गुजरात के इंडस्ट्रियल एरिया में ज़मीन पर कार्बन की एक परत दिखना आम बात है। कार्बन के मोटे टुकड़े कितनी ही बार आँखों में पड़ जाते हैं। इंडस्ट्रियल एरिया में रहने वालों की नाक और गले में कार्बन जमना, चेहरे का काला होना और कपड़ों को काला होना आम बात है। इतना ही नहीं, रिहायशी इलाक़ों में भी यह कार्बन लगातार गिरता रहता है।
घर के बाहर, छत से लेकर घर के अंदर तक हर रोज़ कार्बन बिछ जाता है। झाड़ू मारने पर हर रोज़ घर के अंदर से मिट्टी में मिला हुआ कार्बन एक से डेढ़ मुट्ठी निकलता है। सफ़ेद कपड़ा बाहर डाल दो, तो उस पर साफ-साफ कार्बन छाया हुआ दिखता है।
गुजरात में इस कार्बन से निपटने का कोई उपाय न तो सरकार ने आज तक किया है और न व्यवसायी वर्ग के संगठनों को इसकी कोई चिन्ता है। इससे आम लोगों को कई तरह के रोगों ने घेर रखा है।
दरअसल कार्बन फैक्ट्रियों की चिमनियों, कोयले के जलने और वाहनों के चलने से उत्सर्जित होता है। यह कार्बन न सिर्फ़ हमारे जीवन को नुक़सान पहुँचा रहा है, बल्कि मिट्टी की गुणवत्ता के लिए भी घातक सिद्ध हो रहा है। ज़मीन पर जमा होता यह कार्बन न सिर्फ़ खेतों की उपजाऊ मिट्टी को बर्बाद कर रहा है, बल्कि जलवायु को भी ख़राब कर रहा है। कार्बन के सबसे बड़ी स्थलीय भंडार बनी मिट्टी ख़राब होने से पानी भी प्रदूषित हो रहा है। हालाँकि मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ पोषक तत्त्वों से भरपूर होते हैं, जिनसे पौधों की अच्छी वृद्धि होती है।
फलों और फ़सलों की पैदावार में भी यह कार्बनिक पदार्थ बढ़ोतरी करने वाले होते हैं। यह अच्छा कार्बन होता है, जो पानी को पानी बनाये रखता है और हमारे शरीर को भी फ़ायदा पहुँचाता है। मिट्टी के लिए अनुकूल कार्बन ज़मीन के पारिस्थितिकी तंत्र का एक अभिन्न अंग है, जो इसके लचीलेपन और उत्पादकता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लेबोरेटरी और सहयोगियों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने अपने एक शोध ने मिट्टी के लिए उपयोगी कार्बन के प्रकारों का पता लगाया था। लेकिन जो कार्बन फैक्ट्रियों, ज्वलनशील पदार्थों से पैदा हो रहा है, वह घातक है। इसलिए इस कार्बन के बढऩे से कई तरह के रोग लोगों को लग रहे हैं और जलवायु प्रदूषित होने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन का कारण भी बन रहा है। पिछली दो शताब्दियों में इस तरह के कार्बन का विकट उत्सर्जन होने के चलते भूमि उपयोग और भूमि आवरण में बदलाव हुए हैं, जिससे मिट्टी में मौज़ूद कार्बन को भारी नुक़सान हुआ है।
वैज्ञानिकों ने क़रीब एक दशक पहले ही कहा था कि जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का कारण यही कार्बन है, जो हमारे वायुमंडल में लगातार बढ़ता जा रहा है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी थी कि अगर इस ख़तरनाक कार्बन के उत्सर्जन को नहीं रोका गया, तो परिणाम घातक होंगे। प्रो. स्मेटा चेक ने कुछ समय पहले एक बार फिर कहा था कि समय रहते हुए वायुमंडल में बढ़ते इस कार्बन की समस्या का समाधान खोजना होगा। इसका हल बताते हुए उन्होंने कहा था कि सबसे पहले हमें वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को कम करना होगा।
अगर कार्बन डाइऑक्साइड में कमी नहीं की गयी, तो विनाशकारी घटनाएँ बढ़ सकती हैं। प्रो. विक्टर स्मेटा चेक की बात बिलकुल सही साबित हुई। आज कई प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ दुनिया भर में घट रही हैं। इनमें से कुछ घटनाएँ वायुमंडल में बढ़ते कार्बन के कारण बढ़ रही हैं। अगर अब भी वातावरण में बढ़ते कार्बन को नहीं रोका गया, और कार्बन उत्सर्जन पर रोक नहीं लगायी गयी, तो इंसानों के साथ-साथ बा$की प्राणियों को भी साँस लेना मुश्किल हो जाएगा।
फ़िलहाल हमारी जलवायु में तेज़ी से बढ़ रहा कार्बन लगातार मुसीबत का कारण बनता जा रहा है, जिससे किसी एक को नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लोगों को ख़तरा है। जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल (आईपीसीसी) अपनी एक रिपोर्ट में कह चुका है कि अगर इसी रफ़्तार से कार्बन उत्सर्जन होता रहा, तो 2100 के आख़िर तक भारत में वेट बल्ब टेंपरेचर 35 डिग्री सेल्सियस हो जाएगा, जो जानलेवा साबित हो सकता है। विशेषज्ञों ने आईपीसीसी की इस रिपोर्ट बेहद ठोस, तात्कालिक और सार्थक बताया था।
संयुक्त राष्ट्र ने भी इस रिपोर्ट को सही मानते हुए वैश्विक स्तर पर बढ़ते कार्बन उत्सर्जन और उसकी वजह से हो रहे जलवायु परिवर्तन से इंसानों पर पड़ रहे दुष्प्रभावों पर चिन्ता व्यक्त की है। एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि वायुमंडल में बढ़ते कार्बन के दुष्परिणाम साल 2040 तक घातक होने लगेंगे। कार्बन उत्सर्जन के कारण हर साल धरती पर तापमान में बढ़ोतरी हो रही है, दुनिया भर के ग्लेशियर पिघल रहे हैं। ओजोन परत में छेद हो रहे हैं। इसके बावजूद वनों का कटान तेज़ी से हो रहा है। जलवायु परिवर्तन की वजह से फ़सलों की पैदावार घट रही है और खाद्यान्न की गुणवत्ता बिगड़ रही है। इससे इंसानों की औसत आयु घट रही है।
क्या कहते हैं डॉक्टर?
