तव में उत्पादन जोखिमों से जुड़ी हुई है; ख़ासकर जलवायु परिवर्तन की अनिश्चितताओं की वजह से। इसलिए किसानों के लिए न्यूनतम आय सहायता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है, ताकि उन्हें बाज़ार की ताक़तों की दया पर निर्भर न रहना पड़े।