जमशेदपुर में झकझूमर

कुछ दिनों बाद जब जमशेदपुर लोकसभा चुनाव में प्रचार अभियान शुरू होगा तो उस समय के नजारे की कल्पना कीजिए. अगर अर्जुन मुंडा या भाजपा के कोई दूसरे नेता प्रचार करने जाएंगे तो वे किस अंदाज में अपनी बात रखेंगे? क्या कोई एक पूरा वाक्य बोल पाएगा या आधे पर ही ब्रेक लगा देना होगा जैसे यह जो झामुमो है, वह .. झामुमो के शिबू सोरेन जब अपने बेटे हेमंत सोरेन के साथ प्रचार करेंगे तो क्या भाजपा को खुल कर कोस सकेंगे कि वह सांप्रदायिक पार्टी है, इससे बचकर रहिए ! और सत्तारूढ़ गठबंधन के तीसरे साझेदार आजसू के सर्वेसर्वा सुदेश महतो क्या कह सकेंगे कि झामुमो और भाजपा दोनों ही धोखेबाज और चालबाज पार्टियां हैं.

जाहिर-सी बात है, एक-दूसरे को मैदान में पटखनी देने के लिए उतर जाने के बावजूद तीनों पार्टियों के नेताओं को एक-दूसरे के बारे में कुछ कहने से पहले कई बार सोचना होगा. दरअसल जमशेदपुर लोकसभा सीट पर होने वाले उप चुनाव में स्थितियां ही ऐसी बनी हैं कि सारे दोस्त, दुश्मन में बदलते नजर आ रहे हैं. भले ही वह मौसमी  तौर पर या दिखावे के लिए हों. वैसे चुनावी घमासान सिर्फ भाजपा, झामुमो, आजसू गठबंधन के बीच ही नहीं होना है बल्कि विपक्ष की राजनीति करनेवाले कांग्रेस और झारखंड विकास मोर्चा भी ऐसे ही आपस में गुत्थमगुत्था हो रहे हैं.

जमशेदपुर सीट पर चुनाव एक जुलाई को होना है, इस बीच आपसी मुकाबले के कैसे-कैसे रंग सामने आते हैं, आपसी रिश्ते में खटास कितनी गहराती है और इससे सरकार पर आगामी दिनों में कैसा असर पड़ता है, यह देखना दिलचस्प होगा. हालांकि अभी रांची में बैठकर भाजपा, झामुमो और आजसू के आलाअलम यह कह रहे हैं कि इस चुनाव से सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

वैसे देखा जाए तो इस चुनाव में भाजपा की प्रतिष्ठा सबसे ज्यादा दांव पर लगी है, क्योंकि यह सीट राज्य के मुखिया अर्जुन मुंडा ने खाली की है. झामुमो ने इसे प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है, क्योंकि भाजपा के पहले यह सीट उसके पास ही थी. रही बात कांग्रेस की तो जमशेदपुर में एक सीट की विधायकी उसे पिछले विधानसभा चुनाव में मिली थी और अब विधायक को ही सांसद बनाकर वह इस चुनाव के जरिये अपने दायरे का विस्तार करने की कोशिश में है. बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो ने गत माह खरसांवा विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को कड़ी चुनौती देकर यह संकेत दे दिया था कि मरांडी इस इलाके में तेजी से जनाधार बढ़ा रहे हैं. और इन सबके बीच आजसू जैसी पार्टी है, जिसके पास खोने के लिए तो कुछ नहीं लेकिन पाने के लिए बहुत कुछ है.

अब अगर दलों के प्रत्याशियों की बात करें भाजपा की ओर से खुद प्रदेश अध्यक्ष दिनेशानंद गोस्वामी मैदान में हैं. कहा जा रहा है कि अर्जुन मुंडा की कोशिशों से उन्हें टिकट मिला है. भाजपा की ओर से  पूर्व विधायक सरयू राय, पूर्व मंत्री दिनेश षाडंगी, मुंडा के खासमखास अमरप्रीत सिंह काले आदि के नामों की चर्चा भी कोई कम नहीं थी. मुख्यमंत्री के पसंदीदा उम्मीदवार के खिलाफ टिकट पाने से चूके हुए इन भाजपाइयों द्वारा भीतरघात की संभावना तो कम है लेकिन मुंडा का विरोधी खेमा भी जमशेदपुर में खासा प्रभाव रखनेवाला है, जो छिपकर अपना खेल खेल सकता है. झामुमो से यहां स्वाभाविक तौर पर सुमन महतो के नामों की उम्मीद की जा रही थी. वे पहले भी सांसद रह चुकी हैं. स्व. सुनील महतो का अपना प्रभाव रहा है, इसका फायदा भी उन्हें मिल सकता था. सुमन के बाद जिस नाम की चर्चा थी, वह नाम दुलाल भुइयां का था, लेकिन पार्टी ने इन दोनों नामों को परे कर राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री और विधानसभा चुनाव में हारे हुए प्रत्याशी सुधीर महतो को टिकट थमा दिया है. नाराज सुमन तृणमूल का दामन थामने को तैयार हैं जबकि दुलाल भुइयां ने  टिकट नहीं मिलने के बावजूद अपनी कसक मन में ही दबा ली है. झामुमो के ही सबसे ज्यादा भितरघात का सामना करने की संभावना है.

चुनाव के पहले उसे पहला झटका तो उसके सहयोगी दल आजसू ने ही दिया है जिसने उसके नेता आस्तिक महतो को अपने पाले में कर उन्हें टिकट दे दिया है. बाबूलाल मरांडी ने सधी हुई चाल चलते हुए, डॉ अजय कुमार को, जो  पूर्व में जमशेदपुर में चर्चित आइपीएस अधिकारी रह चुके हैं, टिकट दिया है. सबसे ज्यादा हास्यास्पद स्थिति तो कांग्रेस की है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप बलमुचु टिकट चाहते थे पर कांग्रेस ने बन्ना गुप्ता पर ज्यादा भरोसा दिखाया. बताया जा रहा है कि बन्ना गुप्ता को राहुल गांधी से नजदीकियों का फायदा मिला. लेकिन चुनाव आते-आते बलमुचु मन में दबी आकांक्षाओं को कैसा स्वर देते हैं, यह देखना भी कोई कम दिलचस्प नहीं होगा.