जुर्म की जड़ें

देश की राजधानी दिल्ली से लगभग 90 किलोमीटर दूर हरियाणा के सोनीपत जिले का गोहाना कस्बा. पुलिस उपअधीक्षक के दफ्तर के बाहर बने बड़े-से बरामदे में लगभग 15 आदमी दो महिलाओं को घेरे खड़े हैं. सभी आपस में ठेठ हरियाणवी में बात कर रहे हैं और महिलाओं पर लगातार चीख रहे हैं. पूछने पर पता चलता है कि ये करीब 10 किलोमीटर दूर बसे बनवासा गांव के लोग हैं. बीते हफ्ते गांव की एक 19 वर्षीया विवाहित लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ है. सामने गांव के आदमियों के सवाल खामोशी से सुनती पीड़ित लड़की और उसकी मां खड़ी हैं. गांववाले कहते हैं कि वे लड़की का बयान मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज करवाने जा रहे हैं और इससे ज्यादा कोई बात नहीं करना चाहते.

थोड़ी कोशिश करने पर गांव का ही एक व्यक्ति नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर हमसे बात करने को तैयार हो जाता है. वह कहता है कि पीड़ितों पर समझौते के लिए दबाव डाला जा रहा है और अभी-अभी सामने इसी बात पर चर्चा हो रही थी कि लड़की मजिस्ट्रेट के सामने अपने बयान में क्या बोलेगी. वह अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहता है, ‘यहां ऐसी घटनाओं में अक्सर पंच लड़की पर समझौते का दबाव डालते हैं. गांव के बड़े लोगों से लेकर प्रशासन में लिखा-पढ़ी करवाने वाले लोगों तक हर कोई मामले को दबाने या खुद पैसा बनाने में लगा रहता है. गांववाले तो यही मानते हैं कि लड़की की ही गलती है इसमें.’ 

इसी सोच से उस विकराल समस्या का एक सिरा जुड़ता है जो इन दिनों हरियाणा का एक बदसूरत चेहरा पूरे देश के सामने रख रही है. पिछले 30 दिन के दौरान प्रदेश से बलात्कार के 15 बड़े मामले सामने आ चुके हैं. राज्य के पुलिसिया महकमे द्वारा हर दूसरे दिन जारी किए जा रहे ‘सख्त निर्देशों’  के बावजूद राज्य के अलग-अलग जिलों से लगातार आ रही बलात्कारों और सामूहिक बलात्कारों की खबरें थमने का नाम नहीं ले रहीं. हालत यह है कि जिस दिन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जींद में दुष्कर्म की शिकार एक लड़की के परिजनों से मुलाकात करके दोषियों को सख्त से सख्त सजा देने की बात कही उसी रात कैथल से एक दलित लड़की के साथ गैंगरेप की खबर आ गई.

वापस गोहाना लौटते हैं. मजिस्ट्रेट के सामने लड़की के बयान की तैयारी हो रही है. जामुनी रंग के पुराने-से सलवार-कुर्ते और एक मुड़े-तुड़े दुपट्टे में अपने अस्तित्व को छिपाती हुई पीड़ित लड़की चुपचाप अपनी मां के पीछे-पीछे चलने लगती है. तभी पीछे से चिल्लाने की आवाज आती है, ‘जल्दी आग्गे बढ़ो री’ और दोनों महिलाएं तेज कदमों से आगे बढ़ने लगती हैं–अपने गांव के पुरुषों की तीखी निगाहों और बरामदे में खड़े परिचितों द्वारा जहां-तहां लगातार उछाली जा रही फब्तियों का सामना करते हुए. सहमे कदमों से अपना बयान दर्ज करवाने के लिए आगे बढ़ रही यह लड़की हरियाणा में हर रोज बलात्कार का शिकार हो रही महिलाओं की अंतहीन यातना का प्रतीक है.

