रेलवे की सख़्ती के बावजूद स्टेशनों पर रहता है दलालों का जमावड़ा
महँगाई के इस दौर में अब ट्रेन से सफ़र करना आसान नहीं रह गया है। हर ट्रेन में बहुत भीड़ तो रहती है; लेकिन अब टिकट कराना भी आसान नहीं रह गया है। किसी भी स्टेशन पर जाइए, दलाल खुलेआम टिकट कराने का ऑफर देते नज़र आते हैं। लेकिन अगर टिकट खिडक़ी पर जाओ, तो अमूमन एक ही जवाब मिलता है- सीट ख़ाली नहीं है।
हाल ही में 9 अप्रैल को जब पूजा नाम की एक युवती, जो कि मेरे आगे ही टिकट के लिए एक रेलवे स्टेशन पर लगी थी, उसने 17 मई के लिए बिहार के लिए रिजर्वेशन का फॉर्म टिकट कलेक्टर को बढ़ाया, तो उसने यह कहते हुए फॉर्म लौटा दिया कि ‘सीट ख़ाली नहीं है, चार महीने पहले ही बुकिंग करा लिया करो।’ वहीं स्टेशन परिसर में घूम रहे दलाल ने उस लडक़ी से कहा कि टिकट हो जाएगा, मगर हर टिकट पर 800 रुपये एक्स्ट्रा लगेंगे।
जब उस दलाल से मैंने बात की, तो पहले तो उसने नाराज़गी जतायी और आनाकानी करते हुए कहने लगा कि आपको टिकट कराना है, तो कराओ; नहीं तो रास्ता नापो। लेकिन तरीक़े से बात करने पर धीरे-धीरे उसने एक-एक करके कई राज़ उगले। लेकिन जब उसे पता चला कि मैं मीडिया से हूँ, तब। इस दलाल ने अपना नाम उजागर न छापने की शर्त पर बताया कि मैडम हमारे सेंटर बने होते हैं, जहाँ से टिकट की ब्लैकमेलिंग का धंधा चलता है। जो पैसा टिकट कराने का हम एक्स्ट्रा लेते हैं, उस पैसे में हमारा हिस्सा सिर्फ़ 20 से 25 टका होता है।
यह पूछे जाने पर कि जब सीट ही नहीं है, टिकट कलेक्टर भी मना कर रहा है, तो आप टिकट कैसे करा पाते हैं? उसने कहा कि ये जो खिडक़ी पर आदमी बैठा है, इसकी तरह कोई भी हो, किसी भी खिडक़ी पर हो, उसे पता है कि ब्लैक टिकट बेचने हैं, इसलिए रेलवे के चार्ट में सीट फुल दिखता है; लेकिन सीट होती हैं।
इस चौंकाने वाले ख़ुलासे के अलावा एक व्यापारी यात्री ने मुझे बताया कि वो सफ़र करते रहते हैं। उनका काम हर तीसरे-चौथे दिन कभी दिल्ली, तो कभी सूरत जाना होता है। ऐसे में उन्हें क़रीब-क़रीब सभी टीटी और कोच सर्विस वाले लडक़े जानते हैं। उन्हें सीट से कुछ कम पैसे देने होते हैं और टीटी, कोच सर्विस स्टाफ उन्हें सीट दे देते हैं। लेकिन हम रात को ही सफ़र करते हैं। दिन में यह सुविधा बहुत कम मिलती है। अगर कहीं मजिस्ट्रेट चेकिंग होनी होती है, तो टीटी, कोच सर्विस वाले लडक़े हमें इधर-उधर कर देते हैं या फिर टिकट काट देते हैं। जैसे हम दो-दो चलते हैं और दिल्ली से सूरत के लिए बैठे, तो हम टिकट लिये बिना सीधे ट्रेन के एसी कोच के पास चले जाएँगे। उन लोगों के नंबर हमारे पास होते हैं, उन्हें फोन कर लेंगे। वो हमारा सामान अपनी रैक में रखवा देंगे। उसके बाद जब ट्रेन चलेगी, तो अंदर ले लेंगे। उसके बाद एक-दो घंटे इधर-उधर रखेंगे और फिर ख़ाली पड़ी सीट पर सोने के लिए कहेंगे। इस तरह हम लोग आराम से सफ़र करते हैं।
