बड़ी आशाओं के साथ जनता पार्टी सरकार 1977 में सत्ता में आई थी. पर जब यह लगने लगा कि यह व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ रही है तो उस वक्त सरकार चलाने वालोें को कुछ शुभचिंतकों ने सलाह दी कि इन टकरावों को टालने का रास्ता यह है कि किसी युवा नेता को प्रधानमंत्री बना दिया जाए. उस वक्त जिन नेताओं का नाम चल रहा था उनमें चंद्रशेखर का नाम सबसे पहले था. व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के शिकार नेताओं ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया. कई राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अगर 1977 की जनता सरकार की कमान चंद्रशेखर के हाथों में दे दी जाती तो वहां से देश के राजनीतिक इतिहास में नया मोड़ आ सकता था. गैरकांग्रेसवाद की एक मजबूत शुरुआत हो सकती थी. लेकिन ऐसा हो न पाया और जनता पार्टी सरकार आधा कार्यकाल भी पूरा न कर सकी.
प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से अपनी राजनीति शुरू करने वाले चंद्रशेखर पहली बार लोकसभा 1967 में कांग्रेस के टिकट पर पहुंचे थे. लेकिन भारतीय राजनीति में युवा तुर्क कहे जाने वाले चंद्रशेखर ने कांग्रेस में रहते हुए भी इंदिरा गांधी की गलत नीतियों का विरोध किया. यह उस दौर में बड़ी बात थी. 1975 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. आपातकाल के दौरान वे जनता पार्टी के अध्यक्ष बने.1977 के प्रयोग की असफलता के बाद जब 1988 में वीपी सिंह की अगुवाई में एक ऐसे ही प्रयोग की बात आई तो चंद्रशेखर इसमें शामिल हुए. राजीव गांधी की सत्ता उखड़ गई और वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने. लेकिन इस सरकार के कामकाज से वे खुश नहीं थे.1990 में वे इससे 64 सांसदों के साथ अलग हो गए. राजीव गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस के समर्थन से वे 10 नवंबर, 1990 को प्रधानमंत्री बने. हालांकि, उनका और कांग्रेस का साथ चला नहीं और कुछ ही महीनों में कांग्रेस ने उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया.