हैदराबाद और उन्नाव कांड जैसी सामूहिक दुष्कर्म और हत्या की वारदात पर चिंता जताते हुए उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा- ‘देश में महिलाओं के िखलाफ हो रहे अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए ऐसे मामलों में त्वरित जाँच के साथ त्वरित सुनवाई और न्याय दिया जाना ज़रूरी है।’ उन्होंने कहा कि इसके लिए बिल लाना और कानून में बदलाव मात्र कोई समाधान नहीं है। 8 दिसंबर को वेंकैया नायडू ने कहा कि अदालतों में लम्बित पड़े मामलों के भारी बोझ को कम करने की ज़रूरत है। पुलिस को यह सुनिश्चित करना होगा कि हरेक शिकायत दर्ज की जाए और उस पर तत्काल कार्रवाई हो। यही नहीं, जाँच समय पर पूरी करते हुए सुनवाई शुरू होनी चाहिए और ऐसे मामलों में एक तय समय पर फैसला आना चाहिए। महिला अत्याचार के िखलाफ पूरे देश में गुस्सा है साथ ही विरोध-प्रदर्शन के चलते न्याय व्यवस्था पर सवाल उठे हैं कि कैसे सामूहिक दुष्कर्म के आरोपी जमानत पर छूट जाते हैं।
वीरेंद्र भाटिया मेमोरियल व्या यान में ‘लोकतंत्र के खम्भे’ विषय पर आयोजित कार्यक्रम में नायडू ने कहा कि त्वरित न्याय तो नहीं दिया जा सकता है, लेकिन इसमें निरंतर देरी भी नहीं होनी चाहिए। अन्यथा लोग कानून को अपने हाथ में लेने लगेंगे। न्यायिक प्रक्रिया को लोगों की सुविधा के अनुकूल होना चाहिए साथ ही कानूनी प्रक्रिया स्थानीय भाषा में होनी चाहिए, ताकि लोग आसानी से समझ सकें। सामाजिक कुरीतियों को मिटाने के लिए मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रशासनिक कौशल के ज़रिये कानून में उपलब्ध मौज़ूदा प्रावधानों को सही ढंग से लागू किया जाना चाहिए। उन्होंने सुझाव भी दिया कि सुप्रीम कोर्ट की पूरे देश में 2-3 शाखाएँ भी खोली जानी चाहिए। इस तरह के बदलाव के संविधान में संशोधन की ज़रूरत नहीं है, ताकि लोग मुकदमा दर्ज करने के लिए सिर्फ दिल्ली के ही चक्कर न लगाएँ। यहाँ आने में उनका समय बर्बाद होता है साथ ही यहाँ रहना महँगा पड़ता है।
तय समय में मामले निपटाएँ
उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा कि सांसदों और विधायकों के िखलाफ चुनाव याचिका और आपराधिक मामलों को समयबद्ध तरीके से निपटाये जाने की आवश्यकता है। उन्होंने विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों से आह्वान किया कि समय-सीमा में दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्यता का फैसला किया जाए। उन्होंने न्यायपालिका के बारे में भी ज़ोर देकर कहा कि ऐसे मामले निपटाने में उनको भी प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
उन्होंने चिन्ता जताते हुए कहा कि न्याय देने में देरी से न्यायिक और विधायी निकायों में जनता का विश्वास खत्म हो जाता है। एक कुशल, पारदर्शी, सुलभ और सस्ती न्यायिक प्रणाली सुशासन का एक महत्त्वपूर्ण आधार होती है। यह व्यवसाय में आसानी के साथ-साथ जीवनयापन में भी सुधार कर सकता है। इससे सरकार में विश्वास बढ़ता है। विधायिका के कामकाज पर उप राष्ट्रपति ने कहा कि एक आम धारणा बन रही है कि संसद और विधानसभा में बहस की गुणवत्ता में लगातार गिरावट आयी है। उन्होंने विधायिका में समाज के कृयाण के लिए रचनात्मक योगदान देने की अपील की। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में विरोध करना सही है; लेकिन इससे व्यवधान नहीं होना चाहिए।