‘सब यही मान कर चलते हैं कि यह तो विरोध कर ही नहीं पाएगी, पुलिस और नेता तो हमारे ही साथी हैं, इसलिए औरतों को इस्तेमाल करो और फेंक दो’

इधर, बनवासा गांव की दलित बस्ती में रहने वाली सुनीता (बदला हुआ नाम) के घरवाले अभी तक अपनी बेटी के साथ हुए हादसे को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं. गांव के आखिरी छोर पर बने एक कमरे के मकान में सुनीता अपने चार भाई-बहनों के साथ रहती थी. तीन महीने पहले ही उसकी शादी पास ही के गांव में रहने वाले सुनील से हुई थी. शादी के बाद वह पहली बार अपने परिवार से मिलने बनवासा आई थी.  बहन की शादी के दौरान घर की दीवारों पर बनाई गई रंगोली दिखाते हुए पीड़िता का 18 वर्षीय भाई गुरमीत रुआंसा हो जाता है. फिर उस दिन को याद करते हुए बताता है, ’28 सितंबर की बात है. उसका पति सुनील अगले ही दिन उसे लेने आने वाले था. मेरे मां-बापू मजदूरी करने गए थे. मां इससे बोल कर गई थी कि अगर पैसे हुए तो शाम को इसके लिए नया कपड़ा भी लाएगी. मैं भी घर पर नहीं था. बाद में सुनीता ने मुझे बताया कि जब वह दोपहर को बर्तन धो रही थी तो पड़ोस में रहने वाली माफी नाम की महिला ने उससे आकर कहा की उसके पति सुनील का फोन आया था और वह उसे बरोदा रोड के फाटक पर बुला रहा है. सुनीता ने कहा कि उसे तो कल अपने ससुराल जाना ही है, और वह इतनी दूर अकेले कैसे जाएगी पर माफी ने उसे किराये के पैसे देकर और चूड़ियां पहनाकर जबरदस्ती भेज दिया. माफी ने मेरी बहन से कहा कि अगर वह नहीं गई तो उसका पति बहुत नाराज हो जाएगा. वह चली तो गई लेकिन फाटक पर उसे उसका पति नहीं मिला. बल्कि वहां सुनील और संजय नाम के दूसरे लड़के खड़े थे. इन लड़कों ने जबरदस्ती उसे अपनी गाड़ी में बिठा लिया. यह दोनों पास ही के खंदारी गांव में रहते हैं. बाद में अहमदपुर माजरा में रहने वाले अनिल और श्रवण भी उनके साथ मिल गए.’ सुनीता ने अपने बयान में कहा है कि ये चारों लोग उसका अपहरण करके उसे पास ही के खेतों में बने एक सुनसान कमरे में ले गए.

