दुनिया भर में कोरोना वायरस फैलाने के संदेह से घिरे चीन को विकसित देश अब घेरने लगे हैं। क्योंकि इस जानलेवा वायरस की वजह से पूरी दनिया में करीब दो लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि लाखों लोग इसकी चपेट में अब भी हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पक्के तौर पर कमर कसे बैठे हैं और माना जा रहा है कि मौका आते ही वह चीन को सबक सिखाएँगे। वहीं जापान और जर्मनी भी चीन से खार खाये बैठे हैं। इन दिनों चीन जितने आराम से पूरी दुनिया को आफत में डालकर व्यावसायिक गतिविधियाँ चला रहा है, उसे पूरी दुनिया देख रही है। सम्भव है कि हालात सामान्य होने तक ये देश चीन पर दबाव कम बनाएँ, पर यह तय है कि ये देश चीन को अब चैन नहीं लेने देंगे।
डोनाल्ड ट्रंप पहले ही कोरोना वायरस को चीनी वायरस बोल चुके हैं। अब जर्मनी, इटली, कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका आस्ट्रेलिया, जापान और भारत चीन के खिलाफ खड़े हो चुके हैं। जर्मनी तो चीन को 149 बिलियन यूरो का बिल भी भेज चुका है। जर्मनी ने चीन को यह बिल अपने यहाँ कोरोना पीडि़तों के इलाज में खर्च और हुए नुकसान की भरपाई के आधार पर भेजा है। यही नहीं जर्मनी ने चीन को जल्द-से-जल्द इस बिल का भुगतान करने को कहा है। वहीं, इटली भी चीन की तरफ आँखे तरेर रहा है। अमेरिका भी चीन को परिणाम भुगतने की चेतावनी दे ही चुका है। इसके अलावा ब्रिटेन, कनाडा, आस्ट्रेलिया, जापान भी चीन से बदला लेने की फिराक में हैं। कई यूरोपीय देश भी चीन को ही कोरोना वायरस फैलाने के लिए ज़िम्मेदार मान रहे हैं। इधर, जर्मनी ने चीन को भेजे 149 बिलियन यूरो के बिल में कोरोना वायरस से पीडि़त लोगों के इलाज के खर्च के अलावा 27 बिलियन यूरो टूरिज्म, 7.2 बिलियन यूरो फिल्म इंडस्ट्री और जर्मन एयरलाइंस तथा 50 बिलियन यूरो छोटे व्यावसायिक नुकसान की भरपाई को शामिल किया है।
क्या चीन के शोधछात्र की गलती से फैला वायरस?
तमाम आरोपों-प्रत्यारोपों के बाद अब यह बात सामने आ रही है कि चीन के वुहान शहर में सेना के लिए काम कर रही एक गोपनीय लैबोरेटरी में एक शोध छात्र की गलती से कोरोना वायरस लीक हुआ था। हालाँकि इस बात को चीन अभी तक छिपा रहा है। लेकिन दुनिया के सामने अब चीन की हरकतें सामने आने लगी हैं। क्योंकि चीन की ही कई रिपोर्टों से ज़ाहिर होने लगा है कि हो-न-हो यह जानलेवा वायरस चीन की ही साज़िश का नतीजा है। यही वजह है कि अमेरिका के अलावा दुनिया के कई ताकतवर देश अब चीन से निपटने की भूमिका में दिखने लगे हैं। इसका कारण कोरोना वायरस की वजह से इन सभी देशों के नागरिकों की जान जाना और हर तरह से बेइंतिहा नुकसान होना है।
साबित हुई चीन की गलती, तो भुगतने होंगे परिणाम
कोरोना वायरस से दुनिया भर में फैली तबाही से जहाँ पूरी दुनिया चीन पर नज़र रखे हुए है, वही यूरोप और अमेरिका चीन से आर-पार के मूड में हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कह चुके हैं कि अगर कोरोना वायरस के लिए चीन ज़िम्मेदार निकला, तो इसके परिणाम उसके लिए ठीक नहीं होंगे। इतना ही नहीं, वे चीन के वुहान शहर में जाँच टीम भेजने की पूरी तैयारी किये बैठे हैं। वहीं, ब्रिटेन और दुनिया के करीब डेढ़ दर्जन शक्तिशाली देश चीन की ओर संदेह की नज़रों से देख रहे हैं। पिछले एक महीने से अमेरिकी खुफिया एजेंसियाँ यह जानने की कोशिश कर रही हैं कि क्या चीन ने कोरोना वायरस जानबूझकर फैलाया है? अगर यह बात साबित हो जाती है, तो ट्रंप की धमकी को हकीकत में बदलते देर नहीं लगेगी। अमेरिकी राष्ट्रपति कह चुके हैं कि उन्होंने कोरोना वायरस को लेकर चीनी अधिकारियों से बहुत पहले बात की थी कि अमेरिकी जाँच टीम अन्दर (वुहान शहर में बनी लैबोरेटरी तक) जाना चाहती है, ताकि पता लगा सके कि वुहान में क्या हो रहा है? लेकिन वे (चीनी सुरक्षा अधिकारी) हमारा स्वागत करने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने कहा है कि चीन यह ठीक नहीं कर रहा है। अगर वह इसका ज़िम्मेदार निकलता है, तो इसके नतीजे उसे ही भुगतने होंगे। यही नहीं, ट्रंप डब्ल्यूएचओ और चीन पर मिलीभगत का आरोप तक लगा चुके हैं और उन्होंने डब्ल्यूएचओ को दिये जाने वाले फंड पर रोक लगा दी है।
अमेरिका का साथ देंगे कई देश
