शैलेंद्र कुमार ‘इंसान’
दिसंवेदनशील केंद्र शासित राज्य है। यहाँ सभी दुनिया के अनेक देशों, अधिकतर धर्मों तथा अधिकतर जातियों के लोग रहते हैं। दिल्ली में सबसे अधिक संख्या हिन्दुओं की है, उसके बाद मुस्लिम सबसे अधिक संख्या में यहाँ हैं। दिल्ली के पड़ोसी राज्य हरियाणा में साम्प्रदायिक हिंसा भडक़ने से दिल्ली पुलिस सतर्क हो गयी है। हरियाणा में भडक़ी हिंसा के बाद दिल्ली में लगातार हो रहे विरोध-प्रदर्शन इसका मुख्य कारण हैं।
ज़िम्मेदारों को हिंसक घटनाएँ रोकनी चाहिए। अगर नहीं रोक सकते, तो इस्तीफ़ा देना चाहिए। दंगाइयों को जेल भेजा जाना चाहिए। ऐसी माँगें आज देश के हर कोने से उठ रही हैं। सोशल मीडिया से लेकर मौखिक रूप से निष्पक्ष लोग इस तरह की माँगें उठा रहे हैं। परन्तु कुछ लोगों ने पिछले दिनों हरियाणा के नूंह, मेवात की हिंसा के लिए दिल्ली में विरोध-प्रदर्शन किये। यह प्रदर्शन शाहदरा में हुए। जबकि विरोध के लिए देश के लोग दिल्ली के जंतर-मंतर, इंडिया गेट तथा संसद मार्ग पर आते हैं। प्रश्न यह है कि हिन्दू संगठनों के लोगों ने हिंसा का विरोध दिल्ली के शाहदरा में क्यों किया?
कुछ लोगों का कहना है कि वास्तव में शाहदरा मुस्लिम बहुल क्षेत्र है। पिछली बार दिल्ली में दंगों की लपटें शाहदरा में भी फैली थीं। इसलिए लोग वहाँ जमा होकर नारेबाज़ी कर रहे थे। वास्तव में निशाना दिल्ली पर है। यही कारण है कि कभी बाढ़ के बहाने, कभी दिल्ली सरकार के मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के कथित आरोपों के बहाने तथा कभी दिल्ली में अव्यवस्था के बहाने दिल्ली की राज्य सरकार को गिराने की योजनाएँ बनायी जा रही हैं।
जब किसी राज्य में हिंसा भडक़ती है, तो उसके पड़ोसी राज्यों को भी हिंसा भडक़ने का डर सताता रहता है। राजधानी दिल्ली में यह डर इसलिए भी बढ़ जाता है; क्योंकि यहाँ केंद्र में भाजपा की सरकार है तथा राज्य में आप की सरकार है। दोनों में राजनीतिक तनाव रहता है।
हाल ही में दिल्ली सेवा विधेयक को लेकर लोकसभा में जिस तरह गृह मंत्री अमित शाह समेत भाजपा नेताओं ने दिल्ली सरकार तथा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को खलनायक साबित करने के लिए आरोपों की बोछार की, उससे यह स्पष्ट है कि दिल्ली सरकार में न होने का जितना मलाल भाजपा नेताओं को है, उतना मलाल शायद ही किसी दूसरे दल को किसी राज्य में सत्ता न मिलने का होगा। प्रश्न यह है कि क्या दिल्ली में दंगों की वजह कभी सत्ता भी रही है? इस प्रश्न का उत्तर यही दिया जा सकता है कि सत्ता की भूख ही दंगों की ज़मीन तैयार करती है, चाहे वो किसी भी राज्य का मामला क्यों न हो।
दिल्ली में दंगों की संवेदनशीलता को पुलिस भी अच्छी तरह जानती है तथा केंद्र सरकार भी समझती है। परन्तु रोकने की कोशिश करना एक दूसरी बात है। ऐसा नहीं है कि दिल्ली पुलिस दंगा करने की स्थितियों को भाँपकर उन्हें रोकने में नाकाम है, परन्तु कई बार दंगे भडक़ने पर आसानी से शान्ति बहाल नहीं हो सकी है। अगर दिल्ली में 2015 के बाद से हुए दंगों पर नज़र डालें, तो देखेंगे कि केवल आठ वर्षों में यहाँ कई बार दंगे भडक़ चुके हैं तथा कई बार उन्हें समय रहते पुलिस ने भडक़ने से रोका भी है।
पुलिस रिकॉर्ड तथा विभिन्न रिपोट्र्स के अनुसार, सन् 2015 में दिल्ली में कुल 130 जगहों पर दंगे भडक़े थे, जिनमें अधिकतर मामले साम्प्रदायिक दंगों के थे। सन् 2016 में दिल्ली में 79 जगहों पर दंगे भडक़ने की घटनाएँ हुईं, जिनमें अधिकतर साम्प्रदायिक थीं। इसके बाद सन् 2017 में कुल 50 दंगे दिल्ली में हुए। इन दंगों में भी साम्प्रदायिक दंगे ही अधिक थे। सन् 2018 में 23 जगहों पर दंगे भडक़े, जिनमें से कई साम्प्रदायिक मामलों को लेकर हुए थे। सन् 2019 में भी 23 जगहों पर दंगे हुए, जिसमें आधे से अधिक साम्प्रदायिक थे। सन् 2020 दिल्ली के लिए दंगों के मामले में बहुत $खराब रहा तथा इस साल दिल्ली दंगों के मामले में सबसे अधिक कलंकित रही।