आरोपितों ने अगले पांच दिन तक सुनीता को बंधक बना कर रखा और उसके साथ लगातार सामूहिक बलात्कार किया. फिर अपना मुंह बंद रखने की धमकी देते हुए उन्होंने तीन अक्टूबर की सुबह सुनीता को उसके गांव के पास ही छोड़ दिया. गुरमीत बताता है, ‘उसके जाने के बाद हमें लगा कि वह अपने पति के साथ ही गई है इसलिए हमें कोई चिंता नहीं हुई. पर अगले दिन जब उसका पति सुनील उसे लेने घर आया तब हमें पता चला कि उसने तो सुनीता को बुलाया ही नहीं था. फिर हमने उसे ढूंढ़ना शुरू कर दिया लेकिन वह कहीं नहीं मिली. चार दिन बाद हमें माफी से एक नंबर मिला. जब मैंने उस नंबर पर फोन करके पूछा कि मेरी बहन कहां है तो वह बोला कि मैं तेरा जमाई बोल रहा हूं. मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था लेकिन हम कुछ नहीं कर पाए. अब हम बस यही चाहते हैं कि गुनाहगारों को कड़ी से कड़ी सजा मिले.’ इस मामले में सुनील, श्रवण, अनिल और संजय सहित माफी को भी गिरफ्तार कर लिया गया है. एफआईआर दर्ज होने के बाद सुनीता को डॉक्टरी जांच के लिए ले जाने वाली स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता अनीता इंदौरा बताती हैं कि अपहरणकर्ताओं ने सुनीता के साथ मार-पीट भी की. वे कहती हैं, ‘पहले तो जैसे उसे होश ही नहीं था. वह बहुत रो रही थी. बार-बार एक ही बात कह रही थी कि माफी ने इन लड़कों के साथ मिलकर उसे फंसाया है और उसके दोषियों को सजा मिलनी चाहिए. फिर हमने उसे शांत करवाकर पानी पिलाया. कुछ देर बाद उसने कहा कि इन लड़कों ने उसे बहुत पीटा और उसके कपड़े भी छीन कर छिपा दिए. लड़की ने थोड़े-से गहने पहन रखे थे. तीन दिन बाद इन लोगों ने उसके गहने भी उससे छीन कर बेच दिए. बहुत गरीब घर की लड़की है. इसकी मां ने बहुत मुश्किलों से इसकी शादी कारवाई थी. अब तो इसके ससुरालवालों ने भी इसे स्वीकार करने से इनकार दिया है.’ लेकिन हरियाणा में महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा का यह कोई पहला मामला नहीं है. स्त्रियों के खिलाफ होने वाले तमाम जघन्य अपराधों के लिए  बदनाम रहे इस राज्य से लगातार बलात्कारों, भ्रूण हत्या और इज्जत के नाम पर होने वाली हत्याओं की खबरें आती रहती हैं. 

बर्बरता का सिलसिला

हिसार (डबरा गांव)
 9 सितंबर, 2012
17 वर्षीया लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार

जींद (पीलू खेड़ा)
21 सितंबर, 2012
30 वर्षीया विवाहित महिला के साथ सामूहिक बलात्कार

सोनीपत (गोहाना)
28 सितंबर, 2012
 मुख्य बाजार में 17 वर्षीया लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार

सोनीपत (गोहाना- बनवासा गांव)
28 सितंबर, 2012
19 वर्षीया नवविवाहिता के साथ पांच दिन तक सामूहिक बलात्कार

भिवानी
29 सितंबर, 2012
नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार

रोहतक (कच्ची गढ़ी मोहल्ला)
1 अक्टूबर, 2012
15 वर्षीया लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार परिजन भी शामिल थे

जींद (बेलरखा गांव)
2 अक्टूबर, 2012
मानसिक रूप से विक्षिप्त महिला के साथ बलात्कार

रोहतक (शास्त्री नगर )
3 अक्टूबर, 2012
11 वर्षीया लड़की के साथ उसके पडोसी ने बलात्कार किया 

यमुनानगर (बिछौली गांव)
4 अक्टूबर, 2012
 नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार

करनाल
4 अक्टूबर, 2012
20 वर्षीया लड़की के साथ बलात्कार

जींद (सचखेड़ा)
6 अक्टूबर, 2012
16 वर्षीया लड़की ने सामूहिक बलात्कार के बाद आत्महत्या की

