बिहार में जातीय जनगणना के विरोध में केंद्र सरकार ने नया हलफनामा दाखिल किया हैं। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देते हुए कहा था कि, जनगणना से जुड़ा काम केंद्र सरकार ही करा सकती है और इसके अलावा किसी भी राज्य सरकार व एजेंसियों के दायरे में जनगणना कराना नहीं हैं। किंतु सोमवार की शाम होने तक केंद्र सरकार ने अपने पुराने हलफनामे पर अपना स्टैंड बदल दिया और नया हलफनामा दाखिल करते हुए पुराने को खारिज करने की कोर्ट से मांग की है।
केंद्र सरकार ने पुराने हलफनामे में से पैरा-5 को हटा लिया है जिसमें कहा गया था कि जनगणना एक वैधानिक प्रक्रिया है और जनगणना अधिनियम 1948 के तहत शासित होती है। जनगणना का विषय सातवीं अनुसूची में संघ सूची प्रविष्टि 69 के तहत शामिल हैं।
वहीं दूसरी तरफ नए हलफनामे में सरकार का कहना है कि सेंसस एक्ट 1948 के तहत भी सिर्फ केंद्र सरकार को समग्र जनगणना कराने का अधिकार है, लेकिन नए हलफनामे में ‘जनगणना जैसी कोई अन्य प्रक्रिया’ शब्द को हटा दिया है।
आपको बता दें, कानून के जानकारों का कहना है कि राज्य सरकार अपना राज्य में किसी भी तरह का सर्वेक्षण करा सकती है। और सर्वेक्षण या आंकड़ों को जुटाने के लिए कोई भी कमेटी या आयोग का निर्माण कर सकती है। ठीक इसी अधिकार का उपयोग करते हुए उत्तराखंड सरकार ने यूसीसी के लिए कमेटी बनाई और सर्वेक्षण करा कर आंकड़े जुटाए।
बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि 6 अगस्त को सर्वे का कार्य पूरा हो चुका है और इसकी जानकारी वेबसाइट पर अपलोड कर दी गर्इ है। राज्य सरकार ने अपना रुख रखते हुए कहा कि वो निजता का हनन को ध्यान में रखते हुए अभी सर्वे का डेटा सार्वजनिक नहीं करेगी। और सिर्फ सामूहिक आंकड़े सामने रखे जाएंगे।