दिल का इन्वटटर- ‘पेसमेकर’

मनीषा यादव
मनीषा यादव
मनीषा यादव

आजकल हम यत्र-तत्र सुना करते हैं कि फलाने साहब को ‘पेसमेकर’ लगाना पड़ा. बड़ा भ्रम है ‘पेसमेकर’ के बारे में. कई अफवाहें हैं. जैसे यह कि पेस-मेकर में भी इकॉनामी और डीलक्स मॉडल हैं जो आदमी की हैसियत के हिसाब से ऑफर किए जाते हैं. यह बात अर्धसत्य है. सच है कि पेसमेकर तीस-चालीस हजार से शुरू होकर लाखों में हो सकते हैं पर उनका चुनाव आपकी हैसियत से ज्यादा आपकी बीमारी के हिसाब से करना पड़ता है. ऐसे ही आपके अनेक प्रश्नों का समाधान हो सके इसके लिए मैं पेस-मेकर के बारे में कुछ बुनियादी बातें आपसे साझा करूंगा.

वैसे, यह जान लें कि पेसमेकर तथा इससे जुड़ी कार्डियोलॉजी की बीमारियों में इतनी ज्यादा तकनीकी विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है कि अब, धीरे-धीरे कई कार्डियोलॉजिस्ट केवल इससे जुड़े काम ही करते हैं जिसे हम इलेक्ट्रोफिसियोलॉजी कहते हैं. मेरा सौभाग्य है कि कई वर्षों तक स्वयं मैंने, कई सौ मरीजों में पेसमेकर लगाए हैं तथा बाद में उनको देखता भी रहा हूं. उन मरीजों को मैं जो भी समझाता था, उनकी जो जिज्ञासाएं होती थीं उनके आधार पर ही यह लेख लिख रहा हूं.

हम कुछ बेहद महत्वपूर्ण प्रश्नों के जवाब पहले दे लें फिर आगे बढ़ेंगे.

(प्रश्न एक) पेसमेकर क्या है? क्या काम है इसका?
इसे आप दिल की ‘इमर्जेन्सी लाइट’ या ‘इन्वर्टर’ जैसा समझें. दिल का अपना एक करंट होता है. दिल में जो करंट पैदा होता है (इसका लड़कियों को देखकर दिल में पैदा होने वाले करंट से कोई लेना-देना नहीं है), इस करंट के पूरे दिल में वितरण की एक व्यवस्था भी ईश्वर ने बनाई है. यदि करंट बनाने का सिस्टम गड़बड़ करे, या करंट बने परंतु वितरण में कहीं रुकावट रहे, तो दिल का काम गड़बड़ या ठप्प हो सकता है. घर में बिजली चली जाए तो उतनी देर के लिए इन्वर्टर या  इमर्जेन्सी लाइट काम आती है न? ऐसा ही काम पेसमेकर करता है. जिन मरीजों के दिल में करंट बनने, या करंट के ठीक से प्रवाहित होने में गड़बड़ी होती है, उनके दिल को करंट ठीक से पहुंचता रहे, इसका काम यह पेसमेकर करेगा. याद रहे कि दिल में इस करंट का सतत प्रवाह जीवन के लिए अत्यंत जरूरी है. दिल की हर धड़कन इसी करंट से पैदा होती है. दिल यदि एक मिनट में सत्तर अस्सी बार धड़कता है तो इसके लिए दिल में सत्तर अस्सी बार यह करंट न केवल पूरे वोल्टेज पर बनना चाहिए बल्कि इसे उतनी ही बार पूरे दिल में बिना रुकावट के पहुंचना भी चाहिए. यदि न पहुंचे, तो यह जानलेवा हो सकता है. इसी संकट के समय ‘पेसमेकर’ काम आएगा.

