चुनावी वैतरणी की गाय

इसे पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में चुनावी गहमागहमी का असर समझा जाए या विपक्ष के आक्रामक तेवरों से उपजी मजबूरी, लेकिन मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार की हाल की कवायदों से साफ हो गया है कि यहां अगले विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं. इस चुनावी तैयारी का सबसे विरोधाभासी पहलू यह है कि जिस भाजपा ने आज से लगभग आठ साल पहले विकास को मुद्दा बनाकर कांग्रेस से सत्ता हथियाई थी वह अब अपने हिंदूवादी एजेंडे पर दोबारा लौटती दिख रही है.

पिछले साल अजय सिंह (कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. अर्जुन सिंह के पुत्र) की बतौर नेता प्रतिपक्ष और कांतिलाल भूरिया की कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर ताजपोशी हुई थी. उसके बाद राज्य में पार्टी विधानसभा से लेकर सड़कों तक अचानक आक्रामक हो गई. गौरतलब है कि विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भाजपा के दोनों कार्यकालों के दौरान पहली बार कांग्रेस ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था. यह पहला मौका था जब सत्ताधारी भाजपा का आत्मविश्वास कुछ हिलता दिखा. लेकिन इसके बाद से मध्य प्रदेश में भाजपा कांग्रेसी आक्रामकता का जवाब देने और मूल हिंदू वोट बैंक को रिझाने के लिए प्रतीकों की राजनीति तेज करने में जुट गई है. स्कूलों में सूर्य नमस्कार को अनिवार्य करने से लेकर पिछले साल गीता सार को स्कूली पाठ्यक्रमों में शामिल करने तक के मसले राष्ट्रीय स्तर पर काफी चर्चा और विवाद का विषय रहे हैं. इसी कड़ी में ताजा विवाद राज्य की भाजपा सरकार द्वारा शुरू किए गए बछड़ा बचाओ अभियान से जुड़ा है.

इस साल की शुरुआत में ही भोपाल में ‘भारतीय गौवंश संरक्षण व संवर्धन’ के लिए एक राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित हुई थी. इसी कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक नए ‘बछड़ा बचाओ अभियान’ की घोषणा की. इस मौके पर मुख्यमंत्री का कहना था कि सरकार ‘मध्य प्रदेश गौवंश वध प्रतिषेध कानून’ का सख्ती से पालन करेगी और इसके क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए हर जिले में विशेष अधिकारी नियुक्त किए जाएंगे. इस कार्यक्रम के दौरान मंच से भाजपा नेताओं द्वारा गाय संरक्षण के लिए कुछ ऐसे हास्यास्पद तर्क भी दिए गए कि तुरंत ही राज्य सरकार मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस सहित मीडिया के निशाने पर आ गई. ‘1984 के भोपाल गैस कांड में सिर्फ वे लोग ही बच पाए जो गाय के गोबर से लिपे थे’, ‘ परमाणु विकिरण से सिर्फ गाय का गोबर ही हमें बचा सकता है’ और ‘मरने से बचना है तो गाय की शरण में जाना होगा’ जैसे कई विवादास्पद बयानों और पशुपालन मंत्री अजय विश्नोई द्वारा गायों की देखभाल के लिए हर जिले को दो से तीन करोड़ रुपये का फंड दिए जाने की घोषणा के बाद यह स्पष्ट हो गया कि भाजपा के लिए यह मसला अगले साल बाद होने वाले चुनावों की पृष्ठभूमि तैयार करने से जुड़ा है.

