यह साल 2017 की बात है। चीन चाहता था कि भारत उसके ‘वन बेल्ट वन रोड’ प्रोजेक्ट का हिस्सा बन जाये। भारत ने इन्कार कर दिया। इसके कुछ ही महीने के भीतर डाकोला के डोकलाम में भूटान रॉयल आर्मी ने चीन के सडक़ निर्माण का विरोध किया और भारत ने सुरक्षा समीकरणों की चिन्ता के मद्देनज़र भूटान का साथ दिया; जिससे पैदा हुआ तनाव 73 दिन तक चला और फिर समझौता हो गया। अब तीन साल बाद शीत मरुस्थल गलवान घाटी की नदी पर सडक़ और पुल निर्माण को लेकर चीन और भारत में खूनी संघर्ष हो गया। इस संघर्ष में भारत के 20 जवान शहीद हो गये। भारत और चीन के बीच ‘मोहब्बत के झूले’ के ऊपर अचानक जंगी जहाज़ों की गूँज सुनायी देने लगी है। दक्षिण एशिया की दो बड़ी ताकतों के बीच 3,488 किलोमीटर की साझा-सीमा के एक हिस्से में बना तनाव अचानक नहीं हुआ है। अप्रैल के मध्य से ही वहाँ चीन की गतिविधियाँ संदेहास्पद दिखने लगी थीं। उत्तरी कमान और सेंट्रल कमान के जीओसी-इन-सी रहे ले. जनरल एचएस पनाग कहते हैं- ‘चीन पहले से अपनी सेना (पीएलए) की नियमित तैनाती कर रहा था। यही नहीं, वह ऊँचे स्थानों पर कब्ज़ा, रिजर्व तैनाती और सैन्य व्यूह रचना भी कर रहा था। हम साफ संकेतों को समझने में विफल रहे।’
इससे कुछ ही समय पहले एक प्रभावशाली अमेरिकी थिंक टैंक ने कहा कि कोरोना वायरस की महामारी के बीच चीन का तत्काल लक्ष्य दक्षिण एशिया में भारत की चुनौती को सीमित करना है। हडसन इंस्टीट्यूट की ‘कोरोना-काल में अमेरिका और चीन के बीच प्रतिद्वंद्विता का वैश्विक सर्वेक्षण’ शीर्षक की रिपोर्ट में कहा गया कि चीन अमेरिका से भारत के प्रगाढ़ होते रिश्तों से चिन्तित है और अपने प्रभुत्व को चुनौती पैदा होते देख दक्षिण एशिया में भारत के सैन्य और आॢथक विस्तार को रोकना चाहता है।
इस खूनी झड़प के बाद कुछ पूर्व सैन्य अधिकारियों और अन्य विशेषज्ञों ने कहा कि चीन भारत के इलाके में घुसा है। वह लद्दाख की गलवान घाटी में फिंगर आठ से चार तक आ गया है। हालाँकि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 जून को एक सर्वदलीय बैठक बुलायी और कहा कि न तो भारत की सीमा में कोई घुसा है, न भारत की कोई पोस्ट ही किसी ने अपने कब्ज़े में की है। हालाँकि, हाल ही में सेटेलाइट से भेजी गयी तस्वीरों में गलवान घाटी में चीन के तम्बू और सैनिकों के दिखने का दावा किया गया है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि हमारे सैनिक दुश्मन को मारते-मारते मरे। विपक्ष, खासकर कांग्रेस नेता राहुल गाँधी पहले से ही चीन को लेकर सरकार को सचेत करने जैसे बयान दे रहे थे और अब लगातार पूर्व सैन्य अधिकारियों के चीन के भारत की सीमा में घुसने के आरोपों पर सरकार से सवाल पूछ रहे हैं। राहुल ने कहा कि हम शहीद हुए सैनिकों के परिवारों के साथ खड़े हैं। हम संकट की इस घड़ी में सरकार के साथ खड़े हैं; लेकिन उसे देश को सच बताना चाहिए। क्या चीन भारत की सीमा में घुसा और उसने हमारे जवानों की हत्या की?
