जी20 शिखर सम्मेलन से पहले जब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने रूस-यूक्रेन युद्ध पर मोदी सरकार के रुख़ की प्रशंसा करते हुए कहा कि ‘देश ने शान्ति की वकालत करते हुए अपने संप्रभु और आर्थिक हितों को प्राथमिकता देकर सही काम किया है;’ तो यह स्पष्ट रूप से यह भारत के लिए गर्व का क्षण रहा। वास्तव में पूर्व प्रधानमंत्री उनकी प्रशंसा में इतने अभिभूत थे कि उन्होंने कहा कि ‘वह चिन्तित होने के बजाय भारत के भविष्य के बारे में अधिक आशावादी थे और बहुत ख़ुश थे कि जी20 की अध्यक्षता के लिए भारत का मौक़ा मेरे जीवन-काल में आया।’
एक अन्य कांग्रेस नेता शशि थरूर ने 18वें जी20 शिखर सम्मेलन में नयी दिल्ली घोषणा-पत्र को ‘निस्संदेह भारत के लिए एक कूटनीतिक जीत’ करार दिया। उन्होंने बदलती भू-राजनीति के बीच नयी दिल्ली घोषणा-पत्र पर सभी सदस्य देशों को आम सहमति पर लाने के लिए सरकार की सराहना की।
यह वास्तव में प्रशंसनीय है कि सरकार ने वास्तव में 58 शहरों में 200 बैठकें आयोजित करके इसे लोगों का जी20 बना दिया। इस तंग रस्सी जैसी कूटनीति पर चलना सबसे कठिन काम था। लेकिन हाल ही में सम्पन्न जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान यह हमारा ट्रंप कार्ड साबित हुआ। भारत के लिए चुनौती न तो अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों को नाराज़ करने की थी और न ही पूर्वी यूरोप में बढ़ते संघर्ष को लेकर पुराने सहयोगी रूस को नाराज़ करने की थी। जैसे ही पर्दा गिरा, रूस और पश्चिमी शक्तियों ने दावा किया कि यूक्रेन संकट पर उनसे सम्बन्धित स्थिति सही साबित हुई थी। यह भारत के सर्वोत्तम हित में था कि वह संघर्षों में न फँसे और राष्ट्रों के बीच संतुलन बनाए रखे। भारत में जी20 घोषणा को आम सहमति से अपनाया गया था और इसमें यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के किसी भी उल्लेख से परहेज़ किया गया था। वास्तव में वैश्विक मंचों पर भारत का बढ़ता दबदबा, जी20 शिखर सम्मेलन और इसकी स्वतंत्र विदेश नीति का एक महत्त्वपूर्ण सबक़ है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि ‘आज का युग युद्ध का नहीं होना चाहिए।’ वास्तव में उनके ये शब्द जी20 शिखर सम्मेलन में इस जटिल चुनौती से निपटने में कूटनीतिक कौशल को दर्शाने के साथ ही वैश्विक व्यवस्था को फिर से आकार देने के लिए भारत की बढ़ती आर्थिक ताक़त, राजनयिक क्षमताओं और नेतृत्व कौशल को प्रदर्शित करते हैं। भारत के अध्यक्ष पद छोडऩे से पहले नवंबर में डिजिटल समीक्षा बैठक आयोजित करने का प्रधानमंत्री मोदी का फ़ैसला जी20 शिखर सम्मेलन के गौरवशाली क्षणों में लिये गये निर्णयों का कार्यान्वयन सुनिश्चित करेगा।
भारत अमेरिका के साथ जुडऩे में सक्षम रहा है और राष्ट्रपति जो बाइडन की भारत यात्रा वैश्विक और द्विपक्षीय स्तरों पर विश्वास और सहयोग का प्रतिनिधित्व करती है। भारत-मध्य पूर्व-यूरोप गलियारे की घोषणा भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है। रूस को आश्वस्त करने के लिए भारत ने सुनिश्चित किया कि घोषणा में रूसी आक्रामकता का विशिष्ट संदर्भ हटा दिया जाए। जहाँ तक चीन का सवाल है, तो यह अच्छा हुआ कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत के बुलावे पर जी20 शिखर सम्मेलन में नहीं आये। नहीं तो सीमा-विवाद को देखते हुए मोदी-शी के हाथ मिलाने की विपक्ष आलोचना कर सकता था। इसलिए द्विपक्षीय से लेकर वैश्विक स्तर तक भू-राजनीति में भारत के ये सर्वश्रेष्ठ क्षण रहे और इसने वैश्विक व्यवस्था में एक नये अध्याय की शुरुआत की।