कोरोना के बाद दिल के दौरे से बढ़ रहीं मौतें; हालाँकि सही कारणों का नहीं लग सका है पता
कोरोना महामारी के बाद दिल का दौरा पडऩे के कारण होने वाली मौतों में अचानक वृद्धि ने चिकित्सकों, नीति निर्माताओं और आम लोगों के साथ-साथ विशेषज्ञों को भी चकित कर दिया है। अभी भी निश्चित नहीं है कि इन मौतों का कोरोना से क्या और कैसा सम्बन्ध है? हाल में अभिनेत्री, मॉडल और मिस यूनिवर्स पेजेंट की पहली विजेता ने लाइव चैट सत्र के दौरान अपने इंस्टाग्राम पेज पर घोषणा की कि उनकी मुख्य धमनियों में से एक में 95 फ़ीसदी रुकावट के साथ उन्हें दिल का तीव्र दौरा पड़ा है।
जीरो फिगर बनाये रखने और वज़न कम करने के लिए मशहूर हस्तियों के जिम जाने की ख़बरों के बीच एक अच्छी ख़बर यह है कि वैज्ञानिक वज़न कम करने वाली दवा पर प्रयोग कर रहे हैं, जो वास्तव में असरकारक दिख रही है। रही है। बल्कि जीएलपी-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट नामक दवाओं का एक वर्ग, वेगोवी और ओजेम्पिक जैसे ब्रांड नामों के तहत बेचा जाता है। टिकटॉक की नामचीन हस्तियाँ और मशहूर लोग वज़न कम करने के लिए इंजेक्शन के दीवाने हैं। आख़िरकार इसके लाभार्थी वह अरबों लोग होंगे, जिनके वज़न ने उन्हें अस्वस्थ बना दिया है।
जानलेवा है मोटापा
मोटापा अब सिर्फ़ अमीर-देशों की समस्या नहीं है। एक अनुमान के अनुसार, 2035 तक पृथ्वी पर आधे से अधिक लोग अधिक वज़न वाले या मोटे होंगे। अभी दवाएँ महँगी हैं और उनके दीर्घकालिक प्रभाव अज्ञात हैं। लेकिन प्रतिस्पर्धा और सरकारों द्वारा थोक ख़रीदारी उनके मूल्य नीचे लाने में मदद कर सकती है। और अगर सावधानीपूर्वक निगरानी से कोई बड़ा दुष्प्रभाव नहीं मिलता है, तो दवाएँ मानवता के संकट के ख़िलाफ़ अपनी लम्बी और अब तक की निरर्थक रही लड़ाई जीतने में मदद कर सकती हैं।
नयी तरह की दवा अमीरों और आकर्षक दिखने वाले लोगों के बीच उत्साह पैदा कर रही है। हफ़्ते में बस एक बार लेने से वज़न कम हो जाएगा। मशहूर हस्तियाँ यह दावा करती हैं; प्रभावशाली व्यक्ति टिकटॉक पर इसकी प्रशंसा करते हैं; अचानक दुबली-पतली हो गयी हस्तियों ने इनकार कर दिया कि उन्होंने इसे लिया है। लेकिन नवीनतम वज़न घटाने वाली दवाएँ केवल कॉस्मेटिक वृद्धि के लिए नहीं हैं। उनके सबसे बड़े लाभार्थी अकेले सेलिब्रिटी नहीं, बल्कि दुनिया भर के अरबों आम लोग होंगे, जिनके वज़न ने उन्हें अस्वस्थ बना दिया है।
कोरोना वायरस में झेले दर्द के परिणामस्वरूप कई लोग मोटापे के जोखिमों के बारे में जागरूक हो गये हैं। हालाँकि कई लोग मानते हैं कि आहार और व्यायाम के माध्यम से वज़न कम करने का उपाय उनके पास है ही। डॉक्टर नोवो नॉर्डिस्क, एक डेनिश दवा निर्माता से इंजेक्शन वाली दवा का उपयोग करने का सुझाव देते हैं, जो टाइप-2 मधुमेह के लिए स्वीकृत है। लेकिन मामूली लाभ के रूप में वज़न घटाने में भी मदद करता है। यह शुरू करने के लिए जेब पर प्रति माह लगभग 1,000 डॉलर का ख़र्च पड़ता। हालाँकि उपयोग में वृद्धि के साथ ख़र्च नीचे आ सकता है।
यह ख़बर ऐसे समय में आयी है, जब नये अध्ययनों से पता चला है कि कोरोना संक्रमण ने हृदय रोग के ख़बरे को गम्भीर रूप से बढ़ा दिया है; ख़ासकर कम उम्र के लोगों में। यूएस डिपार्टमेंट ऑफ वेटरन्स अफेयर्स के आंकड़ों पर आधारित एक अध्ययन में कहा गया है कि जिन लोगों को कोरोना हुआ था, उनमें दिल का दौरा और स्ट्रोक सहित हृदय सम्बन्धी समस्याओं का काफ़ी उच्च जोखिम है। ये समस्याएँ उन लोगों में भी हो सकती हैं, जिन्हें अपेक्षाकृत हल्का कोरोना था और वे इससे पूरी तरह ठीक हो चुके हैं।
