मुम्बई की एक बेहद संकरी गली। उसमें बेहद गरीबी में रह रहे एक निरक्षर परिवार की खोली; लेकिन भीतर टीवी पर चल रहा अंग्रेजी न्यूज चैनल। यह टीआरपी के लिए पगला गये टीवी चैनलों का नया, लेकिन घिनोना सच है। अभी तक सुशांत सिंह राजपूत की मौत और रिया चक्रवर्ती की गिरफ्तारी के मामले में पत्रकारिता का दम घोटने वाले टीवी चैनलों की बेईमानी की पोल खोलकर मुंबई पुलिस ने टीआरपी को लेकर कई गम्भीर सवाल खड़े कर दिये हैं। इस घोटाले का खुलासा करते हुए मुम्बई पुलिस प्रमुख परमबीर सिंह ने कहा भी कि ऐसा देश के दूसरे हिस्सों में भी हो सकता है।
मुम्बई पुलिस के खुलासे में तीन चैनलों में से चौंकाने वाला जो नाम बताया गया, वो रिपब्लिक टीवी जैसे बड़े चैनल का था। ज़ाहिर है इसके बाद देश भर में बड़ी बहस छिड़ गयी है कि क्या टीआरपी बढ़ाने के लिए खबरों को सनसनीखेज़ बनाने के अलावा इस तरह का कोई घोटाला भी किया जाता है? मुम्बई पुलिस की प्रेस कॉन्फ्रेंस में रिपब्लिक टीवी का नाम सामने आते ही उनके और एक अन्य बड़े मीडिया ग्रुप इंडिया टुडे के बीच एक-दूसरे को विलेन दिखाने की होड़ मच गयी। रिया वाले मामले में इन दोनों चैनलों के बीच पहले से ही टीआरपी की तनातनी चल रही थी। रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक और सर्वेसर्वा अर्नब गोस्वामी ने आनन-फानन अपने टीवी चैनल पर आकर कहा- ‘मुम्बई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने रिपब्लिक टीवी के खिलाफ गलत आरोप लगाये हैं; क्योंकि हमने उनसे सुशांत सिंह राजपूत केस की जाँच को लेकर सवाल किया था। रिपब्लिक टीवी मुम्बई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के खिलाफ आपराधिक मानहानि का केस दायर करेगा।’
अर्नब गोस्वामी के चैनल पर जब इंडिया टुडे ग्रुप को लपेटने की कोशिश हुई, तो उसके समाचार निदेशक राहुल कंवल ने पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह का साक्षात्कार करके यह साफ किया कि मुम्बई पुलिस की अभी तक की जाँच में उनके ग्रुप का नाम नहीं। हालाँकि इसके बाद भी दोनों चैनल लगातार इस मसले पर एक-दूसरे से भिड़े रहे। एनडीटीवी सहित अन्य चैनलों पर भी टीआरपी घोटाले की यह खबर खूब चली और बाकायदा इस पर डिबेट हुईं। कुल मिलाकर देश की जनता को यह पता चल गया कि टीआरपी के लिए टीवी चैनल किस हद तक गिर सकते हैं।
जाने-माने पत्रकार और जनसत्ता के संपादक रहे ओम थानवी ने ‘तहलका’ से कहा- ‘रिपब्लिक पकड़ा गया। वरना यह काम और ‘बड़े’ चैनल भी करते आये होंगे। धन्धा है। विज्ञापन बटोरने के लिए टीआरपी चाहिए। वरना चैनल अच्छा है या बुरा, टीआरपी इसका पैमाना नहीं। अक्सर अच्छे चैनलों की टीआरपी कम ही मिलेगी। टीआरपी में बेईमानी एक बात है। फालतू खबरें, झूठी खबरें, कुत्ते-बिल्ली की लड़ाई, गलाफाड़ ऐंकरिंग, हल्ले वाली कथित बहसें आदि भी लोगों का ध्यान खींचने का ‘धन्धा’ हैं। अफसोस यह कि इनके लिए कोई नियामक (रेगुलेटरी) संस्था नहीं है। शायद सुप्रीम कोर्ट ही कभी नियम बनाने का आदेश दे।’
क्या है टीआरपी
टीआरपी अर्थात् टेलिविजन रेटिंग प्वाइंट से पता चलता है कि किसी टीवी चैनल या किसी शो को कितने लोगों ने कितने समय तक देखा, कौन-सा चैनल या कौन-सा शो कितना लोकप्रिय है? उसे लोग कितना पसन्द करते हैं? इससे चैनल की लोकप्रियता तय होती है, जिसकी जितनी ज़्यादा टीआरपी, उसकी उतनी ज़्यादा लोकप्रियता और विज्ञापन। अभी बीएआरसी इंडिया (ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल इंडिया) टीआरपी मापती है। पहले यह काम टीएएम करती थी।
