कोरोना वायरस की तीसरी लहर के आने की बात हो रही है और सरकारें उससे निपटने की तैयारियों का दावा करने के साथ-साथ आँकड़ों में उलझी हुई हैं। लेकिन हक़ीक़त में कोरोना को लेकर लोगों में डर ख़त्म होता जा रहा है। क्योंकि जनमानस के बीच यह बात फैल रही है कि कोरोना का कहर कम और अधिक बताना सियासी लोगों के हाथ में है। वहीं कुछ राज्य सरकारें भी कोरोना को मानने को तैयार नहीं हैं। एकाध राज्य को छोडक़र अन्य राज्य सरकारों ने बाज़ार, स्कूल खोल दिये हैं। इधर सरकार और स्वास्थ्य विभागों के दावे डराने वाले हैं कि कोरोना की तीसरी लहर अक्टूबर-नबंवर में आ सकती है। कोरोना को लेकर जानकारों और डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना वायरस पर अभी शोध ही चल रहा है। इसलिए पक्के तौर पर यह नहीं कहा जा सकता कि कोरोना का कहर कम हो गया। इसका कहर कब भयानक रूप ले ले, किसी को नहीं पता।
कोरोना वायरस नये-नये रूपों में भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों में फैल रहा है। ऐसे में दुनिया भर में इससे निपटने के लिए नये-नये टीके र्इज़ाद हो रहे हैं। हालाँकि भारत में अभी तक पहले चरण का टीकाकरण भी पूरा नहीं हुआ है, जो सरकारी तंत्र में कमियों का स्पष्ट उदाहरण है। सरकारें अस्पतालों के नाम पर बहुमंज़िला इमारतें तो बना देती हैं। उन पर अच्छा-ख़ासा बजट भी ख़र्च करती हैं; लेकिन ज़रूरत के मुताबिक डॉक्टर, पैरामेडिकल कर्मचारी और नर्स की नियुक्ति नहीं करतीं, जिसके चलते मरीज़ों को उचित इलाज नहीं मिल पाता। उत्तर प्रदेश में फैले डेंगू और दूसरे बुख़ार से मरते बच्चे इसका ताज़ा उदाहरण है। कोरोना वायरस से भी अधिकतर मरीज़ों की मौतें चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में हुईं। अप्रैल, 2020 में जब कोरोना वायरस की पहली लहर आयी थी, तब स्वास्थ्य व्यवस्था बुरी तरह चरमरायी हुई थी। यहाँ तक कोरोना की दूसरी लहर आने तक भी स्थिति अच्छी नहीं थी। कितने ही मरीज़ ऑक्सीजन, दवाओं और बेड की कमी और इनकी कालाबाज़ारी के कारण दम तोड़ गये। ज़रूरतमंदों को एक-एक सिलेंडर लाखों रुपये में लेने को मजबूर होना पड़ा। देश के महानगरों से लेकर ज़िला स्तर के अस्पतालों तक ऑक्सीजन का टोटा देखा गया। जिन अस्पतालों को बड़ा और बेहतरीन माना जाता था, उनमें तक मरीज़ों को इलाज के लिए जूझना पड़ा। सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि सरकारी अधिकारियों से लेकर सांसदों, विधायकों और मंत्रियों तक के परिजनों को इलाज और ऑक्सीजन की कमी के चलते इधर-उधर अस्पतालों में भटकना पड़ा।
मौज़ूदा हालात भले ही डरावने न हों, लेकिन पश्चिम बंगाल, ओडिशा, महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक और मिजोरम में कोरोना वायरस के मामलों में शनै:-शनै: बढ़ोतरी डर पैदा करती है। वहीं कोरोना-काल में निपाह जैसे मामले और घातक साबित हो सकते हैं। क्योंकि केरल और हैदराबाद में निपाह से एक-एक व्यक्ति की मौत हो चुकी है। उत्तर प्रदेश में भी डेंगू और दूसरे बुख़ार से सैकड़ों बच्चे मर गये। अगर दिल्ली-एनसीआर में डेंगू ने पैर पसारे, तो कोरोना महामारी में समस्या विकराल रूप ले सकती है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पूर्व संयुक्त सचिव डॉ. अनिल बंसल का कहना है कि जिन राज्यों की अबादी छ: करोड़ से लेकर 20 करोड़ तक हो और वहाँ पर कोरोना महामारी के केवल दो से आठ ही मामले ही आ रहे हों, तो ये आँकड़े जनता को गुमराह करने वाले हैं।
डॉ. अनिल बंसल का कहना है कि टीकाकरण भी हो रहा है और आरटी-पीसीआर जाँच भी चल रही है। लेकिन व्यापक स्तर पर इन्हें करना होगा, अन्यथा अगर कोरोना की तीसरी सम्भावित लहर आ गयी, तो हम वहीं खड़े मिलेंगे, जहाँ अप्रैल-मई में खड़े थे। स्वास्थ्य सेवाएँ नाक़ाफी साबित होंगी।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान (एम्स) के कोविड-19 के एक्सपर्ट डॉ. आलोक कुमार कहते हैं कि कोरोना महामारी का दौर चल रहा है। अभी भी दुनिया के कई देशों में कोरोना महामारी काल बनकर खड़ी है। सार्स-सीओवी-2 का संक्रमण का डेल्टा रूप तेज़ी से लोगों पर हमला करता है। ऐसे में जिन राज्यों में डेल्टा वायरस के मामले आ रहे हैं, वहाँ अधिक सतर्क रहने की ज़रूरत है। मैक्स अस्पताल के कैथ लैब के डायरेक्टर डॉ. विवेका कुमार का कहना है कि कोरोना का कहर लगातार जारी है। ऐसे में हमें हृदय रोग सहित अन्य रोगों के प्रति ज़्यादा सावधानी बरतनी होगी। कोरोना की बूस्टर ख़ुराक को लेकर शोध किया जा रहा है। बूस्टर बनने पर हरी झण्डी के मिलते ही इसे लगाने की स्वकृति मिलेगी। लेकिन मौज़ूदा दौर में हमें बूस्टर आने तक कोरोना के टीकाकरण पर ज़ोर देना होगा। क्योंकि कोरोना-टीके से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इंडियन हार्ट फाउंडेशन के चेयरमैन डॉ. आर.एन. कालरा का कहना है कि जहाँ-जहाँ कोरोना वायरस का कहर अभी भी जारी है, वहाँ वह दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। महाराष्ट्र में स्थिति और भी नाज़ुक है। ऐसे में सरकार को तीसरी लहर को लेकर अपनी स्वास्थ्य सेवाएँ और मज़ूबत करनी होंगी, अन्यथा कोरोना महामारी और कहर ढा सकती है। कोरोना वायरस को लेकर सरकार की सख़्ती काग़ज़ों में है, न कि ज़मीनी स्तर पर। अस्पतालों में सुविधाओं का अभाव उसी तरह है, जैसे कोरोना वायरस के पहली बार आने पर था।