पानीपत
9 अक्टूबर, 2012
एक महिला के साथ
सामूहिक बलात्कार

अंबाला
9 अक्टूबर, 2012
विधवा महिला के साथ
सामूहिक बलात्कार

कैथल (कलायत)
10 अक्टूबर, 2012
गर्भवती महिला के साथ
सामूहिक बलात्कार

हरियाणा में स्त्रियों के खिलाफ फैली इस राज्यव्यापी  आपराधिक मानसिकता की जड़ें टटोलने के लिए तहलका की टीम ने अलग-अलग जिलों में बिखरे बलात्कार पीड़ित परिवारों से मुलाकात की. हमने कई स्थानीय लोगों से बातचीत की. इस दौरान मुद्दे के कई अनछुए पहलू सामने आए. पिछले एक महीने में दो सामूहिक बलात्कार देख चुके गोहाना में ‘समतामूलक महिला संगठन’ नाम का एक गैरसरकारी संगठन चलाने वाली डॉ सुनीता त्यागी कहती हैं, ‘ यूं तो गोहाना सोनीपत जिले की एक छोटी-सी तहसील है लेकिन यहां बलात्कार की वारदात होना बहुत ही आम है. इस महीने ही दो सामूहिक बलात्कार हुए. पिछली मई में भी खापुर-कलान के भगत फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय में एक छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ था. इन घटनाओं के पीछे मुख्य वजह यह है कि यहां का आदमी महिलाओं के प्रति बहुत क्रूर है. उदाहरण के लिए, यातायात के सार्वजनिक साधनों में आदमी खुलेआम महिलाओं के साथ गाली-गलौज करते हैं और कोई कुछ नहीं कहता. गाड़ियों में जोर-जोर से रागिनियां (हरियाणवी लोक गीत) बजाई जाती हैं और राह चल रही लड़कियों पर फब्तियां कसी जाती हैं. असल में आज हरियाणा में इन गानों के बहुत अश्लील संस्करण प्रचलित हैं. अश्लील होने से भी ज्यादा ये गाने यहां महिलाओं के ‘टिशू पेपर’ होने और ‘इस्तेमाल करके फेंक दिए जाने’ वाली सोच को बढ़ावा देते हैं. पूरा माहौल ही इतना बेलगाम हो गया है कि लोग खुलेआम बलात्कार कर रहे हैं. पुलिस प्रशासन तो जैसे पूरी तरह नदारद है.’

28 सितंबर को ही गोहाना शहर के मुख्य बाजार में एक 17 वर्षीया स्कूली छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ था. संकरी गलियों और झूलते बिजली के तारों वाले शहर के इस पुराने हिस्से में जब हम पीड़ित परिवार का पता पूछते हैं तो लोग अपने घरों के दरवाजे बंद कर लेते हैं. थोड़ी कोशिश के बाद हम कमला (परिवर्तित नाम) का घर ढूंढ़ तो लेते हैं लेकिन घर का दरवाजा बंद मिलता है. रहवासी क्षेत्र के अंतिम छोर पर रहने वाला यह परिवार अब शहर छोड़ कर जा चुका है. 28 सितंबर की सुबह कमला अपने घर के पास मौजूद राशन की दुकान से कुछ सामान लाने गई थी. दुकानदार ने कमला से कहा कि वह नीचे बने स्टोर-रूम में जाए, वह वहीं आकर सामान देगा. दुकानदार और उसके परिवार से पहचान होने के कारण कमला नीचे चली गई. बाद में पुलिस को दिए अपने बयान में उसने कहा कि नीचे पहले से ही तीन लड़के मौजूद थे और उन चारों ने मिलकर उसका सामूहिक बलात्कार किया. एफआईआर दर्ज होते ही चारों आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया गया. नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर इस परिवार के पड़ोस में रहने वाली एक महिला बताती हैं, ‘ बिन बाप की बच्ची थी लेकिन इतना बड़ा हादसा हो गया कि परिवार को शहर छोड़ कर जाना पड़ा. इनके चाचा जम्मू से आए थे मामला दर्ज करवाने. हमारे मोहल्ले की सबसे सीधी लड़की थी पर आजकल सब पहचान वाले ही धोखा देते हैं. आरोपी भी बस चार घर छोड़कर यहीं रहते हैं. अब तो इसका परिवार बस यही सोच-सोच कर परेशान हो रहा है कि लड़की की शादी कैसे होगी.’
समस्या की एक कड़ी राजनीति से भी जुड़ती है. डॉ सुनीता बताती हैं कि पुलिस-प्रशासन के राजनीतिक दबाव में रहने की वजह से भी इस क्षेत्र में महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ता जा रहा है. वे कहती हैं, ‘यहां हर परिवार के किसी न किसी नेता से संबंध हैं. ऊंची जात वालों को नेताओं के साथ-साथ खाप का भी समर्थन रहता है. यहां सब यही मानकर चलते हैं कि वे कोई भी अपराध क्यों न कर लें, पुलिस और पीड़ित परिवार उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता. उल्टा, पीड़ितों पर समझौता कर केस वापस लेने का भारी दबाव होता है. परोक्ष रूप से पुलिस भी समझौते पर जोर देती है.’