यह एक गम्भीर सवाल है कि क्या चीन भारत की सीमा में घुसा है? चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर लगातार गतिविधियाँ कर रहा है और यह कोई रहस्य नहीं रहा है। चीन के सरकारी मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने लगातार ऐसी रिपोट्र्स और वीडियो जारी किये हैं, जिसमें चीनी सेना को अभ्यास करते हुए आक्रमक अंदाज़ में दिखाया गया है। हो सकता है कि चीन की यह मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा हो; लेकिन चीन ऐसा देश है, जिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। ले. जनरल एच.एस. पनाग ऐसे पहले पूर्व सेनाधिकारी थे, जिन्होंने इस तरफ भारत सरकार का ध्यान खींचा कि चीन भारतीय सीमा में घुसा है। पनाग साफ कहते हैं कि अप्रैल के आिखर से ही चीन की पीएलए ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के आसपास कई जगह घुसपैठ शुरू कर दी थी और उसकी टकराव की रणनीति साफ दृष्टिगोचर हो रही थी। चीन भारत पर सीमा-टकराव बढ़ाकर अपनी दादागिरी दिखाना चाहता था। उसका मकसद भारत के बुनियादी ढाँचे में सुधार की योजना को अपनी शर्तों के मुताबिक यथास्थिति बनाये रखने पर है। भारत के इन सुधारों को चीन अक्साई चीन के लिए खतरा मानता है। लेकिन सरकार (भारत सरकार) ने खतरे को नहीं पहचाना। हवा-हवाई कदम उठाये और ध्यान घरेलू राजनीति पर रखा। लद्दाख संकट को फौजी कार्रवाई की तरह नहीं लिया। इस रुख क नतीजा यह हुआ कि हमारे एक सैन्य कमांडिंग अफसर को उनकी फौज के सामने डंडे से पीटकर मार डालने जैसी भयानक घटना हुई। सैनिक तंत्र भी मोदी सरकार को यह सलाह देने में विफल रहा कि भारत को पेशेवर सैन्य प्रत्युत्तर देना चाहिए था।
सीमा पर चीन से इस तनाव के बीच यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या चीन के साथ यह टकराव एक सीमित या पूरे युद्ध में बदल सकता है? इसे लेकर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है। पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी.पी. मालिक कहते हैं कि इसकी सम्भावना नहीं दिखती। उनके मुताबिक, सम्भवत: न तो बड़े युद्ध, न ही सीमा पर किसी बड़े टकराव की सम्भावना मुझे दिखती है। यह स्थानीय स्तर का रहेगा, लेकिन इसके यह मायने नहीं कि हम सैन्य या राजनीतिक स्तर पर आत्मसंतुष्ट होकर बैठ जाएँ।
हालाँकि रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल डी.एस. हुड्डा इस मसले पर कहते हैं कि चीन ने इस बार तमाम प्रोटोकॉल तोड़े हैं। जो हिंसा हुई है, उसे मैं बहुत गम्भीर स्तर का मानता हूँ। यह डोकलाम की तरह स्थानीय घटना नहीं है और इसे सुनियोजित तरीके से किया गया है। डोकलाम का विवाद ट्राई जंक्शन (तिराहा) विवाद था और वहाँ सब चीज़ें सामने थीं। लेकिन इस बार वे (चीनी सैनिक) योजना बनाकर आये। सच कहें तो उन्होंने हमें चौंका दिया। अब दोनों देशों के बीच सैन्य अधिकारियों के स्तर पर बातचीत के कुछ दौर हुए हैं। विदेश मंत्री स्तर पर भी बयान आये हैं। लेकिन कूटनीति के स्तर पर कुछ होता नहीं दिखा है; जो कि आमतौर पर तनाव के बाद होता है। हाँ, दोनों देशों के बीच 24 जून को विदेश सचिव स्तर की एक बैठक ज़रूर हुई। भारत और चीन इसके बाद लगातार संवाद की बात कर रहे हैं। भारत बार-बार कह चुका है कि तनाव टालने के लिए सैन्य अधिकारियों की बातचीत हो रही है। लेकिन इसके विपरीत देखें, तो चीन की भाषा लगातार धमकाने वाली रही है। इसमें कोई दो-राय नहीं कि आज की तारीख में युद्ध न तो भारत और न ही चीन के लिए कोई समझदारी वाला विकल्प होगा। लेकिन बहुत-से जानकार मानते हैं कि इस टकराव में मनोविज्ञानिक बढ़त बहुत मायने रखती है।
