पंच वजे अप्रैल दी तेहरवीं नूं,
लोकीं बाग़ वल होए रवान चले।
दिलां विच इनसाफ़ दी आस रख के,
सारे सिख हिन्दू मुसलमान चले।
विरले आदमी शाहिर विच रहे बाकी,
सब बाल ते बिरध जवान चले।
अज दिलां दे दुख सुणान चले,
सगों आपने गले कटवाण चले।
छड़ दिउ हुण आसरा जीवने दा,
क्योंकि तुसीं हुण छड जहान चले।
किस ने आवणा परत के घरां अंदर,
दिल दा दिलां विच छोड़ अरमान चले।
जलिआं वालड़े उजड़े बाग़ ताईं,
खून डोल के सबज़ बणान चले।
अज होएके सब पतंग कटठे,
उपर शमा सरीर जलाण चले।
हां हां जीवने तों ड़ाढे तंग आ के,
रुठी मौत नूं आप मनाण चले।
अनल-हक मनसूर दे वांग यारो,
सूली आपनी आप गड़ाण चले।
वांग शमस तबरेज़ दे खुशी हो के,
खलां पुठीआं अज लुहाण चले।
पंछी बना दे होएके सब कटठे,
भुखे बाज़ नूं अज रजाण चले।
ज़ालम इाईर दी तिर्खा मिटवाणे नूं,
अज खून दी नदी वहाण चले।
अज शहर विच पैणगे वैण डूंघे,
वसदे घरां नूं थेह बणाण चले।
सीस आपने रख के तली उत्ते,
भारत माता दी भेंट चढ़ाण चले।
कोई मोड़ लो रब दे बंदिआं नूं,
यारो! मौत नूं आप बुलाण नूं,
मवां लाड़ले बचिआं वालिओ नी!
लाल तुसां दे जान गवाण चले।
भैणो पिआरीओ! वीर ना जाण देणे,
विछड़ तुसां तों अज नादान चले।
पत्ती रोक लौ पिआरेओं नारीओ नी!
अज तुसां नूं करन वैराण चले।
पिआरे बचिओं! जफीआं घत मिल लौ,
पिता तुसां नूं अज रुलाण चले।
जा के रोक लौ, जाण ना मूल देणे,
मतां उके ही तुसां तों जाण ले।
नानक सिंह पर उन्हां नूं कौण रोके,
जिहड़े मुलक पर होण कुरबान चले।
जनरल डाईर न आउणा
ते गोली चलणी
ठीक वक्त साढ़े पंच वजे दा सी,
लोक जमां होए कई हज़ार पिआरे,
लीडर देश दा दुख फरोलणे नूं,
लैक्चर देंवदे सन वारो वार पिआरे।
कहंदे जीवणा असां दा होएआं औखा,
किथे जाइके करीऐ पुकार पिआरे।
कोई सुझदी नहीं तदबीर सानूं,
डाढ़े होए हां असीं लाचार पिआरे।
अजे लफज़़ तदबीर मूंह विच हैसी,
उधर फ़ौज ने धूड धुमा दिती।
थोड़ी देर पिछे फ़ौज गोरखे दी,
जनरल डाइर ने अगांह वधा दिती।
देे के हुक्म नहक निमाणिआं ते,
काड़ काड़ बंधूक चला दिती।
मिंटां विच ही कई हज़ार गोली,
उहनां ज़ालमां ख़तम करा दिती।
गोली की एह गड़ा सी कहर वाला,
वांग छोलिआं भुंने जवान उथे।
कई छातीआं छानणी वांग होईआं,
अैसे जुलमां मारे निशन उथे।
इक पलक दे विच कुरलाट मचिआ,
धूंआ धार हो गिया असमान उथे।
कई सूरमे पाणी ना मंग सके,
रही कईआं दी तड़पदी जान उथे।
भीड़े राह हैसन इस बाग़ दे जी,
एह रोकिया उहनां ने आण उथे।
कोई राह ना जाण नूं रिहा बाकी,
किदां बच करके निकल जाण उथे।
कोई बचिया होए नसीब वाला,
नहीं तां सारिआं ने दिते प्राण उथे।
कई गोलीआं खाईके नठ भजे,
रसते विच ही डिग मर जाण उथे।
कईआं नसदिआं नूं गोली काड़ वजी,
झट पट ही दिते प्रराण उथे।
पल विच ही लोथा दे ढेर लग गए,
कोई सके ना मूल पछाण उथे।
गिणती सिखां दी बहुत ही नजऱ आवे,
भावें बहुत हिंदू मुसलमान उथे।
सोहणे सूरमे छैल छबीलडे जी,
हाए तडफ़दे शेर जवान उथे।
सोहणे केस खुले मिट्टी विच रुलण,
सुते लंमीआं चादरां ताण उथे।
नानक सिंह ना पुछदा बात कोई,
राखा उहनां दा इक भगवान उथे।