अगर कहीं कोई बड़ी चेकिंग होने वाली होगी, तो टीटी या कोच सर्विस करने वाला कोई लडक़ा आकर टिकट फाडक़र दे देगा। लेकिन वो (टीटी) टिकट वहीं से बनाएगा, जहाँ से चेकर ट्रेन में चढ़ेंगे। उन्हें पहले से पता होता है कि ट्रेन में मजिस्ट्रेट चेकिंग होने वाली है या नहीं। यह पूछे जाने पर कि टीटी की ड्यूटी चेंज होने पर क्या होता है? उस आदमी ने बताया कि टीटी जितने भी रूट पर होते हैं, उन्हें सब पता होता है। जितने भी कोच एसी के होते हैं, सबके टीटी और कोच सर्विस वाले लडक़े मिले होते हैं। सबको पता होता है कि कोच में कितने पैसेंजर सेटिंग से यात्रा कर रहे हैं। तत्काल टिकट लेने वाले भी परेशान दिखे। एक यात्री ने कहा कि चार-पाँच घंटे पहले भी तत्काल में टिकट बुकिंग की सुविधा नहीं मिल रही है। दलाल दोगुने से ढाई गुने रेट माँग रहे हैं।
इसी तरह टिकट चेकिंग कराने वालों की अलग समस्याएँ देखने को मिल रही हैं। सबसे पहली समस्या तो यही है कि टिकट चेकिंग करने पर चार्ज बहुत कटता है। अगर ट्रेन छूटने के कुछ समय पहले टिकट चेकिंग करना चाहो, तो रिफंड की गारंटी नहीं है। इसके अलावा बुकिंग अवधि समाप्त होने के बाद टिकट निरस्त कराने के लिए लोगों को दूसरे स्टेशनों के चक्कर काटने भी पड़ जाते हैं। अगर किसी को टिकट चेकिंग कराना हो, तो कम-से-कम 48 घंटे पहले टिकट चेकिंग कराने पर रिटर्न ठीकठाक मिल पाता है; लेकिन इसमें भी अच्छे-ख़ासे चार्ज कट जाते हैं।
इसमें जनरल टिकट के चेकिंग कराने पर 60 रुपये, स्लीपर टिकट चेकिंग कराने पर 120 रुपये, थर्ड एसी का टिकट चेकिंग कराने पर 180 रुपये, सेकेंड एसी का टिकट चेकिंग कराने पर 200 रुपये और फस्र्ट एसी का टिकट चेकिंग कराने पर 240 रुपये की कटौती के अलावा एसी क्लास के सभी टिकटों के चेकिंग कराने पर जीएसटी भी लगता है। यानी टिकट बुक कराते समय भी यात्रियों को जीएसटी देना है, जो कि रिफंडेबल नहीं होती। इसके अलावा अगर 48 घंटे से बाद 12 घंटे से पहले तक टिकट चेकिंग कराने पर 25 प्रतिशत की कटौती की जाती है। वहीं 12 घंटे से कम समय बचने पर और ट्रेन छूटने के 4 घंटे पहले तक टिकट चेकिंग कराने पर 50 प्रतिशत की कटौती होती है।
रेलवे स्टेशन पर जाओ, तो यात्रियों की सैकड़ों समस्याएँ यात्रा सम्बन्धी हैं और कोई सुनने वाला नहीं है। अगर आप पूछताछ खिडक़ी पर जाते हैं, तो ट्रेनों की जानकारी भले ही मिल जाए; लेकिन आपकी अन्य समस्याओं का समाधान यहाँ से नहीं हो पाता, उसके लिए पूछताछ पर बैठा व्यक्ति बोलता है, रेलवे के कस्टमर केयर नंबर 139 पर फोन कीजिए। आईआरसीटीसी पर चार महीने तक भी मुश्किल से सीटें ख़ाली हैं। आईआरसीटीसी की वेबसाइट इतनी हैंग होती है कि कोई भी ऊब जाए। वहीं एक टिकट बुक करने में जितना समय लगता है, उतनी देर में 10 से 15 टिकट बुक हो जाते हैं। मतलब, अगर आपको (उपलब्ध) अवेलेबल दिख रही सीटों में भी कन्फर्म मिल जाए, तो ग़नीमत समझिए। कई बार आईआरसीटीसी का मोबाइल ऐप भी काम नहीं करता है। रेलवे ने स्पेशल ट्रेनों की जानकारी आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर अपलोड की हुई है, जिसके चलते ऑनलाइन टिकट बुक कराने वालों की संख्या में काफ़ी बढ़ोतरी हुई है।
इतना ही नहीं, टिकट काफ़ी महँगे हो चुके हैं। स्लीपर सीटों पर तो इतनी मारामारी है कि कन्फर्म टिकट मिलना तो जैसे बीरबल की खिचड़ी पकाने के बराबर है। इसके अलावा जितनी कम सीटें बचेंगी, टिकट उतना ही महँगा हो जाता है। एसी कोच में यह मुश्किल हमेशा सामने आती है। अगर कोई वेटिंग में रिजर्वेशन करा लेता है, तो उसका टिकट कन्फर्म होना मुश्किल होता है।