हालाँकि यह रिपोर्ट लिखे जाने तक दोनों देशों के बीच संवाद की कोई गम्भीर कोशिश नहीं दिखी है। सैन्य अधिकारियों के बीच ज़रूर बातचीत के कई दौर हुए हैं। चीन से विवाद के मामले में कूटनीतिक स्तर पर भारत ने न तो दूसरे देशों को साथ जोडऩे की कोई कोशिश की है, न ही सीधे चीन और भारत के बीच बातचीत का कोई संकेत अभी तक उभरा है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ज़रूर रूस का दौरा किया; जिसके भारत से अच्छे सम्बन्ध हैं। भारत की कोशिश रूस से एस-400 ट्रायम्फ एंटी मिसाइल सिस्टम जल्दी लेने की है।
गलवान की स्थिति और विवाद
गलवान डोकलाम के मुकाबले दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र है और विवादित क्षेत्र अक्साई चिन में पड़ता है। जून के मध्य में जब वहाँ भारत और चीनी सेना में खूनी संघर्ष हुआ तब भी वहाँ तापमान शून्य डिग्री से नीचे था। इससे इस इलाके की कठिन स्थिति को समझा जा सकता है। यह घाटी लद्दाख और अक्साई चिन के बीच भारत-चीन सीमा के नज़दीक है और वहाँ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) अक्साई चिन को भारत से अलग करती है। अक्साई चिन पर भारत और चीन दोनों का दावा है। गलवान दक्षिणी चीन के शिनजियांग और भारत के लद्दाख तक फैली घाटी है; जो भारत के लिए सामरिक रूप से बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसका कारण यह है कि यह क्षेत्र पाकिस्तान, चीन के शिनजियांग और लद्दाख की सीमा के साथ लगा हुआ है।
भारत का कहना है कि वह (भारत) गलवान घाटी में अपने इलाके में सडक़ बना रहा है। चीन इसे रोकना चाहता है। जून के संघर्ष के पीछे बड़ा कारण यह सडक़ ही है। दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी मार्ग सामरिक दृष्टि से भारत को किसी युद्ध की स्थिति में बढ़त की स्थिति में ला देता है। काराकोरम दर्रे के पास जवानों तक रसद पहुँचाने के लिए इसकी बड़ी अहमियत है। एलएसी पर चीनी गतिविधियों ने भारत को चौकन्ना किया है। यह कहा जाता है कि चीन वहाँ पुल, सडक़ें और हवाई पट्टी तक का निर्माण करने में जुटा है।
इसे लेकर रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल डी.एस. हुड्डा कहते हैं कि उम्मीद करनी चाहिए कि बातचीत से यह तनाव खत्म या कम हो जाए। हालाँकि हुड्डा मानते हैं कि ऐसा होना आसान नहीं दिखता। उनके मुताबिक, चीन ने वहाँ घुसपैठ की कोशिश की है। चीन की पीएलए पूरी तैयारी से वहाँ आयी है। मैं मानता हूँ कि चीन किसी बड़ी लड़ाई में नहीं उलझना चाहता। लेकिन यह सब बातचीत पर निर्भर करेगा। चीन की दो कदम आगे और एक कदम पीछे की रणनीति को भी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।
जब भारत और चीन के बीच खूनी संघर्ष हुआ, तो वहाँ गलवान नदी पर बनाये जा रहे भारत के एक पुल का भी ज़िक्र आया। यह कहा गया है कि संघर्ष के बीच ही भारत ने उस पुल का निर्माण काम पूरा कर लिया। भारत की रणनीतिक दृष्टि से यह पुल काफी अहम है। करीब 60 मीटर लम्बे इस पुल को सेना के इंजीनियर और जवान बना रहे हैं।
इस पुल से सेना के वाहन दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) में स्थित भारत की अंतिम पोस्ट तक सुगमता से पहुँच सकते हैं। ज़ाहिर है कि इससे डीबीओ रोड की सुरक्षा भी मज़बूत होगी। चीन इस पुल के निर्माण को रोकने की तमाम कोशिशें करता रहा है। गलवान नदी पर पुल बनने से भारत को उस पार जाने के लिए गलवान नदी के सूखने का इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा। वैसे नदी पर पहले से एक फुटओवर ब्रिज ज़रूर था, जो पैदल जाने के लिए था। पुल से वाहनों के जाने का रास्ता खुल गया।
