डाल से आगे पात की दौड़

ईश्वर विशाल ताकतवर सेना का साथ नहीं देता, वह सही समय पर सटीक वार करने वाले का साथ देता है : वॉल्तेयर

सोलहवीं सदी के मशहूर फ्रांसीसी दार्शनिक फ्रैंकस्वे मेरी ऑरवे उर्फ वॉल्तेयर ने ये शब्द इंग्लैंड और फ्रांस के बीच जारी सनातन संघर्ष पर कहे थे. ताकतवर भारतीय लोकतंत्र के विशाल शोरूम (लुटियन जोन) में पिछले दिनों अन्ना हजारे के समर्थन में जगह-जगह और समय-समय पर उमड़ा जनसमूह जाने-अनजाने ही वॉल्तेयर के एक-एक शब्द की बानगी बन गया. अक्टूबर, 2010 में फेसबुक के एक पन्ने से शुरू हुआ इंडिया अगेन्स्ट करप्शन (आईएसी) का जन लोकपाल आंदोलन अगस्त, 2011 में यदि सरकार के गले में हड्डी बनकर अटक गया तो इसके पीछे की वजहें वही थीं जिन्हें वॉल्तेयर ने जरूरी माना था यानी सही समय पर सटीक वार और एक बार नहीं बल्कि बार-बार.

एक तरफ आईएसी या टीम अन्ना थी जिसने शुरुआत से ही एक-एक कदम नाप-तौल कर आगे बढ़ाया तो दूसरी तरफ ताकतवर सरकार थी जो अपने लचर, टालू, और घमंडी रवैये के कारण कदम-कदम पर धूल फांकने को मजबूर हुई. पहले तो सरकार ने इस आंदोलन को तवज्जो देना ही उचित नहीं समझा, बाद में जब जनता पूरे देश में सड़कों पर उतर गई तब दबाव में आकर ‘ठीक है, चलो बात कर लेते हैं’ वाले अंदाज में बातचीत के लिए तैयार हुई. नतीजा, अप्रैल में सिविल सोसाइटी और केंद्र सरकार के नुमाइंदों को जोड़कर बनी लोकपाल की मसौदा समिति बेनतीजा रही. अन्ना हजारे ने एक बार फिर से 16 अगस्त से अनशन पर बैठने की घोषणा कर दी. वे अनशन पर बैठे और सरकार को उसके घुटनों पर लाने और काफी हद तक अपनी बात मनवाने में सफल भी रहे. इस बीच जनता के बीच लगातार यह संदेश गया कि सरकार किसी भी कीमत पर आंदोलन को खत्म करने का काम कर रही है और मजबूत लोकपाल विधेयक से मुंह चुरा रही है. टीम अन्ना द्वारा कदम-कदम पर उठाए गए कदमों ने सरकार को बगलें झांकने पर मजबूर किया.

अप्रैल में अन्ना के जंतर-मंतर पर अनशन पर बैठने के बाद से ही इंडिया अगेन्स्ट करप्शन की रणनीति बेहद आक्रामक, प्रोएक्टिव और नवीनता से लैस थी. मीडिया को कैसे संभालना है, सोशल मीडिया की ताकत का इस्तेमाल कैसे हो, देश भर में एक साथ धरना, गिरफ्तारी जलूस कैसे निकले, विरोध के नए-अनोखे तरीके कैसे अपनाए जाएं, जैसी तमाम बारीकियों पर बेहद गंभीरता के साथ काम करने वाली एक समर्पित टीम इस अभियान के पीछे खड़ी रही. इस टीम के सदस्य बेहद पेशेवर लोग थे. किसी ने अपनी मोटी कमाई वाली आईटी की नौकरी छोड़ी, तो कोई पत्रकारिता का अच्छा-खासा करियर दांव पर लगाकर अन्ना के साथ जा खड़ा हुआ. कांग्रेस पार्टी और सरकार के नुमाइंदे जब इस आंदोलन के पीछे विदेशी शक्तियों का हाथ होने के आरोप लगा रहे थे तब हमने अरविंद केजरीवाल, प्रशांत भूषण और किरण बेदी जैसे चर्चित नामों से इतर इस आंदोलन के पीछे की असली ताकत यानी टीम अन्ना और उसके काम काज के बारे में जानने की कोशिश की.