नेचर नाम के एक जनरल में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में यह बताया गया था कि जो लोग गम्भीर कोरोना से ठीक हो गये थे, उनमें एक साल बाद तक हृदय सम्बन्धी समस्याओं के विकसित होने का अत्यधिक उच्च जोखिम था। इसमें दिल की सूजन और फेफड़ों के थ्रोम्बो एम्बोलिज्म शामिल थे, जो कि उन लोगों की तुलना में 20 गुना अधिक था; जो असंक्रमित रहे। येल विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में गम्भीर कोरोना के साथ अस्पताल में भर्ती लोगों में ऑटो-एंटीबॉडी की अत्यधिक संख्या की उपस्थिति की जानकारी दी गयी है। इनमें से अधिकांश एंटीबॉडी अपने स्वयं के ऊतकों और कोशिकाओं के ख़िलाफ़ काम करती हैं और अनजाने में दिल सहित शरीर के ऊतकों पर हमला कर सकती हैं।
यही नहीं, यह उनकी संरचना को कमज़ोर कर सकते हैं। कोरोना वायरस फेफड़ों, न्यूरॉन्स, लीवर, किडनी, आंत और हृदय और रक्त वाहिकाओं जैसे अंगों और ऊतकों में पाए जाने वाले एसीई2 रिसेप्टर के माध्यम से प्रवेश करता है। थक्के हृदय या मस्तिष्क जैसे महत्त्वपूर्ण अंगों को रक्त की आपूर्ति को अवरुद्ध कर सकते हैं और ये दिल का दौरा या स्ट्रोक का कारण बन सकते हैं।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
कैथ लैब्स (पैन मैक्स) कार्डिएक साइंसेज के प्रधान निदेशक और प्रमुख डॉ. विवेका कुमार कहते हैं- ‘हाल में हमने बहुत-से युवाओं को एक्यूट हार्ट अटैक और विशेष रूप से कार्डियक अरेस्ट से मरते हुए देखा है; जो डांसिंग, ड्राइविंग, जिम जैसी शारीरिक गतिविधि करते हैं और वह सब शादी समारोह और अन्य कार्यक्रमों के दौरान भी घटित हुआ है। ओमिक्रॉन द्वारा प्रेरित तरंगें हल्की होती हैं; लेकिन उनका अपना प्रभाव होता है। वैक्सीन कोरोना का अभी तक एक पूर्ण उपचार नहीं है, क्योंकि टीकों ने भी कुछ दुष्प्रभाव पैदा किये और हृदय सम्बन्धी दिक्क़तों का कारण बनी।
डॉक्टर कुमार कहते हैं कि ऐसे लोग हैं, जिन्हें केवल टीके लगे हैं और एक हफ़्ते या एक महीने के भीतर हमने देखा कि एक मरीज़ को दिल का दौरा पड़ गया। टीके के साइड इफेक्ट कम तीव्रता वाले हैं। लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण हृदय सम्बन्धी घटनाएँ बढ़ रही हैं; विशेष रूप से कार्डियक अरेस्ट।’
इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के सीनियर कंसल्टेंट कार्डियोथोरेसिक एंड हार्ट एंड लंग ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. मुकेश गोयल कहते हैं- ‘अब यह ज्ञात हो गया है कि कोरोना हृदय सहित शरीर के विभिन्न अंगों की छोटी वाहिकाओं में व्यापक रक्त के थक्के का कारण बनता है। यह मायोकार्डिटिस नामक हृदय की मांसपेशियों की सूजन का भी कारण बनता है।’
शिकागो में नॉर्थ-वेस्टर्न यूनिवर्सिटी, इलिनोइस ने कोरोना वायरस समूह के 1,000 लोगों पर किये अपने शोध में पाया है कि इससे हृदय की नाकाम का जोखिम 72 फ़ीसदी बढ़ गया है और लगभग 12 अतिरिक्त लोग इससे प्रभावित हुए हैं। अस्पताल में भर्ती होने से भविष्य में हृदय सम्बन्धी जटिलताओं की सम्भावना बढ़ जाती है; लेकिन अस्पताल में भर्ती होने से बचने वाले लोगों को भी कई स्थितियों के लिए उच्च जोखिम होता है।