घटनाक्रम
यह 15-16 जून की दरमियानी रात की घटना है, जब गलवान इलाके में भारतीय और चीनी सैनिकों में हिंसक भिड़ंत हुई। इसकी जानकारी देश की आम जनता को कई घंटे के बाद मिली। पहले सरकार ने कहा कि इसमें भारत के एक अफसर सहित तीन जवान शहीद हुए हैं। लेकिन शाम होते-होते यह खबर आयी कि तीन नहीं, बल्कि इस भिड़ंत में 20 भारतीय जाँबाज़ शहीद हुए हैं। सेना की तरफ से बताया गया कि भारत के 17 सैनिक हिंसक झड़प में गम्भीर रूप से घायल भी हो गये थे; जिनकी बाद में मौत हो गयी।
झड़प को लेकर जानकारी सरकार की तरफ से खुलकर सामने नहीं आ रही थी; जिसे लेकर विपक्ष, खासकर कांग्रेस ने प्रधानमंत्री मोदी से जानना चाहा कि वास्तव में वहाँ हुआ क्या है? सेना की तरफ से 20 सैनिकों के शहीद होने की खबर आयी। इसके दो दिन बाद मीडिया में यह रिपोर्ट आने से हडक़म्प मच गया कि चीन ने भारत के 10 सैनिकों को अपने कब्ज़े में कर लिया था, जिन्हें तीन दिन की बातचीत के बाद जाकर छोड़ा गया। सरकार ने अपनी तरफ से इस मसले पर एक शब्द भी नहीं कहा।
इस तरह सरकार की तरफ से जानकारी न मिलने से देश में बेवजह का भ्रम भी बना। इस बीच शहीद सैनिकों के पाॢथव शरीर उनके घर आने शुरू हो गये थे, जिससे देश में गम और गुस्से का माहौल बना गया। विपक्ष लगातार मोदी सरकार पर हमला कर रहा था। उसने सीमा पर तनाव वाले माहौल में भी भाजपा की वर्चुअल राजनीतिक बैठकें होने पर भी कड़ा विरोध किया।
पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अतिक्रमण के मसले पर पहले से दोनों देशों के बीच तनातनी बनी हुई थी। कुछ दिन पहले 5 जून को ही सैनिक आपस में उलझ चुके थे। घटना के बाद देश में काफी सरगर्मी बढ़ गयी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शाम को ही सुरक्षा मामलों पर कैबिनेट कमेटी की बैठक बुलाकर हालात का जायज़ा लिया। बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी मौज़ूद रहे।
घटना के मुताबिक, गलवान घाटी में चीन के सैनिकों के सहमति के मुद्दे से पलटने के बाद दोनों देशों की सेनाओं के बीच तीन घंटे तक पत्थरबाज़ी और लाठी-डण्डे से ज़बरदस्त झड़प हुई। तेलंगाना के शहीद कर्नल संतोष बाबू भारतीय टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे; जिन पर चीन के सैनिकों ने पहले हमला किया। इसके बाद यह तनातनी खूनी झड़प में बदल गयी।
चीन के कितने सैनिक इस घटना में हताहत हुए, इसे लेकर आज तक कोई आधिकारिक जानकारी सामने नहीं आयी है। भारत में कुछ रिपोट्र्स में 43 चीनी सैनिकों के मरने की रिपोट्र्स ज़रूर छपी हैं। खुद चीन इस पर चुप्पी साधे हुए है, हालाँकि बीच में उसके एक कमांडर के मरने की भी खबर आयी। इसके बाद कई बार भारत और चीन के सैन्य अधिकारियों की बैठकें हुई हैं। भारतीय सैनिकों पर एलएसी का अतिक्रमण करने के चीन के आरोपों को खारिज करते हुए भारत ने साफ कर दिया कि तनाव घटाने के लिए वह बातचीत को राज़ी है; लेकिन चीन की ऐसी हरकतों का माकूल जवाब दिया जाएगा।
घटना के बाद जो खबरें सामने आयीं, उनके मुताबिक, 15 जून की रात गलवान घाटी में झड़प की शुरुआत चीनी सैनिकों के रुख बदलने से हुई। मोर्चे पर दोनों सेनाओं के बीच बनी सहमति के अनुरूप चीनी सैनिक गलवान घाटी से निकलने पर राज़ी हो गये। लेकिन कुछ ही देर बाद पलटकर भारतीय सैनिकों पर पत्थरों से हमला करने लगे। चीनी सैनिक संख्या में काफी अधिक थे।
