‘चक्कर का चक्कर’

इरफान
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‘चक्कर’ आना एक बेहद आम-सी तकलीफ है. यह कहने के बाद मैं इसमें यह बात जोड़ना चाहूंगा कि ‘चक्कर आने’ वाले मरीज को ‘चक्कर’ होता ही नहीं फिर भी वह न केवल यही कहता फिरता है कि मुझे चक्कर आ रहे हैं बल्कि डॉक्टर भी चक्कर की दवाएं देते रहते हैं. यह विरोधाभास की स्थिति है, पर है. ऐसा क्यों है? पहले यह जान लें. फिर ‘चक्कर’ की भी बात करेंगे. दरअसल, हम स्वयं भी ‘चक्कर आने’ का बयान बेहद गैरजिम्मेदारी से देते हैं और डॉक्टर भी उतनी ही गैरजिम्मेदारी से उसी को सच मानकर, बिना आगे पूछताछ/पड़ताल किए दवा भी पकड़ा देता है. ठीक-सा न लगना, कमजोरी लगना, थका होना, मन न लगना, आंख के सामने अंधेरा-सा छाना, लड़खड़ाना, बुखार-सा लगना, सिर में सनसनाहट-सी होना, जिंदगी में मजा न आना, भूख न लगना आदि कुछ भी हो रहा हो, हम डॉक्टर को कहते हैं कि डॉक्टर सा’ब, चक्कर-से आ रहे हैं. ‘चक्कर’ शब्द का यह निहायत गलत इस्तेमाल है जो डॉक्टर को भटका सकता है. यदि घूमने का अहसास नहीं है तो फिर या तो कुछ और ही बीमारी है या फिर वह ‘स्यूडो वर्टिगो’ (झूठा चक्कर) है.

इसीलिए मैं आपको चक्कर के बारे में थोड़ा-सा ज्ञान देना चाहूंगा. इससे आप ‘चक्कर विशेषज्ञ’ हो जाएंगे, यह तो नहीं कहता परंतु यह अवश्य जान जाएंगे कि ‘सही चक्कर’ क्या तथा क्यों होता है. यह ज्ञान प्राप्त करके यदि आप ‘चक्कर’ को ही ‘चक्कर’ कहना सीख जाएंगे तो आपका बड़ा भला होगा. जैसा कि मैंने कहा चक्कर का मतलब है ‘घूमने’ की अनुभूति. जैसी कभी-कभी आपको झूले में बैठकर हो जाती है न, वैसी ही. आसपास की वस्तुएं घूमती-सी लगेंगी. ऐसा लगे, तभी यह सही मायने में चक्कर है. कमजोरी लगती है तो यही बताएं कि कमजोरी लगती है. यह जो घूमने की अनुभूति होती है वह शरीर के ‘बैलेंसिंग मेकेनिज्म’ के गड़बड़ा जाने से होती है. इसीलिए जब भी आप ‘चक्कर’ कहते हैं तो डॉक्टर की सोच तुरंत उस चक्कर की तरफ चली जाती है जो आपके ‘बैलेंसिंग मेकेनिज्म’ की खराबी से पैदा हो सकता है. डॉक्टर फिर उसी की दवाई भी दे देता है. अब मान लो कि यदि वह सही मायनों में चक्कर था ही नहीं तो? आप तो फालतू ही ‘बैलेंसिंग’ ठीक करने वाली दवाइयां खाते चले जाएंगे न? तब ‘मर्ज बढ़ता गया, ज्यों ज्यों दवा की’ वाली स्थिति हो जाएगी न आपकी? तब तो शरीर के ‘बैलेंसिंग मेकेनिज्म’ के बारे में भी थोड़ा पता चल जाए तो बड़ी कृपा कहाएगी डॉक्टर-कम-लेखक महोदय. बिलकुल. हम बताते हैं न. देखिए, ‘चक्कर’ क्या है? बैलेंस की गड़बड़ी ही न? आपके शरीर का बैलेंस बिगड़ते ही तो चक्कर-सा लगता है न? तो यह भी जान लें कि शरीर अपना बैलेंस कैसे बनाए रखता है? बैलेंस ठीक रखने, उस पर नियंत्रण रखने के लिए दो तरह के सिस्टम हैं हमारे शरीर में. एक सिस्टम तो हमारे मस्तिष्क  में है और दूसरा मस्तिष्क से बाहर, हमारे कान के अंदर. यह बात का अतिसरलीकरण तो है पर बात जितनी सरल हो सके उतना ही अच्छा. तो कान में स्थिति ‘अंातरिक कान’ की अतिसंवेदनशील पतली नलियों में बह रहे द्रव्य या कण चौबीसों घंटे शरीर की पोजिशन तथा बैलेंस पर निगाह रखकर मस्तिष्क में स्थित हेड ऑफिस को खबर देते रहते हैं जहां पूरे शरीर से भी बैलेंस की सूचनाएं पहुंचती रहती हैं. हेड ऑफिस का मेडिकल नाम ‘सेरीबेलम’ नाम का मस्तिष्क का हिस्सा है. सोते, जागते, नशे में, होश में – यही सिस्टम आपको गिरने नहीं देता, या छोड़ देता है तो आप (दारू पीकर) नाली में घुस जाते हैं.

