चार साल पुराने पितृत्ववाद में 32 वर्षीय रोहित शेखर को एक बड़ी सफलता मिल गई. एनडी तिवारी ने जांच के लिए अपने खून के नमूने दे दिए हैं. आन्ध्रप्रदेश के पूर्व राज्यपाल 86 वर्षीयतिवारी उच्च न्यायालय के सात आदेशों के बाबजूद डीएनए टेस्ट के लिए अपने खून का नमूना न देने के लिए बहाने बनाते हुए कानूनी लड़ाई को लंबा खींच रहे थे.
तिवारी के उच्च सम्पर्कों और पंहुच के बाद भी रोहित को न्यायालय की निगरानी और हैदराबाद स्थित सीडीएफडी पर पूरा भरोसा है.उनकी मां उज्जवला शर्मा का दावा है कि यदि सब कुछ ईमानदारी से चला तो शेखर की जीत होगी. रोहित शेखर ने न्यायालय में मामला दायर कर तिवारी को अपना जैविक पिता बताया था. तिवारी उनके इस दावे को झुठलाते हुए कानूनी लड़ाई को लंबा खींचते हुए खून का नमूना देने से बच रहे थे.
उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार और देहरादून के जिला जज की मौजूदगी में तिवारी ने नियत समय पर देहरादून जिला अस्पताल के डाक्टरों और सी.डी.एफ.डी के फोरंसिक विशेषज्ञों को खून का नमूना दे दिया. देहरादून के भारतीय वनसंस्थान स्थित तिवारी के आवास पर ये नमूने रोहित शेखर और उनकी मां उज्जवला शर्मा की मौजूदगी में लिए गए.
शेखर बताते हैं कि आज जब न्यायालय के आदेश पर उनका जब तिवारी से मिलन हुआ तो तिवारी ने उनसे निष्ठुरता से पूछा कि रोहित शेखर आपकी पड़ाई कैसी चल रही है? शेखर बताते हैं, ‘मैंने कहा कि आपकी कृपा से पिछले पांच-छह सालों से कोर्टों में धक्के खाते-खाते मैं काफी कानून सीख गया हूं. वे आगे बताते हैं कि तिवारी जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे तो शुरु-शुरू में वे और उनकी मां मुख्यमंत्री आवास आते थे. उनका दावा है कि, तिवारी के सभी अधिकारी और कर्मचारी इस रिश्ते का सच जानते थे .शेखर बताते हैं, ‘बात में हमसे कहा जाने लगा कि हम बिना अप्वाइंटमेंट के उनसे नहीं मिल सकते. हमें तो बड़ा धक्का लगा. एक पुत्र को अपने पिता से मिलने के लिए समय लेना पड़ेगा. तिवारी मुझे बंद कमरे में तो अपना पुत्र बताते थे और बाहर आते ही अजनबी जैसा व्यवहार करते थे.‘ शेखर कहते हैं कि तिवारी चूंकि इस संबंध को स्वीकार नहीं कर रहे थे इसलिए वे निराश और कुंठित हो गए थे.
इस दोहरे व्यवहार और तिवारी के निष्ठुरपन से चोट खाए शेखर की दशा देख कर उनके नाना प्रोफेसर शेर सिंह ने प्रधानमंत्री सहित अन्य नेताओं को अपनी पुत्री और शेखर को उसका अधिकारदिलाने के लिए पत्र लिखे थे. शेर सिंह केन्द्रीय रक्षा राज्य मंत्री और संयुक्त पंजाब के उप-मुख्यमंत्री रह चुके थे. इन पत्रों को लिखने औरबात के सार्वजनिक होने पर भी कुछ न होने पर शेखर न्यायालय की शरण में गए. शेखर मानते हैं कि उनकी मुहिम के कारण ही तिवारी की 2007 में राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी को धक्का लगा.
शेखर से जब तहलका ने यह पूछा कि, वे नाम के लिए या पहचान के लिए यह लड़ाई लड़ रहे हैं तो उन्होंने जवाब दिया कि दोनों के लिए. उन्होंने सवाल दागा, किसे अच्छा नहीं लगेगा कि उसका पिता मुख्यमंत्री हो.’ वे कहते हैं कि, मुकदमा जीतने के बाद वे न्यायालय के माध्यम से ही अपने हर हक की लड़ाई लड़ेगें. शेखर को भरोसा है कि तिवारी की उन्हें सार्वजनिक रुप से पुत्र न मानने की जिद और घमंड से न्यायालय में जीतने के बाद तिवारी और कानूनी मुसीबतों में फंसेगे.