हालांकि गोहाना तहसील के पुलिस उपअधीक्षक यशपाल खटाना ये आरोप खारिज करते हैं. वे कहते हैं, ‘दोनों सामूहिक बलात्कारों के मामलों में हमने सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है. पूरी तहकीकात के बाद हम चार्ज शीट दाखिल करेंगे.’ लेकिन गोहाना में आए दिन हो रहे बलात्कारों के लिए पीड़ितों को ही जिम्मेदार बताते हुए वे आगे कहते हैं, ‘आजकल लड़कियां जल्दी बहकावे में आ जाती हैं. वेस्टर्न कपड़े पहनने लगी हैं, इसलिए बलात्कार बढ़ रहे हैं.’ महिलाओं के खिलाफ हो रहे इन अपराधों के लिए पुलिस के साथ-साथ यहां की खाप पंचायतें और राजनेता भी लड़कियों को ही दोषी मानते हैं. बलात्कार की समस्या से निपटने के लिए हाल में जारी किए गए अपने एक बयान में एक खाप पंचायत का कहना था कि लड़के-लड़कियों की शादी 16 साल की उम्र में कर देनी चाहिए. खाप का कहना था कि जवान हो रहे बच्चों में यौन इच्छा का विकास  स्वाभाविक है और जब यह पूरी नहीं होती तो वे भटक जाते हैं  इसलिए शादी की कोई न्यूनतम उम्र नहीं होनी चाहिए. विपक्षी नेता और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला की तरफ से भी कुछ ऐसा ही बयान आया. उनका कहना था, ‘मुगल शासन के दौरान भी बलात्कारों से बचाने के लिए लड़कियों की शादी कम उम्र में करवा दी जाती थी.’

‘खाप पंचायतें सगोत्र शादियों का विरोध करती हैं और दूसरी ओर जब लोग अपने ही घर की लड़कियों के साथ बलात्कार करते हैं तो खामोश रहती हैं’

लेकिन यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए शादी की उम्र कम कराने का सुझाव देने वाला हरियाणा का समाज रोहतक के अलग-अलग इलाकों में 11 और 14 साल की बच्चियों के साथ हुए बलात्कार जैसे तमाम मामलों को पूरी तरह नजरअंदाज करने पर आमादा है.
रोहतक जिले के शास्त्री नगर इलाके के एक छोटे-से मकान में रहने वाली बबली अपनी 11 वर्षीया बच्ची खुशबू (परिवर्तित नाम) का जिक्र आते ही बिलख-बिलख कर रोने लगती हैं. एक मटमैले सलवार-कुर्ते में सामने खामोश बैठी खुशबू भी मां को रोता देख रुआंसी हो जाती है. अपने चार बच्चों को पालने के लिए बबली अपने पति के साथ मिलकर रोज मजदूरी करने जाती हैं. तीन अक्टूबर को भी वे अपने पति के साथ रोज की तरह मजदूरी करने घर से निकलीं. घर पर सिर्फ खुशबू और उसका छोटा भाई ही थे. तभी बबली के पड़ोस में रहने वाले 40 वर्षीय प्रकाश सैनी ने घर में घुसकर खुशबू के साथ बलात्कार किया. पूछने पर मासूम बच्ची दोषी को ‘अंकल’ कहकर संबोधित करते हुए धीरे से कहती है, ‘अंकल ने मेरे भाई को चीज लाने के लिए 10 रुपये देकर दुकान पे भेज दिया. उसके जाते ही उन्होंने मेरा मुंह अपने हाथ से दबा दिया और जबरदस्ती करने लगे.’ आरोपित के गिरफ्तार होने के बाद अब बबली सिर्फ इतना चाहती हैं कि रोहतक के ही रहने वाले मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा शहर को लड़कियों के लिए सुरक्षित बनाएं. जाते वक्त वे हाथ जोड़ कर बस इतना कहती हैं, ‘हमारी फूल-सी बच्ची है. इतनी छोटी है अभी. अब इससे ब्याह कौन करेगा? मैं बस इतना ही कहना चाहूं कि जो मारी छोरी के साथ हुआ वो किसी और के साथ न हो. इसके दोषी को सरकार सजा दिलावे.’