इस घटना के बाद लेह के आसमान में भारतीय वायुसेना के युद्धक विमानों और हेलिकॉप्टरों की उड़ानें अब हो रही हैं। भारतीय वायुसेना के प्रमुख एयरचीफ मार्शल आर.के.एस. भदौरिया ने लेह और श्रीनगर एयरबेस का दौरा किया। सेनाध्यक्ष नरवणे भी अग्रिम क्षेत्र तक दौरा करके आये और सैनिकों का हौसला बढ़ाया। सेना कह चुकी है कि सरकार ने यदि चीन के खिलाफ किसी प्रकार के सैन्य प्रतिक्रिया का फैसला किया, तो सेना तुरन्त हामी भरने (शत्रु को जवाब देने) की स्थिति में है। भारत ने पहले ही सेना के तीनों अंगों को अलर्ट कर दिया है।
चीन के साथ लगी करीब 3,500 किलोमीटर की सीमा पर भारतीय थल सेना और वायु सेना के अग्रिम मोर्चे पर स्थित ठिकानों को बुधवार को हाई अलर्ट किया जा चुका है। वहीं, भारतीय नौसेना को हिन्द महासागर क्षेत्र में अपनी सतर्कता बढ़ा देने को कहा गया है, जहाँ चीनी नौसेना की नियमित तौर पर गतिविधियाँ होती हैं। इस बीच सीडीएस जनरल बिपिन रावत और सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों के साथ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की कई बैठकें हुई हैं।
अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास अग्रिम मोर्चे पर तैनात सभी ठिकानों और टुकडिय़ों के लिए सेना पहले ही अतिरिक्त जवानों को भेज चुकी है। भारतीय वायु सेना भी अग्रिम मोर्चे वाले अपने सभी ठिकानों अलर्ट बढ़ाते हुए एलएसी पर नज़र रख रही है। वहीं चीन की नौसेना को कड़ा संदेश देने के लिए भारतीय नौसेना हिन्द महासागर क्षेत्र में अपनी तैनाती बढ़ा रही है।
क्या था शान्ति समझौता?
यह बहुत हैरानी की बात है कि चीन-भारत के बीच झड़प को लेकर मीडिया ने दोनों देशों के बीच हथियार इस्तेमाल न करने को लेकर तथ्यों को अधूरे ढंग से पेश किया।
दरअसल भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एएलसी) सीमा पर पैट्रोलिंग को लेकर 29 नवंबर, 1996 को नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार के समय एक शान्ति समझौता हुआ था। इस समझौते को बाद में 11 अप्रैल, 2005 और 23 अक्टूबर, 2013 के समझौतों में यथावत् रखा गया। इस समझौते में कहा गया था कि दोनों के सैनिकों के बीच तनाव कोई गम्भीर रुख न ले-ले, इसलिए पैट्रोलिंग के दौरान दोनों के सैनिक हथियार का इस्तेमाल नहीं करेंगे।
हाल की झड़प के बाद समझौते की इसी पंक्ति को मीडिया और अन्य ने दोहराया है। लेकिन इस समझौते के क्लॉज-6 में कुछ और भी लिखा है, जिसे कोई बता नहीं रहा। इसमें एक जगह यह भी कहा गया है कि सीमा पर यदि किसी तरह की रणनीतिक सैन्य स्थिति बनती है; या जवानों का जीवन खतरे में पड़ता है; या पोस्ट की सुरक्षा को खतरा उत्पन होता है, तो ऐसी स्थिति में दोनों देशों के कमांडर सभी तरह के हथियार इस्तेमाल कर सकते हैं। इस क्लॉज को नज़रअंदाज़ करके सिर्फ एक ही पक्ष के आधार पर समझौते का उदाहरण देना गलत है। यह समझौता था ही जवानों की ज़िन्दगी को खतरे से बचने के लिए। फिर भारत के 20 जवानों की शहादत की स्थिति में समझौते की क्या अहमियत रह जाती है? यह बात तो सामने आयी है कि इस खूनी झड़प में हथियारों का इस्तेमाल नहीं हुआ।
लेकिन ‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, जिस क्रूरता से चीन के सैनिकों ने भारतीय सैनिकों को मारा, वो हैवानियत की तमाम हदें पार करने जैसा है।
लेह में घायल सैनिकों की हालत बताती है कि चीन ने बर्बरता की है। खबर यह मिली है कि कुछ सैनिकों को नदी में डुबोकर उनकी जान ली गयी। अन्य शहीदों के चेहरे और शरीर गहरे ज़ख्मों से भरे पड़े थे; जिससे लगता कि छड़ों में तार लपेटकर उन्हें बेरहमी से पीटा गया। निश्चित ही इससे यह ज़ाहिर होता है कि चीनी सैनिक हमला करने के ही इरादे से पहले से तैयारी करके आये थे।