टीआरपी वास्तविक नहीं, बल्कि आनुमानित आँकड़ा होता है। देश में करोड़ों घरों में टीवी चलते हैं। उन सभी पर किसी खास समय में क्या देखा जा रहा है? इसे मापना व्यावहारिक नहीं है। इसलिए सैंपलिंग का सहारा लिया जाता है। कुछ हज़ार घरों में एक उपकरण बैरोमीटर (पीपल्स मीटर) लगाया जाता है। इसके ज़रिये पता चलता है कि उस टीवी सेट पर कौन-सा चैनल, प्रोग्राम या शो कितनी बार और कितनी देर तक देखा जा रहा है। पीपल्स मीटर से मिली जानकारी का एजेंसी विश्लेषण कर टीआरपी तय करती है। जिस चैनल की जितनी ज़्यादा टीआरपी, उसकी उतनी ज़्यादा कमायी। इस मसले पर एक्ससीड स्पेस के सह संस्थापक महेश मूर्ति ने अपने ब्लॉग में लिखा है- ‘प्तञ्जक्रक्कह्यष्ड्डद्व के साथ मेरा व्यक्तिगत अनुभव यह है कि भारत में यह धाँधली कम-से-कम 30 साल से चल रही है। सिर्फ रिपब्लिक टीवी ही नहीं, बल्कि कई चैनलों ने इसका फायदा लिया है। इस घोटाले का आर्थिक दायरा 25,000 करोड़ (3.5 बिलियन यूएस डॉलर) प्रति वर्ष तक का है।’
महेश ने इस ब्लॉग में अपने व्यक्तिगत अनुभव को भी साझा किया है कि कैसे टीआरपी को लेकर अन्धी दौड़ चल रही है और कैसे इसमें धाँधली होती है।
महेश ब्लॉग में यह भी लिखते हैं- ‘भारत में टीवी चैनल और गैर-डब्ल्यूपीपी एजेंसी समूह डब्ल्यूपीपी से मुक्ति चाहते थे और उन्होंने करीब 5 साल पहले बीएआरसी (बार्क) का गठन किया था। उनका पहला बड़ा दावा यह था कि वो 12,000 टीएएम साईज़ से नमूना लेंगे। आज उनके पास लगभग 33,000 मीटर लगे घर हैं।’ इस मसले पर वरिष्ठ पत्रकार एसपी शर्मा ने कहा- ‘अब बिल्ली थैले से बाहर आ ही गयी है, तो लगे हाथ मीडिया में इस गन्दगी को साफ कर ही देना चाहिए।’
मुम्बई पुलिस का दावा
मुम्बई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया तीन चैनल पैसा देकर अपने लिए फर्ज़ी टीआरपी जुटा रहे थे। पुलिस कमिश्नर ने दावा किया इस घोटाले में रिपब्लिक टीवी और दो छोटे मराठी चैनल- फक्त मराठी और बॉक्स सिनेमा शामिल हैं। इस मामले में चार लोग गिरफ्तार किये गये हैं। कमिश्नर ने कहा- ‘हमारी क्राइम ब्रांच ने एक रैकेट का पता लगाया है, जो कि फर्ज़ी टीआरपी से जुड़ा है। बार्क नाम की एक एजेंसी टीआरीपी को आँकने का काम करती है। यह एजेंसी टीआरपी को आँकने के लिए देश के अलग-अलग शहरों में बैरोमीटर लगाती है। पूरे दशक में 30 हज़ार बैरोमीटर लगाये गये हैं और लगभग दो हज़ार बैरोमीटर मुम्बई में लगे हैं।’
उन्होंने कहा- ‘बीएआरसी ने हंसा नाम की कम्पनी को बैरोमीटर लगाने का ठेका दिया है। जाँच के दौरान यह बात सामने आयी कि हंसा के कुछ एक्स कर्मचारी, जो कि बीएआरसी के साथ काम करते हैं; इस डाटा को टीवी चैनल से शेयर कर रहे थे। जिन घरों का डाटा शेयर किया गया था उन्हें पैसे देकर कुछ विशेष चैनल चलाने को कहा गया था। जिन घरों को पैसा दिया जा रहा था उनको बोला जाता था कि आप हमेशा एक विशेष टीवी चैनल को ऑन रखें चाहे आप घर में हों या नहीं हों। यह भी पता चला कि निरक्षर लोगों के घर में भी इंग्लिश के चैनल को ऑन करके रखने की डील की गयी थी। हमने हंसा के एक एक्स कर्मचारी को अरेस्ट किया, तो पता चला कि उसके कुछ साथी, जो कि हंसा के लिए काम करते थे; इसमें शामिल हैं। ये लोग चैनल की तरफ से मासिक तौर पर पैसा हाउसहोल्ड्स (मकान वालों) को देते थे और उनसे कुछ विशेष चैनल्स को लगातार चलाने के लिए कहते थे। गिरफ्तार किये गये एक व्यक्ति के बैंक खाते से हमने करीब 20 लाख रुपये ज़ब्त किये हैं और 8.5 लाख रुपये उसके बैंक लॉकर से मिले हैं। बीएआरसी ने जो अपनी विश्लेषणात्मक रिपोर्ट जमा की है, उसमें रिपब्लिक का नाम सामने आया है, जिसके टीआरपी ट्रेंडस पर शक ज़ाहिर किया गया था। जिन लोगों को पैसे दिये गये थे, उन कस्टमर्स ने भी पूछताछ में यह स्वीकार किया कि उनको कुछ विशेष चैनलों को देखने के लिए पैसा दिया गया था। फक्त मराठी और बॉक्स सिनेमा के मालिकों को गिरफ्तार कर लिया गया है। रिपब्लिक टीवी में काम करने वाले लोगों, डायरेक्टर, प्रमोटर के इस फर्ज़ीवाड़े में शामिल होने का शक है। जाँच जारी है।’ फिलहाल यह रिपोर्ट लिखे जाने तक रिपब्लिक टीवी ने सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दे दी है, जबकि मुम्बई पुलिस इस मामले की जाँच कर रही है।