अगर यह साबित हो गया कि कोरोना वायरस फैलने के पीछे चीन की साज़िश है, तो अमेरिका उसके विरुद्ध युद्ध नीति अपना सकता है। अगर ऐसा होता है, तो अमेरिका का साथ कई देश देंगे और हो सकता है कि चीन को इसके भयंकर परिणाम भुगतने पड़ें। शायद यही वजह है कि चीन कोरोना वायरस के फैलने वाले स्थान वुहान शहर में जाँच टीमों को आने की अनुमति नहीं दे रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति ने ही नहीं, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रो ने भी चीन पर ही संदेह जताया है। इससे तमाम पीडि़त देशों की शंकालु नज़रें चीन की तरफ और उठने लगी हैं। अमेरिका के बार-बार कहने पर भी चीन अपने को निर्दोष साबित करने की भरसक कोशिश कर रहा है।
एफडीआई नियम हुए कड़े
यूरोपीय संघ द्वारा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के नियम कड़े किये जाने के बाद यूरोपीय संघ के कई सदस्य देशों ने इन नियमों का कड़ाई से पालन शुरू कर दिया है। नियम कड़े करने से पहले ही यूरोपीय संघ अपने सदस्य देशों को चेतावनी दे चुका था कि वे अपने यहाँ एफडीआई नियमों को सख्त बनाएँ, अन्यथा उन्हें बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।
यह नियम चीन व्यापारिक गतिविधियों पर अंकुश लगाने और उसके बारगेन हंटिंग को रोकने के लिए लागू किये जा रहे हैं। फिलहाल जर्मनी, फ्रांस, इटली, स्पेन, आस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका, भारत समेत अनेक देश एफडीआई नियमों को सख्त कर रहे हैं। इटली पहले ही गोल्डन पॉवर लॉ पेश कर चुका है, जिसके अनुसार संवेदनशील क्षेत्रों में विदेशी निवेश पर अंकुश लगाने की बात की गयी है। इसके अलावा विदेशी व्यापार, मुख्य रूप से चीन के व्यापार को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। ऑस्ट्रेलिया ने भी अस्थायी रूप से विदेशी अधिग्रहण के नियमों को कड़ा कर दिया है।
कनाडा ने अपने विदेशी निवेश नियम को और सख्त बना दिया है, जिसमें चीन को प्रमुख रूप से चिह्नित किया गया है। वहीं जापान भी चीन से बेहद नाराज़ है और चीन से व्यापारिक गतिबिधियाँ कम करने हेतु कदम उठा लिये हैं। जापान अपने व्यापारियों को चीन से उद्योग-व्यापार खत्म करने को कह चुका है। ब्रिटेन ने कम्प्यूटर हार्डवेयर, क्वांटम टेक्नोलॉजी और सैन्य हथियारों आदि के अधिग्रहण पर सख्ती दिखायी है। अमेरिका में विदेशी निवेश समिति (सीएफआईयूएस) किसी विदेशी कम्पनी से हर खरीद की जाँच कर रही है। अब भारत ने भी एफडीआई नियमों पर कड़ा रुख अपनाना शुरू कर दिया है। इतना ही नहीं, अधिकतर देश अपने यहाँ चीन के लोगों के व्यवसायों को खत्म करने की रणनीति पर भी विचार कर रहे हैं।
विरोध कर रहा चीन
इधर, यूरोपीय संघ द्वारा एफडीआई नियमों को सख्त करने के बाद भारत ने जैसे ही एफडीआई नियमों को सख्त किया, चीन ने भारत की ओर आँखें तरेरनी शुरू कर दीं। हालाँकि चीन दबी ज़ुबान से यूरोपीय देशों का भी विरोध कर रहा है, लेकिन भारत को लक्ष्य करते हुए हाल ही में उसने कहा कि एफडीआई नियमों को सख्त करना विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सिद्धांतों और मुक्त एवं निष्पक्ष व्यापार के विरुद्ध है। चीन ने कहा है कि हम उम्मीद करते हैं कि भारत यह भेदभाव वाली नीति से दूर रहेगा और अलग-अलग देशों के निवेश से एक जैसा बर्ताव रखेगा। चीन ने यह भी कहा है कि चीनी निवेश भारत में उद्योग के विकास और रोज़गार सृजन का समर्थन करता है। इसलिए भारत को उसके प्रति पहले जैसा व्यवहार रखना चाहिए। चीन के इस संदेश में एक तरह से पहले की तरह धमकी भी छिपी है। मगर ऐसे समय में भारत को डरने की ज़रूरत नहीं, क्योंकि चीन के खिलाफ लगभग पूरी दुनिया उठ खड़ी हुई है।
चीन के पास कौन-सा रास्ता?
अगर चीन अमेरिका के साथ-साथ यूरोपीय और एशियाई देशों के कोप से बचना चाहता है, तो उसे सभी देशों से माफी माँगनी चाहिए। साथ ही जाँच में ज़िद्दी अमेरिका का सहयोग करना चाहिए। यदि चीन ऐसा नहीं करता है, तो उसकी तरफ दुनिया का संदेह और बढ़ता जाएगा। हाल ही में अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने चीन पर सलाह दी थी कि वह कोरोना वायरस को लेकर जानकारी छिपाने की वजाय दुनिया के सभी देशों से बातचीत करे। उन्होंने कहा कि अगर चीन अपने वादे के मुताबिक, वास्तव में कोरोना वायरस की जाँच में सहयोग करना चाहता है, तो उसे सभी देशों और उनके वैज्ञानिकों को यह जानने का मौका देना चाहिए कि संक्रमण कैसे शुरू हुआ और यह किस तरह दुनिया में फैला?