पूर्व सेना अध्यक्ष जनरल वी.पी. मलिक ने कहा कि यह घटना पुरानी घटनाओं से थोड़ी अलग है। इस बार बड़ी संख्या में चीन के सैनिक एलएसी में भारतीय सीमा में घुसे। एक तरफ बातचीत भी चल रही थी और दूसरी तरफ वे हिंसात्मक रुख अपनाने के मूड में भी थे। यह चीन की पुरानी आदत रही है कि वह कहता कुछ है और करता कुछ है। ऐसे में भारत को ज़्यादा सँभलकर रहने और निगरानी करने की ज़रूरत है।
भारत-चीन के बीच व्यापारिक स्थिति
चीन के साथ खूनी संघर्ष के बाद भारत में गुस्से की लहर है। चीनी उत्पादों की बिक्री के वहिष्कार की माँग हो रही है और चीनी राष्ट्रपति शी जिन पिंग के पुतले जलाये जा रहे हैं। भारत के रेल मंत्रालय ने एक प्रोजेक्ट से चीन की कम्पनी को यह कहकर हटा दिया है कि उसके काम की रफ्तार बहुत धीमी है। चीनी एप्स हटाने की मुहिम भी ज़ोर पकड़ रही है।
हालाँकि इस खूनी संघर्ष के चन्द दिनों के भीतर ही यह खबर भी आयी कि मोदी सरकार ने अपने दिल्ली-मेरठ सेमी हाई स्पीड रेल कॉरिडोर का ठेका एक चीनी कम्पनी को देने का फैसला किया है। करीब 1100 करोड़ के इस ठेके को लेकर सरकार चुप है; लेकिन यह ज़रूर कहा गया है कि यह बोली समुचित प्रक्रिया के तहत और भारतीय कम्पनियों को बराबर का मौका देते हुए पूरी की गयी। इस पर अंतिम स्थिति को लेकर अभी भी भ्रम है। बहुत-से जानकार यह ज़रूर कहते हैं कि भारत चीन के उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ा सकता है। इससे चीनी उत्पादों के आयात पर काफी नियंत्रण लग सकता है। लेकिन अभी इसे लेकर कुछ कहना मुश्किल है।
कुछ जानकार यह भी कहना है कि व्यापारिक शिखर पर चीन के साथ भारत सब कुछ एकदम खत्म कर दे; यह सम्भव नहीं है। चीन भारत के सबसे बड़े कारोबारी साझेदार में से एक है। कई क्षेत्रों में चीन की भारत में गहरी घुसपैठ है। स्मार्टफोन के 65 फीसदी बाज़ार पर चीनी कम्पनियों का कब्ज़ा है; जबकि भारत के स्टार्टअप में चीन की कम्पनियों का खरबों डॉलर का निवेश है। भारत के कुल विदेशी व्यापार में चीन की हिस्सेदारी 10.1 फीसदी है। भारत के कुल निर्यात में चीन का हिस्सा महज़ 5.3 फीसदी है, जबकि कुल आयात में चीन का हिस्सा 14 फीसदी है।
चीन और हॉन्गकॉन्ग को जोड़ लें, तो यह भारत के अमेरिका से भी बड़े व्यापारिक साझेदार बन जाते हैं।
रिकॉर्ड के मुताबिक, 2019-20 में चीन-हॉन्गकॉन्ग से भारत का कुल व्यापार 103.53 अरब डॉलर (करीब 7,88,759 करोड़ रुपये) का हुआ, जबकि इसी दौरान अमेरिका के साथ यह इससे कम 82.97 अरब डॉलर (करीब 6,32,120 करोड़ रुपये) था। यदि खरीद क्षमता (परचेजिंग पॉवर) के हिसाब से देखें, तो भी चीन सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था है। वह दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है। विदेशी निवेश में उसकी सरप्लस सेविंग्स (अधिशेष बचत) सबसे ज़्यादा हैं। टेलिकॉम, सोलर एनर्जी, इलेक्ट्रिक रिक्शा और स्टोरेज बैट्रीज में वह वल्र्ड लीडर (विश्व नेता) है।
भारत राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े क्षेत्र में आयात और एफडीआई पर लिमिट (सीमा) तय कर सकता है। क्योंकि साउथ चाइना-सी को लेकर आसियान देशों ने चीन के बायकॉट की नहीं, मज़बूत सहयोगी बनाने की रणनीति अपनायी है। लेकिन देश में इसके विपरीत चीन के खिलाफ आम जनता में गुस्सा है। स्वदेशी जागरण मंच जैसे संगठन चीन की चीज़ों के वहिष्कार को लेकर सडक़ों पर हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार से चीन के उत्पादों पर सख्त प्रतिबन्ध की माँग उठायी है। मंच इसी 12 जून को हुई बिडिंग में चीन की शंघाई टनल इंजीनियरिंग कम्पनी लि. को दिल्ली-मेरठ आरआरटीएस कॉरिडोर में न्यू अशोक नगर से साहिबाबाद के बीच 5.6 किमी तक अंडरग्राउंड सेक्शन के निर्माण के ठेके का कड़ा विरोध कर चुका है।