­टीम अन्ना दो कदम आगे

अन्ना की कोर टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं पूर्व पत्रकार मनीष सिसोदिया. इन्हीं की देखरेख में जन लोकपाल आंदोलन से जुड़ी मीडिया टीम ने काम किया. टीम के ही एक सदस्य के मुताबिक सोलह तारीख को अनशन शुरू होने से पहले प्रेस ब्रीफिंग से लेकर सभी लाइव कार्यक्रमों के लिए समय और दिन का बारीकी से ख्याल रखा गया. मसलन, समाचार चैनलों पर आने वाले दोपहर के सास-बहू कार्यक्रम के दौरान कोई भी कार्यक्रम आयोजित करने से परहेज किया गया. शाम को जब चैनलों का टीआरपी मीटर क्रिकेट को समर्पित होता है उस दौरान भी कोई लाइव कार्यक्रम आयोजित नहीं किया जाता था. रविवार और छुट्टियों के दिन आयोजन से बचने की कोशिश रहती थी. इंडिया अगेन्स्ट करप्शन वेबसाइट के सूत्रधार रहे नवभारत टाइम्स के पूर्व पत्रकार शिवेंद्र सिंह चौहान अभियान की एक रणनीति के बारे में बताते हैं, ‘अप्रैल में जंतर-मंतर पर अन्ना का अनशन खत्म होने के बाद मसौदे पर विचार के लिए संयुक्त समिति का गठन हो गया, मीटिंग का सिलसिला शुरू हो गया. इन तीन महीनों के दौरान हमारा अभियान काफी ढीला रहा. तब हमारी रणनीति थी कि हर दिन कुछ न कुछ करते रहा जाए ताकि जनता के दिमाग से आंदोलन की बात निकलने न पाए. शहर-शहर में लोगों के साथ संवाद, उनके सुझाव, मीडिया के साथ लगातार बातचीत से आंदोलन हमेशा जीवंत बना रहा.’

इंटरनेट का जितना सफल इस्तेमाल इस बार हुआ है वह भविष्य के आंदोलनों के लिए मार्गदर्शक हो सकता हैमीडिया प्रबंधन टीम की एक और महत्वपूर्ण योजना भाषाई मीडिया को लेकर रही है. टीम अन्ना के सदस्यों ने हरसंभव कोशिश करके हिंदी मीडिया को सबसे ज्यादा समय दिया. मीडिया से बातचीत के दौरान हिंदी में ही बातचीत को तवज्जो दी गई. टीम की स्पष्ट राय रही कि आम जनता की भाषा हिंदी है और टीवी चैनलों के माध्यम से जुड़े उनके अधिकतर समर्थक हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में ही खबरें देखते हैं. यह रणनीति बेहद कारगर भी रही. इसके उलट सरकार का रवैया बेहद ढुलमुल और थकाऊ था. मीडिया को सफलता से साधने की रणनीति के बारे में पूछने पर मनीष सिसोदिया का बहुत विनम्रता से कहना था, ‘हमारी रणनीति सिर्फ अन्ना और हमारी टीम की ईमानदारी पर टिकी है. यह अभियान ईमानदारी की बुनियाद पर खड़ा हुआ है और सच्चाई इसकी ताकत है.’ मीडिया को सफलतापूर्वक साधने की रणनीति टीम अन्ना की प्रेसवार्ताओं में भी दिखाई पड़ती है जहां ज्यादातर सदस्य हिंदी में ही बातचीत को तवज्जो देते हैं और स्वयं अन्ना भी समय-समय पर मीडिया के लोगों को उनके सहयोग के लिए मंच से बधाई देना नहीं भूलते.

मनीष सिसोदिया, अस्वथी मुरलीधरन, विभव कुमार जैसे पत्रकार अपने अनुभवों का पूरा इस्तेमाल मीडिया प्रबंधन में करते हैं. एसएमएस और ईमेल के जरिए देश भर के मीडिया समूहों को हर दिन की खबर पहुंचाना इसी टीम की जिम्मेदारी है. देश भर के किसी हिस्से में अगर आप विरोध करना चाहते हैं तो वहां किससे संपर्क करें, विरोध का स्वरूप कैसा होगा आदि सभी जानकारियां इंडिया अगेन्स्ट करप्शन की वेबसाइट और प्रेस रिलीज के जरिए लोगों तक पहुंचा दी जाती हैं. सरकारी प्रेस रिलीज की अनुवादित और क्लिष्ट भाषा के विपरीत यदि आईएसी की कोई प्रेस रिलीज देखें तो इसमें स्पष्टता, सफाई, सरलता और पेशेवर नजरिया साफ दिखाई पड़ता है. आईएसी के नेशनल कोऑर्डिनेटर का काम संभाल रहे नीरज कुमार बताते हैं,’जैसे ही यहां किसी जलूस, प्रदर्शन या तरीके पर फैसला होता है हम पूरे देश में लोगों को इसकी जानकारी पहुंचा देते हैं ताकि एक साथ सही समन्वय के साथ  देश भर में यह अभियान संपन्न हो. इससे आंदोलन की विशालता और एकजुटता का अहसास होता है.’  