कोरोना वायरस महामारी से पहले दिल का दौरा दुनिया भर में मौतों का प्रमुख कारण था। हालाँकि प्रमुख बात यह है कि इसमें लगातार गिरावट आ रही थी। हालाँकि हाल में पीयर-रिव्यू जर्नल ऑफ मेडिकल वायरोलॉजी में प्रकाशित नये अध्ययन से पता चलता है कि दिल के दौरे से होने वाली मौतों की दर में तीव्र मोड़ आया गयी और महामारी के बाद सभी आयु समूहों में वृद्धि हुई है। दिल से सम्बन्धित दिक्क़तों में बढ़ोतरी के दूसरे कारण नौकरी छूटने और अन्य वित्तीय दबावों से जुड़ी मनोवैज्ञानिक और सामाजिक चुनौतियों से सम्बन्धित तनाव भी हो सकते हैं, जो हृदय रोग के लिए तीव्र या तनाव का कारण बन सकते हैं।
शोध दल के सदस्यों का कहना है कि वे लम्बे समय से जानते हैं कि फ्लू जैसे संक्रमण हृदय रोग और दिल के दौरे के जोखिम को बढ़ा सकते हैं; लेकिन दिल के दौरे से होने वाली मौतों में तेज़ वृद्धि पहले नहीं दिखती थी। इसमें बढ़ोतरी का काम मोटापे ने भी किया है, जिसे एक बड़ी आबादी ग्रसित है।
उत्साहजनक बात
आज़ादी के बाद भारत सूखे, अकाल और भुखमरी से जूझ रहा था, जो कुपोषण का कारण बनता है। लेकिन पिछले कुछ दशकों में आर्थिक विकास, फ़सलों की बहुतायत और जीवन शैली में बदलाव के कारण देश ने एक और पोषण सम्बन्धी समस्या विकसित की है, जो कि मोटापा है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में देश में मोटे लोगों की संख्या दोगुनी हो गयी है। सर्वेक्षण के अनुसार, प्रति वर्ग मीटर 25 किलोग्राम से अधिक बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) वाले लोगों को मोटा माना गया है। मोटापे की व्यापकता महिलाओं में 12.6 फ़ीसदी और पुरुषों में 9.3 फ़ीसदी है। दूसरे शब्दों में भारत में 100 मिलियन से अधिक व्यक्ति मोटापे से ग्रस्त हैं, जिससे उच्च ट्राइग्लिसराइड्स (रक्त का गाढ़ापन) और कम उच्च घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (एचडीएल) कोलेस्ट्रॉल, टाइप-2 मधुमेह, उच्च रक्तचाप, पुराने ऑस्टियो आर्थराइटिस, हृदय रोग, स्ट्रोक और यहाँ तक कि कैंसर भी हो सकता है। मोटापे की सर्जरी के कई रूप हैं; लेकिन अक्सर सर्जरी पेट के आकार को इतना कम कर देती है कि कम मात्रा में ही आराम से खाना खाया जा सके। लिहाज़ा नये प्रकार की दवा जो उम्मीद जगा रही है, वह एक उत्साहजनक विकास है।
मुख्य निष्कर्ष
महामारी से पहले के वर्ष में दिल का दौरा पडऩे से 1,43,787 लोगों की मौत हुई थी; महामारी के पहले साल के भीतर यह संख्या 14 फ़ीसदी बढक़र 164,096 हो गयी थी।
तीव्र म्यो कॉर्डिअल धमनी की रुकावट सम्बन्धी मृत्यु दर में अधिकता पूरे महामारी के दौरान बनी रही है, यहाँ तक कि सबसे हाल की अवधि के दौरान प्रकल्पित कम-विषाणु वाले ओमिक्रॉन वैरिएंट में वृद्धि हुई है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि यद्यपि महामारी के दौरान तीव्र म्यो कॉर्डिअल से होने वाली मौतों में सभी आयुवर्ग में वृद्धि हुई; लेकिन सापेक्ष वृद्धि 25 से 44 वर्ष की आयु के सबसे कम उम्र के वर्ग के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण थी।
महामारी के दूसरे वर्ष तक दिल का दौरा पडऩे से मृत्यु दर 25-44 आयु वर्ग के वयस्कों में 29.9 फ़ीसदी, 45-64 आयु वर्ग के वयस्कों में 19.6 फ़ीसदी और 65 से ज़्यादा आयु वर्ग में 13.7 फ़ीसदी बढ़ गयी थी।