ऐसे में रेलवे में यह सुविधा तक नहीं है कि उसे सीट मिल जाए, जबकि यात्री के पैसे उतने ही लगते हैं, जितने कि सीट मिलने वाले के होते हैं। कोच के अंदर सीट देने का एक धंधा सा टीटी चलाते हैं। एक-एक टीटी के पीछे दो-चार लोग हमेशा सीट के लिए घूमते दिखते हैं, और टीटी भी उन्हें किसी भी तरह सीट दिलाने में ही लगे रहते हैं, जिसके लिए बा$कायदा रेट तय होते हैं। प्लेटफॉर्म टिकट महँगा हो ही चुका है।
कई तरह के आरक्षित टिकट बुकिंग में मिलने वाली छूट को भी रेलवे बट्टा लगा चुका है। टिकट चेकिंगेशन से ही रेलवे हर साल करोड़ों रुपये कमा लेता है। साल 2017 की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि महज़ तीन वर्षों में आरक्षण रद्द करने, ज़्यादा कन्फर्म टिकट और विंडो वेटिंग टिकटों की बुकिंग से रेलवे ने 2,500 करोड़ रुपये से ज़्यादा की कमायी की थी।
सोचने वाली बात है कि जब जून 2017 तक महज़ तीन साल में इतना मोटा पैसा कमाया, तो फिर उसके बाद तो किराया भी बढ़ा है, चेकिंगेशन चार्ज भी बढ़े हैं, तो रेलवे ने कितना मोटा पैसा कमाया होगा। इसके बावजूद रेलवे का घाटे में होना किसी भी प्रकार से हजम नहीं होता। इसमें कोई दो-राय नहीं कि रेलवे में पहले से कई सुविधाएँ भी बढ़ी हैं; लेकिन रेलवे की यात्रा जिस प्रकार महँगी और दुश्वार होती जा रही, उससे यात्रियों की समस्याएँ घटने की जगह लगातार बढ़ रही हैं। रेलवे को इस ओर ध्यान देना चाहिए। वर्तमान केंद्र सरकार ने बुलेट ट्रेन से लेकर न जाने क्या-क्या सपने रेल यात्रियों को दिखा रखे हैं; लेकिन अभी तक न तो बुलेट ट्रेन आयी है और न ही सभी सरकारी वादे पूरे हुए हैं। वंदे भारत ट्रेनों की संख्या ज़रूर बढ़ रही है; लेकिन उनमें यात्रा करना काफ़ी महँगा है।
आज अगर कोई ग़रीब आदमी रेलवे से सफ़र करना चाहे, तो उसके पास एक ही ऑप्शन बचा है, और वो है जनरल डिब्बे में मुर्ग़े-मुर्ग़ियों की तरह खचाखच भरे डिब्बे में यात्रा का। स्लीपर डिब्बों में भी इतनी भीड़ होने लगी है कि सफ़र करने का मन नहीं होता। एसी फस्र्ट क्लास का सफ़र तो हवाई जहाज़ के सफ़र जितना महँगा हो चुका है। ऐसे में आम आदमी क्या करे? इसका जवाब केंद्र सरकार और रेलवे विभाग को ही तलाशना होगा।
दलालों द्वारा कन्फर्म टिकट दिये जाने का सवाल एक रेलवे अधिकारी से पूछा, तो उन्होंने कहा कि ऐसा कुछ नहीं है। यह ग़लत आरोप है। रेलवे एक भी सीट ख़ाली रहने तक कन्फर्म टिकट देता है। यह लोगों की ग़लती है कि वे रेलवे स्टेशन से टिकट कराने की बजाय दलालों के पास चले जाते हैं। रेलवे स्टेशन पर कोई दलाल नहीं रहने दिया जाता। अगर कोई दलाल किसी को कहीं दिखता है, तो उसकी शिकायत रेलवे विभाग के किसी भी अधिकारी से करे, दलाल के ख़िलाफ़ तुरन्त कार्रवाई की जाएगी।
इसी तरह पैसे लेकर सीट देने के सवाल पर रवि नाम के एक टीटी ने कहा कि वह ऐसा नहीं करते। अगर कोई बिना टिकट पकड़ा जाता है, तो उस पर रेलवे द्वारा तय नियमों के आधार पर फाइन लगाते हैं या उसे रेलवे पुलिस के हवाले करते हैं।