गौरतलब है कि लंबे समय से केंद्र में अटके ‘मध्य प्रदेश गौवंश वध प्रतिषेध कानून’ को 22 दिसंबर, 2011 को राष्ट्रपति से मिली स्वीकृति के बाद राज्य में लागू कर दिया गया है. इस कानून के तहत गौवंश की हत्या करने वाले या गाय का मांस खाने वाले किसी भी व्यक्ति को सात साल की कैद के साथ-साथ 5,000 रुपये का आर्थिक दंड भी भरना पड़ेगा. कानून में यह प्रावधान भी है कि हेड-कांस्टेबल या कोई भी ‘अधिकृत व्यक्ति’ मात्र गौवंश की हत्या या गाय के मांस खाए जाने की आशंका और संदेह के आधार पर ही छापा मार कर गिरफ्तारी कर सकता है. इस मामले में अदालत में अपनी बेगुनाही साबित करने का पूरा दारोमदार आरोपित पर होगा. एक ओर जहां विपक्ष इसे अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने और हिंदू वोट बैंक को मजबूत करने के लिए लाए गए कानून के तौर पर देख रहा है, वहीं जानकार कहते हैं कि राज्य में कानून को लागू करने और गौ-मांस की जांच करने के लिए जरूरी आधारभूत ढांचा ही मौजूद नहीं है. ऐसे में यह कानून बड़ी संख्या में अल्पसंख्यकों की संदेह-आधारित गिरफ्तारियों का कारण बन सकता है.

इस मसले पर भाजपा की बढ़ती आक्रामकता का एक उदाहरण तब देखने को मिला जब हाल ही में छिंदवाडा जिले के एक 25 वर्षीय व्यापारी की बजरंग दल के कार्यकर्ताओं द्वारा की गई पिटाई का मामला सामने आया. पिछले साल 31 दिसंबर की शाम को बजरंग दल के कुछ कार्यकर्ताओं ने अनीश कुरैशी नाम के एक व्यापारी का आधा सर मुंडवा दिया और उसकी आधी मूंछ भी काट दी. बजरंग दल कार्यकताओं का आरोप था कि अनीश गौ-हत्या करने जा रहा था और इसीलिए उन्होंने उसकी पिटाई की. अनीश के पिता असलम कुरैशी का कहना है कि उनका लड़का उमरानाला बाजार में पशुओं को बेचने जा रहा था जब रास्ते में बजरंग दल कार्यकर्ताओं ने खरीदी की वैधानिक रसीद फाड़ कर उसे इस नए कानून के नाम पर धमकाना शुरू कर दिया और उसके साथ मारपीट की. इस घटना की सुनवाई फिलहाल अदालत में चल रही है. पर नए मध्य प्रदेश गौ वंश वध प्रतिषेध कानून और उसके क्रियान्वयन के मद्देनजर इस घटना की प्रदेश में अभी तक चर्चा बनी हुई है.

‘चुनाव के एक साल पहले भाजपा की यह चुनावी रणनीति उसके लिए जोखिमभरी साबित हो सकती है’

भारतीय धर्म और इतिहास के विशेषज्ञ जितेंद्र सुमन मामले के धार्मिक-राजनीतिक  मंतव्यों पर बात करते हुए कहते हैं, ‘प्रतिस्पर्धी प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली में जनमत को अपने पक्ष में करने के लिए अक्सर धर्म आधारित चिह्नों का प्रयोग किया जाता रहा है. गाय निस्संदेह हिंदू धर्म के पवित्र चिह्नों में से एक है और इसे किसी तरह की हानि पहुंचाने की सख्त मनाही है. ऐसे में गाय पर संकट को धर्म पर संकट के तौर पर देखा जाता है और राजनेता इसे भुनाने की कोशिश करते हैं.’

अपने नए ‘बछड़ा बचाओ अभियान’ के तहत मध्य प्रदेश सरकार गौवंश को बचाने की पुरजोर कोशिश तो कर रही है पर एक व्यापक पशु-धन और वन्य जीव संरक्षण नीति की कमी इन अभियानों को पशुधन बचाने की बजाय वोट बढ़ाने की नीयत से शुरू किए गए अभियानों में तब्दील कर रही है.  राज्य में बाघों पर काम कर रहे वन्य जीव विशेषज्ञ अजय दुबे बताते हैं, ‘ पिछले आठ वर्षों में अगर प्रदेश का कोई क्षेत्र सबसे ज़्यादा उपेक्षित रहा है तो वह वन्य-जीव संरक्षण है. प्रदेश सरकार के पास न तो कोई ठोस वन्य जीव संरक्षण नीति है और न ही पशुधन संरक्षण नीति. आज राज्य में जितनी गौशालाएं मौजूद हैं उनकी स्थिति भी कितनी दयनीय है, यह सबको पता है. पिछले कई सालों से हम वन्य जीव संरक्षण की लड़ाई लड़ रहे हैं, पर सरकार से हमेशा उपेक्षा ही मिली. हर बार सिर्फ घोषणाएं हुईं और उनके क्रियान्वयन के नाम पर भ्रष्टाचार.