रोहतक में महिला जनवादी संगठन के साथ जुड़कर काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता अंजू मानती हैं कि हरियाणा में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों के लिए पुलिस और प्रशासनिक लापरवाहियों के साथ-साथ स्थानीय सामाजिक सोच भी जिम्मेदार है. वे बताती हैं, ‘शास्त्री नगर के साथ-साथ कच्ची गढ़ी मोहल्ले में भी एक 15 वर्षीया लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ. इस अपराध की साजिश में लड़की के परिवार वाले ही शामिल थे. असल में यहां माहौल ही इतना खराब है कि रोहतक शहर तक में हम लोग भी शाम 6 बजे के बाद बाहर नहीं निकल पाते. औरतों के बारे में यहां सब यही मान कर चलते हैं कि यह तो विरोध कर ही नहीं पाएगी, पुलिस और नेता तो हमारे ही साथी हैं, इसलिए औरतों को इस्तेमाल करो और फेंक दो. पूरा सामाजिक-राजनीतिक ताना-बना अपराधियों को शह देता है और पीड़ित को ही दोषी ठहराता है. दलित महिलाएं आसान शिकार तो होती हैं लेकिन बड़े परिदृश्य में देखें तो यहां हर जाति की महिलाओं के साथ बलात्कार होते हैं. हरियाणा में तो महिला होना ही अपने आप में सबसे बड़ा दलित होना है.’

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़े अंजू और डॉ सुनीता त्यागी के मतों को पुष्ट करते हुए नजर आते हैं. पिछले सात साल में हरियाणा में बलात्कार की वारदातें दोगुनी से भी ज्यादा हो गई हैं. सन 2004 में 386 बलात्कार दर्ज करने वाले इस राज्य में सन 2011 में बलात्कार की 733 घटनाएं सामने आईं. उस पर भी सिर्फ 13 प्रतिशत मामलों में अपराधियों को सजा हुई. राज्य के प्रमुख समाजशास्त्री डॉ जितेंद्र प्रसाद का मानना है कि हरियाणा में महिलाओं के खिलाफ लगातार बढ़ रहे अपराधों के पीछे मुख्य वजह यहां के समाज द्वारा बलात्कार को एक ‘कल्ट’ की तरह प्रोत्साहित करने की पुरानी प्रवृत्ति है. वे कहते हैं, ‘यहां का समाज अपनी पितृसत्तात्मक, वंशवादी और सामंतवादी सोच को लेकर इतना ज्यादा कट्टर है कि वह महिलाओं को बराबरी से जी सकने वाला कोई जीव या इंसान तक मानने को तैयार नहीं है. महिलाओं के मामले में खाप पंचायतों ने भी हमेशा दोहरे मापदंड अपनाए. एक ओर तो खाप पंचायतें सगोत्र शादियों का कट्टर विरोध करती हैं और दूसरी ओर जब लोग अपने ही घर की लड़कियों के साथ बलात्कार करते हैं तो वे खामोश रहती हैं. 1,000 लड़कों पर यहां सिर्फ 830 लड़कियां हैं. लिंगानुपात का कम होना तो इसके पीछे एक कारण है ही लेकिन ज्यादा बड़ा कारण यहां का सामाजिक ताना-बना है. यहां स्त्रियों की ‘उपभोग की वस्तु’, ‘इस्तेमाल के लिए उपलब्ध’, ‘विरोध करने वाले को मार-पीट कर चुप करवा दो’ जैसी छवि को सामाजिक स्वीकार्यता प्राप्त है. यह व्यवस्था यहां के लोगों के लिए सुविधाजनक है, इसलिए वे इसे बदलने भी नहीं देंगे.’