उन्होंने कार्यपालिका को दलितों और समाज के हाशिये पर रहने वालों को प्राथमिकता देने की बात भी कही। संस्था से जुड़े लोगों को न केवल विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों को लागू करने में सक्रिय भूमिका अदा करनी चाहिए, बल्कि उनके क्रियान्वयन में भी बढ़-चढक़र हिस्सा लेना चाहिए। लोकतंत्र के चार स्तम्भों- विधानमंडल, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया का उल्लेख करते हुए, नायडू ने कहा कि प्रत्येक स्तम्भ को अपने दायरे में काम करना चाहिए। लोकतंत्र की ताकत हर स्तम्भ के मज़बूत होने के साथ ही एक-दूसरे के पूरक होने पर निर्भर करती है। उन्होंने कहा कि कोई भी अस्थिर स्तम्भ लोकतांत्रिक ढाँचे को कमज़ोर बनाता है।
कानून का डर और स मान दोनों ज़रूरी
वेंकैया नायडू ने कहा कि समाज में कानून को लेकर डर और सम्मान दोनों का होना ज़रूरी है। लोगों में कानून का डर रहेगा तो वे गलत नहीं करेंगे। ये लोगों के लिए मूल्यों के क्षरण पर आत्मनिरीक्षण और विचार करने का समय है। महिलाओं के स मान की धारणा को कायम रखने के लिए समाज को एकजुट होना होगा।
हमारे प्रत्येक स्तम्भ को शक्तियों के अपने अभ्यास में स्वतंत्र होने की आवश्यकता है, लेकिन राष्ट्रीय एकता, अखंडता और समृद्धि के बन्धन को मज़बूत करने के माध्यम से अन्य दो स्तम्भों से जुड़े हुए हैं। पिछले 70 वर्षों में हमारा देश दुनिया के सबसे बड़े और दुनिया के सबसे अच्छे कामकाजी संसदीय लोकतंत्रों में से एक के रूप में उभरा है। इस बारे में कई कानून बनाये गये हैं। शासन प्रणाली को पहले से बेहतर बनाने के लिए संविधान में 103 बार संशोधन भी किया जा चुका है।
चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा तैयार की गयी नीतियों को लागू करके देश की सेवा करने के लिए सुधारने के प्रयास लगातार जारी हैं। योजनाओं से जुड़े मामलों में नीतिगत इरादे और सेवाओं के प्रभावी वितरण को सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय भाषा में जानकारी उपलब्ध कराना लोकतंत्र का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। लोगों को नीति निर्माण के केंद्र में लाना, यह सुनिश्चित करना कि लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली का लाभ हाशिये के लोगों तक पहुँचे, लोकतंत्र के लिए यह बेहद ज़रूरी है।
विभिन्न कानूनों के प्रभावी प्रसार और प्रवर्तन और जन-केंद्रित योजनाओं के क्रियान्वयन से हमारे लोकतंत्र की नींव मज़बूत होती है। लोगों को इससे जोडक़र और उन्हें परिवर्तन को अपनाने के तरीके से लोगों का जीवन स्तर सुधारने की ओर बढ़ता है। लोकतंत्र अपनी प्रासंगिकता और ताकत तभी बढ़ती है, जब लोगों के केंद्र में विकास ही मुद्दा हो।
न्याय प्रदान करना
लोकतंत्र का तीसरा और महत्त्वपूर्ण स्तंभ न्यायपालिका है। इससे यह भूमि से जुड़े कानून, समाज में अन्याय होने पर उसमें न्याय की भावना पैदा होती है। विधायिका और कार्यपालिका संवैधानिक ढाँचे का पालन करना सुनिश्चित करने और हमारे संविधान के मूल सिद्धांतों के अनुरूप कानूनों को लागू करने के लिए कानूनों की व्याख्या करने की महत्त्वपूर्ण •िाम्मेदारी है। विधायिका और कार्यपालिका की तरह, न्यायिक प्रक्रिया को भी अधिक से अधिक लोगों की सुविधा के अनुसार बननी चाहिए।
यह सुनिश्चित करना हम सबकी •िाम्मेदारी है कि न्याय तंत्र सुलभ, विश्वसनीय, न्यायसंगत और पारदर्शी हो। विभिन्न अदालतों में लम्बित लाखों मामले चिंता का कारण हैं। इस भारी बोझ के तले दबी व्यवस्था के लिए बार और बेंच के सामूहिक प्रयासों से तत्काल कदम उठाने की ज़रूरत है। न्याय में देरी का मतलब न्याय से वंचित रखना। उन्होंने कहा कि सांसदों और विधायकों के िखलाफ आपराधिक मामलों तक की सुनवाई की कोई समय-सीमा नहीं है। तय समय में फैसला देना सुनिश्चित करना होगा कि चुनाव याचिकाएँ, आपराधिक मामले और दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्यता की कार्यवाही समयबद्ध तरीके से तय की जानी चाहिए। ऐसे मामलों में न्याय देने में देरी से न्यायिक और विधायी निकायों में जनता का विश्वास खत्म हो जाता है।
