अमित शाह ने भाजपा के अंदर ‘एक देश, एक चुनाव’ पर बहस छिड़वा दी है। इसके साथ ही उन्होंने विधि आयोग के अध्यक्ष जस्टिस बीएस चौहान को इस बाबत पत्र भी भेजा है। भारतीय चुनाव आयोग अब इस प्रस्ताव से बढऩे वाले खर्च के हिसाब-किताब में जुट गया है। ईवीएम मशीनों, वीवीपीएटी मशीनों के साथ ही सुरक्षा और लोगों की ज़रूरत जताई जा रही है। लेकिन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का कहना टालना आसान नहीं लगता।
विधि आयोग को अमित शाह ने आठ पेज का पत्र भेजा है। ऐसा ही पत्र केंद्रीय चुनाव आयोग को भी भेजा गया है। हालांकि कांगे्रस और कई दूसरी पार्टियां देश में ‘एक देश, एक चुनाव’ के तहत एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में नहीं हैं। इस पर अमित शाह का कहना है कि इस मुद्दे का विरोध आधारहीन है। ‘एक देश,एक चुनाव’ होने से देश के संघीय ढांचे को खासी मज़बूती मिलती है। विपक्ष जो विरोध कर रहा है वह आधारहीन है। उसे राजीतिक तौर पर उकसाया गया है जो अनुचित है।
अमित शाह ने विपक्ष के इस अंदेशे को भी बेबुनियाद बताया कि इस तरह चुनाव कराने से राष्ट्रीय पार्टियों को ही ज़्यादा लाभ मिलेगा। उन्होंने उदाहरण दिया कि जब 1980 में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हुए थे उसके साथ ही संसदीय चुनाव भी हुए। कांगे्रस की तब जीत हुई। इसी तरह 2016 में जब महाराष्ट्र सरकार ने राज्य के 307 दिन के लिए उन इलाकों के लिए आदर्श संहिता जारी की थी जहां संसद, विधानसभा या स्थानीय निकायों के लिए चुनाव होने थे। अमित शाह का पत्र तब पहुंचा था जब केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी के नेतृत्व में पार्टी के नेता विनय सहस्त्र बुद्धेे, भूपेंद्र यादव और अनिल बलूनी एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे पर विधि आयोग के अध्यक्ष से मिले। इस बात की पूरी संभावना लग रही है कि अगले वर्ष यानी 2019 की शुरूआत में ही बारह राज्यों में चुनाव एक साथ हो जाएंगे।