अन्ना हजारे का आंदोलन जिस विकराल रूप में दिखा उसकी जड़ें इंटरनेट के जमाने में ताकतवर हथियार बनकर उभरे सोशल मीडिया से भी जुड़ी हैं. अक्टूबर, 2010 में शिवेंद्र सिंह चौहान ने इंडिया अगेन्स्ट करप्शन के नाम से फेसबुक पर एक पेज बनाया था और उसी समय अरविंद केजरीवाल प्रस्तावित सरकारी लोकपाल बिल का विरोध करने की योजना बना रहे थे. संयोग से हुआ यह मिलन आज जिस मुकाम पर खड़ा है उसे बताने की जरूरत नहीं है. शिवंेद्र बताते हैं, ‘मैंने साइट के अस्तित्व में आने के बाद से हर दिन इस पर 16 से 18 घंटे तक काम किया. हर दिन देश भर में भ्रष्टाचार के खिलाफ होने वाले हर छोटे-बड़े आंदोलन को इंडिया अगेन्स्ट करप्शन से जोड़ने के लिए यह जरूरी था. लोगों को पल-पल की खबर इसके जरिए आसानी से मिल रही थी, जिसके चलते इंडिया अगेन्स्ट करप्शन का दायरा बहुत तेजी से देशव्यापी हो गया. आज आईएसी के 60 देशी और चार विदेशी चैप्टर हैं.’

आंदोलन से सहमति रखने वाले हर व्यक्ति ने अपनी दक्षता का लाभ टीम अन्ना को पहुंचायाइंटरनेट पर उपलब्ध लगभग सभी हथियारों का जितना सफल इस्तेमाल इस आंदोलन में हुआ है वह भविष्य के आंदोलनों के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो सकता है. ट्विटर इसका एक नमूना है जहां इंडिया अगेन्स्ट करप्शन से सहानुभूति रखने वाले सभी लोग पल-पल की खबरंे प्रसारित करते रहे. इनमें फिल्मी सितारों से लेकर किरण बेदी और श्री श्री रविशंकर जैसे लोग शामिल रहे. यह कहना गलत नहीं होगा कि अन्ना का आंदोलन जितना जंतर-मंतर, इंडिया गेट और रामलीला मैदान पर लड़ा जा रहा था उतना ही इंटरनेट की  दुनिया में भी लड़ा जाता रहा. 16 अगस्त को जब अन्ना के साथ पुलिस ने बाबा रामदेव वाली चाल चलने की कोशिश की तब इसकी ताकत का अंदाजा सभी को हुआ. तिहाड़ जेल में श्री श्री रविशंकर की अन्ना से मुलाकात की फोटो देखते ही देखते पूरे देश में फैल गई और भीड़ एक साथ तिहाड़ से लेकर इंडिया गेट तक सड़कों पर आ गई. किरण बेदी ने भी अपने मोबाइल फोन पर अन्ना का संदेश रिकॉर्ड करके उसे यूट्यूब पर डाल दिया, जिसे टीवी चैनलों ने घर-घर पहुंचा दिया.   

करेक्शन यानी सुधार टीम का एक और मंत्र है. अन्ना के सहयोगी ऐसे हर मौके पर तुरंत ही सुधार की पहल करते हैं जहां किसी तरह की चूक या आलोचना की गुंजाइश हो. मोदी की तारीफ पर जब विरोधियों ने अन्ना को आड़े हाथों लिया तब तुरंत ही टीम की तरफ से सफाई आई कि वे किसी भी सांप्रदायिक व्यक्ति का समर्थन नहीं करते. अन्ना ने सिर्फ मोदी के विकास कार्यों की तारीफ की है और वे मोदी के प्रशंसक कतई नहीं है. इसी प्रकार जंतर-मंतर पर अन्ना के अनशन के दौरान जब भारत माता की तस्वीर को लेकर आरोप लगे कि अन्ना आरएसएस का मुखौटा मात्र हैं तो हमेशा एक कदम आगे रहने वाली टीम अन्ना ने रामलीला मैदान में विरोधियों के इस बाउंसर पर छक्का दे मारा. यहां अन्ना के पीछे महात्मा गांधी चित्र में मौजूद थे. जब विरोधी आरोप से बाज नहीं आए तब इंडिया अगेन्स्ट करप्शन ने अन्ना के नैतिक बल का सहारा लिया. वही नैतिक बल जिसके जोर पर अन्ना रामलीला मैदान से आह्वान करते हैं, ‘मेरे पीछे आरएसएस का हाथ होने का आरोप लगाने वालों को मेंटल हॉस्पिटल भेजने की जरूरत है.’ सावधानी का आलम यह है कि राजू श्रीवास्तव, रघुवीर यादव, कैलाश खेर जैसे लोग मंच पर नजर आते हैं और वरुण गांधी जैसे लोग मंच के सामने दरी पर बैठते हैं.