हमें ऐसी संस्थानों पर ध्यान देने की ज़रूरत है, जिनसे तय समय में न्याय के साथ ही इस पर लोगों का भरोसा कायम करने वाले बिन्दुओं पर फोकस करना होगा। इसके लिए •यादा से •यादा फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाकर प्रक्रियाओं को तेजी से ट्रैक किया जाना चाहिए। गति और निष्पक्षता एक कुशल न्यायिक प्रणाली के अहम तत्त्व हैं। वर्तमान में न्याय वितरण प्रणाली की स्थिति पर राष्ट्रीय बहस केंद्र में हैं। हम अपने संस्थानों को निष्क्रियता या मानकों के कमज़ोर करके उन्हें हीन बनाने के लिए नहीं छोड़ सकते। उप राष्ट्रपति ने न्यायिक सुधारों के बारे में कहा कि एक कुशल, पारदर्शी, सुलभ और सस्ती न्यायिक प्रणाली सुशासन का एक महत्त्वपूर्ण आधार है।
हैदराबाद के सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के मामले में चार आरोपियों का एनकाउंटर किये जाने पर लोगों में अलग-अलग राय सामने आयी है। हालाँकि, साइबर टीम के पुलिस कमिश्नर वीसी सज्जनार के नेतृत्व में जाँच दल ने में दावा किया कि आरोपियों का एनकाउंटर आत्मरक्षा में किया गया। आलोचकों ने पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाये हैं, तो बहुत से लोगों ने इसकी सराहना भी की है। पुलिस हिरासत से भागने के प्रयासों के दौरान मारे गये नक्सलियों और आदिवासियों की हत्याओं का एक कुख्यात इतिहास है। इस मामले में एनएचआरसी ने एक स्वतंत्र जाँच की सिफारिश की है और कहा है कि पुलिस चौंकन्नी नहीं थी, जिसके चलते चारों आरोपी मारे गये। एनएचआरसी के दिशा-निर्देशों में स्पष्ट है कि बल का उपयोग उचित नहीं, यह एक अपराध होगा और इस मामले में पुलिस अधिकारी हत्या का दोषी होगा।
न्याय तत्काल नहीं हो सकता
2012 के निर्भया कांड समेत देश के जघन्य अपराधों में सज़ा देने में देरी को लेकर हाल के समय में विभिन्न मंचों पर बहस का विषय बनी हुई है। इन मामलों में दोषियों को सज़ा दी जानी हैं और दया याचिका अभी भी राष्ट्रपति के पास लम्बित थी। अब हैदराबाद में सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले में आरोपी चार युवकों पुलिस रिमांड के दौरान हुई मौत पर न्यायिक प्रक्रिया को लेकर बहस छिड़ गयी है। देश के मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे ने स्पष्ट किया कि न्याय तत्काल नहीं हो सकता है और बदला इसका विकृप नहीं है।
जोधपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में सीजेआई एसए बोबडे ने कहा कि हाल की घटनाओं ने एक आपराधिक मामले को निपटाने में लगने वाले समय के बारे मेंबहस का मुद्दा बना हुआ है। उन्होंने माना कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि आपराधिक न्याय प्रणाली को अपनी स्थिति, समय के प्रति अपने दृष्टिकोण, आपराधिक मामले को निपटाने में समय लगता है।
चीफ जस्टिस एस.ए. बोबडे ने कहा किमुझे नहीं लगता कि इंसाफ कैसे भी किया जा सकता है और यह तुरन्त होना चाहिए। न्याय को कभी भी बदला लेने का रूप नहीं हो सकता। उन्होंने कहा किअगर न्याय बदला हो गया, तो वह अपने चरित्र को खो देगा। न्याय देने के तंत्र में अनुचित जल्दबाज़ी या देरी नहीं होनी चाहिए। 7 दिसंबर को एक राष्ट्रीय सम्मेलन में सीजेआई बोबडे ने कहा कि इसके बजाय तंत्र को उचित परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि त्वरित न्याय की अवधारणा दुनिया के सबसे बुरे शासनों से जुड़ी हुई है; लेकिन न्याय में देरी नहीं होनी चाहिए। कोई भी न्याय में देरी नहीं करना चाहता; लेकिन न्याय देने में समय लगता है और इसे सही परिप्रेक्ष्य में ही लेना चाहिए।