(प्रश्न दो) दिल का यह बिजलीघर कैसे काम करता है? इसमें पेसमेकर कहां काम आएगा?
दिल मांसपेशियों का बना एक ऐसा पंप है जो जिंदगीभर, बिना एक पल रुके चलता रहता है. दिल हर मिनट में सत्तर-अस्सी बाद धड़कता है. इस तरह हर धड़कन पर यह पंप, शरीर में पर्याप्त खून डालता है. जिससे जीवन चलता है. हर धड़कन के लिए दिल के कारखाने को बिजली चाहिए. इसके लिए दिल का अपना बिजलीघर तथा वितरण के तार हैं जो दिल की पूरी बस्ती में सब तरफ फैले हुए हैं. यहां दिल में निरंतर बिजली बनती और प्रवाहित होती रहती है. हमारी हर धड़कन इसी करंट की मोहताज है. यदि यह करंट न मिले तो हमारी धड़कनें अनियमित हो सकती हैं, रुक भी सकती हैं. जो थोड़ी देर को भी ये रुक जाएं तो चक्कर आ सकते हैं, हम गिर सकते हैं. बेहोश हो सकते हैं. यहां तक कि मर भी सकते हैं क्योंकि उतनी देर तक दिल खून पंप करना बंद कर देगा. यदि इस स्थिति में पहले से पेसमेकर लगा हो तो वह धड़कन बंद होने पर स्वत: चल पड़ेगा.

(प्रश्न तीन) दिल में करंट का यह सिस्टम आखिर क्या है?
दिल में दो तरह की बीमारियां सुनी होंगी आपने. एक तो हार्ट अटैक जो खून की नलियों में प्रवाह रुक जाने के कारण होता है. दूसरी दिल के वॉल्व वगैरह सिकुड़ जाने या लीक करने के कारण जो रक्त प्रवाह में बाधा पहुंचा कर दिल पर अतिरिक्त बोझ डालते हैं. एक तीसरी बीमारी भी होती है. पेसमेकर इस तीसरी तरह की बीमारी का ही इलाज है. यह बीमारी न तो दिल की खून की नलियों की खराबी से संबंधित है, न ही वॉल्व की या मांसपेशियों की. यह दिल के घर की बिजली चले जाने का मामला है. यानी सब कुछ होने के बाद भी दिल का काम नहीं चलता. मान लें कि घर में टीवी हो, पर लाइट ही न आए तो? वह नहीं चलेगा. दिल में भी सब बढ़िया हो पर करंट की गड़बड़ हो तो? दिल की यही तीसरी तरह की बीमारी होती है जहां पेसमेकर काम आता है. पेसमेकर इस स्थिति में दिल को बिजली देता है.

‘पेसमेकर तीस-चालीस हजार से शुरू होकर लाखों में हो सकते हैं पर उनका चुनाव आपकी हैसियत से ज्यादा आपकी बीमारी के हिसाब से करना पड़ता है’

(प्रश्न चार) दिल के ‘करंट सिस्टम’ में क्या खराबियां हो सकती हैं?
एक तो यही हो सकता है कि करंट ठीक से न बने. या ज्यादा बने जल्दी-जल्दी बने और तेज धड़कनों की बीमारी हो जाए. या कभी बेहद ही धीमा बने, दिल इतना धीमे चले कि थकान लगे, चक्कर आएं. फिर एक ही मरीज में कभी तो तेज हो, कभी धीमें बने- यह भी हो सकता है. इन सबको हम ‘सिक साइनस सिंड्रोम’ कहते हैं. वह करंट बनाने वाला ‘सायनस नोड’ ही बीमार हो गया. इस स्थिति का इलाज पेसमेकर लगाकर होता है. एक स्थिति यह हो सकती है कि दिल में करंट तो बने पर वह सारे दिल तक न पहुंच पाए. करंट के प्रवाह में इस रुकावट को हार्ट ब्लॉक कहते हैं. कितनी ज्यादा रुकावट है, उसी हिसाब से इसे फर्स्ट डिग्री, सेकंड डिग्री और कंप्लीट हार्ट ब्लॉक कहते हैं. यह इमरजेंसी की स्थिति होती है. जितना करंट बने उसका आधा ही पहुंचे या बिल्कुल भी न पहुंचे यह भी हो सकता है. तब आदमी अचानक मर भी सकता है.

इन सारी समस्याओं का इलाज एक ही है कि दिल में पेसमेकर लगा दिया जाए. जिस तरह इनवर्टर की अपनी सीमाएं होती हैं, पेसमेकर की भी होती हैं. पेसमेकर के बारे में अन्य बातें अगली बार.