आपको जानकार हैरानी होगी कि कुछ समय पहले बांग्लादेश के विदेश मंत्री ए.के. अब्दुल मोमिन ने चीन के साथ भारत के उत्पाद शुल्क को लेकर सन्धि पर विरोध के स्वर उठाये हैं। यह पहली बार है, जब ऐसा हुआ है। 01 जुलाई से लागू होने वाले इस समझौते के तहत चीन 97 फीसदी बांग्लादेशी उत्पादों पर शुल्क नहीं लगायेगा। लेकिन बांग्लादेश के विदेश मंत्री चीन की इस घोषणा पर भारत के रुख से सख्त नाराज़ हैं।
राजनीतिक तू-तू, मैं-मैं बढ़ी
चीन और भारत में झड़प के बाद देश में राजनीति भी तेज़ हो गयी है। विपक्ष इस बात से बहुत नाराज़ रहा कि सीमा पर चीन से खूनी झड़प में भारत के 20 बहादुर जवान शहीद हो गये और सरकार के कुछ लोग इसमें बिहार रेजिमेंट को सामने रखकर बिहार चुनाव की रोटियाँ सेंकने में जुट गये हैं। भाजपा ने इसका खण्डन किया और कहा कि राजनीति तो कांग्रेस और दूसरे विपक्षी कर रहे हैं।
कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने लद्दाख में गतिरोध को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि भारत अपनी ज़मीन वापस लेने के लिए बातचीत कर रहा है; जबकि प्रधानमंत्री सार्वजनिक रूप से चीन के दावे समर्थन कर रहे हैं।
राहुल गाँधी ने 24 जून को ट्वीट किया- ‘चीन ने हमारी ज़मीन ले ली। भारत उसे वापस लेने के लिए बातचीत कर रहा है। चीन कहता है कि यह भारत की ज़मीन नहीं है। प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक रूप से चीन के दावे का समर्थन कर दिया है। प्रधानमंत्री चीन का समर्थन क्यों कर रहे हैं और भारत और हमारी सेना का क्यों नहीं? चीन को हमारी ज़मीन पर अस्वीकार्य कब्ज़ा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।’
इसके जवाब में भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने कहा- ‘सत्ता से बेदखल कर दिया गया राजवंश पूरे विपक्ष के बराबर नहीं हो सकता है। एक राजवंश और उसके वफादार दरबारियों को पूरे विपक्ष के एक होने का भ्रम है। एक राजवंश ने कुछ सवाल उठाये और उसके वफादार दरबारियों ने झूठ फैलाया।’
दरअसल भाजपा को कोरोना, लॉकडाउन से उपजी परिस्थितियों में अपने ग्राफ के गिरने का भय है। इस बीच चीन से झड़प में 20 भारतीय सैनिकों के शहीद होने और जिस तरह इस झड़प की खबरों को टुकड़ों-टुकड़ों में सरकार सामने लायी, उससे उस पर लोगों के भरोसे को चोट पहुँची है। अब भाजपा पूरी तरह कांग्रेस, खासकर राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी पर हमलावर हो रही है। वह राहुल और कांग्रेस के हर बयान को देश के सैनिकों का अपमान बता रही है। इन आरोपों का कारण निश्चित ही राजनीतिक है। सरकार को लेकर जनता के मन में बहुत-से सवाल पैदा हुए हैं। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने एक-दो कार्यक्रमों में बिहार-रेजीमेन्ट शब्द का ज़िक्र कर चुके हैं। चुनाव और चीन में बिहार रेजिमेंट के इस घटना से जुड़े होने को लेकर भी बहुत सवाल उठाये जा रहे हैं। निश्चित ही इन्हें दुर्भाग्य पूर्ण कहा जाएगा; क्योंकि सेना देश की होती है और किसी को भी इसे बिहार रेजिमेंट या किसी और राज्य के रेजिमेंट के रूप में परिभाषित नहीं करना चाहिए।
यह काफी मुश्किल हालात हैं। हम भारत और चीन से बात कर रहे हैं। वहाँ काफी समस्या है। भारत चीन के बीच स्थिति विस्फोटक है और हम उनकी मदद करने की कोशिश कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि दोनों की मदद करें और बात से मामला सुलझ जाए। दोनों ही देशों की स्थितियाँ इस समय खराब है। लेकिन हम इस पर नज़र बनाये हुए हैं और उत्पन्न हुए इस तनाव को सुलझाने का प्रयास भी करेंगे। हमने यह भी कहा है कि भारत और चीन के सीमा-विवाद पर अमेरिका मध्यस्थता करने को इच्छुक और समर्थ है।