इस साल दंगों की 689 घटनाएँ हुईं, जिनमें अधिकतर साम्प्रदायिक दंगे थे। इनमें एक दंगा सबसे बड़ा रहा, जो ठीक चुनाव से पहले हुआ। इस साल अधिक दंगे होने का कारण चुनाव के पास आने का विशेषज्ञों ने माना। सन् 2021 में 68 दंगे दिल्ली में हुए, जिनमें साम्प्रदायिक दंगे अधिक थे। सन् 2020 के सबसे बड़े दंगे ने दिल्ली के कई क्षेत्रों को अपनी चपेट में ले लिया था, जिसमें कई नेताओं पर दंगा भडक़ाने के कथित आरोप भी लगे थे, जिसमें एक नाम कथित तौर पर कपिल मिश्रा का भी आया था।
हालाँकि उनके ख़िलाफ़ कोई मामला न बनने से उन पर कोई कार्रवाई भी नहीं हुई। परन्तु दंगों से पहले उनका आप पार्टी छोडक़र भाजपा में जाना तथा दंगों के बाद उन्हें केंद्र सरकार द्वारा सुरक्षा मुहैया कराना भी एक अलग ही माजरा है।
हालाँकि अब उन्हें भाजपा का दिल्ली प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया गया है। यह वही कपिल मिश्रा हैं, जिन्होंने भरी विधानसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर शारीरिक व्यभिचार की घिनौनी टिप्पणियाँ करते हुए उसके सुबूत होने का दावा किया था। इसके बाद से ही कपिल मिश्रा का धीरे-धीरे आप पार्टी से नाता टूटा तथा वह भाजपा में शामिल हो गये।
जो भी हो, दिल्ली की हरियाणा सीमाएँ इन दिनों पुलिस की कड़ी निगरानी में हैं, ताकि हरियाणा की हिंसा की आँच दिल्ली तक न पहुँच सके। अगर अब तक के दंगों का इतिहास देखें, तो दिल्ली के उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र दंगों की चपेट में आसानी से आते दिखे हैं। हरियाणा के नूंह, मेवात में भडक़ी हिंसा के बाद जिस शाहदरा में हिन्दू संगठनों ने विरोध-प्रदर्शन करते हुए नारेबाज़ी की, वह क्षेत्र भी दिल्ली का पूर्वी क्षेत्र है। शाहदरा के अतिरिक्त सीमापुरी, न्यू उस्माननगर, जाफ़राबाद, वेलकम, ज्योतिनगर, कल्याणपुरी, त्रिलोकपुरी, भजनपुरा, गोकलपुरी, करावल नगर, खजूरी $खास जैसे क्षेत्र संवेदनशील हैं, जिनमें अधिकतर क्षेत्र शाहदरा के पास ही हैं। इसलिए दिल्ली पुलिस को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि दिल्ली में ऐसी किसी भी प्रकार की गतिविधि न होने दे जिससे किसी दूसरे सम्प्रदाय को उकसावा मिले।
दिल्ली के अलावा सन् 2016 से सन् 2020 तक देश भर में दंगे बहुत अधिक हुए थे। केंद्र सरकार द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार, सन् 2016 से सन् 2020 तक देश में लगभग 3,400 साम्प्रदायिक दंगे हुए थे। केंद्र सरकार के अनुसार, सन् 2020 तक देश में दंगों के कुल 2,76,000 दंगे हुए। इनमें से 3,400 दंगे साम्प्रदायिक हिंसा के थे। राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, सन् 2016 में कुल 61,974 दंगे देश में हुए। सन् 2017 में 58,880 दंगे देश में हुए। इसी प्रकार सन् 2018 में 57,828 दंगे, सन् 2019 में कुल 45,985 दंगे देश में हुए। वहीं सन् 2016 में साम्प्रदायिक 869 दंगे, सन् 2017 में 723 साम्प्रदायिक दंगे, सन् 2018 में 512 साम्प्रदायिक दंगे, सन् 2019 में 438 साम्प्रदायिक दंगे तथा सन् 2020 में 857 साम्प्रदायिक दंगे देश में हुए।
यह तो पिछले दंगों का रिपोर्ट कार्ड है, जिसे दोहराने का कारण यह बताना भी है कि दिल्ली में सतर्कता की बहुत आवश्यकता है। क्योंकि दिल्ली में केंद्र सरकार का शासन होने बाद भी अगर यहाँ इतनी संख्या में हर साल दंगे भडक़े हैं, तो यह केंद्र सरकार तथा उसकी कानून व्यवस्था की बड़ी विफलता ही कही जाएगी। इसका कारण यह है कि यहाँ पुलिस के अतिरिक्त कई सुरक्षा एजेंसियाँ केंद्र के अधीन हैं तथा देश की सरकार यहीं से चलती है। फिर भी अगर दंगे भडक़ जाते हैं, तो यह बेहद शर्मनाक है।