अमेरिका के रिपब्लिकन सदस्य, माइकल मैककॉल ने जब यह ट्वीट किया कि ‘भारत को अपनी सम्प्रभुता की रक्षा करने के लिए मज़बूती से खड़े देखकर अच्छा लगा’, तो यह स्पष्ट हो गया कि बीजिंग ने किस कारण से सीमा पर पीछे हटने का फैसला किया है। मैककॉल ने ही एक और ट्वीट में कहा- ‘चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की पूर्व और दक्षिण चीन सागर से लेकर मेकांग और हिमालय तक निरंतर क्षेत्रीय आक्रामकता के लिए 21वीं सदी में कोई जगह नहीं है। उन्होंने इस टिप्पणी से संकेत दिया कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय चीन की सेना के आर्थिक विस्तारवाद से व्याकुल है।
तहलका के मौजूदा अंक की आवरण कथा इसी मुद्दे पर है कि कैसे और क्यों बीजिंग ने दुनिया के सामने यह घोषणा करने में असामान्य तत्परता दिखायी है कि भारत के साथ सीमा पर सेना की वापसी शुरू हो गयी है और नौ महीने तक सीमा पर चला गतिरोध खत्म हो गया है। क्वाड (भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका का साझा रणनीतिक मंच), जो क्षेत्रीय अखण्डता और सम्प्रभुता के लिए सम्मान के आधार पर नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय आदेश को बनाये रखने के लिए प्रतिबद्ध है; ने चीन को आईना दिखाया। इसके बाद ही चीन की तरफ से पीछे हटने की घोषणा हुई। क्वाड के रिकॉर्ड में है कि चीन ने उसके सभी चार सदस्यों के किसी भी औपचारिक सम्मेलन से पहले राजनयिक विरोध जताया था। इसके एक दिन बाद ही रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में पुष्टि की थी कि भारत-चीन सीमा पर सेना की वापसी की शुरुआत हो गयी है। उन्होंने तत्काल यह भी जोड़ा कि भारत ने कोई क्षेत्र नहीं छोड़ा है। यह समझौता पूर्वी लद्दा$ख में पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी तट पर चरणबद्ध, समन्वित और सत्यापित आधार पर सेना की वापसी को लेकर है।
भारत और चीन ने बड़ी संख्या में युद्धक टैंक और पूर्वी लद्दाख क्षेत्र के ऊँचाई वाले इलाकों में भारी सैन्य उपकरणों को जुटाया था। इसके बाद पिछले साल जून में गलवान घाटी में खूनी संघर्ष के बाद तनाव बढ़ गया था। आमने-सामने के इस संघर्ष में 15 जून, 2020 को एक कमांडिंग अफसर सहित 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गये थे। दोनों पक्षों के बीच कई दशक के बाद यह सबसे गम्भीर सैन्य संघर्ष था। लगभग 8-9 महीने के बाद चीन ने आख़िर अब यह स्वीकार किया है कि उसके भी चार सैनिक गलवान घाटी के संघर्ष में मारे गये थे। हालाँकि एक अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट में चीनी पक्ष के हताहतों की संख्या 35 या उससे अधिक होने का दावा किया गया है। तनाव कम होने के संकेत के बाद अब चीन अपनी साख बचाने के लिए अपनी जीत का दावा कर रहा है और उसने पिछले साल जून के खूनी संघर्ष में अपने पाँच सैनिकों, जिनमें चार संघर्ष में मारे गये थे, के लिए वीरता पुरस्कारों की घोषणा भी की है।
भले ही चीन ने अपने पाँव पीछे खींच लिए हैं, लेकिन भारत को बहुत सतर्क रहने की आवश्यकता है। क्योंकि चीन के सैन्य और आर्थिक विस्तार को देखते हुए भारत उस पर भरोसा नहीं कर सकता। चीन का अपने पाँव पीछे खींचना भ्रामक होने के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की आलोचना से बचने की एक चाल भर हो सकती है। अक्सर कही जाने वाली शेक्सपियरन कहावत का एक उद्धरण चीन पर सटीक बैठता है कि ‘कोई मुस्कुरा सकता है, और मुस्कुरा सकता है, और वह एक खलनायक भी हो सकता है।