हुड्डा सरकार की शराब नीति को भी राज्य में बढ़ते अपराधों के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है. आंकड़े बताते हैं कि हरियाणा में हर व्यक्ति प्रति वर्ष शराब की 11 बोतलें खरीदता है. डॉ प्रसाद जोड़ते हैं, ‘हरियाणा में नशा बहुत बड़ी समस्या के तौर पर उभर कर आ रहा है. पिछले महीने हुए बलात्कारों के 15 मामलों में से ज्यादातर में आरोपी शराब पिए हुए थे. यहां आपको राशन की दुकान नहीं मिलेगी, लेकिन हर चौराहे पर रात भर खुला रहने वाला एक शराब का ठेका जरूर मिल जाएगा. बड़ी-बड़ी गाड़यों में शराब की पेटियां रखकर निकलना और महिलाओं के साथ छेड़खानी-बलात्कार करना यहां एक ‘कल्ट’ की तरह प्रचलित हो गया है.’

हरियाणा के अलग-अलग जिलों में हुई बलात्कार की घटनाओं के पीड़ितों और उनके परिजनों से मिलने के क्रम में हम आखिर में हिसार के डबरा गांव पहुंचते हैं. गांव की दलित बस्ती में प्रवेश करते ही हरियाणा पुलिस की जीप खड़ी हुई नजर आती है. चंद संकरे रास्तों को पार करके हम दीपिका (परिवर्तित नाम) के घर पहुंचते हैं. दो कमरे के छोटे-से मकान के सामने बने छोटे-से बरामदे में दीपिका और उसके परिवार की सुरक्षा के लिए तैनात दो महिला पुलिसकर्मी बैठी हैं. दीपिका अपनी मां बिमला के साथ चूल्हे के पास खामोश बैठी है. नौ सितंबर की दोपहर इस 17 वर्षीया लड़की के साथ उसके गांव के ही 12 लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया था. दीपिका ने लगभग 10 दिन तक किसी को कुछ नहीं बताया, लेकिन जब आरोपितों ने उसके 42 वर्षीय पिता को अपनी बेटी के बलात्कार का एक एमएमएस क्लिप दिखाया तो उन्होंने अगले ही दिन खुदकुशी कर ली. बिमला बताती हैं, ‘वे अपनी बेटी से बहुत प्यार करते थे. उन्हें विश्वास था कि हमें कभी इंसाफ नहीं मिलेगा क्योंकि हम गरीब दलित लड़की के माता-पिता हैं. लेकिन शुक्र है कि सभी आरोपी पकड़े गए.’
बिमला दीपिका को आगे पढ़ाना चाहती हैं. फिलहाल 11वीं की परीक्षा दे रही दीपिका कहती है, ‘जिस जगह मेरा बलात्कार हुआ, वहां पहले भी ऐसी सात घटनाएं हो चुकी हैं. लेकिन गांववाले लड़कियों को दबा देते हैं. अगर मेरे पापा नहीं गए होते तो शायद यह बात कभी बाहर नहीं आती. अब तो मेरे पास खोने के लिए भी कुछ नहीं है, इसलिए अब मैं बस यही चाहती हूं कि मेरे मामले में सभी अपराधियों को फांसी की सजा हो ताकि वे कभी किसी दूसरी लड़की के साथ ऐसा करने की हिम्मत भी न कर सकें.’