1977 में जिन दलों के सहयोग से मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने थे उनमें चौधरी चरण सिंह का लोक दल भी था. जब मोरारजी को प्रधानमंत्री बनाया गया था तो उस वक्त भी चरण सिंह इस फैसले से खुश नहीं थे. उन्हें लगता था कि प्रधानमंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार तो वे हैं. उन्हीं की पार्टी के चुनाव चिह्न पर लोकसभा चुनाव भी लड़े गए थे. उस वक्त राजनारायण ने चरण सिंह को यह समझाया कि वे अभी मोरारजी को प्रधानमंत्री बनने दें, कुछ समय बाद उन्हें प्रधानमंत्री बना दिया जाएगा. चरण सिंह को मोरारजी सरकार में उप- प्रधानमंत्री बनाकर मनाया गया था.
जिन लोगों ने मोरारजी की अगुवाई वाली जनता सरकार के कामकाज को देखा है, वे कहते हैं कि उस सरकार में नेतृत्व को लेकर खींचतान पहले दिन से ही थी. चरण सिंह वह मौका तलाशते रहते थे जिससे मोरारजी को हटाकर वे खुद प्रधानमंत्री बन जाएं. 1979 में एक ऐसा ही मौका आया. 1977 के चुनावों में हारी कांग्रेस की नेता इंदिरा गांधी ने चरण सिंह को यह भरोसा दिलाया कि अगर वे जनता सरकार से बाहर आकर सरकार बनाने का दावा पेश करते हैं तो कांग्रेस उनका समर्थन करेगी. 64 सांसदोें के साथ चरण सिंह बाहर आ गए और 28 जुलाई, 1979 को उन्हें प्रधानमंत्री पद का शपथ दिलाई गई. चौधरी चरण सिंह देश के इकलौते ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो लोकसभा का सामना तक नहीं कर पाए. जिस दिन उन्हें लोकसभा में अपना बहुमत साबित करना था, उसके एक दिन पहले कांग्रेस ने लोक दल से अपना समर्थन वापस ले लिया और चरण सिंह को इस्तीफा देना पड़ा.