आप कहेंगे कि बात पूरी तरह समझ में नहीं आई. करें क्या? बड़ा पिचपिच वाला सिस्टम ही है. इतना ही समझ सकें तो बड़ी बात कहलाएगी कि चक्कर या तो कान के ‘बैलेंसिंग मेकेनिज्म’ के खराब होने से आएगा, या फिर मस्तिष्क की बीमारी से. कान की बीमारियों से लगाकर आंतरिक कान के वायरल इन्फेक्शन आदि से जो चक्कर आएगा उसमें बहरापन, कान की सनसनाहट आदि भी साथ में होंगे. ब्रेन के कारण जो चक्कर आएंगे उसमें चक्कर के साथ एक चीज का दो-दो दिखना (डबल विजन), गटकने में तकलीफ, लड़खड़ाहट, लकवा आदि भी मिलेंगे. तो सही मायने में कभी चक्कर हो तो ध्यान दें कि साथ में इन तकलीफों में से भी कुछ हो रहा है क्या. यदि यह सूचना डॉक्टर को बता देंगे तो वह सतर्क हो जाएगा. वर्ना एक अच्छा डॉक्टर तो वैसे भी स्वयं ही यह सब आपसे पूछेगा ही.

तो, अंततः इसी सारी राम कहानी तथा प्रवचन से आपने क्या सीखा? या क्या कराना चाह रहा था मैं? मेरे इस लेख के कुछ महत्वपूर्ण संदेश इस प्रकार हैं –

पहला संदेशः चक्कर आने का मेडिकल तात्पर्य होता है घूमने की अनुभूति. आपके चारों तरफ की चीजें घूम रही हैं, जब तक यह न लगे तब तक डॉक्टर को यह न कहें कि चक्कर आ रहा है.

दूसरा संदेशः यदि घूमने की अनुभूति न लगे पर ‘चक्कर-सा’ लगता है तो सोचकर साफ बताएं कि वह क्या चीज है जिसे आप ‘चक्कर-सा’ कह रहे हैं.

तीसरा संदेशः चक्कर के साथ और क्या तकलीफें हो रही हैं, इस पर भी ध्यान दें. डॉक्टर को बताएं.

चौथा संदेशः प्रायः चक्कर स्वयं सीमित बीमारी है, परंतु कई बार यह ब्रेन आदि की किसी अत्यंत सीरियस बीमारी का द्योतक भी हो सकता है. यह ब्रेन ट्यूमर से लगाकर लकवे जैसी स्थिति का संकेत भी हो सकता है. इसलिए चक्कर हो, और सही में चक्कर ही हो तो डॉक्टर को अवश्य दिखा लें.

कुल लब्बोलुआब यह कि ‘चक्कर आ रहा है’ कहने से पहले सोच लें कि आप कह क्या रहे हैं और उसका मतलब भी समझा पा रहे हैं कि नहीं. बाद में डॉक्टर को गरियाते रहने से कुछ न होगा.