डोनाल्ड ट्रंप, राष्ट्रपति, अमेरिका
हमारे जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। हम किसी को कभी उकसाते नहीं हैं; लेकिन अपनी संप्रभुता और अखण्डता से भी कोई समझौता नहीं करते हैं। जब भी समय आया है, हमने देश की अखण्डता और संप्रभुता की रक्षा करने में अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया है; अपनी क्षमताओं को साबित किया है। मैं देश को भरोसा दिलाना चाहता हूँ कि हमारे जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। हमारे लिए भारत की अखण्डता और संप्रभुता सर्वोच्च है और इसकी रक्षा करने से हमें कोई रोक नहीं सकता। इस बारे में किसी भी ज़रा भी संदेह नहीं होना चाहिए। भारत शान्ति चाहता है। लेकिन उकसाने पर यथोचित जवाब देने में सक्षम है। देश को इस बात का गर्व होना चाहिए कि हमारे जवान मारते-मारते मरे हैं।
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अब हमारे सामने बड़े संकट की स्थिति है। इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि अप्रैल-मई, 2020 से लेकर अब तक चीन की सेना ने पैंगोंग त्सो झील क्षेत्र और गलवान घाटी, लद्दाख में हमारी सीमा में घुसपैठ की है। अपने चरित्र के अनुरूप, सरकार सच्चाई से मुँह मोड़ रही है। घुसपैठ की खबरें और जानकारी 5 मई, 2020 को आयी। समाधान के बजाय, स्थिति तेज़ी से बिगड़ती गयी और 15-16 जून को हिंसक झड़पें हुईं। 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए, 85 घायल हुए और 10 लापता हो गये; जब तक कि उन्हें वापस नहीं किया गया। प्रधानमंत्री के बयान ने पूरे देश को झकझोर दिया; जब उन्होंने कहा कि किसी ने भी भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ नहीं की। राष्ट्रीय सुरक्षा और भूभागीय अखण्डता के मामलों पर पूरा राष्ट्र हमेशा एक साथ खड़ा है और इस बार भी किसी दूसरी राय का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। कांग्रेस ने सबसे पहले आगे बढक़र हमारी सेनाओं और सरकार को अपना पूरा समर्थन देने के घोषणा की। हालाँकि लोगों में यह भावना है कि सरकार स्थिति को सँभालने में गम्भीर रूप से असफल हुई है। भविष्य का निर्णय आगे आने वाला समय करेगा; लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि हमारी क्षेत्रीय अखण्डता की रक्षा के लिए सरकार के उठाये जाने वाला हर कदम परिपक्व कूटनीति और मज़बूत नेतृत्व की भावना से निर्देशित होंगे। हम सरकार से आग्रह करते हैं कि अमन, शान्ति और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पहले जैसी यथास्थिति की बहाली हमारे राष्ट्रीय हित में एकमात्र मार्गदर्शक सिद्धांत होना चाहिए। हम स्थिति पर लगातार नज़र बनाये रखेंगे।
सोनिया गाँधी, कांग्रेस अध्यक्ष (सीडब्ल्यूसी बैठक, 23 जून, 2020)
हमें नहीं लगता कि भारत और चीन को सीमा विवाद सुलझाने के लिए किसी तीसरे देश की मदद की ज़रूरत है। मुझे नहीं लगता कि भारत और चीन को बाहर से कोई मदद चाहिए। मुझे नहीं लगता कि उन्हें मदद करने की आवश्यकता है; खासकर जब यह देश का मुद्दा हो। वो उन्हें अपने दम पर हल कर सकते हैं। इसका मतलब है कि हाल की घटनाओं को वो खुद हल कर सकते हैं। हम आशा करते हैं कि दोनों देशों में स्थिति शान्तिपूर्ण बनी रहेगी और वो विवादों के शान्तिपूर्ण समाधान के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे।
सर्गेई लावरोव
रूस के विदेश मंत्री