सीजेआई बोबडे ने बताया कि देश में प्रति 10 लाख जनसंख्या पर 20 न्यायाधीश हैं, जबकि अधिकांश देशों में प्रति 10 लाख लोगों पर यह 50 से 80 न्यायाधीश हैं। उन्होंने यह भी कहा कि दायर मुकदमों की तुलना में न्यायाधीशों का अनुपात एक और परिप्रेक्ष्य है, जिस पर विचार किया जाना चाहिए।
आईपीसी में बदलाव के संकेत
इस बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने देश के लिए और अधिक अनुकूल बनाने के लिए आईपीसी और सीआरपीसी संशोधन करने के संकेत दिये हैं। इस बयान के बाद गृह मंत्रालय ने सभी राज्य सरकारों को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) को लेकर अपने सुझाव मँगवाये हैं ताकि लोगों को त्वरित न्याय प्रदान किया जाए। 8 दिसंबर, 2019 को पुणे में आयोजित पुलिस अधिकारियों के 54वें सम्मेलन में गृहमंत्री ने अपनी बात रखी।
9 दिसंबर को केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों को बलात्कार के मामलों को दो महीने के अंदर कानून के तहत जाँच प्रक्रिया पूरी कर ली जानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों की सुनवाई छ: महीने के भीतर पूरी कर ली जानी चाहिए। प्रसाद ने कहा- ‘मैं सभी मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखने जा रहा हूँ; जिसमें बलात्कार और बाल यौन शोषण के मामलों में दो महीने के भीतर जाँच पूरी करने का आग्रह किया गया है।’ प्रसाद ने कहा कि महिलाओं के साथ बलात्कार और अपराध की घटनाएँ दुर्भाग्यपूर्ण और बेहद निंदनीय हैं। उनकी यह टिप्पणी हैदराबाद और उन्नाव में सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामलों पर देशव्यापी आक्रोश के बाद आयी है। हालाँकि, उन्होंने कहा कि इस बारे में कानून और सख्त किये जाने पर केंद्र सरकार विचार कर रही है।
पुलिस पर दबाव
देश-भर की पुलिस को आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है; क्योंकि महिलाओं के िखलाफ अपराधों में विशेष रूप से बलात्कार और हत्याओं के मामले बढ़े हैं। जब भी इस तरह की कोई घटना होती है, तो पुलिस पर दबाव और बढ़ जाता है। हालाँकि, तेलंगाना में मुठभेड़ का पुलिस संस्करण एक सवालिया निशान खड़ा करता है कि कैसे पुलिस वाले निहत्थे आरोपियों को मार सकते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि न्याय वितरण प्रणाली खराब है। जब न्याय में देरी होती है, तो यह स्वाभाविक रूप से न्याय से वंचित करना होता है। बलात्कार के मामलों में न्याय में देरी भी वजह हो सकती है, क्योंकि इसका रिकॉर्ड भी सुधरा नहीं है। उदाहरण के लिए 1971 में सज़ा की दर 62 फीसदी थी; 1983 में 37.7 फीसदी; 2009 में 26.9 फीसदी और 2013 में 27.1 फीसदी रही।
हैदराबाद में महिला पशु-चिकित्सक के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या की एफआईआर दर्ज करने में भी दिक्कत हुई थी। बावजूद इसके पुलिस को कानून को अपने हाथों में लेने का अधिकार नहीं देता है और न्यायाधीशों के साथ-साथ जल्लादों को भी कार्य करने की अनुमति देता है। बुनियादी कानूनी भी यही कहता है। अपराध के मामलों की जाँच में शॉर्टकट नहीं हो सकते।
नृशंस बलात्कार और हत्या में बलात्कार के संदिग्धों की हत्या पर जिस तरह से लोगों ने खुशी मनायी और मुठभेड़ करने वाले •िाम्मेदार पुलिसकर्मियों पर गुलाब की पंखुडिय़ों बरसायीं, वह लोगों के बीच में त्वरित न्याय चाहत को दर्शाता है। ऐसे जाँबाज़ पुलिसकर्मियों का भव्य स्वागत भी किया गया। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने अन्य राज्यों में पुलिस से तेलंगाना पुलिस के उदाहरण का पालन करने की बात कही।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग
मीडिया रिपोर्ट के आधार पर पहले से ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने हैदराबाद में तडक़े आरोपियों का एनकाउंटर किये जाने का संज्ञान लिया है और जाँच शुरू कर दी है। एनएचआरसी की ओर से कहा गया है कि रिपोर्ट के अनुसार, सभी चार आरोपियों को जाँच के हिस्से के रूप में फिर से सीन रीक्रिएट करने के लिए हैदराबाद से 60 किलोमीटर दूर अपराध किये जाने वाली जगह पर ले जाया गया। पुलिस के अनुसार, आरोपियों में से एक ने दूसरे से पुलिसकर्मी का हथियार छीनने की कोशिश की और पुलिस पर गोलीबारी की। जवाबी कार्रवाई में चारों आरोपी मारे गये।
आयोग ने माना कि इस मामले की बहुत सावधानी से जाँच की आवश्यकता है। वारदात के तत्काल बाद अपने महानिदेशक (जाँच) को इस मामले की जाँच के लिए एक टीम को भेजा। एसएसपी की अध्यक्षता में आयोग के जाँच टीम पड़ताल करने के बाद आयोग को रिपोर्ट सौंपेगी। आयोग ने पहले ही सभी राज्य सरकारों और पुलिस प्रमुखों के साथ-साथ केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय से महिलाओं के साथ अत्याचार व बलात्कार के मामले में एक विस्तृत रिपोर्ट माँगी है। तेलंगाना के ताज़ा हैवानियत के मामले और फिर आरोपियों का एनकाउंटर सहित कई ऐसे मामलों ने आयोग को मामले में हस्तक्षेप करने को मजबूर किया। एनकाउंटर की यह घटना बताती है कि पुलिसकर्मी मौके पर आरोपियों की ओर से किसी भी अप्रिय गतिविधि के लिए चौंकन्ने नहीं थे। इसी के चलते चारों आरोपी मारे गये। पुलिस ने जाँच के दौरान आरोपियों को गिरफ्तार किया था और अभी अदालती सुनवाई होनी थी। अगर गिर तार किये गये आरोपी सचमुच दोषी थे, तो उन्हें न्यायालय के निर्देशों के अनुसार कानून के तहत सज़ा दी जानी थी।
हिरासत के दौरान पुलिसकर्मियों के साथ कथित मुठभेड़ में चार आरोपियों की मौत आयोग के लिए चिन्ता का विषय है। आयोग इस बात से अवगत है कि महिलाओं के िखलाफ यौन उत्पीडऩ और हिंसा की बढ़ती घटनाओं ने जनता में बड़े पैमाने पर भय और गुस्से का माहौल पैदा किया है; लेकिन कानून के तहत पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये गये शख्स की मौत को उचित नहीं ठहराया जा सकता। इससे समाज में गलत संदेश जाता है।
आयोग ने पहले ही बता दिया है कि पुलिस अधिकारियों द्वारा घबराहट की स्थिति में किसी को मार देने में ज़रूरी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। आयोग सभी कानून लागू करने वाली एजेंसियों से आग्रह कर रहा है कि उनके द्वारा गिरफ्तार किये गये व्यक्तियों के साथ उचित व्यवहार करें साथ ही हिरासत में रखे जाने के दौरान मानवाधिकारों का पालन किया जाए। भारतीय संविधान में जीवन और समानता का अधिकार मौलिक अधिकारों में शामिल है।
अधिकारियों को स्वराज्य से सुराज की ओर जाना होगा
उप राष्ट्रपति ने कहा कि अधिकारियों को स्वराज्य से सुराज की ओर जाना होगा। इस दौर में बेहद ज़रूरी है कि भ्रष्टाचार मुक्त सुशासन जो नागरिकों के हितों की चिन्ता करे और उनकी मदद के लिए हमेशा काम करे। नायडू ने अफसरों से सरकार की नीतियों को धरातल पर मूर्तरूप में साकार करने में भूमिका निभाने का भी आह्वान किया।
बच्चों को सिखाएँ महिलाओं का सम्मान करना
नायडू ने शिक्षकों से बच्चों को महिलाओं का सम्मान करने की सीख देने की भी अपील की। साथ ही शिक्षण संस्थानों से माँग रखी कि इस विषय को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए और ज़रूरी तौर पर बच्चों को हमारे मूल्यों के बारे में बताया जाए।