जनरल फिजिशियन डॉक्टर मनीष कहते हैं कि वायुमंडल में बढ़ते कार्बन के चलते अधिकतर लोगों कई तरह के रोगों से पीडि़त हैं। पेड़-पौधों की संख्या कम होने और इंसानों की आबादी बढऩे से वायुमंडल में वैसे भी ऑक्सीजन की कमी होती जा रही है, ऊपर से वाहनों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
इंसानों की आबादी बढऩे से उपयोगी वस्तुओं की माँग भी बढ़ रही है, जिससे उनका उत्पादन भी बढ़ाना पड़ रहा है। लेकिन ध्यान देने की बात यह है कि हमारे दैनिक उपयोग में सबसे ज़्यादा उत्पादन जिस चीज़ का हो रहा है, वो है प्लास्टिक। यही प्लास्टिक हमारे लिए सबसे घातक है और इसके उत्पादन से लेकर इसे नष्ट करने तक सबसे ज़्यादा कार्बन उत्सर्जित होता है। आज अधिकतर लोगों को साँस, फेफड़ों और आँखों से लेकर आँतों तक के रोग लगे हुए हैं। हम जिस हवा में साँस ले रहे हैं, उसमें कार्बन की बढ़ती मात्रा के चलते नज़ला, दमा, खाँसी, जुकाम और चर्म रोग तो अब आम हो चले हैं। कैंसर, टीबी के कई रूप अब हमारे लिए चुनौती बने हुए हैं। इससे बचने के उपाय यही हैं कि इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग बढ़ाया जाए। प्लास्टिक की चीज़ों पर प्रतिबंध लगे। ज़्यादा-से-ज़्यादा पेड़-पौधे लगाये जाएँ, और बढ़ती जनसंख्या को कम किया जाए।
बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अदिति सिंह कहती हैं कि बच्चों की देखभाल आजकल बहुत मुश्किल काम है। इसकी एक वजह नहीं है। आजकल न तो खानपान अच्छा है, न हवा और पानी में शुद्धता है, न खेलने का बच्चों के पास ठीक से मौ$का है, और न ही उन्हें पहले की तरह किताबों से प्रेम है। वे बचपन से ही मोबाइल की ओर आकर्षित हो जाते हैं। कई माताएँ तो अपने बच्चे को अपना दूध तक पिलाना नहीं चाहती हैं। वह जैसे ही कुछ खाने लायक होता, तो टॉफी, चॉकलेट, चिप्स, कुरकुरे, चाऊमीन, बर्गर, पिज्जा, मोमोज और तमाम तरह के नुकसानदायक फास्ट फूड खाने लगता है।
दुखद बात यह है कि माँ-बाप बच्चों को ये चीज़ शौक़ से खिलाते हैं। जिन बच्चों को इन चीज़ों के खाने की लत लग जाती है, वे न तो ठीक से घर का खाना खाते हैं और न कोई पौष्टिक आहार लेते हैं। इसके बाद वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड और तमाम तरह की ज़हरीली गैसें बढ़ रही हैं। तो यह माँ-बाप की ज़िम्मेदारी बनती है कि वे अपने बच्चों को किस तरह की परवरिश दे रहे हैं। जो दूध और पौष्टिक चीज़ें आजकल बच्चों को मिल रही हैं, उनमें अधिकतर में मिलावट है। आजकल बच्चों को ऐसी-ऐसी बीमारियाँ होने लगी हैं, जिसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती। कई माँ-बाप अपने बच्चे को लेकर आते हैं और उनकी यही शिकायत होती है कि उनका बच्चा ठीक से खाना नहीं खाता। यह गलती तो माँ-बाप की ही है न। अब पेड़ लगाने को भी लोग दूसरों पर एहसान समझते हैं, जबकि यह नहीं सोचते कि वे जिस पेड़ को लगाएंगे, वो उनके और उनके बच्चों के लिए ही फ़ायदेमंद होगा।