तुलसी संगत साधु की…

400 के करीब घातक विषाणुओं की गुत्थी सुलझाने वाला एक जीव विज्ञानी. एक गणितज्ञ जिसकी जबान से गणित किसी किस्से जैसा दिलचस्प लगने लगता है. जन्म लेते ही मरने के लिए कड़कड़ाती ठंड में छोड़ दी गई एक बच्ची जो आज अपने देश के शीर्ष राजनेताओं में से एक है और जल्द ही अपने देश की राष्ट्रपति भी बन सकती है.

एक इतिहासकार जो ब्रह्मांड की व्याख्या एक कविता में करता है. एक भौतिकवेत्ता जिसकी कोशिशों से ऊर्जा और पर्यावरण, दोनों के भविष्य के लिए साथ-साथ उम्मीदें जगती हैं. दो संत जो गंगा को बचाने की खातिर खुद को मिटाने के लिए तैयार हैं.

सिर्फ ये ही नहीं, मनुष्य की सीमाओं की परीक्षा लेने वाली, उनका दायरा बढ़ाने वाली और इस तरह हमारी सभ्यता के भविष्य को आकार देने वाली ऐसी कई हस्तियां थिंक 2012 का हिस्सा बनीं. गोवा में तहलका के इस अनोखे सालाना आयोजन में राजनेता, फिल्मी सितारे, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता, उद्योगपति और किसान, सब साथ थे.

इन्हीं में भारत के उस हिस्से से आई एक महिला भी थी जिसके बारे में ज्यादातर लोग नहीं जानते. उसने बताया कि कैसे उसके गांव में बीज बोने का उत्सव मनाने के लिए जुटी भीड़ एक सामूहिक नरसंहार का शिकार हो गई. किस तरह दो घंटे तक चली गोलियों ने 19 गरीब आदिवासियों की जान ले ली. कैसे उसके गांव में एक मां को यह साबित करने के लिए अपने स्तनों से दूध निकालकर दिखाना पड़ा कि एक दुधमुंहा बच्चा घर पर उसका इंतजार कर रहा है.

आस्था और विश्वास की जंग. मिश्र और अफगानिस्तान में तमाम दुश्वारियों को पीछे छोड़कर आगे बढ़ी स्त्री शक्ति. मीडिया को एक नए सिरे से परिभाषित करने के लिए हाशियों पर काम करते पत्रकार. कारोबार के तरीकों पर बहस करते उद्योगपति. जमीन की सरकारी समझ को लेकर विरोध जताते किसान. आंखों के धोखे से आस्था को छलने के खेल की कलई खोलता एक जादूगर.

थिंक के पीछे की सोच यही थी कि यह एक ऐसा मंच बने जिसमें विविध क्षेत्रों में दुनिया को राह दिखाने वाली कुछ कुशाग्र प्रतिभाएं आएं और विचारों की विशाल अनुगूंज पैदा करें–एक जैसी गूंज जो न सिर्फ दिमागों में हलचल पैदा करे बल्कि आम तौर पर एक-दूसरे से कटी दुनियाओं के बीच किसी पुल जैसा काम भी करे.

बीते पखवाड़े तीन दिन तक ऐसा ही हुआ. धर्म, आस्था, ब्रह्मांड, विज्ञान, विस्थापन, ऊर्जा, कारोबार, मीडिया, राजनीति जैसे तमाम मुद्दों पर विचारोत्तेजक परिचर्चाएं और बहसें हुईं. इनकी अनुगूंज वाकई असरदार थी. खनन कारोबार के एक दिग्गज एक किसान की इस बात से सहमत थे कि एक हद के बाद पैसा और कुछ नहीं, बस कागज का टुकड़ा है. सुपरस्टार शाहरुख खान का कहना था कि सफलता आदमी को अकेला कर देती है और उन्हें बार-बार यह अहसास होता है.

धर्म से लेकर विज्ञान और राजनीति तक वे तमाम मुद्दे इस विचार महोत्सव के विषयों में शामिल थे जो मानव सभ्यता को लगातार मथते रहते हैं. जो भी इस आयोजन का हिस्सा बने, चाहे वे वक्ता रहे हों या श्रोता, सबका कहना था कि वे इस आयोजन से एक बदले हुए इंसान की तरह वापस जा रहे हैं. यह भी कि उनके भीतर जो दुनिया है उसकी दीवारों में कुछ और खिड़कियां जुड़ गई हैं.

इस बहुरंगी जमावड़े का सम्मान करने और इससे उपजे उत्साह को आपसे साझा करने के लिए हमने इस अंक की आवरण कथा इस आयोजन में गूंजे विविध विचारों को बनाया है.

विचारों में बदलाव के बीज छिपे होते हैं. थिंक 2012 में आए एक श्रोता का कहना था, ‘मैंने अपनी जिंदगी में पहली बार किसानों को बोलते सुना और मुझे महसूस हुआ कि मेरी समृद्धि उनके दर्द से बनी है. इसने मुझे बहुत गहराई से इस दिशा में सोचने के लिए मजबूर किया कि भविष्य में मुझे अपने लिए कितना लेना है और कैसे मैं कुछ अपने समाज को वापस दूंगा.’

आशा है कि यहां उपलब्ध कराए गए लेख और चर्चा-परिचर्चा हमारे तमाम पाठकों में भी तरह-तरह के जरूरी विचारों की अनुगूंज पैदा करेगा.