नएपन ने इस पूरे आंदोलन को न सिर्फ जीवंत बनाया बल्कि सरकार को कदम दर कदम मुंह की खाने पर भी मजबूर किया. विरोध के नए तरीके ईजाद करने के लिए कोई अलग टीम नहीं है. लगभग 22 सदस्यों के कोर ग्रुप वाली टीम की हर सुबह होने वाली मीटिंग में ही उस दिन की योजनाओं की चर्चा होती है. मीडिया प्रबंधन कर रही अस्वथी मुरलीधरन के मुताबिक, ‘हर सदस्य विरोध के नए-नए विचार रखता है. जो आइडिया पसंद आ जाता है उस पर अमल करने की रणनीति बनती है. इसके बाद मीडिया, सोशल मीडिया और मंच से उसकी जानकारी सभी को दे दी जाती है. ‘जब सरकार इनकार की मुद्रा में थी तब अन्ना ने लोगों से थाली- चम्मच पीटते हुए इंडिया गेट तक मार्च करने के लिए कहा. यह मार्च की बात थी.   इसके बाद तीन महीनों तक आंदोलन को जीवंत बनाए रखने के लिए देश भर में पदयात्रा का निर्णय लिया गया. 15 अगस्त आते-आते टीम ने एक के बाद एक इतने सरप्राइज दिए कि सरकार भी सकते में आ गई. अन्ना हजारे चुपचाप राजघाट पर जा बैठे. पूरा फोकस प्रधानमंत्री के लालकिले से संबोधन की बजाय अन्ना के राजघाट अभियान पर आ गया. शाम आठ बजे से नौ बजे तक ब्लैक आउट का आह्वान कर दिया गया. शहर के कुछ इलाके पीक ऑवर में अंधेरे में डूब गए. मानो इतना ही काफी नहीं था. टीम ने विरोध का एक नया रास्ता खोज निकाला. लोग दिन में कारों और मोटरसाइकिलों की हेडलाइट जलाकर चलने लगे.

अब सरकार के लिए सहना मुश्किल हो गया था. अगली सुबह अन्ना को उनके घर से गिरफ्तार कर लिया गया. सरकार के फिसलने और फिर लुढ़कते चले जाने की यह शुरुआत थी. टीम के सदस्यों को अन्ना की गिरफ्तारी का अंदेशा पहले से था, इसलिए उन्होंने पहले से ही अन्ना का एक बयान रिकॉर्ड करके रख लिया था. गिरफ्तारी के बाद इस रिकॉर्डिंग ने टीवी चैनलों के माध्यम से गजब ढा दिया. जनता ने सड़क पर उतर कर सरकार की नाक में दम कर दिया. अब सरकार ने फिर उल्टी चाल चली और अन्ना को रिहा करने का आदेश दे दिया. यहां एक बार फिर से टीम अन्ना ने तुरुप की चाल चली और सरकार चारों खाने ढेर हो गई. अन्ना ने तब तक तिहाड़ से बाहर नहीं आने की घोषणा कर दी जब तक उन्हें सार्वजनिक रूप से अनशन करने की इजाजत नहीं दी जाती.

अन्ना ने रामलीला मैदान में अनशन शुरू कर दिया. टीम की मीटिंग में फिर से एक विचार जन्मा. विचार था दिल्ली समेत देश भर में सांसदों के निवास स्थानों पर जाकर लोग धरना दें. यह विचार टीम को आमिर खान ने दिया. सांसदों को घेरने की रणनीति कामयाब रही. कुछ लोगों को अपनी जमीन दरकती नजर आई. महाराष्ट्र जहां से अन्ना आते हैं वहां उनके समर्थकों की संख्या विशाल है लिहाजा कोई आश्चर्य नहीं कि प्रिया दत्त, मिलिंद देवड़ा, दत्ता मेघे और संजय निरूपम जैसे कांग्रेसियों ने अन्ना की लुकाठी उठा ली. निरूपम तो तीन दिन पहले ही अन्ना को संसद भवन में पानी पीकर कोस रहे थे लिहाजा उनके राजनीतिक उत्परिवर्तन पर विश्वास करना थोड़ा मुश्किल है.