सरकार बाघों और दूसरे वन्य जीवों को नहीं बचाना चाहती, यह तो साफ हो चुका है. पर बछड़ों को बचाने के लिए भी जिस ईमानदार नीयत की जरूरत है वह कम से कम इस सरकार में तो नहीं है.’ वहीं इस मामले को कृषि अर्थव्यवस्था और पोषण सुरक्षा से जोड़ते हुए भोजन के अधिकार से जुड़े कार्यकर्ता सचिन जैन कहते हैं, ‘ मौजूदा कानून पूरी तरह राजनीति से प्रेरित है. एक सर्वे के अनुसार सन 2004 से 2010 के बीच मध्य प्रदेश में गौवंश मांस की खपत कई गुना बढ़ी है. ऐसे में सरकार की गाय से जुड़ी सारी चिंताओं का चुनाव के सिर्फ एक साल पहले सामने आना भी सवाल खड़े करता है. फिलहाल तो यह कानून गौशालाओं के नाम पर प्रदेश भाजपा सरकार द्वारा विश्व हिंदू परिषद और संघ के लिए नए दफ्तर खोलने और अपनी राजनीतिक जड़ें मजबूत करने की एक कवायद तक सीमित लगता है.’

इधर विपक्षी पार्टियों ने भी राज्य-सरकार के ‘बछड़ा बचाओ अभियान’, ‘गौ अभयारण्य’ , ‘गीता सार’ और ‘सामूहिक सूर्य नमस्कार’ के जरिए अपना वोट बैंक मजबूत करने की कवायदों के खिलाफ मोर्चा तान दिया है. राज्य सरकार के इस नए अभियान के खिलाफ नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह  का बयान था, ‘मुख्यमंत्री महोदय को मेरी सलाह है कि वे बछड़ों को बचाने की बजाय राज्य में भुखमरी और कुपोषण से मर रहे हजारों बच्चों को बचाने की कोशिश करें.’

विकास के मुद्दों से उलट इस बार अचानक हिंदूवादी एजेंडों के जरिए प्रचार पाने की कोशिश पर राज्य के राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा को इससे राज्य में नुकसान हो सकता है. वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक राशिद किदवई कहते हैं,’ भाजपा की राजनीतिक रणनीति में आए इस गंभीर परिवर्तन को तर्कसंगत नहीं ठहराया जा सकता. मुझे लगता है कि यह खुद मुख्यमंत्री का निर्णय नहीं होगा क्योंकि आम तौर पर शिवराज सिंह चौहान स्पष्ट तौर पर इतने पक्षपाती और उलझे बयान देने से बचते हैं. ताजा घटनाओं और कार्यक्रमों में उनके सलाहकारों की भूमिका हो सकती है. जो भी हो लेकिन यह जोखिम भरी रणनीति है. एक ऐसे राज्य में जहां इतनी बड़ी मुसलिम आबादी रहती हो वहां इतनी आक्रामक हिंदुत्व रणनीति सरकार को भारी पड़ सकती है. ऐसे समय में जब चुनावों में सिर्फ एक साल बचा हो और सत्ता विरोधी असर पहले ही मुश्किलें बढ़ा सकता हो, तब इस तरह की रणनीति को सिर्फ ‘रिस्की’ ही कहा जा सकता है.’

बहरहाल चुनावी लोकतंत्र के इस पंचवर्षीय अनुष्ठान के संकेत मध्य प्रदेश में पार्टियों के स्तर पर मिलने लगे हैं. और विकास के मुद्दों पर सत्ता में आई भाजपा द्वारा धार्मिक प्रतीकों की राजनीति से ये संकेत भी मिल रहे हैं कि उसके लिए अगले साल का चुनावी समर आसानी से जीत पाना अब उतना भी सहज नहीं.