आंदोलन से सहमति रखने वाले हर व्यक्ति ने अपनी दक्षता का लाभ टीम अन्ना को पहुंचाया. सटीक चुनावी विश्लेषणों के लिए पहचाने जाने वाले योगेंद्र यादव ने टीम को जनमत संग्रह का विचार दिया. योजना काम कर गई. कपिल सिब्बल के चुनाव क्षेत्र में 85 फीसदी लोग जन लोकपाल के पक्ष में थे तो राहुल गांधी के अमेठी में जनता पांच कदम आगे यानी 90 फीसदी समर्थन कर रही थी.

पारदर्शिता एक और हथियार है. टीम अन्ना ने हर मौके और हालात की जानकारी लोगों के सामने रखी. इससे कभी भी उनके ऊपर भीतरखाने में लेन-देन या गुपचुप समझौता करने के आरोप नहीं लग सके. गौरतलब है कि बाबा रामदेव के आंदोलन में यह एक बड़ी समस्या रही थी. टीम ने कदम-कदम पर इस हथियार से सरकार को मात दी. 24 अगस्त की रात जब प्रणब मुखर्जी के साथ टीम अन्ना की बात टूट गई थी और रामलीला मैदान में पुलिस की गतिविधियां बढ़ गई थीं तब पारदर्शिता की इस रणनीति ने ही सरकार को बैकफुट पर ढकेला. अन्ना को रात साढ़े ग्यारह बजे उठाकर मंच पर लाया गया. इसके बाद वित्तमंत्री को रात के बारह बजे प्रेस से बात करके अपनी स्थिति स्पष्ट करनी पड़ी. जब-जब सरकार ने अन्ना के खराब स्वास्थ्य के चलते अपनी स्थिति कठोर करनी चाही तब-तब टीम पूरी योजना के साथ अन्ना को मंच पर लेकर आती रही. इस काम में डॉक्टरों का भी बड़ी चतुराई से इस्तेमाल किया गया. अनशन के सातवें दिन जाहिर है अन्ना की तबीयत पर डॉक्टर चिंता जाहिर करते, इससे सरकार पर दबाव बढ़ा. मगर जैसे ही सरकार ने इसका फायदा उठाने का प्रयास किया अन्ना ने स्वयं मंच पर आकर घोषणा कर दी कि उनकी तबीयत ठीक है और उन्हें नौ दिन और कुछ नहीं होगा.       

उधर सरकार के संकट प्रबंधक और सरकार से सहानुभूति रखने वाले अंग्रेजीदां लोग टीवी चैनलों पर इसे मध्यवर्ग का आंदोलन बताकर नकारते फिर रहे थे. एक लिहाज से ऐसा था भी. आंदोलन में उमड़ रही भीड़ का मोटा हिस्सा ऐसा था जिसे सरकार की उन नीतियों से कोई कष्ट नहीं है जिनसे दांतेवाड़ा के आदिवासियों की जमीन कॉरपोरेट कंपनियों के नाम हो जाती है, बैठे बिठाए लोग भूमिहीन मजदूर बन जाते हैं, अंधाधुंध दस्तखत होने वाले एमओयू से उसे कोई दिक्कत नहीं है, दिक्कत है सिर्फ इस बात से कि उसे अपने काम के लिए जेब से रुपया ढीला करना पड़ता है. इस लिहाज से आंदोलन का दायरा बेहद सीमित रहा. अन्ना ने इसे आगे बढ़ाते हुए अब चुनाव सुधार से लेकर भूमि सुधार तक फैलाने का संकेत दिया है. लेकिन सिर्फ इसी वजह से उन लोगों को इतने बड़े आंदोलन को नकारने की छूट नहीं मिल सकती जिन्हें हजार-पांच सौ की भीड़ इकट्ठा करने के लिए भी मुर्गा-दारू बंटवाने की जरूरत पड़ती है. एक बात और, भारत में मध्यवर्ग भी बीस करोड़ हैं, क्या वोट के लिए किसी भी समय शीर्षासन करने को तैयार बैठे लोगों में इतनी बड़ी संख्या को नजरअंदाज करने का साहस है?